भारत के इतिहास की और एक नज़र करे तो भारत में आदि काल में कई सारे महाराजा ने शासन किया है। साथ ही साथ भारत पर ब्रिटिशो ने भी अपने शासन को स्थापित किया था, और हिंदुस्तान को अपना गुलाम बनाया था। भारत को उनकी गुलामी से आज़ाद करने के लिए कई सारे स्वाधीनता आन्दोलन सदियों तक चलते रहे थे। भारत को इस आन्दोलन की वजह से उन लोगो से पहचान हुइ जो अपने देश के लिए अपनी जान तक की भी क़ुरबानी देने के लिए तैयार थे। भारत को आजादी दिलाने में गांधीजी, जवाहरलाल नहेरु, सरदार पटेल, सुभाषचंद्र बोज़, मंगल पांडे, चंद्रशेखर आजाद, बाल गंगाधर तिलक इत्यादी ने अपना जीवन समर्पित कर दिया। भारत की आजादी में कई सारी महिला ने भी अपना योगदान दिया है जिसमे विजय लक्ष्मी पंडित,सुचेता कृपलानी, सावित्रीबाई फुले, सरोजनी नायडू, लक्ष्मी सहगल, रानी लक्ष्मी बाई, कस्तूरबा गाँधी इत्यादि का समावेश होता है। आज के आर्टिकल में हम ऐसी ही एक क्रांतिकारी घटना यानि की चौरी चौरा की घटना के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़ना ताकि इस विषय से संबंधित सभी प्रकार की जानकारी आपको मिल सके।
चौरी चौरा की घटना 4 फरवरी वर्ष 1922 के दिन ब्रिटिश भारत में हुई थी। यह घटना भारत के इतिहास में भारत के राष्ट्रीय आंदोलन की दंतकथा बन गई है। ब्रिटिश सरकार के शासनकाल में महात्मा गांधी ने अपने नेतृत्व में संपूर्ण भारत में असहयोग आंदोलन शुरू किया था। असहयोग आंदोलन के चलते गोरखपुर जिले के चौरी चौरा नाम की एक जगह पर शांतिपूर्ण प्रदर्शन करने में आ रहा था। इसी दौरान ब्रिटिश सरकार के पुलिस कर्मचारियों के द्वारा प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई गई। जिसकी वजह से प्रदर्शनकारियों का एक बड़ा समूह पुलिस अधिकारियों के साथ भिड़ गया। ब्रिटिश सरकार के इस कृत्य का जवाब देने के लिए प्रदर्शनकारियों ने हमला बोल दिया। और स्वयंसेवकों ने चौरी चौरा के पुलिस थाने को चारों तरफ से घैर कर आग लगा दी। इस घटना में 3 नागरिक और 22 पुलिस अधिकारियों ने अपनी जान गवा दी थी। इस हिंसात्मक प्रवृत्ति के बाद, अहिंसा का आचरण करने वाले महात्मा गांधी ने घटना का प्रत्यक्ष परिणाम देखते हुए 12 फरवरी 1922 के दिन राष्ट्रीय स्तर पर असहयोग के आंदोलन को रोकने का आदेश जाहिर किया।
चौरी चौरा घटना की पृष्ठभूमि
चौरी चौरा की घटना की पृष्ठभूमि का उन घटनाओं के साथ जुड़ी थी जो प्रथम विश्व युद्ध के समय मे और युद्ध के बाद ब्रिटिश सरकार द्वारा भारतीय संदर्भ में भारत के लोगों के द्वारा उठाए गए कदमों के कारण घटित हुई थी। इसका मतलब है कि चौरी चौरा की घटना ब्रिटिश सरकार की विरोध में कीये जाने वाले आंदोलन को रोकने के लीए, ब्रिटिश सरकार के प्रयासों से हुई थी। प्रथम विश्वयुद्ध के बाद भारत के खाद्य और अन्न के भंडार में कमी हो गई थी, मुद्रास्फीति बढ़ने लगी, औद्योगिक उत्पादन कम होता गया और लोगों के ऊपर भारी कर डाल देने की वजह से भारत के आम लोग उसके बोझ के नीचे दब गए थे। भारत के गांव में, कस्बों में और नगर में रहने वाले मध्यम और निम्न मध्यवर्ग के किसान, दस्तकार और मजदूर वर्ग महंगाई और बेरोजगारी जेसी परेशानियों से जूझ रहे थे। एसी सभी परेशानीयो ने भारत के लोगों को महामारी की ओर आगे बढ़ाया था।
रॉलेट एक्ट, जलियांवाला बाग हत्याकांड और पंजाब में मार्शल जैसी घटनाओं के बाद से भारत के लोगों की सभी उम्मीदों पर पानी फिर चुका था। भारत के लोगों को पता चल गया था, कि ब्रिटिश सरकार दमन के अलावा कुछ नहीं दे पाएगी। 8 सदस्य से बनाई गई हंटर समिति भी जाचँ करने में लापरवाही कर रही थी। इन सभी कारणों को नजर में रखते हुए महात्मा गांधी ने अपने नेतृत्व में राष्ट्रीय स्तर पर वर्ष 1920 में असहयोग आंदोलन का प्रारंभ किया था।
ब्रिटिश सरकार ने आंदोलन को रोकने के लिए क्रांतिकारियों के विरुद्ध में दमन चक्र चलाया। जिसके चलते ब्रिटिश सरकार ने गांधीजी के अलावा सभी महत्वपूर्ण राष्ट्रवादी नेताओं की धड़पकड करवा दी। राष्ट्रवादी नेताओं की धरपकड़ के बाद गांधीजी ने 1 फरवरी 1922 को ब्रिटिश हुकूमत को चेतावनी देते हुए कहा, कि अगर ब्रिटिश सरकार राष्ट्रीय नेताओं को छोड़कर नागरिक स्वतंत्रता बहाल नहीं करती है और प्रेस पर से अपना नियंत्रण नहीं हटाती है तो वे भारत भर में सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू करने का आदेश दे देंगे। महात्मा गांधी ने फरवरी 1922 में गुजरात के बारडोली शहर में प्रयोग के तौर पर मालगुजारी की गैर अदायगी का आंदोलन प्रारंभ करने का फैसला कर लिया। इसी दौरान 4 फरवरी 1922 के दिन चौरी चौरा की घटना हुई थी।
4 फरवरी 1922 की चौरी चौरा की घटना
एक सेवानिवृत्त सिपाही भगवान अहीर के नेतृत्व में 2 फरवरी 1922 के दिन स्वयंसेवक को ने पुलिस दमन, अनाज की कीमत में वृद्धि और शराबखोरी के विरुद्ध में प्रदर्शन करने के लिए एक यात्रा निकाली थी। इस प्रदर्शन के दौरान चौरी चौरा के पुलिस थाने के पुलिस अधिकारी ने भगवान अहीर की पिटाई की और प्रदर्शनकारियों को गिरफ्तार कर लिया।
करीबन 3000 जितने किसान और मजदूर ने साथ मिलकर 4 फरवरी 1922 को अपने नेताओं को गिरफ्तारी से रिहा कराने के लिए और पुलिस के विरुद्ध , विरोध का प्रदर्शन करने के लिए फिर से एक यात्रा निकाली। ब्रिटिश सरकार किसी भी हाल में आंदोलन को रोकने के लिए समर्थ थी। प्रदर्शनकारियों का यह समूह चौरी चौरा पुलिस थाने के बाहर नेताओं की रिहाई के लिए नारे लगा रहे थे। आंदोलनकारियों को डराने और भीड को बिखैरने के इरादे से पुलिस थाने के पुलिस अधिकारी ने प्रदर्शनकारियों पर गोलियां चलाई। इस गोलीबारी में खेलावन भर की हत्या हो गई।
खेलावन भर की हत्या के बाद प्रदर्शनकारियों का उत्तेजित हो जाना स्वाभाविक था। उत्तेजित हुए प्रदर्शनकारियों ने चौरी चौरा के पुलिस थाने पर इँटो और पत्थरो से हमला कर दिया। प्रदर्शनकारियों की भारी मात्रा से डरकर पुलिस अधिकारी बचने के लिए पुलिस थाने में चले गए। परंतु आक्रोशित और अनियंत्रित हो चुके प्रदर्शनकारियों ने चौरी चौरा के पुलिस थाने को चारों ओर से घेरकर आग लगा दी। इस घटना में थानेदार गुप्तेश्वरसिंह सहीत 22 पुलिस अधिकारी और चपरासी मारे गए।
असहयोग सत्याग्रह का स्थगन
महात्मा गांधी अहिंसा के पथ पर चलने वाले नेता थे। उनको हिंसा का मार्ग पसंद नहीं था। चौरी चौरा की घटना में हिंसा का प्रयोग होने की बात का पता जब गांधीजी को चला तो उन्होंने असहयोग के आंदोलन को वापस लेने की घोषणा कर दी। असहयोग के आंदोलन को वापिस लेने के पीछे गांधीजी की वजह यह थी की, लोगों का उत्साह और जोश आंदोलन को हिंसक मोड़ पर ले जा सकता था। साथ ही भारत में हिंसा का वातावरण स्थापित हो जाता। गांधीजी का अहिंसा का शस्त्र ब्रिटिश सरकार की विशाल ताकत के सामने एक कारगर शस्त्र के समान था। भारत में हिंसा का आगमन होने से ब्रिटिश सरकार सशस्त्र सेना के द्वारा हिंसक आंदोलन को बड़ी आसानी से खत्म करवा सकती थी। और ऐसा होने के बाद वापीस ब्रिटिश सरकार साथ लड़ पाना संभव नहीं था। 12 फरवरी वर्ष 1922 की काग्रेस की कार्यकारिणी समिति की बैठक में आंदोलन वापसी की घोषणा कर दी और तत्कालीन रूप से आंदोलन को समाप्त कर देने का आदेश दिया।
नेहरू, सुभाषचंद्र बोस और कांग्रेस के ज्यादातर अधिकारियों ने गांधीजी के असहयोग के आंदोलन को वापीस लेने के फैसले को जल्दबाजी में लिया गया गलत फैसला बताया। सुभाषचंद्र बोस के अनुसार जिस वक्त भारत की जनता का उत्साह और जोश अपने चरण सीमाओं पर था, उस वक्त उनको पिछे हट जाने का आदेश देना राष्ट्रीय दुर्भाग्य से काम नहीं था। जवाहरलाल नेहरू ने आंदोलन के समाप्त होने की बात सुनकर उसकी प्रतिक्रिया में कहा था, कि अगर कन्याकुमारी के किसी गांव में हिंसा का पालन होता है तो उसकी सजा हिमालय के किसी गांव को क्यों मिलनी चाहिए? असहयोग आंदोलन के स्थगन के कुछ महीनों में ही ब्रिटिश हुकूमत ने गांधीजी को गिरफ्तार कर लिया था।
परीक्षण और सजाएं
चौरी चौरा की घटना ब्रिटिश सरकार के लिए चुनौती भरी थी। जिसके कारण ब्रिटिश सरकार ने उस विस्तार के आसपास तत्काल मार्शल लॉ लागू करवा दिया था। अनेक जगहों पर छापे मारकर सैकड़ों लोगों की गिरफ्तारी करने में आई। दंगे और आग लगाने के इल्जाम में करीबन 228 लोगों पर कानूनी तौर पर मुकदमे चलाए गए। इसमे से 6 लोगों की मुकदमे के चलते पुलिस की हिरासत में ही मृत्यु हो गई थी। सेशन कोर्ट ने इस घटना के शेष 222 अभियुक्तों में से 172 लोगों को फांसी की सजा दी थी। भारत के लिए बड़ी निराशा की बात है कि 22 पुलिस अधिकारीयो की हत्या के बदले ब्रिटिश सरकार द्वारा 172 लोगों की जान लेने के प्रयत्न पर राष्ट्रीय स्तर पर कोई विरोध प्रकट नहीं किया गया। पंडित मदन मोहन मालवीय के द्वारा इस घटना के अभियुक्तों के मुकदमे लड़े गए थे। इस घटना के अभियुक्तों को 20 अप्रैल 1923 के दिन इलाहाबाद के उच्च न्यायालय के द्वारा 19 लोगों को फांसी की सजा, 110 लोगों को आजीवन कारावास की सजा और बचे हुए लोगों को देश निकाल और काला पानी की सजा सुनाई गई थी।
वर्ष 1971 में भारत को आजादी मिली उसके बाद स्थानीय देश प्रेमियों ने शहीदों की समृति बनाए रखने के लिए चौरी चौरा शहीद स्मारक समिति की स्थापना करने मे आई। इस समिति ने अनेक लोगों की सहायता से वर्ष 1973 में ऊंचा त्रिकोणमय मीनार तैयार करवाया, जिसकी ऊंचाई करीबन 12.2 मिटर की है। स्मारक की वजह से चौरी चौरा की घटना के दौरान शहीद हुए वीरों की स्मृति अमर बन गई। इसके बाद इस घटना से जुड़े लोगों को सम्मानित करने के लिए भारत सरकार ने एक और शहीद स्मारक का निर्माण करवाया। इस स्मारक के समीप एक स्वतंत्रता संग्राम से संबंधित पुस्तकालय और संग्रहालय बनवाया गया।
चौरी चौरा की शौर्य गाथा का महत्व
चौरी चौरा की घटना से एक और राष्ट्रीय आंदोलन पर शांति की नजर से देखे तो नकारात्मक असर हुई थी तो दूसरी ओर प्रभाव की दृष्टि से देखे तो सकारात्मक प्रभाव पड़ा था। इस घटना के बाद साबित हो गया था कि अब से राष्ट्रवादी प्रवृत्तियो देश के दूरदराज के विस्तारो में भी फैल चुकी है। इस घटना के बाद ब्रिटिश सरकार की धारणा टूट चुकी थी कि भारतीयों में राष्ट्रीय चेतना का अभाव है। चौरी चौरा की घटना है ब्रिटिश सरकार की अजेयता कि धारणा को गंभीर तरीके से चुनौती दी थी। इस घटना के बाद से भारत के लोगों में ब्रिटिश सरकार के प्रति भय की भावना खत्म हो गई थी।
Last Final Word
यह थी चौरी चौरा के बारे में संपूर्ण जानकारी। हम उम्मीद करते हैं कि हमारी जानकारी से इस विषय से संबंधित आपको आपके प्रश्नों के उत्तर मिल गए होंगे। अगर अभी भी आपके मानने पर प्रश्न आ रहे हो गया हो तो हमें कमेंट के माध्यम से बताइए।
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