चोल साम्राज्य की प्रशासन और वास्तुकला

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दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम चोल साम्राज्य की प्रशासन और वास्तुकला के बारे में बात करेंगे। आप इस लेख को ध्यान से पढ़ना ताकि सभी प्रकार की जानकारी आपको मिल सके।

चोल वंश को मुख्य रूप से तमिल वंश कहा जाता था। चोल वंश का साम्राज्य भारत के दक्षिण के विस्तार में 23 वीं शताब्दी तक फैला हुआ था। चोल वंश के सभी शासकों में से करीकला चोल शुरुआती शासकों में से सबसे ज्यादा प्रख्यात थे। उनके शासन काल के समय में पीतल के कुछ बेहतरीन नमूने और अन्य मूर्तियां भी बनाई गई थी। मूर्ति में नाचते हुए नटराज की मूर्ति सबसे ज्यादा प्रसिद्ध है। तंजावुर का बृहदीस्वरर मंदिर चोल वंश के समय की कला बेहतर उदाहरण है।

चोल साम्राज्य की प्रशासन और वास्तुकला

चोल साम्राज्य की प्रशासन व्यवस्था

  • चोल वंश की राजधानी तंजोर में स्थित थी। चोल वंश के साम्राज्य कि प्रशासन व्यवस्था को तीन हिस्सों में विभाजित किया गया था। तीन इकाइयों में केंद्र सरकार, अस्थाई सरकार और स्थाई सरकार का समावेश किया गया था। उत्तरामेरुर अभिलेख से चोल वंश के प्रशासन के बारे में जानकारी प्राप्त होती है।
  • प्रशासन का नियंत्रण राजा के द्वारा किया जाता था। चोल वंश वंशानुगत शासन पद्धति से चल रहा था। वंशानुगत शासन पद्धति के अनुसार चोल साम्राज्य का उत्तराधिकारी राजा का सबसे बड़ा बेटा होता था। जिसीसे स्पष्ट होता है कि उत्तराधिकारी को युवराज कहा जाता था। चोल वंश का शाही चिन्ह शेर का था। प्रशासन का नियंत्रण करने में राजा की सहायता मंत्रिमंडल की सभा करती थी। नीचे दर्जे के अधिकारी को सिरुंतरम और ऊंचे दर्जे के अधिकारी को पेरूंतरम कहा जाता था।
  • चोल के साम्राज्य को 9 क्षेत्रो में विभाजित किया गया था। प्रत्येक क्षेत्र को मंडलम कहा जाता था। हर क्षेत्र में एक राज्यपाल की नियुक्ति की गई थी। राज्यपाल के नेतृत्व में क्षेत्र का नियंत्रण होता था। राज्यपाल राजा के आदेशों को प्राप्त करके क्षेत्र का नियंत्रण करता था। प्रत्येक मंडल को आगे जाकर कोट्टम्स अथवा वलनदुस में विभाजित किया गया था। जो नाडु में प्रविभाजित होता था। नाडु को आगे गांव में विभाजित किया गया था। जिसे उर्स कहा जाता था।
  • चोल वंश का प्रशासन संपूर्ण रुप से भूमि पर निर्भर था। भूमि में से उत्पादित नीपज का 1/6 भाग कर के रूप में एकत्र किया जाता था।  इसके अलावा बंदरगाहों, वनों और खदानों के ऊपर कर भी राजा के संपत्ति में मिला दिया जाता था।
  • चोल साम्राज्य के पास सक्षम सेना के साथ-साथ जल सेना भी थी। चोल वंश की सेना 17 रेजीमेंटो से बनी थी। चोल वंश के राजा उच्च कोटि के अरबी घोड़ों को ऊंची कीमत पर आयात करते थे।
  • साम्राज्य में मुख्य न्यायाधीश के रूप में आदेश देने का और दंड देने का कार्य राजा के द्वारा होता था। गांव के छोटे-मोटे विवादों को ग्राम सभा द्वारा सुलझाया जाता था।
  • चोल साम्राज्य का प्रमुख प्रशासनिक इकाई नाडु था। हर एक नाडु का नियंत्रण नात्तर द्वारा किया जाता था। नाडु सभा को नत्तवई कहां जाता था। गांव के प्रशासन की पूरी जिम्मेदारी ग्राम सभा पर थी। ग्राम सभा का कार्य सड़कों, तालाबों, मंदिरों तथा सार्वजनिक तालाबों का देखभाल करना था। ग्राम सभा के द्वारा गांव के लोगों के पास से कर जमा करके राजा की संपत्ति में इकट्ठा किया जाता था।
  • गांव के प्रशासन को वरीयंस के द्वारा प्रभावी रूप से नियंत्रित जाता था। वारियंस दो तरह के होते थे। पहला  न्याय प्रशासन न्याय वारीयन द्वारा और दूसरा मंदिरों का धर्म वारियन। वित्त व्यवस्था की देखभाल करने की जिम्मेदारी पोण वरियम की होती थी।

चोल साम्राज्य की वास्तुकला

  • चोल वंश के शासन काल में वास्तु कला का बेहतरीन विकास देखने को मिलता है। चोल वंश की वास्तुकला का अंत 850 A D के बाद हुआ था। उनके शासनकाल में सबसे बड़ी इमारत मंदिर के रूप में बनाई गई थी।
  • चोल वंश की वास्तुकला की विशेषता नीचे बताई गई है:
  • भारत का सबसे बड़ा और लंबा तंजावुर का शिव मंदिर चोल वंश के शासनकल के दौरान बनाया गया है।
  • चोल वंश के शासन काल के दौरान बनाए गए मंदिरों के मंडप के प्रवेश द्वार पर द्वारपाल और रक्षकों की आकृति बनी दिखाई देती है।
  • उनके शासनकाल के मंदिर में पूरी तरह से द्रविड़ शैली विकसित थी। चोल वंश के मंदिरों में बनाए गए गणो की आकृतियां बेहतरीन होती थी।
  • विजयालया चोलीस्वरा मंदिर के दौरान बनाए गए कुछ प्रसिद्ध मंदिर नीचे बताए गए हैं:
  • विजयालया चोल के शासनकल के दौरान नरथमलाई में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर बनाया गया है। कावेरी नदी के तट पर कोरंगनाथ मंदिर श्रीनिवासनल्लूर परांतका चोल के द्वारा निर्मित किया गया है। चोल वंश की वास्तुकला केेेे अनूठे और आकर्षित काल्पनिक पशु यजही को मंदिर के स्तंभोंं पर उकेरने में आते थे।
  • बृहदीस्वरर मंदिर संपूर्ण रूप से चट्टानो से बनाया गया है। राज राज चोल एक द्वारा निर्मित विश्व का पहला मंदिर है। साथ ही यह मंदिर यूनेस्को की विश्व धरोहर है। यह मंदिर तंजावुर में आया हुआ है। जिसका निर्माण गंगाईकोण्डाचोलापुरम राजाराज के बेटे राजेंद्र 1 के द्वारा किया गया है।
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दोस्तों यह थी चोल साम्राज्य की प्रशासन और वास्तुकला के बारे में जानकारी हम उम्मीद करते हैं हमारी जानकारी आपको फायदेमंद रही होगी। साथ ही हमारी जानकारी से आपको आपके सभी प्रश्नों के जवाब मिल गए होगे। अगर अभी भी आपके मन में इस विषय से संबंधित कोई भी सवाल हो गया हो तो हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य बताइए। और अगर आपको यह आर्टिकल पसंद आया हो तो इसे अपने दोस्तों के साथ शेयर कीजिए।

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