नमस्कार दोस्तों! महान खगोलशास्त्री, गणितज्ञान और शुन्य के शोधक आर्यभट्ट के बारे में हम आपको जानकारी देंगे। हम सभी जानते है, की शुन्य की शोध आर्यभट्ट ने 1600 साल पहले की थी। ऐसा माना जाता है की गणित के रचेता आर्यभट्ट है। आर्यभट्ट पहले ऐसे व्यक्ति थे, जिसने बिज गणित का प्रयोग किया था। आर्यभट्ट ने अपनी गणित की पुस्तक आर्यभट को कविता के रूप में लिखा है। यह पुस्तक आज पूरी दुनिया में फेमुस है, और प्र्चानी भारत के बहुचर्चित पुस्तक में से एक मानी जाती है। आर्यभट्ट ने अपने पुस्तक आर्यभट्टीय में खगोलशास्त्री के साथ इस में त्रिकोण मिति, अंकगणित, बीजगणित के 33 नियम दिए गए है।
आर्यभट द्वारा हजारो साल पहले खोज की थी की पृथी गोल है, और उसकी परिधि 24835 मिल है। सूर्य और चंद्र ग्रहण के हिन्दू धर्म को आर्यभट्ट ने नकार दिया था। इतना नही नही जो बात हमें 100 साल पहले पता चली की सूर्य के आसपास सभी ग्रह परिभ्रमण करते है। वह बात आर्यभट्ट को 1600 साल पहले पता चल गया था, और चंद्रमा को खुदका कोई प्रकाश नही है। सूर्य की किरणों से चमकता है वे भी आर्यभट्ट को मालूम था। आर्यभट ने अपने सूत्रों से यह भी सिद्ध किया था की साल में 366 दिन नही बल्कि 365.2951 दिन होते है।
बिंदु(Points) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | आर्यभट्ट |
जन्म (Birth) | दिसंबर, ई.स.476 |
मृत्यु (Death) | दिसंबर, ई.स. 550 [74 वर्ष ] |
जन्म स्थान (Birth Place) | अश्मक, महाराष्ट्र, भारत |
कार्यक्षेत्र (Profession) | गणितज्ञ, ज्योतिषविद एवं खगोलशास्त्री |
कार्यस्थल (Work Place) | नालंदा विश्वविद्यालय |
रचनायें (Compositions) | आर्यभट्टीय, आर्यभट्ट सिद्धांत |
योगदान (Contribution) | पाई एवं शून्य की खोज |
आर्यभट्ट का जन्म
आर्यभट्ट का जन्म 476 इस्वी पूर्व में हुआ था। आर्यभट के जन्म को लेकर कई विवाद है। उनके जन्म के वर्ष को लेकर स्पष्ट रूपसे उल्लेख नही किया गया है, एवं उनके जन्म के वास्तविक स्थान को लेकर भी कोई भी ठोस माहिती प्राप्त नही हुई है। कई इतिहासकारों का कहना है की आर्यभट का जन्म नर्मदा और गोदावरी के मध्य के क्षेत्र में हुआ था जो उस समय अश्मक नाम से जाना जाता है। जो मध्यप्रदेश के राज्य में स्थित है। कुछ इतिहासकारों का कहना है, की आर्यभट का जन्म केरल के चम्रवत्तम में हुआ था। अस्मका एक जैन प्रदेश था। जो श्रवणबेलगोल के चारो तरफ फैला था यह के पत्थरों के कारण उस जगह का नाम अस्माक पडा था, इसका प्रमाण यह है की भारतापुझा नदी जिसका नाम पौराणिक राजा भारता के नाम पर रखा गया है। अर्याभाट के एक पुस्तक में राजा भारता का जिक्र कीया है। ऐसा कहा जाता है की आर्यभट शिक्षा लेने के लिए कुसुमपुर के विश्वविधालय में गए थे वह के थे। लेकिन वहा पर उनका जन्म हुआ था, इसका कोई ठोस प्रमाण नही है। कुसुमपूरा की पहचान पाटलिपुत्र से की है। पाटलिपुत्र में अध्ययन का एक महान केंद्र, नालंदा विश्वविधाय निर्माण किया था। ऐसा काहा जाता है की आर्यभट्ट गुप्त साम्राज्य के आखरी दिनों में भी वहा रहा करते थे।
आर्यभट्ट के कार्य की जानकारी
आर्यभट्ट के कार्यो की सभी माहिती उनके द्वारा रचित ग्रंथ से मिलती है आर्यभट ने तिन महान ग्रंथो की रचना की थी जिनमे से एक है आर्यभटीय, दशगीतिका और तंत्र मुख्य है, और उन्होंने अर्याभट सिंद्धांत जैसे ग्रंथ की भी रचना की थी। आर्यभट के सिद्धांत के मात्र 34 श्लोक ही उपलब्ध है। ऐसा माना जाता है, की 7वि शताब्दी में आर्यभट के इस सिद्धांत का उपयोग बहुत ज्यादा होता था। लेकिन आर्यभट्ट का इतना महत्व पूर्ण ग्रंथ कही लुप्त हो गया था। यह कैसे हुआ इसकी कोई ठोस जानकारी प्राप्त नही हुई है।
आर्यभट्टीय
आर्यभट्ट द्वारा रचित आर्यभट्टीय ग्रंथ में कार्यो का सीधा वर्णन दिया गया है। ऐसा कहते है की आर्यभट्ट ने इस ग्रंथो को नाम नही दिया था बल्कि उसके पश्चताप किसी ने आर्यभट के ग्रंथ का उपयोग किया होगा। इसका वर्णन आर्यभट के शिष्य भास्कर पहले अपने लेख में किया है। आर्यभट्टीय ग्रंथ को आर्य-शत-अष्ट के नाम से जाना जाता था। इस का मतलब होता है की आर्यभट्ट के एक सो आठ जो उनके पाठ में छंदों की संख्या है। इस ग्रंथ में काई अलग अलग प्रकार के समीकरणों का विवरण किया है, और वर्गमूल,घनमूल, समांतर श्रेणी का वर्णन भी है। अगर देखा जाए तो आर्यभट का यह ग्रंथ वास्तव में खगोल विज्ञान और गणित का एक संग्रह है। आर्यभट्टीय ग्रंथ में 108 प्रकार के छंद है, और परिचयात्मक 13 है। आर्यभट के आर्यभट्टीय को चार अध्ययन में विभाजित किया है। जिसमे गीतिकापाद, गणितपाद, कालक्रियापाद, गोलपाद आते है।
आर्यभट्ट के सिद्धांत
आर्यभट्ट का यह सिद्धांत की ग्रंथ लुप्त हो चूका है इस लिए इस ग्रंथ की सारी जानकारी तो पर्याप्त नही है। लेकिन उस ग्रंथ की कुछ जानकारी मिली है, वह माहिती आर्यभट के समय दौरान वरामिहिर के लेखो में या तो उनके बाद के गणितज्ञानो और ब्रह्मगुप्त, भास्कर प्रथम के कार्यो और लेखो से आर्यभट के सिद्धांत ग्रंथ की माहिती मिली है। इस ग्रंथ का कार्य पुराने सूर्य सिद्धांत पर आधारित है, एवं आर्यभट्ट सिद्धात के ग्रंथ में कई सरे खगोलीय उपकरणों का भी विवरण किया गया है। जिनमे प्रमुख है ,शंकु-यन्त्र, छाया-यन्त्र, संभवतः कोण मापी उपकरण, धनुर-यन्त्र / चक्र-यन्त्र, एक बेलनाकार छड़ी यस्ती-यन्त्र, छत्र-यन्त्र और जल घड़ियाँ। इस सिद्धांत ग्रंथ में सूर्य सिद्धांत का उपयोग किया गया है सूर्य के इस सिद्धांत में सूर्यदय की उपेक्षा की है, और इसमें अद्ध रात्रि घना का प्रयोग किया गया है।
आर्यभट्ट का योगदान
आर्यभट ने प्रसिद्ध ग्रंथ आर्यभट्टीयम गणित के कई सूत्र, ज्योतिष शास्त्र, 120 छंद, और उनके सिद्धांत इस ग्रंथ में दिए गए है। दुनिया और भारत के ज्योतिष और गणित के सिद्धांत पर ज्यादा प्रभाव आर्यभट्ट का रहा है।
आर्यभट ने बिना किसी उपकरण के 1600 साल पहले ज्योतिशास्त्र की खोज की थी जिस कोपनिक्स ने 300 साल पहले सूर्य की मंडल की खोज की थी वह खोज आर्य भट्ट हजारो साल पहले कर चुके थे। अपने ग्रंथ गोलपाद में आर्यभट ने सबसे पहले यह सिद्ध किया की पृथ्वी गूल है एवं वह अपनी अक्ष में घुमती है।
आर्यभट के एक ग्रंथ में लिखे अनुसार पृथ्वी की परिधि २९,968.0582 किलोमीटर है जो वास्तविक मान में मात्र 0.2 % कम है। आर्यभट्ट के कहे अनुसार किसी भी वृत्त की परिधि एवं व्यास का संबंध 62,832 : 20,000 तक आता है।
आर्यभट्ट के ग्रंथ में स्थान और मूल्य अंक प्रणाली कार्यो में स्पष्ट रूप से मोजूद है। लेकिन आर्यभट्ट ने शून्य को दर्शाने के लिए किसी भी प्रतीक का उपयोग नही किया है। गनिताज्ञान का मान ना है की, रिक्त गुणक के साथ, दश की घाट के लिए एक स्थान धारक के रु में शून्य का ज्ञान आर्यभट की प्रणाली में बहुत ही कम था।
आर्यभट्टीय के गणितपाद 10 में आर्यभट ने पाई के मान की खोज का विवरण किया गया है।
सो में 4 को जोड़े और फिर 8 से गुणा करे फिर 62, 000 जोड़े एवं 20, 000 से भागफल निकले गा इस में प्राप्त उत्तर पाई का मान होगा।
( 4 + 100) * 8 + 62,000 ] / 20,000 = 62,832 / 20,000 = 3.1416
आर्यभट्ट ने अपने ग्रंथ में वर्ग और धनो की श्रुंखला के जोड़ का विवरण किया गया है।
12 + 22 + …………. + n2 =[ n ( n+1) ( 2n + 1) ] / 6
&
13 + 23+ ………….. + n3 = ( 1+2 + ……….. + n )2
अर्याभट्ट के रचित ग्रंथ में पृथ्वी की परिक्रमा का एक निर्धारित समय ज्ञात किया है। कहा है की पृथ्वी अपनी परिक्रमा प्रतिदिन 23 घंटे, 56 मिनिट और 1 सेकन्ड़ में पूर्ण करती है, और इस प्रकार से पृथ्वी वर्ष में 365 दिन, 6 घंटे, 12 मिनिट और 30 सेकेण्ड होते है।
आर्यभट का प्रभाव भारतीय परंपरिक पर था, और उन्हों ने भारत के पडोसी देश को भी संस्कृतियो से प्रभावित किया है। मोगल योग के दौरान इस ग्रंथ को अरबी में अनुवाद विशेष प्रभाव रहा है। उनके कुछ परिणाम को अलाख्वारिज्मी ने उदधृत किया है। 10वि सदी के अरबी विद्वाव अल बिरूनी ने सन्दभीत किया है। उन्हों ने अपने विवरण में लिखा है की पृथ्वी घुमती है।और लिखा गया है की आर्यभट का अनुयायी
आर्यभट्ट की विरासत
- भारत का सर्वप्रथम उपग्रह को आर्यभट्ट का नाम दिया गया है।
- चंद्र खड्ड को आर्यभट्ट का नाम उनके नाम सम्मान स्वरूप रखा गया है।
- खगोल विज्ञानं, खगोल भौतिक और वायुमंडल विज्ञानं में अनुसंधान के लिए भारत में नैनीताल के पास एक संस्था का नाम आर्यभट्ट प्रेक्षण विज्ञानं अनुसंधान संस्था रख है।
- अंतविधालायीय आर्यभट्ट गणित प्रतियोगिता उनके नाम पर है।
- ISRO द्वारा 2009 में खोजी गई एक बैक्टीरिया की प्रजाति का नाम उनके नाम पर रखा गया है।
Last Final Word
दोस्तों हमारे आज के इस आर्टिकल में हमने आपको महान खगोल शास्त्री और गणित के ज्ञानी आर्यभट्ट के बारे में जानकारी दी जैसे की अर्याभट्ट का जन्म, आर्यभट्ट के कार्य की जानकारी, आर्यभट्टीय, आर्यभट्ट के सिद्धांत, आर्यभट्ट का योगदान, आर्यभट्ट की विरासत और आर्यभट के जीवन से जुडी सारी जानकारी से आप वाकिफ हो चुके होंगे।
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