हाल ही में हमारे संसद ने एक बहुत ही महत्वपूर्ण अधिनियम पारित किया है जो है “भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 2018” (Prevention of Corruption Act 2018) मूल रूप से यह 1988 का एक अधिनियम था, जिसमे संशोधन किया गया और संशोधन के द्वारा इस नए अधिनियम को हाल ही में पारित किया गया है।
यह अधिनियम 9 सितंबर, 1988 को अधिनियमित (पारित) हुआ। जो की 12 सितंबर, 1988 को जम्मू कश्मीर राज्य को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में लागु हुआ।
26 नवंबर, 2018 को सर्वोच्च न्यायालय ने केंद्र सरकार को भ्रष्टाचार निरोधक में दो संशोधनों को चुनौती देने वाली याचिका का जवाब देने का आदेश दिया है।
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तो आईए जानते है की भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में दोनों संशोधन क्या है? (What are these Two Amendments in Prevention of Corruption Act?)
इस संशोधन में सेक्शन 17A(1) को जोड़ा गया जिसके द्वारा सरकार से भ्रष्टाचार अपराध की जांच के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक है।
इस अधिनियम से सेक्शन 13(1)(d)(2)(आपराधिक दुर्व्यवहार) को हटा दिया गया है। इससे पहले एक सरकारी कर्मचारी के लिए यह एक अपराध था। यदि, यह तीसरी पार्टी को आर्थिक या अन्य लाभ देने के लिए अपने पद दुरुपयोग करता हो।
अधिनियम की धारा 1 में संक्षित नाम जो दिया गया है वो है “भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988” और संशोधन के बाद इसका नया नाम “भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018” दिया गया। यह “भ्रष्टाचार निवारण (संशोधन) अधिनियम, 2018” राज्यसभा में 19 जुलाई, 2018 में पारित हो गया था, लोकसभा में 20 जुलाई, 2018 को पारित हुआ और राष्ट्रपति के हस्ताक्षर 26 जुलाई, 2018 में होने के बाद यह अधिनियम संशोधन के बाद पूरी तरह से लागु किया गया था।
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भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 (Prevention of Corruption Act 1988 in Hindi)
- इस अधिनियम का विस्तार जम्मू-कश्मीर को छोड़कर सम्पूर्ण भारत में लागु किया गया है।
- 1988 में लोक सेवको द्वारा किए जाने वाले भ्रष्टाचार के संबंध में दंड का प्रावधान किया गया था।
- इस अधिनियम के तहत साक्ष्य पेश करने की जवाबदारी अभियोजन पक्ष से अभियुक्त पर स्थानांतरित किया गया है।
- अधिनियम के तहत, कोई भी व्यक्ति जो सरकार से वेतन प्राप्त करता है और सरकारी सेवा या किसी सरकारी विभाग, कंपनी या किसी सरकारी स्वामित्व वाले या नियंत्रित उद्यम में कार्यरत है, उसे “लोक सेवक” के रूप में परिभाषित किया गया है।
- अधिनियम के तहत, अवैध परितोषण, आधिकारिक पद का दुरुपयोग, वित्तीय लाभ आदि को अपराधों के रूप में वर्गीकृत किया गया है।
- सांसदों और विधायकों को यह कानून से बाहर रखा गया है।
- यदि किसी सरकारी कर्मचारी के खिलाफ अपराध का दोषी पाया जाता है, तो उसे कम से कम 6 महीने के कारावास और पांच साल तक की अवधि के लिए दंडित किया जा सकता है।
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भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 2018 की मुख्य विशेषताएँ (Salient Features of the Prevention of Corruption Act 2018 in Hindi)
रिश्वत लेने के लिए दंड बढाया गया – सजा के प्रावधान न्यूनतम 6 महीने से बढाकर 3 वर्ष और अधिकतम 5 वर्ष से बढाकर 7 वर्ष किया गया है। (रिश्वत के मामले में 7 वर्ष की सजा बड़े अपराध की श्रेणी में आती है)
‘अनुचित लाभ’ का विस्तार – ‘अनुचित लाभ’ की पूर्व सिमित परिभाषा को विस्तारित किया गया है अर्थात ‘क़ानूनी परिसमिति के अलावा कुछ भी’।
मामला चलाने से पूर्व अनुमति – नए कानून के मुताबिक किसी भी लोकसेवक पर भ्रष्टाचार का मामला चलाने से पहले अगर वह केंद्र का है, तो पहले लोकपाल और अगर लोकसेवक राज्य का है तो राज्यों में लोकायुक्तो की अनुमति लेनी होगी।
उपहार अपराधीकृत – अनुचित लाभ के उद्देश्य से प्राप्त किया गया कोई भी उपहार अब भ्रष्टाचार की श्रेणी में माना जायेगा।
रिश्वत देने वाले भी अपराधी की श्रेणी में – पहली बार नए कानून के तहत रिश्वत लेने वालो की तरह देने वालो को भी 3 से 7 साल की केंद्र का प्रावधान किया गया है। इसके साथ ही जुर्माना भी लगाया जायेगा। इसके अलावा जिस व्यक्ति पर रिश्वत देने का आरोप लगा होगा उसको अपनी बात रखने के लिए 7 दिनों का समय दिया जायेगा।
कोर्पोरेट रिश्वत अपराधिकृत – संगठन के हितो के उन्नयन के लिए अगर कर्मचारी ने वरिष्ठ अधिकारी की सहमती से रिश्वत दी तो वरिष्ठ अधिकारी दोषी होंगे।
अवैध संपत्ति की तत्काल जब्ती – कानून प्रवर्तक को सरकारी कर्मचारी की अवैध संपत्ति तत्काल जब्त करने का अधिकार दिया गया है, साथ ही प्रिवेंशन ऑफ मनी लोडरिंग एक्ट (Prevention of Money Loading Act-PMLA) के प्रावधानों का आहवान किया गया है।
समय पर परिक्षण अनिवार्य – जाँच और परिक्षण निष्कर्ष निकालने की 2 साल की अवधि को 4 साल तक विस्तारित किया जा सकता है।
ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण – एक नए कानून में ईमानदार कर्मचारियों को संरक्षण दिए जाने का प्रावधान किया गया है। जाँच के दौरान यह भी देखा जायेगा की रिश्वत किन परिस्थितियों में दी गई है।
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पृष्ठभूमि (Background)
भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 है वह भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1946 से बदलकर किया गया है। साथ ही, 1962 में भ्रष्टाचार की जाँच करने के लिए किसंथानम कमिटी का गठन हुआ था। किसंथानम कमिटी की सिफारिश और 1946 के भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम में संशोधन करने के लिए और उन विधियों का समीकन करने के लिए साथ ही IPC में किए गए प्रावधानों का समीकन करने के लिए 1988 में भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम लाया गया।
भ्रष्टाचार निरोधक कानून (1988) संशोधन के लिए वर्ष 2013 में वेश किया गया था, इसके बाद इस विधेयक को संसद की स्थायी समिति के पास भेजा गया था।
स्थायी समिति ने इस पर अपने विचार रखने के बाद इसको प्रवर समिति के पास भेजा था, जिसके बाद इसको समीक्षा के लिए विधि आयोग के पास भी भेजा गया। अंत में समिति ने वर्ष 2016 में अपनी रिपोर्ट सौंपी थी, जिसके बाद 2017 में इस विधेयक को दोबारा संसद में पेश किया गया था।
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संशोधित कानून में समस्याएँ (Problems in the Amended Law)
सवाल यह उठता है की संशोधित कानून में समस्या कहा है?, जैसे की इस कानून में प्रावधान किया गया है की लोकसेवको के मामलो में केंद्र में लोकपाल और राज्यों में लोकायुक्त की अनुमति के बिना पुलिस मामले की जाँच शुरू नहीं कर सकेगी। दरअसल मूल कानून की धारा 19 में भी यह प्रावधान था, की किसी लोकसेवक पर केस चलाने के लिए सक्षम अधिकारी से मंजूरी लेना आवश्यक होगा। इसलिए यह प्रावधान ईमानदार और दोषी दोनों ही लोकसेवको को समान रूप से संरक्षण देने जैसा है। यही, कारन है की धारा 19 को इस कानून से ख़त्म करने के लिए सर्वोच्च न्यायालय में याचिका दायर की गई थी।
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क्रियान्वयन में समस्याएँ (Problems with Implementation)
- साल 2014 के मुकाबले 2015 में भ्रष्टाचार के मामलो में पांच फीसदी का इजाफा हुआ।
- अदालतों में लंबित मुकदमो की संख्या बढ़ रही है।
- मौजूदा वक्त में सिर्फ 19 फीसदी मामलो में ही दोषियों को सजा हो पाती है।
- 138 Special CBI Courts होने के बावजूद मामलो का तेजी से निपटारा नहीं हो पा रहा।
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आगे की राह
- लोकपाल तथा लोकायुक्तो की नियुक्ति प्रक्रिया को पटरी पर लाना जरुरी है।
- अदालत में चल रहे मामलो के जल्द निपटारे और दोषी को सजा देना सुनिश्चित करना जरुरी है।
- आम लोगो का जागरूक होना भी भ्रष्टाचार को रोकने में हो सकेगा।
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Last Final Word :
इस आर्टिकल के जरिये “भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 2018”, “भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम 1988” और उससे जुडी सारी जानकारी हमने आपको दे दी है। इस आर्टिकल से जुड़ा कोई प्रश्न हो तो कोमेंट बोक्स में पूछ सकते है।
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