नमस्कार दोस्तों! हमारे भारत देश को आजाद करने के लिए किसी ने हिंसा का सहारा लिया तो किसी ने अहिंसा के सहारे भारत देश को आजाद करने में अपना योगदान दिया। चंद्रशेखर आज़ाद, सुभाषचंद्र बोज, भगतसिंह, राजगुरु जैसे महान स्वंत्रता सेनानी भारत देश को आज़ाद करने में अपने प्राणों तक का त्याग कर दिया। ऐसा एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी आचार्य विनोबा भावे भी थी। जिनका आजादी की जंग में महत्वपूर्ण योगदान रहा है। गाँधीजी, सरदार वल्लभभाई पटेल, जावह लाल नेहरु, जैसे महान व्यक्तिओ में आचार्य विनोबा भावे का नाम अंकित किया गया है। विनोबा मनुष्य के अधिकार और अहिंसा के लिए हमेश कार्यरत रहते थे। भूदान आंदोलन में आचार्य विनोबा भावे का बहुत बड़ा योगदान रहा था, जो राष्ट के निर्माण के लिए किया गया था। इनका यह योगदान भारत देश के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण साबित हुआ था। अपना सारा जीवन उन्हों ने राष्ट के निर्माण में लगाया था। विनोबा भावे हमेशा से ही गाँधी जी के बताए मार्ग पर चला करते थे। वे महात्मा गांधी जी के चाहिते शिष्यों में से एक थे।
पूरा नाम | विनायक नारहरी भावे |
दूसरा नाम | आचार्य विनोबा भावे |
जन्म | 11 सितम्बर सन 1895 |
जन्म स्थान | गगोद पेन, रायगढ़ जिला महाराष्ट्र |
धर्म | हिन्दू |
जाति | चित्पावन ब्राम्हण |
पिता का नाम | नरहरी शम्भू राव |
माता का नाम | रुक्मिणी देवी |
भाइयों के नाम | बालकृष्ण, शिवाजी, दत्तात्रेय |
कार्य | समाज सुधारक, लेखक, चिन्तक , स्वतंत्रता सेनानी |
मृत्यु | 15 नवम्बर सन 1982 |
आचार्य विनोबा भावे का प्रारंभिक जीवन (Early Life of Acharya Vinoba Bhave)
आचार्य विनोबा भावे का जन्म गागोद पेन, रायगढ़ जिले में 11 सितम्बर 1895 साल में हुआ था। विनोबा भावे का मूल नाम विनायक नरहरी भावे था। उनके पिता का नाम नरहरी भावे और उनकी माता का नाम रुक्मिणी देवी था। आचार्य विनोबा भावे का बचपन का नाम विनय था उनकी मा उन्हें प्यार से विन्या कहर बुलाती थी। विनोबा भावे के दो भाई थे एक का नाम शिवाजी और दुसरे का नाम दत्तात्रय था। विनोबा के पिता नरहरी भावे गणित के प्रमी और वैज्ञानिक सुझबुझ वाले व्यक्ति थे। नरहरी की रूचि रसायन विज्ञानं में हमेशा से ही थी उस समय दौरान रंगो को बहार के देशो से आयात किया जाता था। नरहरी भावे रात दिन रंगो की खोज में लगे रहते थे वे चाह्ते थे, की भारत को इस मामले में आत्मनिर्भर बनाया जा सके। विनोबा भावे की माता रुक्मिणी देवी विदुषी महिला थी। वे हमेश कृष्ण की भक्ति में डूबी रहती दिन रात भागवत गीता का जाप करती रहती थी। मा का स्वभाव विनायक जी में भी पाया गया था। वे हमेशा से अध्यात्म चिंतन में लींन रहते थे। उन्हें खाने पिने की सुध बुध नही रहती थी।
रुक्मिणी बाई की आवाज बहुत ही मधुर थी वे जब भी भजन किर्त करती थी तो उसमे डूब जाती थी। आसपास के वातावरण का उन्हें कोई ध्यान नही था। आचार्य विनोबा भावे के अंदर अध्यात्म के संस्कार देने उन्हें भक्ति वेदान्त की और ले जाने में एवं छोटी सी उम्र में सन्यासी और वैराग्य की प्रेरणा जगाने में उनकी माता रुक्मिणी का बहुत बड़ा योगदान था।
बालक विनायक के अंदर माता और पिता दोनों के गुण कूट कूट कर भरे थे। गणित विज्ञानं प्रति गहन तर्क सामथ्य परंपरा के प्रति विज्ञानं द्रष्टि और तमाम तरह के पूर्वाग्रहों से अलग हटकर सोचने की कला, देश के लिए कुछ करने की जिग्यंसा उन्हें अपने पिता की तरफ से सभी संस्कार मिले है।
धर्म और संस्कृति के प्रति प्रखर अनुराग, जीवमात्र के लिए कल्याण की भावना। जीवन के प्रति सकारात्मक दृष्टिकोण, सर्वधर्म समभाव, सहअस्तित्व और श्रद्धापूर्वक की कला यह सभी गुण उन्हें उनकी माता से प्राप्त हुए है।
आचार्य विनोबा भावे की जीवनी (Biography of Acharya Vinoba Bhave)
- कर्म क्षेत्र : स्वतंत्रता सेनानी ,सिद्धांतवादी,समाज सुधारक
- भाषा : हिंदी, अंग्रेजी, अरबी, फारसी, गुजरती, मराठी, बंगाली आदि भाषा
- Acharya Vinoba Bhave Awards : भारत रत्न ,प्रथम रेमन मैग्सेसे पुरस्कार
- योगदान : भूदान आंदोलन में जिन के पास जमीन उनसे उस जमीन का 6 भाग दान में देने की अपील और जिसके पास रहने तक की जमीन नही उन्हें जमीन देना में बहुत बड़ा योगदान रहा
- नागरिकता : भारतीय
- संबधित लेख : भूदान आंदोलन , आचार्य विनोबा भावे के प्रेरक प्रसंग, पवनार आश्रम, आचार्य विनोबा भावे के अनमोल वचन
- आंदोलन : ” भूदान” नामक आंदोलन के संस्थापक थे।
- जेल यात्रा : साल 1920 और 1930 साल के दशक में आचार्य विनोबा भावे कई बार जेल गए
1940 में उन्हें पांच साल जेल हुई थी। - अन्य जानकारी :आचार्य विनोबा भावे को ‘ भारत का अध्यापक ‘ और महात्मा गाँधी का ‘आध्यात्मिक उत्तराधिकारी ‘ समझा जाता है।
संत आचार्य विनोबा भावे (Sant Acharya Vinoba Bhave)
विनोबा बचपन से ही बहुत ही कृशाग्र बुद्धि वाले थे। गणित उनका बहुत ही प्रिय विषय था। मा से मिले कविता और अध्यात्म चेतना के संस्कार आचार्य विनोबा भावे को जड़ और चेतना दोनों द्रष्टि से देखने का ज्ञान था। विनोबा भावे कविता रचते और उन्हें आग के हवाले कर देते। दुनिया में जब सब कुछ अस्थाई और क्षणभंगुर है, कुछ भी साथ नहीं जाना तो अपनी रचना से ही मोह क्यों पाला जाए। उनकी मां यह सब देखतीं, सोचतीं, मगर कुछ न कहतीं नही। मानो वे अपने बेटे विनय को बहुत बड़े वैरागी के लिए तैयार कर रही हों। विनोबा की गणित की निपुणता और उसके तर्क उनके आध्यात्मिक विश्वास के आड़े नहीं आते थे। यदि कभी दोनों के बीच स्पर्धा होती तो जीत आध्यात्मिक विश्वास की ही होती थी। आज वे घटनाएं मां-बेटे के आपसी स्नेह-अनुराग और विश्वास का ऐतिहासिक दस्तावेज हैं।
विनोबा का शरीर दुर्बल था। बचपन से ही कोई न कोई रोग होता ही रहता था। लेकिन उनका दिमाग पूरी तरह भान में होता था। मानो शरीर की सारी शक्तियां सिमटकर दिमाग में समा गई हो उनकी यह स्मरण शक्ति बहुत ही अनोखी थी। किशोर विनायक ने वेद, उपनिषद के साथ-साथ संत ज्ञानेश्वर, तुकाराम, नामदेव के सैकड़ों पद बहुत अच्छी तरह याद कर लिए थे। गीता उन्हें बचपन से ही कंठस्थ थी। आगे चलकर चालीस हजार श्लोक भी उनके मानस में अच्छी तरह से याद हो गई थी।
आचार्य विनोबा भावे का सन्यासी जीवन (Sannyasi Life Of Vinoba Bhave)
आचार्य विनोबा भावे को बचपन में मिले संस्कार युवावस्था में और भी गाढ़ होते चले गए। वे नातो संत ज्ञानेश्वर को भूला पाए थे। न तुकाराम को भूल पाए वही उनके आदर्श थे। विनोबा भावे ने 1915 में उन्होंने हाई स्कूल की परीक्षा पास की थी। माता चाहती थी के वे संस्कृत का अध्ययन करे और पिता चाह्ते थे की वे फ्रेंच पढ़े। विनोबा भावे ने दोनों का मान रखा इंटर में फ्रेंच का चयन किया और, संस्कृत का अध्ययन उन्होंने निजी स्तर से जारी रखा था। विनोबा भावे ने पुस्तकालय को अपना दूसरा ठिकाना बना दिया था। फ़्रांसिसी साहित्य ने विनोबा भावे का परिचय पश्चिमी देशो में हो रही वैचारिक क्रांति से करवाया था। संस्कृत के ज्ञान ने उन्हें वेदों और उपनिषदों को गहराई से पढने की योग्यता दी थी।
लेकिन उनके मन में से सन्यासी की साधना वैराग्यबोध न गया। उन समय दौरान इंटर की परीक्षा के लिए मुंबई जाना पड़ता था। आचार्य विनोबा भावे भी इस कार्यक्रम के अनुसार 25 मार्च 1916 को मुबई जाने वाली ट्रेन में चले गई। उन्हें पूरा विश्वास था, की वे इंटर एग्जाम में पास हो जाएगे
लेकिन उनके मनमे एक विचार आया की क्या यही मेरे जीवन का लक्ष्य है? विनोबा को ऐसा लग रहा था, की वे अपने जीवनमें जो चाहते, वह ओपचारिक अध्ययन द्वारा संभव नही है। विधालय के प्रमाणपत्र और कॉलेज की डिग्री उनकी इच्छा नही थी। जब सुरत ट्रेन रुकी तो विनोबा ट्रेन से उतर गए, और विनोबा को लगा जैसे की हिमालय खुद उन्हें बुला रहा है वे वापस गाड़ी में नही बैठे। वे अपनि सन्यासी यात्रा पर निकाल गए लेकिन उने क्या पता था की, वे यात्रा उनिकी असली यात्रा नही थी। वे सिफ एक पड़ाव था। उन्हें तो करोडो भारतीय के जीवन की साध, उनके लिए उम्मीद बनकर उभरना था।
आचार्य विनोबा भावे की गाँधी जी से मुलाकात (Vinoba Bhave Meeting Gandhiji)
बनारस में निर्माण हिन्दू विश्व विधालय में गाँधी जी ने प्रभावशाली भाषण दिया था। उसके कुछ अंश अखबार में आए थे। आचार्य विनोबा भावे ने गाँधी जी की इस भाषण को पढ़ा और वे गाँधी जी से प्रभावित हो गए उस वक्त विनोबा भावे हिमालय की और सन्यास लेने के लिए जा रहे थे। उन्हों ने गाँधी जी को एक पत्र लिखा था। गाँधीजी ने जवाब में कहा की तुम्ह मेरे आश्रम में आजाव।
गाँधीजी और आचार्य विनोबा भावे की मुलकात 7 जून 1916 के दिन हुई थी। पहली बार में वे गांधीजी से प्रभावित हो गए थे उन्हों ने ठान ली के वे अब गाँधीजी के बताए मार्ग पर ही चलेगे और अपनी सन्यासी जीवन का त्याग कर दिया। विनोबा भावे सब कुछ छोड़ कर गांधीजी के बताए मार्ग पर चलने लगे। गांधीजी ने विनोबा भावे की प्रतिभा को पहचान लिया उन्हों ने कहा की अधिक लोगो यह कुछ न कुछ लेने आते है, यह पहला व्यक्ति है जो कुछ देने के लिए आया है।
विनोबा भावे महात्मा गाँधी के आश्रम में (Vinoba Bhave at Mahatma Gandhi’s Ashram)
आचार्य विनोबा भावे अपने माता पिता को बिना बताए आश्रम चले गए थे। गाँधीजी को जैसे ही यह बात पता चली उन्होंने विनोबा के माता पिता को पत्र लिखा की विनोबा एकदम सुरक्षित उनके आश्रम में है। विनोबा ने खुद को गांधीजी के आश्रम के लिए समर्पित कर दिया था। विनिबा भावे आश्रम की हर एक गतिविधि में आगे रहते थे। गांधीजी का प्रभाव इतिनी तेज से बढ़ रहा थे की आश्रम में आनेवाले कार्यकर्ताओ की संख्या में आश्रम छोटा पड़ने लगा था। आजादी के अहिंसक सैनिक तैयार करने के लिए साबरमती आश्रम से संभव नही था। गांधीजी वेसा ही आश्रम महाराष्ट के वर्धा में खोलना चाह्ते थे। इस आश्रम को चलाने के लिए विनोबा भावे योग्य थे। 8 अप्रैल 1923 के दिन विनोबा भावे माहाराष्ट के वर्धा की और प्रस्थान किया। विनोबा भावे ने महाराष्ट धर्म मासिक का संपादन शरु किया। मराठी में प्रकाशित होने वाली यह पत्रिका में विनोब भावे उपनिषदों एवं महाराष्ट के संतो पर लिखना आरंभा कर दिया था। जिसके कारण देश में भक्ति आंदोलन की शरुआत हुई थी। विनोबा भावे की इस पत्रिका को अप्राप्य लोकप्रियता प्राप्त हुई थी।
द्वितीय विश्व युद्ध में विनोबा की भूमिका (Role of Vinoba in World War II)
द्वितीय विश्व युद्ध में भारत को जबरदस्ती शामिल किया जा रहा था। जिसके विरुद्ध एक सत्याग्रह 17 अक्टूबर 1940 को शरु किया गया था, और इसमें गाँधीजी ने आचार्य विनोबा भावे को प्रथम सत्याग्रह बनाया गया था। विनोबा भावे सत्याग्रह जारी करने से पहले एक वक्तव्य जारी किया था। उसमे कहा गया की ” चौविस साल पहले इश्वर के दर्शन करने के लिए मेने अपना घर परिवार का त्याग किया था। आज तक का मेरा जीवन लोगो की सेवा में समर्पित रहा है। यह द्द्ढ विश्वास के साथ की इनकी सेवा में ही इश्वर को पाने का सर्वोतम मार्ग है। मे मानता हु,और मेरा अनुभव रहा है की मेने गरीबो की जो सेवा की है वह मेरी अपनी सेवा है गरीब की नही”
अपने भाषण में विनोबा कहते थे की नकारत्मक कार्यक्रम के जरिए न तो शांति का निर्माण हो सकता है और, न युद्ध का नष्ट हो सकता है। युद्ध जेसे रोग को अपने दिमाग से निकालने के लिए रचनात्मक कार्यक्रम करने चाहिए।
आचार्य विनोबा भावे की गिरफ्तारी (Vinoba Bhave Arrested)
अंग्रेजो के समाने आवाज उठाने की किसी की हिमत नही थी कोई भी अंग्रेजो की विरुद्ध कोई कुछ भी बोल नही सकता था। गांधीजी ने एक तरफ जनता में जागरूकता लाने का कार्य कर रहे थे। तो दूसरी तरफ उनके ऊपर भारत देश को आज़ाद करवाने की भी जिम्मेदारी थी। गांधीजी अहिंसात्मक रूपसे आगे बढ़ रहे थे। साल 1920 से 1930 के समय दौरान आचार्य विनोबा भावे को उनके जागरूकता के कार्यक्रम को देखते हुए, अंग्रेजो ने कई बार गिरफ्तार किया था। विनोबा भावे अंग्रजो की हुकमत से नही डरे उनका सामना किया था। साल 1940 में उन्हें 5 वर्ष की जेल हुई थी। अंग्रजो के विरुद्ध अहिसात्मक आंदोलन के कारण उन्हें जेल हुई थी। परन्तु विनोबा भावे ने हार नही मानी और जेल में पढने लिखने की शरुआत कर दी जेल उनके लिए पढने लिखने की दूसरी जगह बन चुकी थी। विनोबा भावे ने जेल में रहते हुऐ भारत की चार अलग अलग भाषा सिख ली थी उन्होंने जेल में रहते हुए भी 2 पुस्तको की रचना की एक का नाम था “इर्शावास्यवृति” और दूसरी पुस्तक थी “स्थितप्र्ज्ञान दर्शन” एवं उन्होंने “लोकनागरी” नामक लिपि की भी रचना की थी। विनोबा भावे ने जेल में ही भागवतगीता का मराठी भाषा में रूपांतर किया, और एक सीरिज के माध्यम से समस्त अनुवाद जेल के सभी केदी को बाँट ने की शरूआत की थी। यह पुस्तक बाद में “टोर्क्स ओ द गीता” नाम से प्रकाशित की गई थी। 5 वर्ष के बाद जब विनोबा भावे जेल से छुटे तो उनका निश्चय और भी द्दढ हो गया था। उनकी सविनय अवज्ञा आंदोलन में प्रमुख भूमिका रही थी।
आचार्य विनोबा भावे का भूदान आन्दोलन (Vinoba Bhave’s Bhoodan Movement)
भारत देश 1947 में अंग्रेजो से आजाद तो हो चुका था लेकिन कई ऐसी बेदिया समाज को जकड़े हु थी जिससे जल्द जल्द तोडना बहुत ही आवश्यक था इसं बेडियो से कई सारे जीवन कैद थे। अंग्रेज सरकार जाते जाते भारत को चारो तरफ से कमजोर बनाते गए थे। कई लोग तो इस तरह से गरीब हो गए थे की उनके पास रहने तक के लिए जगह नही थी। इस परिस्थित का अंदाजा विनोबा भावे को तब लगा जब वह 80 से ज्यादा हरिजन परिवारों से मिले और उनकी बाते सुन के आंदोलन के जरिये विनोबा भावे ने उनकी मदद करनी चाह्ते थे। जिन लोगो के पास रहने तक की जगह नही थी उन लोगो को आचार्य विनोबा भावे ने सबसे पहले अपनी जमींन उन लोगो को दान में दी और फिर भारत के अलग अलग हिस्सों में जाकर लोगो की जमनी में से 6 भाग की जमींन को दान में देने की बात कही। विनोबा भावे के इस त्याग और गरीब के प्रत्य सेवा करने की लगन से कई लोग प्रभावित हो गए और इस आंदोलन में शामिल हो गए।
आचार्य विनोबा भावे का ब्रम्हा विधा मंदिर (Vinoba Bhave’s Brahma Vidya Mandir)
आचार्य विनोबा भावे ने 13 साल इस आंदोलन में गुजारे थे। उन 13 वर्ष में 6 आश्रम का निर्माण करने सफल रहे। आचार्य विनोबा भावे के स्थापित आश्रम मो से एक आश्रम ब्रम्हा भी था। यह आश्रम स्त्रियों के लिए था। जहाँ स्त्रियों खुद अपना जीवन चलाती थी।इस आश्रम के लोग एक साथ मिलकर अपने खाने की व्यवस्था के लिए खेती करते थे। ग्नाधिजी के नियमो का पालन करते थे, जिसमे सामाजिक न्याय और स्थिरता की चर्चा होती रहती थी। विनोबा भावे की तरह आश्रम में रहने वाले लोग भी भागवदगीता में बहुत विश्वास करते थे।
आचार्य विनोबा भावे के शिक्षाप्रद अनमोल वचन (Instructive Priceless Words of Vinoba Bhave)
- महान विचार ही कार्य के रूप में प्रणित होकर महान कार्य बनते है।
- जब तक हमें मुश्केली सहन करने के तैयार नही होते तब तक लाभ दिखाई नही देता लाभ की इमारत मुश्केली की धुप में हु बनती है।
- जिस व्यक्ति ने अपने ज्ञान को आचरण में उतर लिया उस ने इश्वर को मूर्तिमान कर लिया
- मानुष जितना ज्ञान में घुला जाता है, उतन ही कर्म के रंग में रंग जाता है।
- जिस देश में चरित्रशीलता नही है उसमे कोई योजना काम नही कर सकती है।
- वे व्यक्ति ही स्वतंत्र हो सकता है जो अपने काम को स्वयं करता है।
- अभिमान का त्याग करना ही सच्चा त्याग होता है।
- कर्महिन् मानव को भिक्षा के दान का अधिकार नही है।
- बलवान बनने के लिए जरुरी है संयम।
- जब तक फल न मिले तब तक साधना जरी रखनी चाहिए।
आचार्य विनोबा भावे की मृत्यु (Vinoba Bhave’s Death)
आचार्य विनोबा भावे ने अपने जीवन के आखरी पाल ब्रम्हा विधा आश्रम में गुजारे थे अंतिम समय में आचार्य विनोबा भावे ने समाधि मरन का मार्ग अपनाया था। विनोबा भावे ने अन्न का त्याग कर दिया था। उनका निधन 15 नवंबर 1982 के दिन हुई थी।
आचार्य विनोबा भावे से जुड़े कुछ सवाल के जवाब
विनोबा भावे का जन्म कब और कहा हुआ था?
विनोबा भावे का जन्म 11 सितंबर 1982 में गागोदे, रायगढ़ जिले में हुआ था।
विनोबा भावे ने किस आंदोलन की शरुआत की थी?
विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन की शरुआत की थी।
विनोबा भावे और गांधीजी की प्रथम मुलाकात कहा हुआ थी?
विनोबा भावे और गांधीजी की प्रथम मुलाकात साबरमती आश्रम में हुई थी।
विनोबा भावे को जेल किस साल में और कितने साल की हुई थी?
विनोबा भावे को 1940 में जेल हुई थी 5 वर्ष की।
आचार्य विनोबा भावे ने जेल में रहते हुई कौन कौन से पुस्तको की रचना की थी?
आचार्य विनोबा भावे जेल में रहते हुए “इर्शावास्यवृति” और “स्थितप्र्ज्ञान दर्शन” एवं उन्होंने “लोकनागरी” लिपि की रचना की और भागवतगीता का मराठी में अनुवाद किया।
विनोबा भावे के गुरु कोन थे?
विनोबा भावे के गुरु गांधीजी थे।
गांधीजी ने विनोबा को कहा आश्रम खोल ने के लिए कहा?
गांधीजी ने विनोबा को महाराष्ट के वर्धा में आश्रम खोलने को कहा।
Last Final Word
दोस्तों हमारे आज के इस आर्टिकल में हमने आचार्य श्री विनोबा भावे का जीवन परिचय दिया जैसे की आचार्य विनोबा भावे का प्रारंभिक जीवन , आचार्य विनोबा भावे की जीवनी, संत आचार्य विनोबा भावे, आचार्य विनोबा भावे का सन्यासी जीवन, विनोबा भावे की गाँधी जी से मुलाकात, विनोबा भावे महात्मा गाँधी के आश्रम में, द्रितीय विश्व युद्ध में विनोबा की भूमिका, विनोबा भावे की गिरफ्तारी, विनोबा भावे का भूदान आन्दोलन, विनोबा भावे का ब्रम्हा विधा मंदिर, विनोबा भावे के शिक्षाप्रद अनमोल वचन, विनोबा भावे की मृत्यु और विनोबा भावे के जीवन से जुडी सभी जानकारी से आप वाकिफ हो चुके होंगे।
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