मौलिक अधिकार भारत के संविधान के 3 हीस्से में लिखित, भारतीयो को दिए गए अधिकार हैं। जीसे कोइ भी परीस्थिति में सरकार द्वारा सीमित नहीं कीए जा सकते। तथा उसकी सुरक्षा का ध्यान सर्वोच्च न्यायालय रखता है। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम भारत के कुछ मौलिक अधिकार के बारे में बात करेंगे, ताकि आपको भारत देश के मौलिक अधिकार के बारे में जानकारी मिल सके। उम्मीद है आप इस आर्टिकल को ध्यान से पढेगे।
भारत के मौलिक अधिकार (Fundamental Rights Of Indian Citizens)
संविधान के 3 विभाग में समाविष्ट मूल अधिकार सभी भारतीय नागरिकों के लिए उनके अधिकारों को सुनिश्चित करता है। साथ ही सरकार को असार्वजनिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करने से रोकता है। तथा भारतीय नागरिकों के अधिकारों का समाज द्वारा उल्लंघन ना हो और उसकी सुरक्षा हो उसकी जिम्मेदारी राज्य पर होती है।
संविधान ने मुख्य स्वरूप से 7 मुल अधिकार दिए हैं। इस अधिकार में समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति, तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार आते है। संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44 संशोधन द्वारा संविधान के तृतीय भाग से हटा दिया गया था।
मौलिक अधिकार के कुछ तथ्य
- वर्ष 1215 ईसवी में इंग्लैंड देश के मैग्नाकार्टा शहर से मौलिक अधिकार के विचार का आगमन हुआ था।
- फ्रांस देश में वर्ष 1789 मैं संविधान में नागरिकों के अधिकारों को समावेश करके माननीय जीवन के लिए जरूरी कुछ अधिकारों की घोषणा को संवैधनिक मान्यता दिलवाने की प्रथा शुरू हुई थी।
- वर्ष 1791 ईस्वी मै अमेरिका के संविधान में संशोधन करके बिल ऑफ राइट्स का समावेश किया गया था।
- भारत देश में वर्ष 1895 मे भारत देश में मौलिक अधिकार को मान्यता दिलाने के लिए पहली आवाज उठी थी।
- मौलिक अधिकार की मांग एनी बेसेंट ने होमरूल आंदोलन के चलते प्रस्तुत की थी।
- वर्ष 1925 ईस्वी मे The Commonwealth OF India Bill मे भी मौलिक अधिकार के लिए मांग की गई थी।
- साल 1927 मै भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के द्वारा मद्रास अधिवेशन में मौलिक अधिकार से जुड़े संकल्प प्रस्ताव पारित किए थे।
- मोतीलाल नेहरू के द्वारा वर्ष 1928 में प्रस्तुत किए गए नेहरू रिपोर्ट मे मूल अधिकारों की मांग की थी।
- वर्ष 1931 में कांग्रेस के कराची अधिवेशन और गोलमेज सम्मेलन द्वीतीय मे गांधीजी के द्वारा मूल अधिकारों की मांग की गई थी।
- साल 1946 मे कैबिनेट मिशन कि सलाह पर मूल अधिकार और अल्पसंख्यको के अधिकार पर एक परामर्श समिति का निर्माण किया गया था। इस समिति के अध्यक्ष सरदार वल्लभभाई पटेल रहे थे।
- 27 फरवरी वर्ष 1947 को परामर्श समिति ने पांच दुसरी समिति को स्थापीत किया था। जिसमें एक समिति मौलिक अधिकार से सबंधीत थी।
- मौलिक अधिकार उप समिति के सदस्य में J.B कृपलानी, मीनू मसानी, K.T शाह, A.K अय्यर, K.M मुंशी, K.M पणिक्कर और राजकुमारी अमृत कौर का समावेश होता है
- परामर्श समिति तथा परामर्श उप समिति की सीफारीश पर संविधान में मौलीक अधिकारों का समावेश किया।
मुल अधिकारों का वर्गीकरण (Classification Of Fundamental Rights)
- संविधान ने मुख्य स्वरूप से 7 मुल अधिकार दिए हैं। इस अधिकार में समानता का अधिकार, स्वतंत्रता का अधिकार, शोषण के विरुद्ध अधिकार, धर्म, संस्कृति एवं शिक्षा की स्वतंत्रता का अधिकार, संपत्ति , तथा संवैधानिक उपचारों का अधिकार आते है।
- संपत्ति के अधिकार को वर्ष 1978 में 44 संशोधन द्वारा तृतीय भाग से निकाल दिया गया।
- आज के अनुच्छेद 300(ए) के चलते संपत्ति का अधिकार एक विधिक अधिकार के स्वरूप में स्थापित है।
- अनुच्छेद 12 मे मौलिक अधिकार संपूर्ण राज्य के विस्तार में समानता से लागू होते हैं।
- अनुच्छेद 13 मे प्रथा, परंपरा और अंधश्रद्धा के द्वारा अगर मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है तो ऐसे तत्व न्यायालय के द्वारा गैर कानूनी माना जा सकता है।
समानता का अधिकार (Rights OF Equality)
- अनुच्छेद 14 में कायदे के सामने सभी भारतीय नागरिक समान है। कायदे के समक्ष समानता ब्रिटेन के संविधान की समानता से उद्धुत है।
- अनुच्छेद 15 में जाति, लिंग, धर्म और मूल वंश के तहत सार्वजनिक स्थानों पर किसी भी प्रकार का भेदभाव करना मना है। परंतु महिलाओं और बच्चों को विशेष संरक्षण का प्रावधान मिला है।
- अनुच्छेद 16 में सार्वजनिक नियोजन मे अवसर की साम्यता सभी नागरिकों को दी गई है। किंतु अगर सरकार आवश्यक समझे तो उन वर्गों के लिए आरक्षण का प्रावधान कर सकते हैं।
- अनुच्छेद 17 में अस्पृश्यता को समाप्त किया गया है। इसका आचरण करने वाले को ₹500 का जुर्माना भरना पड़ता है। साथ ही 6 महीने की जेल भी होती है। यह प्रावधान भारतीय संसद अधिनियम वर्ष 1955 मे जोड़ा गया था।
- अनुच्छेद 18 में ब्रिटिश हुकूमत के द्वारा दिए गए उपाधियों को खत्म कर दिया और केवल शिक्षा और रक्षा में उपाधि देने की प्रथा कायम रखी।
स्वतंत्रता का मौलिक अधिकार (Right to Freedom)
- अनुच्छेद 19 में मूल संविधान 7 स्वतंत्रता का समावेश करता है।
- सोच विचार और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता मिलती है।
- अर्थशास्त्र बगैर शांति से सम्मेलन का आयोजन करने की स्वतंत्रता दी गई है।
- संगठन, संस्था, समिति और संघ बनाने की स्वतंत्रता दी गई है।
- भारत के नागरिक को किसी भी विस्तार में जाकर बसने की स्वतंत्रता मिलि है।
- संपत्ति के अर्जन और व्यय की स्वतंत्रता (44वे संशोधन के माध्यम पर निरस्त)।
- जीविका के लिए उपार्जन करने की स्वतंत्रता दी गई है। ( सर्वोच्च न्यायालय द्वारा वर्ष 1977 मे उड़ीसा राज्य के बनाम लखनलाल मामले व्यवस्था प्रदान की गई की मादक पदार्थ, तस्करी के पदार्थ और नशीले पदार्थ इत्यादि को व्यवसाय और जीवन उपार्जन की वस्तु में नहीं गिना जाएगा।)।
- भारत के संविधान में प्रेस की स्वतंत्रता मे कोइ विनीर्दीष्ट उपबंध नहीं है। प्रेस की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19(1) (क) में समावेश होती है।
- अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के चलते मुद्रण स्वतंत्रता का समावेश होता है।
- प्रेस की स्वतंत्रता अनुच्छेद 19 (2) के माध्यम से कुछ परिसीमा हो का निर्माण किया गया है।
- राज्य, प्रेस की स्वतंत्रता पर रक्षा, संप्रभुता, अखंडता, दूसरे राज्यों से मैत्रीपूर्ण संबंध, लोक व्यवस्था, शिष्टाचार, न्यायालय अवमानना अपराध उद्दीपन इत्यादि पर विधीया बनाने के लिए सक्षम है।
- अनुच्छेद 20 के तहत कोई भी नागरिक प्रचलित कानून का हनन करता है, तो उसे दंडित किया जा सकता है। किंतु एक अपराध के लिए केवल एक ही बार सजा दी जाती है।
- अनुच्छेद 21 मे व्यक्ति को प्राण और दैहिक स्वतंत्रता प्रदान की है।
- सर्वोच्च न्यायालय सुभाष कुमार बनाम बिहार राज्य के वर्ष 1991 के मामले में अपने फैसले में कहा कि प्रदूषण फैलाए बिना पानी और वायु का उपयोग करना नागरिकों का अधिकार है।
- सर्वोच्च न्यायालय ने दूसरे मामले, परमानंद बनाम भारत संघ वर्ष 1989 मैं कहा था, कि अगर कोई व्यक्ति दोषी है, तो भी उसके जीवन की रक्षा करनी चाहिए, और बीमारी या रोग की चिकित्सा करने की सुविधा देनी चाहिए।
- अनुच्छेद 22 के तहत कुछ उपबंध दिए गए हैं जीसे निवारक निरोध अधिनियम के रूप से जाना जाता है।
- पुलिस के द्वारा धड़पकड़ किए गए व्यक्ति को उसकी धरपकड़ की वजह तुरंत बता दी जाती है।
- कायदे के अनुसार 24 घंटे के अंदर गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को नजीर के मैजिस्ट्रेट की अदालत में पेश करना जरूरी होता है।
- वर्ष 1971 में जून मे अध्यादेश को कायदे का स्वरूप देते हुए आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम को मान्य किया गया था।
- वर्ष 1970 में विदेशी मुद्रा की तस्करी में छल को रोकने के लिए विदेशी मुद्रा संरक्षण और तस्करी निवारक अधिनियम को बनाया गया था।
- 44 वें संविधान संशोधन के अनुकूल ना रहने पर MISA के कायदे को हटा दिया गया था।
- विध्वंसक की गतिविधियों का नियमन करने के लक्ष्य से 24 सितंबर साल 1983 को राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश प्रसार किया गया।
- वर्ष 1985 ईस्वी मैं राष्ट्रीय सुरक्षा अध्यादेश को कायदेकीय हैसियत देते हुए इसे टाडा कहा गया। वर्ष 1995 के 23 मई को इसे हटा दिया गया।
- 2003 ने आतंकवाद तथा विध्वंसक कार्यप्रणाली के नियमन के लिए संयुक्त अधिवेशन संसद ने पोटा कानून पसर किया। परंतु संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार ने इसे हटा दिया।
शोषण के विरुद्ध का अधिकार(Right Against Exploitation)
- अनुच्छेद 23 के तहत व्यक्ति का क्रय विक्रय, बलात श्रम, बेगार शारीरिक शोषण किसी भी व्यक्ति के द्वारा किया जाना कायदे के विरुद्ध है।
- अनुच्छेद 24 के तहत 14 साल के बच्चों को खतरनाक और हानिकारक कार्य करवाना गैर कानूनी है।
धार्मिक स्वतंत्रता (Right to Religious Freedom)
- अनुच्छेद 25 के तहत नैतिकता, धार्मिकता और सुव्यवस्था तथा स्वास्थ्य के लिए हर व्यक्ति को अंतकरण करने की स्वतंत्रता मिली है।
- अनुच्छेद 26 के चलते धार्मिक समुदाय और उससे जुड़े लाक्षणिक अधिकार का वर्णन किया गया है। दान और ट्रस्ट के माध्यम से जमा की गई राशि से कोई भी धार्मिक संस्था का निर्माण कर सकते हैं। यह राशिफल पर किसी भी प्रकार का कर नहीं वसूला जाएगा।
- अनुच्छेद 27 के तहत राज्य किसी भी धर्म को प्रोत्साहित नहीं कर सकता।
- अनुच्छेद 28 के चलते राज्य को संपूर्ण या अंशत: धर्म के द्वारा शिक्षा प्रदान करना मना है किंतु धार्मिक न्यास पर आधारित संगठन इस प्रकार की शिक्षा को प्रदान कर सकते हैं।
शैक्षणिक और सांस्कृतिक मौलिक अधिकार ( Education and Cultural Rights)
- अनुच्छेद 29(1) के तहत ऐसे वर्ग के व्यक्ति जिन्हें भारत की भाषा या लिपि उनकी संस्कृति के लिए प्रतिकूल लगती हो, वह दूसरी भाषा या लिपि में अपनी संस्कृति को अपना सकते हैं।
- अनुच्छेद 29(2) और अनुच्छेद 29(1) मै वर्गीकृत समूह के व्यक्ति के साथ उनकी भाषा की वजह से उनके साथ किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जाएगा।
- अनुच्छेद 30(1) के तहत अलग-अलग भाषा और संस्कृति वाले लोग अपनी भाषा और संस्कृति के लिए शिक्षण संस्थान स्थापित कर सकते हैं।
अनिवार्य शिक्षा का मौलिक अधिकार ( Right to Compulsory Education)
- 86वे संशोधन अधिनियम वर्ष 2000 के द्वारा एक नया अनुच्छेद जोड़ा गया था जो अनुच्छेद 21(ए) है।
- जिसके तहत राज्य को 6 साल से लेकर 14 साल की उम्र वाले बच्चों को अनिवार्य रूप से शिक्षा देनी होगी।
संविधान उपचार का मौलिक अधिकार (Right To Constitutional Remedies)
- अनुच्छेद 32 के तहत कोई भी व्यक्ति या राज्य के द्वारा मूल अधिकारों अतिक्रमण किया जाएगा तो, उच्च न्यायालय या उच्चतम न्यायालय द्वारा पांच प्रकार की याचिता जाहिर की जाती है। जो कुछ इस प्रकार है,
- पहला है बंदी प्रत्यक्षीकरण, इसके तहत गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को न्यायालय के समक्ष पेश किया जाता है और गिरफ्तारी का कारण दर्शाते हुए अधिकारी को उसका गुनाह साबित करना होता है। यह प्रलेख निजी व्यक्ति संगठन और सरकारी अधिकारियों के विरोध में जाहिर किए जाते हैं।
- दूसरा है परमादेश, जिसके चलते अदालत कोई भी व्यक्ति, संस्था, संगठन या फिर अधीनस्थ न्यायालय के कर्तव्य पालन के आदेश के लिए हुकुम करती है। इसकी मदद से न्यायालय संबंधित पद के अधिकारी को कर्तव्य पालन के लिए मजबूर करती है। राष्ट्रपति और राज्यपाल के विरुद्ध में यह जारी नहीं किया जा सकता।
- प्रतिषेध तीसरा है, इस लेख में उच्च न्यायालय के द्वारा अधीनस्थ न्यायालयों पर तब किया जाता है जब, न्यायालय अपने प्राप्त हुए अधिकार के विस्तार से बाहर निकल कर उसका भंग करते हैं।
- उत्प्रेषण के तहत उच्च न्यायालय द्वारा यह लेख तब जाहिर किया जाता है जब मामला संगीन मुकदमो के आधिन, न्यायालय से उच्च न्यायालय को भेजा जाता है। जब कोई अधिकारी अपने अधिकार के विस्तार से बाहर निकल कर अधिकार का इस्तेमाल करता है, तब यह लेख न्यायपालिका और नगर निगम पर जारी किया जाता है।
- अधिकार पृच्छा पांच वा लेख है। जब कोई कायदे के विरुद्ध किसी पद का इस्तेमाल करने कोशिश करता है तब उस रोकने के लिए यह लेख जारी किया जाता है।
- संविधान सभा ने अनुच्छेद 32 को डॉक्टर भीमराव अंबेडकर के द्वारा संविधान की आत्मा की उपाधि दी थी।
- वर्ष 1967 ईस्वी से पुर्व तक यह तैय था की अनुच्छेद 368 के आधार पर संसद मौलिक अधिकार के साथ संविधान के विभाग को संशोधित करते हैं।
- वर्ष 1967 मे सर्वोच्च न्यायालय मे गोलकनाथ बनाम पंजाब राज्य के मुकदमे में कहा कि संसद मौलिक अधिकार का संशोधन करने के लिए असमर्थ है।
- अनुच्छेद 368 में बताई गई प्रक्रिया के आधार पर मौलिक अधिकार में संशोधन करने के लक्ष्य से 24 वे संविधान संशोधन अधिनियम वर्ष 1971 द्वारा अनुच्छेद 13 और 368 मैं संशोधन करके निश्चित किया था कि संसद मौलिक अधिकार में संशोधन कर सकती है।
Last Final Words:
दोस्तों यह थी भारत की मौलिक अधिकार के बारे में जानकारी। उम्मीद है आपको भारत के नागरिकों के मूल अधिकारों के बारे में संपूर्ण माहिती मिली होगी। अगर अभी भी आपके मन में इस आर्टिकल से संबंधित कोई भी प्रश्न रह गया हो तो, आप हमें कमेंट के माध्यम से बता सकते हैं । धन्यवाद!
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