दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम दिल्ली सल्तनत पर गुलाम वंश के शासन के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। आप इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़ना ताकि सभी प्रकार की माहीती आपको मिल सके।
मोहम्मद गोरी के सिपाहसलार कुतब-उद-दिन ऐबक थे। साथ ही वे मोहम्मद गौरी के गुलाम भी थे। कुतब-उद-दिन ने एशिया के तुर्क परिवार में जन्म लिया था। जन्म के साथ ही उनको गुलाम के तौर पर बेच दिया गया था। कुतब-उद-दिन ऐबक (1206-11) का उत्तराधिकारी ईल्तुत्मिश बना। उसके बाद 1236 से 1240 तक रजि़या ने और 1265 से 1285 तक बलबन ने सिंहासन को संभाला था। कुतब-उद-दिन के द्वारा कुतुब मीनार की निंव रखने में आई थी। हालांकि उसे पूरा करने का कार्य ईल्तुत्मिश ने किया था।
कुतब-उद-दिन ऐबक मोहम्मद गौरी के राज्यपाल होने की वजह से बनारस को 1194 A D में बर्खास्त कर दिया था। उसने अजमेर के राजा को पराजित किया था और ग्वालियर पर अपना अधिपत्य स्थापित करने के बाद राजा सोलंखोल से जबरदस्ती शुल्क अदा करवाया था। साथ ही साथ गुजरात राज्य पर भी जीत हासिल की थी। चौगान खेलने के दौरान घोड़े पर से गिरने की वजह से कुतब-उद-दिन ऐबक की मृत्यु हो गई थी।
मोहम्मद गौरी की हत्या 1206 A D मैं हुई थी। मोहम्मद गौरी की मृत्यु के बाद कुतब-उद-दिन ऐबक सुल्तान बना। उसने ममेलुक वंश अथवा दास वंश परंपरा की नींव रखी थी। उसी दौरान मोहम्मद ने नैब-उस-सल्तन को भारतीय साम्राज्य के राज्यपाल के रूप में नियुक्त किया था।
दिल्ली सल्तनत के शासक कुतब-उद-दिन ऐबक से संबंधित कुछ तथ्य:
- कुतब-उद-दिन ऐबक केवल 4 सालों तक दिल्ली सल्तनत पर शासन कर पाया था। चौघन खेलते समय 1210 में उसकी मृत्यु हो गई थी।
- दिल्ली सल्तनत के पहला शासक कुतब-उद-दिन ऐबक थे।
- कुतब-उद-दिन ऐबक अय्बक जाति का तुर्की था।
- वह स्वभाव में दयालु था जिसके कारण उसे सुल्तान लाख बक्ष कहा जाता था।
- उसने कुतुब मीनार की नींव रखी थी। उसका नाम सूफी संत ख्वाजा कुतब-उद-दिन बख्तियार काकी के ऊपर रखा गया था।
- उसने कुतुब अल इस्लाम मस्जिद का कार्यभार संभाला था। उस का किला पाकिस्तान के लाहौर में स्थित है।
ईल्तुत्मिश:
ईल्तुत्मिश इल्लाबरी जाति का तुर्क था। वह कुतब-उद-दिन ऐबक का दामाद था। कुतब-उद-दिन ऐबक की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत उत्तरदायित्व ईल्तुत्मिश को सौंप कर उसे अगला सुल्तान बनाया गया। उसके नाम की हौज़-इ-शमशि नामक इमारत दिल्ही में महरौली के निकट आई हुई है। उसने ऐबक के द्वारा शुरू किए गए कुतुब मीनार के कार्य को पूर्ण किया था।
भारत में चांदी टांका और तांबा जिटल का इस्तेमाल करने की शुरुआत इसी के शासनकाल के दौरान हुई थी चांदी के टांके का वजन 175 इकाई का होता था।
उसके शासनकाल में चेंगेंज खान के नेतृत्व में मंगोलों ने भारत पर लड़ाई कर दी थी। हालांकि उन्होंने थोड़े ही समय में भारत को छोड़ दिया और मुल्तान, सिंध और क़बचा की ओर चले गए।
ईल्तुत्मिश की मृत्यु के बाद दिल्ली सल्तनत के सिंहासन को रजिया ने संभाला था। रजिया के लिए सिंहासन को संभालना काफी कठिन था। रजिया का सुल्तान बनने के पीछे का कारण यह था की ईल्तुत्मिश ने अपने सभी पुत्रो में अवगुणताए पाए थी। वह रजिया को सिहासन को संभालने के लिए काबिल मानता था। जिसके कारण ईल्तुत्मिश ने रजीया को दिल्ली सल्तनत का उत्तराधिकारी घोषित कर दिया। परंतु छिहल्गनी या मुख्य चालीस तुर्कियों ने इल्तुत्मिश की आखरी मनोकामना का विरोध करते हुए उसके पुत्र रुक्नउद दीन फिरूज़ को दिल्ली सल्तनत के सिहासन का सम्राट बना दिया।
रुक्न-उद-दीन फिरुज काबिल सम्राट नहीं था। वह अपनी ही इंद्रियों को आनंद में रखने के लिए ज्यादा व्यस्त रहता था। जिसके कारण राज्य के मसले अव्यवस्थित हो गए थे। सिर्फ 7 महीनों के अंत में उसकी हत्या कर दी गई। 1236 A D में वापीस रजिया ने रुक्न-उद-दीन की हत्या के बाद दिल्ली सल्तनत का सिंहासन संभाला। उसने साडे़ 3 साल तक दिल्ली सल्तनत पर अपना शासन किया था। रजिया में सभी तरह के अच्छेे शासक होने के गुण थे। परंतु छिहल्गनी कभी भी औरत के शासन को स्वीकार नहीं कर पाए थे। जिसके कारण उन्होंने रजिया के विरोध में तब विद्रोह किया जब रजिया नेे अपने पसंदीदा याकुुत को अस्तबलों का संचालक घोषित किया था। याकुत अबीसीनियल था। उसने तुर्क-अफगान वंशो मेें इष्या जुगाई थी। विद्रोही मुखिया को भटींडा के राज्यपाल, मलिक अल्तूनीय की सहायता मिली। थोड़े ही समय में विद्रोही दलों के बीच में युद्ध हुआ। युद्ध में याकूत को मार दिया गया और रजिया को केैदी बना लिया गया।
जिसके बाद रजिया ने अल्तुनीय से विवाह कर लिया। इसके बाद दोनों ने मिलकर दिल्ही सल्तनत पर वापिस शासन करने के लिए प्रयत्न किया। दिल्ली सल्तनत पर रजिया के भाई ने मुईज़ुद्दीन बहराम शाह ने कब्जा कर रखा था। परंतु रजिया और उसका पति हार गए और उनको वहां से भागने केे लिए मजबूर होना पड़ा। इसी दौरान कैथल की तरफ भागते समय जाटों ने इन्हें पकड़कर हत्या कर दी।
मुईज़ुद्दीन बहराम ने केवल 2 सालों तक शासन किया था। परंतु उसका शासनकाल हत्या और धोखेबाजी से भरा था। उसकी हत्या उसी की सेना ने कर दी थी। उस काल में दिल्ली सल्तनत के सिंहासन पर कुछ कठपुतली सम्राट को बैठाया गया था।
नसीर-उद-दीन महमूद जो इल्तुत्मिश का सबसे छोटे पुत्र था। उसनो 1246 से 1266 तक दिल्ल सल्तनत पर शासन किया। जिसे तुर्क अधिकारी बलबन के द्वारा मदद मीला थी। बलबन नसीर-उद-दीन महमूद के बाद सिंहासन का उत्तराधिकारी बना।
Last Final Word
दोस्तों यह थी दिल्ली सल्तनत पर गुलाम वंश के शासन के बारे में संपूर्ण जानकारी। हम उम्मीद करते हैं कि हमारे जानकारी से आपको आपके सभी प्रश्नों के जवाब मिल गए होगे। यदी अभी भी आपके मन में कोई सवाल रह गया हो, तो हमे कमेंट के माध्यम से अवश्य बताइए।
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