हाल ही में कोरोना महामारी के चलते देश में आई आर्थिक मंदी से निपटने के लिए उत्तरप्रदेश व गुजरात सहित कई अन्य राज्यों ने अधितांश श्रम कानूनों को तिन वर्ष के लिए स्थगित कर दिया है। इसी कारण श्रम कानून चर्चा में है। आइए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ते है और श्रम कानून के बारे में जानते है।
श्रम कानून को स्थगित करने का मतलब यह हुआ की श्रमिकों के मालिको को सीधा अधिकार दे दिया गया की वे आने वाले 3 वर्षो में श्रमिको का शोषण करते है, तो अधितांश शोषण में श्रमिक सरकार की सहायता नहीं ले सकता, क्योकि जो श्रम कानून लागु थे वे अब स्थगित कर दिए गए है।
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श्रम कानून क्या है? (What is Labor Law?)
कर्मचारियों के सामान अधिकार, अवसर, सुरक्षा व वेतन इत्यादि को सुनिश्चित करने वाले कानूनों को श्रम कानून कहा जाता है। निजी व सार्वजनिक दोनों क्षेत्रो में कार्यरत अधिकारियो व श्रमिको पर ये कानून लागु होते है। इसका उद्देश्य श्रमिको के मानसिक व शारीरिक शोषण को समाप्त करना है।
‘श्रम’ समवर्ती सूचि में आता है, इसलिए केंद्र और राज्य दोनों अपने अलग-अलग श्रम कानून बनाते है। वर्तमान में 200 से ज्यादा राज्य श्रम कानून और लगभग 50 केन्द्रीय श्रम कानून है।
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श्रम कानून के प्रकार (Types of Labor Law)
दोस्तों! मुख्य रूप से श्रम कानून 2 प्रकार के होते है, इन्हें 2 विभागों में बांटा गया है:
1. उद्योग और श्रम सबंधी विधान
इन कानूनों में कारखानों में श्रमिको के स्थान की दशाओ का विनियमन किया जाता है की किस दिशा में श्रमिको से पैसा लिया जाता है और कारखानों के मालिको और काम करने वाले श्रमिको के क्या दायित्व होगे। इसके अंतर्गत निचे दिए गए अधिनियम आते है:
- श्रमजीवी क्षतिपूर्ति अधिनियम 1923
- भारतीय श्रम संघ अधिनियम 1926
- भृति भुगतान अधिनियम 1936
- औद्योगिक संघर्ष अधिनियम 1947
- कारखाना अधिनियम 1948
2. सामाजिक सुरक्षा संबंधी विधान
इसके अंतर्गत आने वाले कानून श्रमिको के सामाजिक लाभ, उनकी बीमारी, रोजगार संबंधित आधार, न्यूनतम वेतन आदि की व्यवस्था की जाती है। इसके अंतर्गत निचे दिए गए अधिनियम आते है:
- भारतीय गोदी श्रमिक अधिनियम 1934
- कोयला खान श्रमिक कल्याण कोष अधिनियम 1947
- कर्मचारी राज्य बिमा अधिनियम 1948
- न्यूनतम भृति भुगतान अधिनियम 1948
- खदान अधिनियम 1952
- कर्मचारी प्रोविडेंट फंड 1952
- मातृत्व लाभ अधिनियम 1961
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श्रमिक कानूनों में ढील (Relaxation of Labor Laws)
हाल ही में कोरोना महामारी के तहत कई राज्यों ने निवेशको के पक्ष में श्रम कानूनों में ढील दी है, ताकि उनके राज्यों में विदेशी निवेश आकर्षित हो सके। इस छुट से भारत में श्रम कानूनों का उल्लंघन हो सकता है। जैसे यदि निवेशक चाहे तो कर्मचारियों को कुछ बेनिफिट्स देने से मना कर सकता है, काम के घंटे भी बढ़ा सकता है और कभी भी नौकरी से निकाल सकता है।
मध्यप्रदेश और उत्तरप्रदेश सरकार ने अध्यादेश लाकर ज्यादातर श्रम कानूनों को 3 वर्ष के लिए स्थगित कर दिया है। इस आर्टिकल में हमने कुछ महत्वपूर्ण श्रम कानूनों और उनके प्रावधानों की व्याख्या की है।
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भारतीय श्रम कानूनों की आलोचना (Criticism of Indian Labor Laws)
कहते है की भारतीय श्रम कानून लचीले नहीं होते है। 100 से ज्यादा श्रमिको को रखने वाली संस्थाओ को कई सारी क़ानूनी अपेक्षाएं पूरी करनी पड़ती है। नोकरी से श्रमिक को निकालने के लिए सरकार की अनुमति लेनी पड़ती है जिससे यह प्रतिष्ठान किसी को नौकरी पर रखने से बचते है। यह एक तरफ इन संस्थानों के विकास में बाधक है, दूसरी ओर श्रमिकों को कोई लाभ नहीं मिलता है।
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Last Final Word
दोस्तों! इस आर्टिकल के जरिये हमने आपको भारतीय श्रम कानून क्या है?, भारतीय श्रम कानून के प्रकार, भारतीय श्रम कानून की आलोचना आदि की जानकारी दी है। यदि इस आर्टिकल से जुड़ा कोई प्रश्न हो, आप कोमेंट बोक्स के जरिये पूछ सकते है।
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