नमस्कार दोस्तों! तकनिकी विकास आज के समय की मांग है। इसे न सिफ देश का विकास संभव है, बल्कि हमारी आधारभूत जरुरत जैसे कम्युनिकेशन के लिए भी अहम है। इस सोच के साथ भारत ने साल 1975 ने एक कदम उठाया और अपने पहले उपग्रह को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया जिसका नाम आर्यभट्ट उपग्रह था। आर्यभट्ट उपग्रह के लोंच होने के बाद भारत का अंतरिक्ष का सफर शरु हो गया था। जो आज चंद्र और मंगल पर जा पंहुचा है। देश के इस सफर में कई सारी मुश्केली भी आई लेकिन समय समय पर भारत के द्वारा अंतरिक्ष के क्षेत्र में पाई उपलब्धिओ ने दुनिया में देश की तकनिकी क्षमताओ का लोहा भी मनवाया था। आज हमारा देश उन चन देशो में से एक है, जो अपने रोकेट से पृथ्वी की कक्षा में उपग्रह स्थपना करने में सक्षम है। भारत के सफल और दुनिया के सबसे सस्ते स्पेश मिशान, मंगल यान की कामयाबी के बाद हमारा देश किफायती अंतरिक्ष अभियान वाला देश बन कर उभरा यही कारण था, की दुनिया के अलग अलग देशो ने अपने उपग्रह को लोंच करने के लिए भारत को चुना था। तो चलीये जानते है, भारत के सबसे पहले उपग्रह यानि आर्यभट्ट के बारे।
संगठन | ISRO |
लक्ष्य प्रकार | खगोल भौतिकी,एक्सरे |
का उपग्रह | पृथ्वी |
लॉन्च तारीख | 19 अप्रैल 1975 |
धारक रॉकेट | कॉसमॉस -3M |
कॉस्पर आई डी | 1975-033A |
द्रव्यमान | 360 किलोग्राम |
शक्ति | 46 वॉट सौर पटल से |
कक्षीय तत्व | |
व्यवस्था | पृथ्वी की निचली कक्षा |
झुकाव | 40.70 |
कक्षीय अंतराल | 96 मिनट |
भू – दूरस्थ | 619 किलोमीटर (385 मिल) |
भू – समीपक | 563 किलोमीटर (350 मिल) |
आर्यभट्ट उपग्रह का नाम करण
आर्यभट्ट के बनने की कहानी शरु होती है, विक्रम साराभाई से जो भारतीय स्पेश प्रोग्राम के जनक माने जाते है। विक्रम साराभाई ने अपने वैज्ञानिको में से एक युआर राव को एक स्वदेश उपग्रह को बनाने का काम सोपा था। उपग्रह के निर्माण का काम युआर राव को सोप ने के पीछे एक वजह यह थी, की सिफ वाही भारतीय थे। जिन्होंने नासा के दो उपग्रह programs में काम किया हुआ था। इसके बाद कड़ी मेहनत से भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन यानि की इसरो ने राव के नेतृत्व में उपग्रह को तैयार कर लिया था। यह उपग्रह का वजन 360 किलो ग्राम था। इस उपग्रह को बेंगलोर के पास पिन्या नाम की जगह पर तैयार की या गया था। उपग्रह का निर्माण अंतरिक्ष में ऐक्सरे, खगोल विज्ञान रिसर्च, सूर्य की किरणों और न्यूट्रोन को माप ने वे पृथ्वी के आयन मंडल पर रिसर्च करने के लिए किया गया था। जब उपग्रह तैयार हो गया तो उस समय के प्रधान मंत्री इंदिरा गाँधी के समक्ष उपग्रह के नाम को लेकर तिन प्रस्ताव रखे गए थे, वह तिन नाम में से एक नाम, मैत्री का अर्थ मित्रता होता है। दूसरा नाम था, जवाहर जो इंदिरा गाँधी के पिता जवाहर लाल नेहरु के नाम पर था, और तीसरा था आर्य भट्ट जो भारत के महान खगोल शास्त्री थे, और गणितज्ञन थे। प्रधान मंत्री ने बाकी दो नाम को अस्वीकार कर दिया और नए उपग्रह का नाम आर्यभट्ट का स्वीकार किया गया था। इस तरह भारत के पहले उपग्रह का नाम भारत के महान खगोल शास्त्री गणितज्ञन आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था।
बेहरालिया उपग्रह देखने में बहुभुज जैसा दीखता था। इस उपग्रह की 26 स्लाइड थी, जैसे एक क्यूब की 6 स्लाइड्स होती है। इस उपग्रह का व्यास 1:4 मीटर था। ऐसा माना जाता है, की आर्यभट्ट उपग्रह को तैयार करने में 30 महीने जितना समय लगा था, और इस पर करीबन साडे तिन करोड़ जितना खर्च हुआ था।
सोवियत संघ की मदद से प्रक्षेपण
आर्यभट्ट उपग्रह के प्रक्षेपण की तकनीक उस समय दौरान भारत देश में उपलब्ध नही थी। इस कारण से भारत ने सोवियत संघ का सहयोग लिया था, और इसका प्रक्षेपण रूस के अस्तरखान ओब्लास्ट की सैपुस्तीं साईट से कॉसमॉस 3M यान के यारिये प्रक्षेपण किया गया था इसके लिए भारत और सोवियत संघ के बीच समझोता वर्ष 1972 में हुआ था। यह समझोता था की रूस भारतीय बंदरगाहों का इस्तेमाल जहाजो की ट्रैकिग करने के लिए कर सकता है।
अन्तरिक्ष में पंहुचा भारत का पहला उपग्रह आर्यभट्ट
भारत का पहला उपग्रह बन कर तैयार हो चूका था, और अब वह अंतरिक्ष की उचाईयो को छूने के लिए पूरी तरह से सक्षम था। अब वह समय आ चुका था, जब भारत का सपना साकार होने जा रहा था। भारत का पहला उपग्रह 19 अप्रेल 1975 के दिन जब रुस्सियन के बनाये स्पेस राकेट कॉसमॉस 3M विहिकल लोंच से आर्यभट्ट उपग्रह को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था। थोड़े ही समय में आर्यभट्ट पृथ्वी की कक्षा से अंतरिक्ष में जा पंहुचा आर्यभट्ट को कक्षा में स्थापित होने के 5 दिन बाद उपग्रह के इलेक्ट्रिकल सिस्टम में कुछ खारबी आ गई, और आर्यभट्ट उपग्रह ने काम करना बन कर दिया था। हालाकि की उन 5 दिन के अंदर ISRO ने जरुरी सारी माहिती को एकठा कर लिया था। उसके बाद कुछ दिनों तक उपग्रह ने काम किया और 17 साल बाद 10 फरवरी 1992 के दिन आर्यभट्ट उपग्रह पृथ्वी पे आ गिरा था। वास्तव में आर्यभट्ट उपग्रह का निर्माण ISRO द्वारा कुत्रिम उपग्रह की स्थपना और अंतरिक्ष में उनके संचालन में अनुभव पाने के इरादे से किया गया था।
भविष्य की राह दिखा गया आर्यभट्ट उपग्रह
आज भले ही उस समय की यादे धुंधली हो गई है, लेकिन आर्यभट्ट उपग्रह इतिहास का वह हिस्सा है। जिसे भुलाया नही जा सकता है। आर्यभट्ट उपग्रह भारत के अंतरिक्ष प्रोग्राम का पहला कदम था। इस के बाद ही भारत के वैज्ञानिको ने अपनी मेहनत और लगन से कामयाबी का परचा पूरी दुनिया में लहराया था। हालही के समय में ISRO ने एक रिकोड तोड़ 104 विदेशी उपग्रह को एक साथ अंतरिक्ष प्रक्षेपित किया था, जो अपने आप में ही एक रिकोड था।
जब ही हम चंद्रयान या मंगल यान जैसे मिशन के बारे में सुनते है, तो हमें गर्व होता है। जो सफर देश के सबसे पहले उपग्रह आर्य भट्ट से शरु होता है, वह आज चाँद और मंगल में जा पंहुचा है। जहा चंद्रयान भारत का पहला मून मिशन था। वाही मॉस और ब्रिटन मिशन यानि MOM देश का पहला मंगल ग्रह मिशन था। सबसे गर्व की बात तो यह थी जिस मंगल पर आज तक किसीभी देश का यान पहली बार में नही पहुच पाया था। उस मंगल ग्रह पर भारत के वैज्ञानिको को पहली बार में ही यान को उतर ने में सफल हो गए थे। इसके अलावा सबसे ख़ास बात यह थी यह मिशन बहुत ही कम खर्च में हुआ था। इसी कारण ही भारत एक ऐसा देश बन कर उभरा जो बहुत ही कम खर्च में उपग्रह को अंतरिक्ष में भेज ने में सक्षम था, और दुनिया के बहुत से देश भारत से अपने उपग्रह स्थापना करवाने लगे थे।
जो रहा आर्यभट्ट ने दिखाई है, उस राह पर भारत आज लगतार आगे बढ़ता जा रहा है, और अंतरिक्ष अनुसंधान के क्षेत्र में नई नई मंजिले पा रहा है। इतिहास में आर्यभट्ट ने शून्य का महत्व बता के भारत को प्रसिद्ध किया था। वहि दूसरी और आर्यभट्ट उपग्रह ने अंतरिक्ष की यात्रा करके भारत को एक नई एतिहासिक शरु आत दी थी।
Last Final word
दोस्तों हमारे आज के इस आर्टिकल में हमने आपको भारत के सर्वप्रथम उपग्रह आर्यभट्ट के बारे में जानकारी दी जैसे की आर्यभट्ट उपग्रह का नाम करण, सोवियत संघ की मदद से प्रक्षेपण, अन्तरिक्ष में पंहुचा भारत का पहला आर्यभट्ट उपग्रह, भविष्य की राह दिखा गया आर्यभट्ट उपग्रह और आर्यभट उपग्रह से जुडी सभी जानकारी से आप वाकिफ हो चुके होंगे।
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