नमस्कार दोस्तों! आज हम इस आर्टिकल में बात करने वाले है की दहेज उत्पीड़न कानून धारा 498A क्या है और उसके दिशा-निर्देश क्या है, आगे पढ़ते है और पुरे विस्तार से जानते है।
दहेज उत्पीड़न कानून धारा 498A (Dowry Harassment Law Act 498A in Hindi)
इस अधिनियम के अंतर्गत दहेज़ से तात्पर्य एसी मूल्यवान प्रतिभूति, संपति, नकदी एवं वस्तु से है जो विवाह के समय या विवाह के पूर्व अथवा विवाह के पश्चात् विवाह के किसी पक्षकार के माता-पिता, अभिभावक अथवा रिश्तेदार द्वारा प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से दिया जाये या देने का करार किया जाये वो दहेज़ कहलायेगा।
दहेज उत्पीड़न कानून के मामले यानी की धारा 498A के तहत तुरंत गिरफ्तारी की रोक लगाने के खिलाफ याचिका दर्ज की है। इस फैसले से जुडी 7 अहम बाते की गई है।
1. अब फैमिली वेलफेयर कमिटी (Family Welfare Committee) नहीं बनेगी, यानी शिकायते किसी कमिटी की समीक्षा के लिए नहीं भेजी जाएगी। लेकिन, गिरफ्तारी से पहले के विकल्पों पर रोक नहीं, यानि की गिरफ्तारी पुलिस अधिकारी के विवेक पर होगी। अगर वो चाहे तो एकरार कर सकता है, अग्रिम जमानत का प्रावधान होगा।
2. 2017 में इस मामले में चली सुनवाई के दौरान सर्वोच्च न्यायालय के 2 जजों की बेंच ने आदेश दिया था की दहेज़ उत्पीडन की शिकायतों पर तुरंत गिरफ्तारी न हो, लेकिन ऐसे मामलो को देखने के लिए हर जिले में फैमिली वेलफेयर कमिटी बनाया जाये। साथ ही उसकी रिपोर्ट के आधार पर ही गिरफ्तारी जैसी कार्रवाई हो।
3. सुनवाई के दौरान चीफ जस्टिस ने कहा की हम वैवाहिक विवाद से संबंधित तथ्यों को देखने के लिए नहीं है बल्कि हमें ये देखना है की सिस्टम में जो गैप है, उसे आदेश के जरिये भरा जाए। हमें ये देखना है की क्या दिशा-निर्देश जारी कर कानून के अंतर को भरा गया है? क्या अनुच्छेद142 का इस्तेमाल कर फैसला देना सही था? साथ ही ये भी देखना जरुरी है की इस आदेश के क्या कानून कमजोर हुए है?
4. सर्वोच्च न्यायालय ने मामलो में आरोपियों की गिरफ्तारी पर लगी रोक हटाते हुए कहा की पीड़ित सुरक्षा (Victim Protection) के लिए एसा करना जरुरी है। सर्वोच्च न्यायालय (SC) ने कहा है की आरोपियों के लिए अग्रिम जमानत का विकल्प अभी भी खुला है।
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5. सर्वोच्च न्यायालय के पुराने फैसले के खिलाफ याचिका दायर कर कहा गया है की कोर्ट को कानून में इस तरह का बदलाव करने का हक़ नहीं है। कानून का प्रयोजन महिलाओ को इंसाफ दिलाना है लेकिन सर्वोच्च न्यायालय के फैसले के चलते देश भर में दहेज़ उत्पीडन के मामलो में गिरफ्तारी बंद हो गई है।
6. सर्वोच्च न्यायालय ने अपने दिशा-निर्देशन में कहा था की परीक्षण के दौरान हर आरोपी को अदालत में उपस्थित होना अनिवार्य नहीं होगा। कोई आरोपी यदि विदेश में रह रहा है, तो सामान्य तौर पर उसका पासपोर्ट जब्त नहीं होगा। उसके खिलाफ रेड कोर्नर (Red Corner) नोटिस भी जारी नहीं होगा।
7. सर्वोच्च न्यायालय ने कहा था की वह पूर्व में दो जजों की बेंच द्वारा दिए गए फैसले की समीक्षा करेगी, जिसमे उन जजों ने दहेज़ मामलो से जुड़े केसों की जांच के लिए कुछ दिशा-निर्देश तैयार करने के आदेश दिए थे।
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दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961 (Dowry Prohibition Act, 1961)
दहेज़ प्रतिषेध अधिनियम, 1961 के अनुसार,
- दहेज़ मांगने पर 6 माह के कारावास की सजा देने का प्रावधान है।
- दहेज़ लेने पर 5 वर्ष के कारावास की सजा देने का प्रावधान है।
- IPC की धारा 304 के तहत, विवाह के 7 वर्ष के भीतर संदिग्ध परिस्थिति में मृत्यु होने पर दहेज़ हत्या का मुक़दमा दर्ज होता है। लेकिन, प्रताड़ना का प्रमाण मिलना चाहिए।
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दहेज उत्पीड़न कानून धारा 498A पर किए जाने वाले तर्क (Arguments to be Made on Dowry Harassment Law Act 498A)
यह कानून पति और पति के रिश्तेदारों को ब्लैकमेल करने और परेशान करने का जरिया बन गया है. दहेज उत्पीड़न (एफआईआर-FIR) शिकायत दर्ज करने के साथ, पुलिस के पास प्रारंभिक जांच या आरोपों के मूल्य की परवाह किए बिना पति और उसके अन्य रिश्तेदारों धारा 498A और घरेलू हिंसा से महिला संरक्षण अधिनियम जैसे कानून विशेष रूप से समाज के कमजोर वर्गों की रक्षा के लिए बनाए गए हैं जो क्रूरता और उत्पीड़न का शिकार हुए हैं।
“महिलाओं के खिलाफ अपराध” (Crime Against Women Cell) का नेतृत्व अच्छी तरह से प्रशिक्षित और वरिष्ठ महिला पुलिस अधिकारियों द्वारा किया जाना चाहिए। तथाकथित दुरुपयोग को रोकने की दिशा में यह एक महत्वपूर्ण कदम साबित हो सकता है।
यह बताया गया है कि समस्या धारा 498A में नहीं बल्कि सीआरपीसी (CrPC) के उन प्रावधानों में है जिसके तहत इसे गैर-जमानती (Non Bailable) अपराध माना गया है।
दोनों पक्षों को न केवल पुलिस बल्कि पेशेवर रूप से योग्य परामर्शदाताओं द्वारा भी परामर्श प्रदान किया जाना चाहिए।
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दहेज उत्पीड़न कानून धारा 498A का दुरुपयोग (Misuse of Dowry Harassment Law Act 498A)
- 20 पन्नों के फैसले की पहली पंक्ति यह बताती है कि अदालत का मानना है कि ‘498A’ का दुरुपयोग किया जा रहा है।
- इस कानून से कुछ महिलाए इसका गलत इस्तेमाल करके झूठे केस दर्ज कर रही है। हिंसा के ठोस सबूत के बिना, इस धारा का दुरुपयोग बढ़ रहा है।
- महिलाओ ने झूठी शिकायते दर्ज करके बेकसूर परिवारजनों को फंसा दिया है।
- नतीजतन, उन्हें परेशान किया जाता है और कभी-कभी गिरफ्तार भी किया जाता है। नतीजतन, इस ‘दुरुपयोग’ को रोकने के लिए ये निर्देश दिए जा रहे हैं।
- इसी वजह से पीड़ित महिलाओ को फायदा नहीं हो रहा और यह कहना , शायद इस निर्देश के वजन को कम करने जैसा है।
- इसके कारन यह कदम पीड़ित महिलाओ को हिंसा से आजाद जिंदगी देने के वादे से पीछे हटने वाला है।
Last Final Word
दोस्तों! इस आर्टिकल द्वारा हमने “दहेज उत्पीड़न कानून धारा 498A”, उसके दिशा-निर्देश, दहेज उत्पीड़न कानून 498A की 7 अहम् बाते , दहेज उत्पीड़न कानून 498A दुरुपयोग आदि से जुडी सारी जानकारी आपको दे दी है। इस आर्टिकल से जुड़ा कोई प्रश्न हो, आप कोमेंट बोक्स में पूछ सकते है।
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