राजस्थान के सबसे प्राचीन किलो में से चित्तौड़गढ़ भी एक प्राचीन किला माना जाता है। यह किला 7वि शताब्दी में बनाया होने का अनुमान है। राजस्थान के सभी बड़े किलो में से सब से बड़ा किला यही है। राजस्थान के सभी किलो की कक्षा में प्रथम है। राजस्थान का सिरमोर और सबसे महत्वपूर्ण किला चित्तौड़गढ़ किला है। यह चित्तौड़गढ़ का किला चित्तौड़गढ़ के जिले स्थित है। इस आर्टिकल में विश्व की धरोहर चित्तौड़गढ़ के किले के बारेमे पूरी जानकारी जानिए।
चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास (History of Chittorgarh Fort)
यह अभी तक साबित नहीं हुवा की यह किला किसने बनाया है। पैराणिक कथा के अनुसार 4000 साल पहले पांडवो ने इस किले का निर्माण करवाया था। 4000 साल पहले योगी निर्भयनाथ ने भीम के सामने एक शर्त राखी थी। निर्भयनाथ ने पारस पत्थर के बदले एक किले के निर्माण की शर्त राखी थी। इस लिए पांडवो ने मिल कर एक ही रात में दुर्ग का निर्माण कर दिया।
कुछ इतिहासकारों का मानना है की यह चित्तौड़गढ़ का किले का निर्माण मोर्य वंश के राजा चित्रागद ने करवाया था। चित्रगद राजा ने लगभग सातवी शताब्दी में चित्रकूट की पहाड़ी पर करवाया था। इस किले का नाम पहले चित्रकूट ही था। बाद में समय के बदलाव के साथ इसका नाम चित्तौड़गढ़ हो गया। बप्पाराव ने मोर्यवंश के अंतिम शासक मानमोरी को हरा कर यह किले को अधीन ले लिया। उस बप्पा राव को परमार वंश के राजा मुंज ने हरा कर उस किले को अपने नाम किया।
दसवी शताब्दी तक यह किले पर परमारों का राज चला। गुजरात के सोलंकी राजा जयसिंह ने परमार राजा यशोवर्मन को हरा कर किले को अपने आधीन कर लिया। उसके बाद इस किले पर गुहिल के राजा इल्तुतमिश की नजर इस किले पर थी। इल्तुतमिश ने आक्रमण कर इस किले पर जित हासिल की और राज कर ने लगे। उस काल के सभी राजाओ के पास इस किले का आधिपत्य रहा है।
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चित्तौड़गढ़ किले का भूगोल (Geography of Chittorgarh Fort)
राजस्थान के दक्षिणी क्षेत्र में यह चित्तौड़गढ़ का किला है। यह किला उदयपुर से 115 किमी, अजमेर से 233 किमी और जयपुर से 340 किमी दूर है। बेरच नदी के पास 590.6 फीट ऊची पहाड़ी पर निर्मित है। इस किले में 84 जल में से आज के समय में 22 ही निकाय होते है। इन जल 4 बिलियन लीटर पानी को संग्रह कर सकते है और इस जल के संग्रह से 50000 की सैना की जरुरत को पुर्ण किया जा सकता है। यह जल निकाय तालाब, कुओ और बावडियो के रूप में देखा जाता है। किला 13 किमी लंबी और मजबूत दीवार से घिरा हुवा है। उसका एक महत्व यह भी है की 45 डिग्री ढलान होने से दुश्मनों के लिए यह किला दुर्गम लगता है। अगर देखा जाये तो किले के परिसर में देखने लायक 65 एतिहासिक संरचनाए निर्मित है। जिसमे 4 महल, 4 स्मारक, 19 मंदिर और 20 कार्यात्मक मंदिर शामिल है।
चित्तौड़गढ़ किले में साके (जोहर)
चित्तौड़गढ़ किले में तीन साके एसे है जो आज भी दुनिया को याद रखती है। पहले हम जान लेते है की साका होता क्या है? साका को जोहर भी कहा जाता है। यह जोहर किले के अंदर होता है। जब युद्ध में हार मिल जाती है तब किले में रहने वाली सभी महारानियो के साथ सैनिको की पत्नी, पतिव्रता नारियो एक बड़े से कुंड में अपना देह अग्नि को त्याग देती है, इसे ही जोहर या साका कहते है। इसके पीछे का कारण पतीव्रता स्त्री अपनी इज्जत को दुसरे क्र हाथो ना उछाल ना होता है।
अब बात करते है उन तीन प्रसिध साकों की।
पहला साका: 1303 ईस्वी में जब यहाँ के राजा राणा रतनसिंह थे। तब अलाउदीन खिलजी के द्वारा उस किले पर आक्रमण किया गया था। उस आक्रमण में रतनसिंह राणा की हार हुयी। यह खबर मिलते ही रानी पद्मावती और सभी महल की सभी महिलाओ के संग साका/जोहर किया था। यह साका किले का सबसे पहला साका था।
दूसरा साका: 1534 ईस्वी में राणा विक्रमादित्य किले के राजा बने। लेकिन वो इतने काबिल राजा नहीं था की उस किले का रक्षण कर सके। वो हमेशा राग – रंग में मस्त रहते थे। गुजरात के सुलतान बहादुर शाह ने अपनी सेना के साथ इस किले के ऊपर आक्रमण किया। इस आक्रमण से डर कर विक्रमादित्य उस किले से भाग खड़े हुए। यह देख कर रानी कर्मवती ने सभी स्त्रियों के साथ जोहर/साका किया था। यह उस किले का दूसरा साका/जोहर था।
तीसरा साका: 1567 इस्वी में जयमल मवाड उस किले के रजा थे। उस समय मुग़ल सुल्तान अकबर की सेना ने उस किले पर चढाई करदी। उस युद्ध में बड़े ही शूरवीरता मेवाड की सेना ने युद्ध लड़ा लेकिन उस युद्ध में अकबर की सेना के सामने मवाड की सेना ने घुटने टेक दिए। उसकी वजह से रानी फूल कंवर ने सभी किले की स्त्रियों के साथ मिलकर साका।जोहर किया। यह साका उस किले का आखरी साकला था।
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चित्तौड़गढ़ किले का महत्व
चित्तौड़गढ़ का किला (Chittorgarh Ka Kila) अपनी भोगोलिक बनावट के कारण सबसे अलग महत्त्व रखता है। इस किले में सभी प्रकार के स्थल मोजूद थे, जिसमे मैदान, मंदिर और तालाब जेसे स्थल मोजूद थे, जिससे किला पूरी तरह समृद्ध था। लेकिन इस किले की सबसे बड़ी दिक्कत यह थी की इस किले को आसानी से शत्रु सेना के द्वार घेरा जा सकता था।
इस कारण से राजपूत शासको को बोहोत मुश्किल होती थी। उनको रसद सामग्री और अन्न जेसी वस्तुओ को लाने में मुश्किल होती थी। यही एक कारण था की इतने शक्तिशाली दुर्ग होने के बाद भी जब अनाज समाप्त हो जाता था तब मजबूरन किले के दरवाजे खोलने पड़ते थे। यही एक कारण था की परवर्ती शासको ने चितोड़ राजधानी को बदल के उदयपुर को अपनी राजधानी बना दी होगी ।
चित्तौड़गढ़ किले के दरवाजे
चित्तौड़गढ़ किले में मुख्य सात द्वार है। (जिसे स्थानीय भाषा में पोल कहा जाता है।) सात मुख्य पोल निचे दिखाए गए है –
पदान पोल, भैरो पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोदल पोल, लक्ष्मण पोल और राम पोल। जेसा की नाम से ही पता चल रहा है की सभी द्वारो के नाम भगवान के नाम पर रखा है। सभी द्वारो में राम द्वार किले का मुख्य द्वार है। किले के सभी प्रवेश द्वार को सेन्य सुरक्षा के लिए सुरक्षित किलेबंदी के लिए बड़े पैमाने पर बड़े बड़े पत्थर की संरचनाओ के रूप में बनाया गया है।
नुकीले मेहराबो वाले दरवाजो को हाथी और तोप गोलों से बंद करने के लिए प्रबलित किया जाता है। दरवाजो के ऊपर पैरापेट्स बनाया हुवा था। उस पैरापेट्स के ऊपर से धनुर्धारियो तीर से दुश्मन सेना पर आक्रमण करते थे। किले के अंदर एक गोला कर सडक है। जो सभी दरवाजो/फटको को जोडती है। यही गोलाकार सड़क किले कई खंडहर महलो और 130 मंदिरों तक पहोचती है।
सूरज पोल के दाई ओर अनुमान है की दरीखाना या सभा कक्ष है। जिसके पीछे एक गणेश मंदिर और जेना (महिलाओ के लिए रहने का कार्टर) है। सूरज पोल के बाई और एक विशाल और सुन्दर जलाशय है। एक अजीब द्वार भी है, जिसे जोरला पोल (ज्वाइन गेट) कहते है। इस की यह खासियत है की उसमे एक साथ दो द्वार शामिल है। जोरला पोल का ऊपरी मेहराब लक्ष्मण पोल के आधार से जुडा हुवा है।
यह कहा जाता है की यह अद्भुत द्वार भारत के आलावा कही ओर नहीं देखा जाता। किले के उतरी दिशा में एक सिरे पर लोकोटा बारी निर्मित है । वही दक्षिणी छोर पर एक छोटी सी जगह है। जहा से अपराधियों को निचे खाई में फेकने के लिए बनाई गई होगी।
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चित्तौड़गढ़ किले के पर्यटन स्थल
चित्तौड़गढ़ किले के अंदर बहूत से ऐसे स्मारक है जो पर्यटक को अपनी ओर आकर्षित करते है। यहाँ के स्मारक, मंदिर, और महल की अनूठी शिल्पकला के चलते इस किला दुनिया भर में पहचान है। इसलिए यह किला विश्व धरोहर की लिस्ट में शामिल है। चित्तौड़गढ़ किला वर्ल्ड यूनेस्को हेरिटेज साईट में शामिल है।
आइये अब इस किले के कुछ रमणीय स्थल के बारे में जानते है।
विजय स्तम्भ
विजय स्तम्भ (विजय मीनार) या जय स्तम्भ, इस स्तम्भ को चितोड़ का प्रतिक कहा जाता है। यह स्तम्भ विशेष रूप से विजय की अभिव्यक्ति है। 1458 और 1468 के बिच राणा कुम्भा ने मालवा के सुल्तान महमूद शाह प्रथम खिलजी पर अपनी जीत की याद में बनवाया था। इस स्तम्भ पर से मैदानी इलाको और चितोड़ के नए शहर का द्रश्य अछा दिखता है।
इस किले के निर्माण की शुरुआत तक़रीबन युद्ध के 10 साल के बाद हुयी थी। यह 37.2 मीटर (122 फीट) उचा और 47 वर्ग फीट (4.4 वर्ग मी) आधार पर बना हुवा है।
उस स्मारक में 8 मंजिल जीतनी उचाई है। 8वि मंजिल तक इसकी तक़रीबन 157 सीढिया है। 8वि मंजिल से हमें चितोड शहर का मनमोहक और अद्भुत नजारा देखने को मिलता है।
इस पर बने गुम्बद को 19वी शताब्दी में क्षतिग्रस्त किया गया था। लकिन अभी वर्त्तमान समय में उसको शाम के समय लाइटिंग से सजाया जाता है, जिस से वो ज्यादा अच्छा दीखता है। इसकी सबसे उपरी मंजिल से हम चितोड का मनमोहक नजारा देख सकते है।
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कीर्ति स्तम्भ
कीर्ति स्तम्भ 72 फीट उचा टावर है,जो निचे से 30 फीट चोडा आधार है, और ऊपर से 15 फीट पतला है। इस स्तम्भ के बाहर की तरफ जैन मुर्तिया बनी हुयी है। यह स्तम्भ विजय स्तम्भ से छोटा है।
यह स्तम्भ बघेरवाल जैन व्यापारी जीजाजी राठोड द्वारा निर्मित किया गया है। यह स्तम्भ प्रथम जैन तीर्थकर आदिनाथ को समर्पित है। मीनार की सबसे निचली मंजिल में जैन पंथ के विभिन्न तीर्थकरो की आकृतिया दिखाय देती है। जो बिलकुल ही अनूठे ढंग से निर्मित किया गया है। यह एक दिगंबर स्मारक है। 54 चरणों वाली एक संकीर्ण सीडी छह मंजिला के शीर्ष तक जाती है। इसे टावर ऑफ़ फेम भी कहते है।
रानी पद्मिनी का महल
रानी पद्मिनी को पद्मावती के नाम से भी जाना जाता है, जिसकी वजह से इस महल को रानी पद्मावती का महल भी कहते है। रानी पद्मावती का महल तिन मंजिला और एक सफेद ईमारत है। यह किले के दक्षिणी भाग में स्थित है। यह महल एक झील के किनारे के पास है। पद्मिनी महल में दर्पण इस तरह से लगा है की झील के बिच में बने महल की सिधिया पर खड़े व्यक्ति का प्रतिबिंब उसमे साफ़ नजर आता है। अलाउदीन खिलजी ने इस दर्पण में ही रानी पद्मिनि का प्रतिबिब देखा था और उसके बाद उसकी सुंदरता का कायल हो गया।
अन्य रमणीय स्थल:
- भाक्सी: चत्रग तालाब के उतर की ओर तालाब से थोडा दूर जाने के बाद दाहिने हाथ की ओर एक चारदीवारी है, जिसे बादशाह की भाक्सी कहा जाता है। इसकी खासियत यह है की यहाँ पर राजा कुंभा ने प्रथम खिलजी को बंदी बना कर रखा था।
- घोड़े दोड़ने का मैदान: भाक्सी के पछिम दिशा में थोड़ी दूर एक बंजर जमीन है, जहा उस समय घोड़े दोडाये जाने का अनुमान है।
- खातर रानी महल: पद्मिनी महल/पद्मावती महल के दक्षिणी दिशा की ओर महाराजा क्षेत्रसिंह की धर्मपत्नी रानी खातर का महल बना हुवा है। जो अभी इतने समय बाद खंडहर बन चूका है।
- गोरा और बादल की छत्री: पद्मिनी महल/पद्मावती महल के दक्षिण पूर्व में दो गुबंदे बनी हुई है, जिसे गोरा और बादल की ईमारत के नाम से जाना जाता है। यह स्मारक महाराणा रतनसिंह ने अपने सेनापति गोरा और उनके भतीजे बादल की याद में बनवाया था, क्युकी वो दोनों चाचा भतीजा अलाउदीन खिलजी के साथ युद्ध लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए थे।
- जोहर स्थल: इस स्थान को महासती स्थल विजय स्तम्भ भी कहा जाता है। यह स्थल विजय स्तम्भ और समाधिश्वर मंदिर के बिच में है। यह स्थल चारदीवारी से घिरा हुवा एक खुला मैदान है। इस जोहर के दो द्वार है, एक पूर्व और एक पछिम की ओर है। यहाँ पर रानी पद्मिनी और उनके साथ अनेक वीरांगनाओ ने विश्व प्रसिद्ध जोहर किया था।
- राव रणमल की हवेली: गोरा बादल की छतरियो से थोडा आगे जाते ही एक पछिम की ओर से एक बड़ी ईमारत दिखाय देती है, जिसे राव रणमहल की हवेली से जाना जाता है।
- कालका मंदिर: इस मंदिर की विशेष बात यह है की यहाँ की जो कालका माँ की जो मूर्ति है वो एक विशाल कुर्सी जेसी दिखती है, जिसकी वजह से उसे कुर्सी वाला मंदिर भी कहते है। इसको 9वी सदी में गुहिलवंश के राजाओ ने बनवाया था। यह मंदिर मूल रूपसे सूर्य मंदिर है। यहाँ की एक देखने लायक चीज यहा की छतो और दीवार पर अप्रतिम शिल्पकारी है। यहाँ हर साल वैशाख शुक्ल अष्टमी को बड़ा मेला लगता है।
- सूर्यकुंड: कालका मंदिर के उतर और पूर्व में एक विशाल कुंड है, जिसे सूर्यकुंड कहा जाता है। एक किवंदती के अनुसार इस कुंड में से हर युद्ध के समय एक सफेद घोड़े पर एक सशक्त योधा निकलता था, जो महाराणा को युद्ध में सहायता करता था।
- समाधिश्वर महादेव का मंदिर: 11वी सदी में राजा भोज ने गोमुख कुंड के उतरी छोर पर महादेव का एक भव्य मंदिर बनवाया था। इसके गर्भगृह के निचे की तरफ एक शिवलिंग है और उस गर्भगृह की पीछे की दीवार पर शिवजी की त्रिमूर्ति है। इसे त्रिभुवन नारायण का शिवालय और भोज का मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।
इनके आलावा चित्तौड़गढ़ किले में बहुत सारे रमणीय और सुन्दर स्थल है। जैसे – जयमल पत्ता की हवेली, गोमुख कुंड, जटाशंकर शिवालय, कुम्भश्याम का मंदिर, मीराबाई का मंदिर, सतबीस देवला, महाराणा कुम्भा का महल, फतह प्रकाश, मोती बाजार, श्रुगार चोरी, महाराणा सांगा का देवरा, तुलजा भवानी का मंदिर, बनवीर की दीवार, नवलखा भण्डार,पातालेश्वर महादेव का मंदिर, भामशाह की हवेली, आल्हा काबरा की हवेली, पादन पोल,बाघसिंह का स्मारक, भैरव पोल, हनुमान पोल, गणेश पोल, जोडला पोल, लक्ष्मण पोल, राम पोल, पता पोल एव कुकडेश्वर मंदिर,हिंगलू अहाडा के महल, रत्नेश्वर तालाब, लाखोटा की बारी, महावीर स्वामी का मंदिर, नीलकंठेश्वर महादेव का मंदिर, सूरज पोल, साईं दास का स्मारक, अद्भुत मंदिर, राजटीला, चित्रग तालाब और चित्तोड़ बृज।
उफ्फ मेरे हाथो में दर्द हो गया सरे पर्यटन स्थल लिखते-लिखते और शायद आपको भी पढ़ते-पढ़ते चक्कर आ गए होगे। मतलब साफ़ है जो आप चित्तौड़गढ़ घुमने जाये तो 3 दिन का सफरनामा इस किले के नाम करते जाए।
घुमने की इतनी जगह वाह भाई वाह! पूरा दिन निकल जाए लेकिन जगह कम ना पड़े और क्या चाहिए घुमने वाली जगह पर।
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चित्तौड़गढ़ किले तक केसे पहुचे?
राजस्थान के किसी भी हिस्से से चित्तौड़गढ़ बहुत आसनी से पंहुचा जा सकता है। चित्तौड़गढ़ बस और ट्रेन की सेवाओ से अच्छी तरीके से जुडा हुवा है। जिससे पर्यटक आसानी से यहाँ पहुच सकता है। अगर कोई पर्यटक हवाई जहाज से भी सफ़र करना चाहता हो तो वो भी घबराए नहीं, बस कुछ घंटे का सफ़र सड़क मार्ग से भी निकालना होगा। बस उदयपुर के डबोक एयरपोर्ट से उतरकर 113 किमी सड़क मार्ग से सफ़र तय करना होगा।
चित्तौड़गढ़ किले की टाइमिंग और टिकट:
चित्तौड़गढ़ किले की टाइमिंग प्रातःकाल 09:45 बजे से सध्याकाल के 06:30 बजे तक रहती है, उस दरम्यान पर्यटक दुर्ग को अच्छी तरह से देख सकते है। भारतीय नागरिको की Entry Fees मात्र दस रुपये है और विदेशी पर्यटक की Entry फीस 100 रुपये है।
अगर पर्यटक अपने साथ कैमरा लेकर आया है तो उसे अपने साथ अंदर ले जाने के लिए 25 रुपये की फीस ज्यादा देनी होगी। यहाँ आपको मार्गदर्शन के लिए गाइड भी मिल जायेगा, उनकी फीस तीन-चार घंटो के लिए 300-500 रुपये तक की होती है,जेसे गाइड होते है वेसी उनकी फीस होतीं है।
चित्तौड़गढ़ किले से जुड़े कुछ प्रश्नोत्तर:
1. चित्तौड़गढ़ किले का निर्माण किसने और कब करवाया?
चित्तौड़गढ़ किले के निर्माण कूपर कोई ठोस सबुत न पेश होंने के कारण इसके निर्माता को लेकर अभी तक इतिहासकारों के बिच असमज है, लेकिन कुछ हद तक कहा जा सकता है इस किले का निर्माण चित्रागद मोर्य सातवी शताब्दी में करवाया होने का अनुमान है।
2. चितोद्गढ़ किले में कितने जोहर(साके) है?
चित्तौड़गढ़ किले में तीन जोहर (साके) है।
3. चित्तौड़गढ़ किले का प्रसिद्ध जोहर कोनसा था? और किसके नेतृत्व में हुवा था?
चित्तौड़गढ़ में सबसे पहला जोहर हुवा था, जो रानी पद्मिनी के नेतृत्व में हुवा था वही सबसे प्रसिद्ध जोहर था।
4. रानी पद्मिनी ने के साथ कितने वीरांगनाओने जोहर किया था?
रानी पद्मिनी ने के साथ 16000 वीरांगनाओने जोहर किया था।
5. विजय स्तम्भ कहा है?
विजय स्तम्भ राजस्थान के चित्तौड़गढ़ में है।
Final Last Word:
यह लेख पढ़ने के बाद आपको यह समज आ चूका होगा की चित्तौड़गढ़ राजस्थान के इतिहास का वो स्वर्णिम पन्ना है जिसे जीतनी बार खोलो हमेशा गर्व ही महसूस करवाता है। हम उम्मीद करते है की हमारे द्वारा शेयर किया गया यह आर्टिकल “चित्तौड़गढ़ किले का इतिहास ” आपको पसंद आया होगा, इसे आगे शेयर जरूर करे।
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