नमस्कार दोस्तों! हमारे भारतीय इतिहास को अंग्रेजो के चुंगल से पूरा तरह से जकड़ लिया गया था। ऐसे में भारतवर्ष के नागरिको को अंग्रेजो के द्वारा किए जाने वाले जुल्म को सहन पड़ता था। भारतीय इतिहास में ऐसे बहुत से नागरिक थे, जिन्हों ने अंग्रेजो की गुलामी को स्वीकार नही की, और भारत आजादी के लिए कठिन परिश्रम किया। वैसे में एक नाम देश के महान क्रन्तिकारी चंद्रशेखर आजाद का भी आता है। चंद्रशेखर आजाद देश के ऐसे महान क्रांतिकारी थे, जिन्होंने भारत मा की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों का न्योछावर हंसते हुए कर दिया। तो हमारे आज के इस आर्टिकल में हम आपको चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय देंगे।
नाम | चंद्रशेखर आजाद |
जन्म | 23 जुलाई 1906 |
जन्म स्थान | उन्नाव जिले में स्थित एक बदरका गांव में |
माता | जगरानी देवी |
पिता | पंडित सीताराम तिवारी |
भाई | सुखदेव पंडित |
पेशा | क्रांतिकारी |
प्रथम स्वतंत्रता संग्राम | 17 दिसंबर 1928 |
मृत्यु | 27 फरवरी 1931 |
चंद्रशेखर आजाद कौन है?
चंद्रशेखर आजाद का जन्म 23 जुलाई 1906 साल भाबरा गाँव अलीराजपुर जिले में हुआ था, और उनका उपनाम आजाद पंडित जी था चंद्रशेखर आजाद का निधन 27 जुलाई 1931 वर्ष में इलाहाबाद उतर प्रदेश में हुई था। चंद्रशेखर आजाद भारतीय स्वतंत्र संग्राम के स्वतंत्र सेनानी थे। जो की भारत के प्रसिद्ध क्रांतिकारीयो में से एक है। चंद्रशेखर अंग्रेजी शासन के अंतर्गत पले बड़े थे, जिसके कारण चंद्रशेखर को बचपन से अंग्रजी शासक के विरुद्ध नफरत की भावना थी। बचपन से ही ऐसी भावना होने कारण चंद्रशेखर आजाद थोड़े उग्र स्वभाव के थे चंद्रशेखर एक ऐसे क्रान्तिकारी थे, जिन्होंने भारत को आजाद कराने के लिए अपने प्राणों तक की बत्याग दे दिया था और उन्होंने ऐसा प्रण लिया था कि वे अपने जीते जी स्वयं को अंग्रेजों के हाथ नहीं आने देंगे, जिसका उन्होंने पालन भी किया।
चंद्रशेखर आज़ाद का प्रारंभिक जीवन
चंद्रशेखर आजाद का जन्म भाबरा गांव में हुआ था वे एक ब्रह्मण परिवार से थे और उनके पूर्वज बदरका बैसवारा से थे। चंद्रशेखरआजाद के पिता पण्डित सीताराम तिवारी अकाल के समय अपने पैतृक निवास बदरका को छोड़कर पहले कुछ दिनों अलीराजपुर रियासत में नौकरी करते रहे फिर भाबरा गाँव में रह चले गये। यहीं बालक चन्द्रशेखर का बचपन बीता था। चंद्रशेखर की माता का नाम जगरानी देवी था। चंद्रशेखर के एक बड़े भाई भी थे, जिनका नाम सुखदेव पंडित था। आजाद का प्रारम्भिक जीवन आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र में स्थित भाबरा गाँव में बीताऔर बचपन में आजाद ने भील बच्चो के साथ बहुत धनुष-बाण चलाये। इस प्रकार से चंद्रशेखर निशानेबाजी बचपन में ही सीख लिया था। बालक चन्द्रशेखर आज़ाद का अपने देश को आज़ाद कराने के अहिंसात्मक उपायों से हटकर सशस्त्र क्रान्ति की ओर मुड़ गया। उस समय बनारस क्रान्तिकारियों का गढ़ था। वह मनमथनाथ गुप्त और प्रणवेश चटर्जी के सम्पर्क में आये और क्रान्तिकारी दल के सभ्य बन गये। क्रान्तिकारियों का वह दल “हिन्दुस्तान प्रजातन्त्र संघ” के नाम से जाना जाता था।
चंद्रशेखर आजाद को प्राप्त शिक्षा
चंद्रशेखर आजाद को प्राप्त शिक्षा के विषय में अब तक कोई विशेष जानकारी प्राप्त नहीं हुई है, परंतु ऐसा बताया जा रहा है कि चंद्रशेखर को बनारस हिंदू विश्वविद्यालय अर्थात काशी विद्यापीठ से शिक्षा प्राप्त है।
चंद्रशेखर का नाम आज़ाद कैसे पड़ा?
चंद्रशेखर आजाद वर्ष 1921 ईस्वी में महात्मा गांधीजी के द्वारा शुरू किए गए असहयोग आंदोलन में भाग लिए थे। जिस समय चंद्रशेखर ने असहयोग आंदोलन में भाग लिया था, उस समय वह मात्र 15 वर्ष के थे। चंद्रशेखर बचपन से ही गांधीजी का अनुसरण करते थे, जिसके कारण वह गांधी जी के योजनाओं और आंदोलनों में हिस्सा लेने के लिए सदैव तत्पर रहते थे। महात्मा गांधी के असहयोग आंदोलन में शामिल होने के बाद चंद्रशेखर आजाद की पहली गिरफ्तारी हुई थी। चंद्रशेखर आजाद को ब्रिटिश ऑफिसर के द्वारा थाने में ले जाकर जेल में बंद कर दिया गया। चंद्रशेखर को दंड के तौर पर दिसंबर में कडकती ठंड में भी ओढ़ने बिछाने के लिए कोई बिस्तर नहीं दिया गया।
चंद्रशेखर आजाद को जब रात के समय में ब्रिटिश ऑफिसर देखने आया तो वह चंद्रशेखर को देखकर दंग रह गया, क्योंकि चंद्रशेखर आजाद जेल में दंड बैठक लगा रहे थे, और कडकती ठंड में भी चंद्रशेखर पसीने से पुरे भीग गए थे।
चंद्रशेखर दुसरे ही दिन न्यायालय में पेश कर दिया गया था, चंद्रशेखर आजाद थोड़े उग्र स्वभाव के थे ही, जब जज ने उनका नाम पूछा तो चंद्रशेखर ने उपना नाम “आजाद” बताया और फिर जज थोड़े कडक शब्द में पूछा तुम्हारे पिता का नाम क्या है? चंद्रशेखर ने कहा की मेरे पिता का नाम “स्वतंत्रता” है जज क्रोधित हो गई और पूछा की तुम्ह कहा रहते हो? चंद्रशेखर ने जवाब दिया “जेल” जज ने अपने सवालों के ऐसे जवाब सुनके बहुत क्रोधित हो गए और चंद्रशेखर आज़ाद को 15 कोड़े की सजा सुना दी। तब चंद्रशेखर का नाम पुरे बनारस में गूंज उठा हर घर में यह बात होती थी, इस कारण चंद्रशेखर तिवारी से आजाद पड़ा था।
झाँसी में क्रांतिकारी गतिविधिया
चंद्रशेखर आजाद ने एक निर्धारित समय के लिए झांसी को अपना गढ़ बना लिया था। झांसी से 15 किलोमीटर दूर ओरछा के जंगलों में अपने साथियों के साथ निशानेबाजी किया करते थे। अचूक निशानेबाज होने के कारण चंद्रशेखर दूसरे क्रांतिकारियों को प्रशिक्षण देने के साथ पंडित हरिशंकर ब्रह्मचारी के छ्द्म नाम से बच्चों के अध्यापन का कार्य भी किया करते थे। वह धिमारपुर गांव में अपने इसी छद्म नाम से स्थानीय लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हो गए थे। झांसी में रहते हुए चंद्रशेखर ने गाड़ी चलानी भी सीख ली थी।
चंद्रशेखर आजाद का क्रांतिकारी संगठन
असहयोग आन्दोलन के दौरान जब फरवरी 1912 में चौरी चौरा की घटना के बिना किसी से पूछे गाँधीजी ने आन्दोलन वापस ले लिया, तो देश के तमाम नवयुवकों की तरह चंद्रशेखर आज़ाद का भी कांग्रेस से मोह भंग हो गया और पण्डित राम प्रसाद बिस्मिल, शचीन्द्रनाथ सान्याल योगेशचन्द्र चटर्जी ने 1928 में उत्तर भारत के क्रान्तिकारियों को लेकर एक दल हिन्दुस्तानी प्रजातान्त्रिक संघ का गठन किया गया था। चन्द्रशेखर आज़ाद भी इस दल में शामिल हो गये थे। इस संगठन ने गाँव के अमीर घरों में डकैतियाँ डालीं, क्योकि दल के लिए धन जुटाने की व्यवस्था हो और यह निश्चित किया गया की किसी भी स्त्री के ऊपर हाथ नहीं उठाया जाएगा।
राम प्रसाद बिस्मिल के नेतृत्व में डाली गई डकैती में जब एक औरत ने चंद्रशिखर आज़ाद की पिस्तौल छीन थी, तब अपने बलशाली शरीर होने के बावजूद आज़ाद ने अपने उसूलों के कारण उस महिला पर हाथ नहीं उठाया। इस समय डकैती में क्रान्तिकारी दल के 8 सभ्य पर, पूरे गाँव ने हमला कर दिया। राम प्रसाद बिस्मिल ने घर के अन्दर जाकर उस महिला को कसकर चाँटा मारा, और पिस्तौल वापस छीनी और चंद्रशेखर आजाद को डाँटते हुए बाहर लाये। इसके बाद यह दल केवल सरकारी प्रतिष्ठानों को ही लूटने का फैसला किया। 1 जनवरी1924 को यह दल ने समग्र हिन्दुस्तान में अपना सुप्रसिद्ध पर्चा द क्रान्तिकारी वितरण किया, जिसमें दल की नीति नियमो का खुलासा किया गया था। इस पत्रिका में सशस्त्र क्रान्ति की चर्चा की गयी थी। शाचिद्रनाथ सान्याल इस पर्चे को बंगाल में पोस्ट करने जा रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें बंकुरा में गिरफ्तार कर लिया, और जेल भेज दिया गया था हिन्दुस्तानी प्रजतान्तिक संध के गठन के अवसर से इन तीनो मुख्य नेताओ बिस्मिल सान्याल और चटजी में इस संगठन के उदेश्यों को लेकर मतभेद था।
इस संघ की नीतियों के अनुसार 9 अगस्त 1924 को काकोरी कांड को अंजाम दिया गया, जब शाहजहापुर में इस योजन के बारे में चर्चा करने के लिए मीटिग बुलाया हाई तो दल के एक मात्र सदस्य अशफाक उल्ला खां ने इसका विरोध किया था। उनका तर्क था, की इससे प्रशासन उनके दल को जड़ से उखाड़ने पर तल जाएगा और एसा ही हुआ भी अंग्रेजो ने चंद्रशेखर आज़ाद तो पकड नही सके लेकिन अन्य सर्वोच कार्यकर्ताओ पंडित राम प्रसाद बिस्मिल” अशफाक उल्ला खां एवं ठाकुर रोशन सिंह को 19 दीसम्बर 1927 को और करीबन उससे 2 दिन पूर्व राजेन्द्रनाथ लाहिड़ी जो भारतीय स्वतंत्रा संग्राम के महत्वपूर्ण सेनाने थी। जिनको 17 दिसम्बर 1927 को फाँसी पर लटकाकर मार दिया गया। सभी प्रमुख कार्यकर्ताओ के पकडे जाने से इस मुकदमे के दौरान दल पाय निष्किय ही रहा। एकाध बार बिस्मील तथा योगेश चटर्जी आदि क्रांतिकारी को छोड़ ने की योजना भी बनाई गई चंद्रशेखर के अलावा भगतसिंह भी शामिल थे परन्तु किसी कारण से यह योजना पूरी नही हुई और 8 क्रांतिकारी फासी एवं 16 को कड़ी कैद की सजा सुनाई गई
चंद्रशेखर आजाद ने उत्तर भारत के सभी क्रांतिकारियों को एकत्र कर 8 सिंतम्बर 1928 को दिल्ली के फिरोज शाह कोटला मैदान में एक गुप्त सभा का आयोजन किया। इस सभा में भगत सिंह को दल का प्रचार प्रमुख बनाया गया इस सभा में यह भी तय किया गया की सभी क्रांतिकारी डालो को अपने अपने उद्देश्य इस नई पार्टी में विलय कर लेने चाहिए। चंद्रशेखर आजाद सेना का प्रमुख बनाया गया और “हिन्दुस्तान रिपब्लिकन एसोसियेश”न का नाम बदल कर “हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन ऐसोसियेशन” रखा गया था इस संगठन को चलाने के लिए धन की जरुरी थी इसके लिए चंद्रशेखर ने अपने 9 साथियों के साथ के साथ मिलकर काकोरी कांड को अंजाम देने की ठानी और सरकारी खजाने को लोट लिया और इस कांड में शामिल सभी आरोपियो को पुलिस द्वारा पकड लिया गया, लेकिन चंद्रशेखर पुलिस के चंगुल से निकाल गई थे।
लाला लाजपतराय की मृत्यु का बदला
भारत के एक प्रसिद्ध समाज सुधारक और स्वतंत्रता सेनानी लाला लाजपतराय की मृत्यु से संपूर्ण भारतवर्ष में नाराजगी छाई हुई थी। लाला लाजपतराय की मृत्यु 17 नवंबर 1928 वर्ष को हुई थी। लाला लाजपतराय जी की मृत्यु का बदला लेने के लिए चंद्रशेखर आजाद, भगतसिंह, राजगुरु, सुखदेव और अन्य क्रांतिकारी एक साथ मिलकर विचार बना लिया था, की लाला लाजपतराय की मृत्यु करीबन एक महीने बाद 17दिसम्बर 1928 के दिन क्रांतिकारीयो ने ब्रिटिश ऑफिसर सांडर्स को दिनदहाड़े गोली मार कर हत्या करदी थी। इन सभी के बाद चंद्रशेखर आजाद कुछ दिन झाँसी में रहे थे। आजाद झाँसी से दूर 15 किलोमीटर स्थित ओरछा जंगल में बंदूक निशानेबाजी का अभ्यास करते थे। चंद्रशेखर स्वयं साथ ही में अपने नौजवानों को भी निशानेबाजी की शिक्षा देते थे, और उन्होंने साधु के भेष में ऐसा कई दिनों तक किया था।
चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु
चंद्रशेखर आजाद ने अपने क्रांतिकारी कार्य को इतना विस्तार दे दिया था की ब्रिटीश सरकार उनसे भयभीत रहते थे। चंद्रशेखर आजाद ब्रिटिश शासक की लिस्ट में सबसे ऊपर थे। भारतीय ईस्ट इंडिया के पुलिस ऑफिसर चंद्रशेखर को जिन्दा या मुर्दा किसी भी हाल पकड़ना चाहती थी। चंद्रशेखर आजाद अपने दो सहयोगी को इलाहबाद के अल्फेड पार्क में मिलने आने वाले थे। चंद्रशेखर के एक साथी ने आज़ाद के साथ विश्वासघात किया और उनकी आने की सुचना ब्रिटिश शासको को दे दी थी, और ब्रिटिश पुलिस ने चंद्रशेखर को चारो और से घेर लिया गया, ब्रिटिश पुलिस ने चंद्रशेखर को ग्रिफ्तार होने का आदेश दिया था चंद्रशेखर आज़ाद ने वीरता दिखा कर तिन पुलिस अधिकारी को मार डाला और उसके बाद चंद्रशेखर ने खुद को पुलिस अधिकारीयो से घिरा हुआ पाया, जिसके कारण उन्हें अपनी कसम का ध्यान रखते हुए खुद को ही गोली मार दी, और भारत माता के नाम शहीद हो गए और इस तरह चंद्रशेखर आजाद की मृत्यु 27 फरवरी 1931 साल को इलहाबाद के अल्फेड पार्क में हुई थी।
चंद्रशेखर आजाद से जुड़े कुछ प्रश्न के उत्तर
चंद्रशेखर आजाद का जन्म कब और कहा हुआ था?
चंद्रशेखर आज़ाद का जन्म 23 जुलाई 1906 भाबरा गाँव अलीराजपुर जिले में हुआ था।
चंदशेखर आज़ाद कीस संगठन से जुड़े थे?
चंद्रशेखर आजाद हिंदुस्तान रिपब्लिक एसिसियेशन से जुड़े थे
चंद्रशेखर को किस संगठन का प्रमुख बनाया गया था?
चंद्रशेखर आजाद को हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन का प्रमुख बनाया गया था।
चंद्रशेखर आजाद मी मृत्यु कब कहा हुई थी?
चंद्रशेखर 27 फरवरी 1931 को इलहाबाद अल्फेड पार्क में हुई थी।
चंद्रशेखर आज़ाद इलाहाबद क्यों गई थे?
चंद्रशेखर आज़ाद इलाहाबाद अपने दो साथियों से मिलने गए थे।
Last Final Word
दोस्तों हमरे आज के इस आर्टिकल में हमने आपको भारतीय स्वतंत्रता संग्रामी के क्रांतिकारी चंद्रशेखर आजाद का जीवन परिचय दिया जैसे की चंद्रशेखर आज़ाद का प्रारंभिक जीवन और उनकी शिक्षा प्राप्ति, चंद्रशेखर का क्रांतिकारी संगठन और चंद्रशेखर आज़ाद की मृत्यु सभी की जानकारी से आप वाकिफ हो चुके होंगे।
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