भारत के राष्ट्रपति की शक्तियां व कार्य

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भारत के राष्ट्रपति देश के गणराज्य के कार्यपालक अध्यक्ष के रूप में होते हैं। संघ के सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम से किये जाते है। अनुच्छेद 53 के आधार पर संघ की कार्यपालक शक्ति उनमें निहित है। राष्ट्रपति भारतीय सशस्त्र सेनाओं का सर्वोच्च सेनानायक होता है। दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम भारत के राष्ट्रपति के बारे में बात करेंगे। कृपया आप इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़ें ताकि आपके सभी सवालों का जवाब मिल सके।

Contents
भारत के पहले राष्ट्रपति का निर्वाचन (Election of First President of India)भारत के राष्ट्रपति के चुनाव से जुड़े तथ्य (Features of Election of Indian President)भारत के राष्ट्रपति की योग्यता (Qualifications of The President of India in Hindi)महाभियोग प्रक्रिया (Impeachment Process)भारत के राष्ट्रपति का त्यागपत्र (Resignation of The President of India)राष्ट्रपति की शक्तियां और कार्य (Power and Function of President of India)राष्ट्रपति की प्रशासनिक शक्ति (administrative power of Indian President)राष्ट्रपति की नियुक्ति संबंधित अधिकार (Recruitment Rights Of President of India)राष्ट्रपति की सैन्य शक्ति (Military Power of Indian President)राष्ट्रपति की राजनीतिक शक्ति (Political Power of President of India)राष्ट्रपति की विधीयी शक्तियां (Legislative Power of Indian President)संसद के सदस्यों को नामित करने का अधिकार (Right to Nominate Members in the houses)राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां:राष्ट्रीय आपात:राष्ट्रपति का राष्ट्रीय शासन:Financial Emergency:राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण:भारत के राष्ट्रपति की सूची:Last Final Word:

देश के राष्ट्रपति को देश का प्रथम नागरिक कहा जाता है साथ ही उनकी पत्नी को देश की प्रथम महिला का दर्जा दिया जाता है। अनुच्छेद 52 में भारत के राष्ट्रपति का समावेश होता है। अनुच्छेद 54 में राष्ट्र पति के चुनाव के लिए निर्वाचक मंडल की व्यवस्था करने के बारे में बताया गया है। जो कुछ इस प्रकार है। निर्वाचक मंडल= निर्वाचित संसद सभ्य + निर्वाचित विधानसभा सभ्य। साथ उल्लेख किया गया है कि निर्वाचित सभ्य को ही निर्वाचक मंडल में समावेश किया जा सकता है।

17वे संशोधन के पश्चात दिल्ली और पांडिचेरी की विधानसभा के सभ्यो को भी राष्ट्र पति के निर्वाचक मंडल में समावेश किया गया था।

अनुच्छेद 55 में राष्ट्र पति के निर्वाचन पद्धति से संबंधित उपबंध दिया गया है। अनुच्छेद 55 (1) में राष्ट्र पति के चुनाव में मतों की गणना के लिए, विधानसभा सदस्य और संसद सदस्य के मत के मूल्य तैय करने का प्रावधान दिया गया है। जिसकी वजह से राष्ट्रपति के निर्वाचन में अलग अलग राज्य के प्रतिनिधित्व में एक रूप से बनी रहती है।

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भारत के पहले राष्ट्रपति का निर्वाचन (Election of First President of India)

  • संविधान सभा ने डॉ राजेंद्र प्रसाद को 24 जनवरी 1950 के दिन बिना किसी विरोध के भारत के पहले राष्ट्रपति के स्वरूप में चुना था।
  • डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 26 जनवरी 1950 के गणतंत्र दिन के अवसर पर प्रथम राष्ट्र पति के स्वरूप में पदभार को संभाला था।
  • राष्ट्रपति के पद के लिए विधिवत चुनाव 1952 में किया गया था। इस चुनाव में डॉ राजेंद्र प्रसाद का विजय हुआ था। साथ ही 1957 में किए गए राष्ट्र पति के दूसरे चुनाव में भी डॉ राजेंद्र प्रसाद विजयी बने थे।
  • इन दोनों चुनाव में K.T शाह (1952) और N.N. दास (1957) डॉ राजेंद्र प्रसाद के प्रतिस्पर्धी थे।

भारत के राष्ट्रपति के चुनाव से जुड़े तथ्य (Features of Election of Indian President)

  • 11वें राष्ट्रपति के चुनाव से पहले एक अध्यादेश केवल गंभीर उम्मीदवार को इस निर्वाचन में शामिल होने के लक्ष्य से जारी किया गया था। जिसके आधार पर राष्ट्रपति के पद के लिए उम्मीदवार को 50 प्रस्तावक और 50 समर्थन करने वालो से प्रस्ताव पर हस्तक्षेप करवाना जरूरी कर दिया गया था। साथ ही जमानत की राशि 15000 रुपए तैय की गय थी।
  • अनुच्छेद 56 के तहत राष्ट्र पति 5 साल के लिए चुना जाता है। यह 5 साल राष्ट्रपति के द्वारा ली जाने वाली शपथ के दिन से गिने जाते हैं।
  • अनुच्छेद 57 के तहत एक बार चुनाव में विजयी बने उम्मीदवार को राष्ट्र पति का पद को सौंप दिया जाता है।

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भारत के राष्ट्रपति की योग्यता (Qualifications of The President of India in Hindi)

अनुच्छेद 58 के आधार पर राष्ट्रपति के पद पर बैठने वाले उम्मीदवार के पास नीचे बताई गई योग्यता होनी आवश्यक है:

  • उमेदवार भारत का नागरिक होना चाहिए और उसकी आयु 35 साल की होनी चाहिए।
  • उमेदवार लोकसभा के सदस्य के चुनाव में खड़े होने की योग्यता रखता होना चाहिए। मानसिक रूप से पागल या दिवालीया नहीं होना चाहिए।
  • उम्मीदवार ने किसी भी न्यायालय द्वारा सजा पात्र ना हुआ हो।
  • अनुच्छेद 60 मे राष्ट्र पति का सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश की हाजरी में पद और गोपनीयता के प्रतिज्ञा लेने के बारे में बताया गया है।

महाभियोग प्रक्रिया (Impeachment Process)

  • अनुच्छेद 61 में राष्ट्रपति के द्वारा संविधान का भंग कीये जाने की परिस्थिति में उसे पद से हटाने की प्रक्रिया महाभियोग प्रक्रिया मे उपबंध की गयी है। ऐसी स्थिति में संसद के दोनों सदनों में से किसी एक में प्रस्ताव कर सकते है।
  • प्रथम संसद के सदन के ¼ सदस्यों के हस्ताक्षर किए गए प्रस्ताव को पीठासीन अधिकारी को भेजा जाता है।
  • पीठासीन पद के अधिकारी के द्वारा 14 दिन के बाद राष्ट्र पति को सूचना दी जाती है। जिसके पश्चात राष्ट्रपति सदन में उपस्थित होकर या अपने द्वारा चुने गए प्रतिनिधी को सदन में भेजकर अपना पक्ष प्रस्तुत करता है।
  • अपना पक्ष रखने के बाद भी यदी सदन राष्ट्रपति पर लगे आरोप को सही मानता है तो उपस्थित तथा मतदान करने वाले सभ्य के 2/3 बहुमत से राष्ट्र पति को उसके पद से हटा ने के प्रस्ताव को पारीत करने मे आता है और प्रस्ताव को दूसरे सदन मे भेजा जाता है।
  • दूसरे सदन मे भेजे गए प्रस्ताव के आधार पर राष्ट्र पति के आरोप की जांच करने के लिए एक समिति को बनाया जाता है। अगर इस समिति के द्वारा राष्ट्र पति पर लगे आरोप साबित हो जाते हैं तो दूसरे सदन भी उपस्थित तथा मतदान करने वाले सभ्य के 2/3 बहुमत से राष्ट्रपति को उसके पद से हटा के प्रस्ताव को पारीत करते है।
  • दोनो सदन के प्रस्ताव को पारीत हो जाने के बाद राष्ट्र पति को पद से हटना पडता है।

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भारत के राष्ट्रपति का त्यागपत्र (Resignation of The President of India)

  • राष्ट्रपति पद से हटने के बाद अपना त्यागपत्र उपराष्ट्रपति को सौपता है।
  • उपराष्ट्रपति के द्वारा लोकसभा के अध्यक्ष को त्यागपत्र के बारे में बताया जाता है।
  • अनुच्छेद 62 के तहत राष्ट्र पति का पद खाली हो जाने पर उपराष्ट्रपति को राष्ट्र पति का पद 6 महीने के लिए सौंपा जा सकता है। अगर कोई कारणोसर ऐसा नहीं कर पाते तो सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश राष्ट्र पति के पद के लिए आसीन होता है।
  • सुप्रीम कोर्ट का मुख्य न्यायाधीश कोई कारणवश हाजिर नहीं हो तो, सुप्रीम कोर्ट का कोई दूसरा वरिष्ठ न्यायधीश राष्ट्रपति के पद की जिम्मेदारी लेता है।
  • अभी तक सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश मोहम्मद हिदायतुल्ला खान को राष्ट्र पति के पद का उत्तरदायित्व संभालने के लिए दिया है।
  • राष्ट्रपति पद पर बैठने में उम्मीदवार की अवधि कार्यकाल की समाप्ति के साथ होती है, तो नये राष्ट्र पति का चुनाव कार्यकाल के खत्म होने से पहले ही कर ली जाती है।
  • कोई कारणवश नए राष्ट्रपति की चुनाव में किसी भी प्रकार की देरी होती है, तो नए राष्ट्र पति के चुनाव हो जाने तक पुराना राष्ट्र पति राष्ट्रपति के पद को संभालता है।

राष्ट्रपति की शक्तियां और कार्य (Power and Function of President of India)

भारत के राष्ट्रपति का पद देश का मुख्य पद होता है। जिसकी वजह से राष्ट्र पति को कई सारी शक्तियां प्रदान की जाती है। इन शक्तियों का इस्तेमाल वह समय-समय पर करता है। शक्तियों के साथ साथ राष्ट्र पति को कई सारे कार्य भी करने होते हैं। तो चलिए देखते हैं भारत के राष्ट्रपति के कार्य और शक्तियां।

अनुच्छेद 53 के आधार पर देश में संघीय कार्यपालिका का मुख्य कार्यभार राष्ट्र पति को सौंपा जाता है तथा कार्यपालिका की शक्तियां उनको दी जाती है।

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राष्ट्रपति की प्रशासनिक शक्ति (administrative power of Indian President)

राष्ट्रपति संघ की कार्यपालिका का औपचारिक रूप से प्रधान होता है। जिसकी वजह से संघीय कार्यपालिका से जुड़े सभी कार्य राष्ट्रपति के नाम के द्वारा किये जाते है।

राष्ट्रपति की नियुक्ति संबंधित अधिकार (Recruitment Rights Of President of India)

भारतीय संविधान के तहत देश के राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री संघ के दूसरे मंत्री महान्यायवादी नियंत्रक और महालेखा परीक्षक उच्चतम तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश, राज्यपाल, जल विवाद आयोग, वित्त आयोग संघ, लोक सेवा आयोग, मुख्य और निर्वाचन आयुक्त, तथा राजभाषा आयोग, इत्यादि के पद के लिए नियुक्ति कर सकता है।

अनुच्छेद 124 (2) के आधार पर उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश की नियुक्ति के लिए राष्ट्र पति के पास आशा की जाती है कि उच्चतम न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश और उच्चतम तथा उच्च न्यायालय के न्यायाधीश से मशवरा करके उसकी नियुक्ति करे।

राष्ट्रपति को मंत्री महान्यायवादी, राज्यपाल, उच्चतम न्यायालय के प्रतिकूल स्थिती मैं संघ और राज्य लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अथवा संसद सदस्य की अनुशंसा पर, उच्चतम या उच्च न्यायालय के न्यायाधीश तथा निर्वाचन आयुक्त इत्यादि को हटाने का अधिकार मिला है।

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राष्ट्रपति की सैन्य शक्ति (Military Power of Indian President)

भारत का राष्ट्रपति भारतीय सशस्त्र सेना का प्रधान भी होता है। साथ ही वायु सेना, जल सेना और थल सेना तीनों सेना के अध्यक्ष की पसंदगी करने का कार्य राष्ट्र पति के द्वारा किया जाता है।

राष्ट्रपति की राजनीतिक शक्ति (Political Power of President of India)

राष्ट्रपति की राजनीति शक्ति का विषय फैला हुआ है, किंतु उनके तहत नीचे के विषय रखे जा सकते हैं।

  • विदेशों से संधायां करना
  • विदेशी निति का निर्धारण करना
  • विदेशी नीतियों का संचालन करना
  • अंतर्राष्ट्रीय गतिविधियों मे देश का प्रतिनिधित्व करना

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राष्ट्रपति की विधीयी शक्तियां (Legislative Power of Indian President)

अनुच्छेद 74(1) के तहत राष्ट्रपति की विधीयी शक्ति का इस्तेमाल मंत्री की सलाह पर ही किया जा सकता है।

संसद का सत्राहुत करना और सत्रावसान विघटन:

  • राष्ट्रपति को संसद सदनो को संयोजीत करने अथवा उसको सत्रावसान करने और लोकसभा का विघटन करने की शक्तियां दी जाती है।
  • गतीरोध के दरमियान अनुच्छेद 85 और 108 के आधार पर दोनों संसद सदन की बैठक को संयोजित करने की शक्ति दी गई है।

आरंभिक अभिभाषण:

  • अनुच्छेद 87 के तहत लोकसभा के साधारण चुनाव के बाद प्रथम सत्र के शुरुआत में एक साथ समवेत संसद के दोनों सदनों में अभिभाषण करने में आएगा और संसद को उसके आह्वान का कारण बताएगा।

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संसद के सदस्यों को नामित करने का अधिकार (Right to Nominate Members in the houses)

अनुच्छेद 80 के आधार पर राष्ट्रपति राज्यसभा में 12 सदस्य को और अनुच्छेद 331 के अनुसार लोकसभा में 2 सदस्यों को नामित कर सकता है।

प्रतिवेदन (Reports): बजट सीएजी का प्रतिवेदन वित्त आयोग की गुजारिश पर तथा अलग-अलग आयोग के प्रतिवेदन से जुड़े दस्तावेज संसद के बीच रखने की शक्तियां राष्ट्रपति की होती है।

विधायक के लिए पूर्व मंजूरी: भारत के संविधान में आशा ही नहीं  है कि कुछ विषय पर कायदे का निर्माण करने के लिए राष्ट्रपति की पूर्व मंजूरी लेनी जरूरी है।

अनुच्छेद 3 के आधार पर नए राज्यों के बनावट के लिए, वर्तमान राज्य की सीमा में परिवर्तन करने वाले विधान की गुजारिश करने की दूसरी शक्तियां भी राष्ट्रपति को दी जाती है।

अनुच्छेद 117(1) के तहत धन विधेयक सदन के पटल पर रखने के लिए राष्ट्र पति की पूर्व मंजूरी लेनी जरूरी है।

अनुच्छेद 304 के अनुसार व्यापार की स्वतंत्रता पर किसी प्रकार रोक लगाने और अधीरोपित करने वाले विधेयक को सदन के पटल पर रखने से पहले राष्ट्रपति की अनुमति जरूरी होती है।

विधेयक कानूनी रूप: इसके तहत कोई भी विधेयक राष्ट्रपति के हस्तक्षेप के पश्चात ही कायदे में परिवर्तित होता है।

विटो (veto): भारत के राष्ट्रपति को संसद के द्वारा पारित किए गए विधेयक अधिकृत रूप से मना करने का अधिकार इतना शक्तिशाली नहीं है, जितना कि अमेरिका में है।

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अत्यंतीक वीटो (Ultimate Veto): जब प्राप्यक को संसद के द्वारा पारित किया जाता है, और राष्ट्रपति की समिति मिलने के पहले ही सरकार किसी कारण से भंग हो जाती है और नई सरकार ने इस प्राप्यक को रद्द करने के लिए गुजारिश कर दी ,तो राष्ट्र पति उस वक्त विधेयक को पारित करना जरूरी समझे तो उस पर विटो कर सकता है।

Suspension Veto: राष्ट्रपति इसका इस्तेमाल करके संसद द्वारा पारित विधेयक को एक बार फिर विचार करने के लिए भेज सकता है।

JB Veto: जब राष्ट्रपति संसद के द्वारा पारित प्राप्यक को फिर से विचार करने के लिए दोबारा भेजता है, और उसके लिए न तो वे अनुमति देता है न  तो अनुमति से इंकार करता है, तो ऐसी परिस्थिति में राष्ट्रपति के पास प्राप्यक पडा रहता है। जिसे जेबी वीटो कहते हैं। जेबी वीटो का प्रथम प्रयोग वर्ष 1986 में संसद द्वारा पारीक भारतीय डाक संशोधन प्राप्यक 1986 पर हुआ था।

अध्यादेश जारी करने का अधिकार: जब संसद का सत्र चल ना रहा हो और किसी विधान की तात्कालिक आवश्यकता हो तो राष्ट्र पति ऐसी स्थिती मैं हुकुम कर सकता है। ऐसे हुकुम का वही प्रभाव होता है जो किसी संसद अधिनियम का होता है।

किंतु संसद का सत्र शुरू होने के 6 सप्ताह के अंदर हुकुम को संसद के द्वारा स्वीकृति मिलना जरूरी है।

अनुच्छेद 352 के तहत हुकुम का इस्तेमाल वर्णित आपात स्थिति के संदर्भ में नहीं कर सकते।

क्षमादान का अधिकार: अनुच्छेद 72 के अनुसार भारत का संविधान भी दूसरे देशों के संविधान की तरह राष्ट्रीय अध्यक्ष को निर्णय  सरकार के व्यक्तियों को माफ करने का अधिकार देता है।

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राष्ट्रपति की आपातकालीन शक्तियां:

राष्ट्रीय आपात:

  • अनुच्छेद 352 के तहत  युध्ध, बाह्य चढ़ाई आंतरिक उपद्रव की परिस्थिति में राष्ट्रपति राष्ट्रीय आपात की घोषणा कर सकता है।
  • अनुच्छेद 352 (3) के आधार पर राष्ट्रपति आपात की उदघोषणा तभी कर सकता है जब प्रधानमंत्री के नेतृत्व में मंत्रिमंडल राष्ट्रपति से लिखित रूप में पुष्टि करें।
  • अनुच्छेद 352 का इस्तेमाल करके राष्ट्रपति युध्ध, बाह्य चढ़ाई आंतरिक उपद्रव होने की आशंका पर भी राष्ट्रीय आपात उदघोषीत कर सकता है।
  • 44वें संशोधन के आधार पर अनुच्छेद 352 का उपयोग न्यायीक पुनँ अवलोकन के लिए कर सकता है।
  • अनुच्छेद 352 की उदघोषणा करने के एक माह के अंदर संसद के दोनों सदनों के द्वारा इसकी संम्मती मे संकल्प प्रस्ताव अगर पारित नहीं होता तो, राष्ट्रीय आपात की उदघोषणा अपने आप समाप्त हो जाती है।
  • संसद द्वारा अनुमोदित हो जाने के बाद राष्ट्रीय आपात की उद्घोषणा 6 महीने तक शरु रहती है। इस उदघोषणा के रहते संसद को असाधारण कार्यपालिका तथा विधीयी शक्तियां दी जाती है। क्षेत्र की सरकारें संघ सरकार के निर्देश के अनुसार कार्य करती है।
  • अनुच्छेद 353(क) के अनुसार राष्ट्रीय आपात के प्रवर्तन समय मैं संघीय कार्यपालिका क्षेत्रों को किसी भी विषय पर निर्देश कर सकती है। हालांकि साधारण स्थिति में ऐसा वह केवल अनुच्छेद 256 और 257 के अनुसार यह निर्देश किए गए विषय में ही कर सकती है।
  • राष्ट्रीय आपात के समय में संसद विधि द्वारा लोकसभा के समय में 1 साल की बड़ोती कर सकती है। अनुच्छेद 83(2) के अनुसार सामान्य परिस्थिति में 6 महीने के लिए कर सकते हैं।

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राष्ट्रपति का राष्ट्रीय शासन:

  • अनुच्छेद 356 के अनुसार किसी प्रांत में संवैधानिक तंत्र की असफलता की परिस्थिति में राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रीय शासन लागू किया जाता है।
  • उसकी उपघोषणा राज्यपाल और केंद्रीय मंत्रिमंडल के सुझाव पर आधारित होती है।
  • उपघोषणा के  समय मे राज्य की कार्यपालिका शक्ति राष्ट्रपति के पास और विधायक की शक्ति संसद के पास होती है।
  • संवैधानिक तंत्र की असफलता की वजह से घोषित राष्ट्र पति शासन की ज्यादा से ज्यादा अवधि 3 वर्षों की होती है। किंतु 6 महीने पर संसद द्वारा अनुमोदन प्रस्ताव पारित होते रहना जरूरी है।
  • आज तक 110 से भी ज्यादा बार यह उपघोषणा हो चुकी है। जिसमें से पहले पंजाब में लागू हुई थी।

Financial Emergency:

अनुच्छेद 360 के अनुसार जब देश में आर्थिक रूप से खतरा उत्पन्न होता है, तब उस इसकी उदघोषणा करके सारी वित्तीय शक्तिया राष्ट्रपति को दे दी जाती है।

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राष्ट्रपति का विशेष अभिभाषण:

  • सामान्य चुनाव के बाद हर साल, एक अधिवेशन में, एक साथ संवेत दोनों संसद सदनों की हाजिरी में राष्ट्रपति अभिभाषण करता है।जीसने आमतौर पर सरकार के नितियों का उल्लेख रहता है।
  • राष्ट्रपति के अभिभाषण पर 1718 नियम इत्यादि के अनुसार संसद के दोनों सदनों में व्यापक विचारणा होती है। किंतु इस चर्चा मैं राष्ट्रपति की प्रत्यक्ष आलोचना नहीं करने में आती।
  • नियम 20 के अनुसार अभिभाषण की चर्चा के समाप्ति पर प्रधानमंत्री द्वारा जवाब दिया जाता है। प्रधानमंत्री के द्वारा दिए गए उत्तर के पश्चात धन्यवाद प्रस्ताव को मतदान करने के लिए रखा जाता है।
  • नियम 247 के अनुसार धन्यवाद प्रस्ताव पारित होने के पश्चात उसकी सूचना लोकसभा के अध्यक्ष के द्वारा राष्ट्रपति को दी जाती है।
  • अनुच्छेद 100 के अनुसार सदन मैं गणपूर्ति  की किसी बैठक के लिए गढ़ मूर्ती कोरम अध्यक्ष अथवा अध्यक्ष के स्वरूप में कार्यकारी सदस्य सहित कुल सदस्य संख्या 1/10 जीतने भाग की होगी। इसमें से सात लोकसभा की और 55 राज्यसभा की होगी।

भारत के राष्ट्रपति की सूची:

  • डो. राजेन्द्र प्रसाद : वर्ष 1884 से लेकर 1963 तक (26 जनवरी 1950-13 मई 1962)
  • डो. सर्वपल्ली राधाकृष्णन: वर्ष 1888 से लेकर 1975 तक (13 मई 1962-13 मई 1967)
  • डो. जाकिर हुसैन : वर्ष 1897 से लेकर 1969 तक (13 मई 1967-3 मई 1969)
  • वी.वी. गिरी: वर्ष 1894 से लेकर 1980 तक (24 अगस्त 1969-24 अगस्त 1974)
  • फख़रुद्दीन अहमद: वर्ष 1905 से लेकर 1977 तक(24th Aug 1974-11th Feb 1977)
  • नीलम संजीवा रेड्डी: वर्ष 1913 से लेकर 1996 तक(25 जुलाई 1977-25 जुलाई 1982)
  • गिआनी जेल सिंह: वर्ष  1916 से लेकर 1994 तक(25 जुलाई 1982-25 जुलाई 1987)
  • रामास्वामी वेंकेटरमण: वर्ष 1910 से लेकर 2009 तक (25 जुलाई 1987-25 जुलाई 1992)
  • डो.शंकर दयाल शर्मा: वर्ष 1918 से लेकर 1999  (25 जुलाई 1992-25 जुलाई 1997)
  • के. आर. नारायण:  वर्ष 1920 से 2005 तक (25 जुलाई 1997-25 जुलाई 2002)
  • डो. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम:  वर्ष 1931 से 2015 तक (25 जुलाई 2002-25 जुलाई 2007)
  • श्रीमती प्रतिभा पाटिल: वर्ष 1934 (25 जुलाई 2007-25 जुलाई 2012)
  • प्रणव मुखर्जी: वर्ष 1935 (25 जुलाई 2012 से 25 जुलाई 2017)
  • रामनाथ कोविन्द:  वर्ष 1945 (25 जुलाई 2017 से अब तक)

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Last Final Word:

दोस्तों यह थी भारत के राष्ट्रपति के बारे में संपूर्ण जानकारी। हम उम्मीद करते हैं कि भारत के राष्ट्रपति से संबंधित आपके सभी प्रश्नों के जवाब आपको मिल गए होगे। यदी फिर भी आपके मन में भारत के राष्ट्रपति को लेकर कोई प्रश्न रह गया हो तो हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य बताइए।

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