नमस्कार दोस्तों! हमारे आज के इस आर्टिकल में हम आपको डॉ विक्रम साराभाई का जीवन परिचय की जानकरी देंगे। हम सभी ने चंद्रयान मिशन 2 के बारे में काफी कुछ सुना है। जो चंद्र पर रोकेट प्र्क्षपित किया है, उस रोकेट का नाम विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया है। विक्रम साराभाई को भारतीय अंतरिक्ष में जनक की उपाधि मिली है। जब कोई भी अंतरिक्ष कार्यक्रम की बात होती है, तो शरुआत विक्रम साराभाई से की जाती है। डॉ विक्रम साराभाई भारत देश के मुख्य अंतरिक्ष वैज्ञानिक थे। विक्रम साराभाई को विज्ञानं और अभियात्रिकी के क्षेत्र में साल 1966 के समय में भारत सरकार की तरफ पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। विक्रम साराभाई ने भारत को अंतरिक्ष अनुसन्धान के क्षेत्र में अंतराष्टीय मानचित्र पर स्थान दिलाया है। विक्रम साराभाई ने 86 वैज्ञानिक शोध पत्र लिखे है, इतना ही नही विक्रम साराभाई ने 40 अलग अलग संस्थाऐ खोली है। विक्रम साराभाई ने केवल अंतरिक्ष क्षेत्र में ही नही बल्कि वस्त्र, भेषज, आणविक, ऊर्जा, इलेक्ट्रिकल जैसे क्षेत्र में भी बहुत योगदान दिया है।
बिंदु (Point) | जानकारी (Information) |
नाम (Name) | विक्रम अंबालाल साराभाई |
जन्म दिनांक (Date of Birth) | 12 अगस्त 1919 |
जन्म स्थान (Birth Place) | अहमदाबाद, गुजरात |
पिता का नाम (Father Name) | अंबालाल साराभाई |
माता का नाम (Mother Name) | सरला साराभाई |
पेशा (Profession) | वैज्ञानिक |
धर्म (Religion) | जैन |
मृत्यु (Death) | 30 दिसंबर 1971 |
डॉ विक्रम साराभाई प्रारंभिक जीवन
विक्रम अंबालाल साराभाई का जन्म गुजरात के अहमदाबाद शहर में 12 अगस्त 1919 के वर्ष में हुआ था। डॉ विक्रम साराभाई की माता का नाम सरला देवी और पिता का नाम अंबालाल साराभाई था। विक्रम साराभाई के 7 भाई बहन थे। उनके पिता समुद्ध उधौगपति थे, उनके नाम पर कई सारी मिले थी। विक्रम साराभाई का जन्म एक जैन परिवार में हुआ था। अंबालाल और सरला देवी ने अपने बच्चो को पढाने के लिए मोंटेसरी प्रथा ने अनुसार एक प्राइवेट स्कूल की स्थपना की मारिया मोंटेसरी स्कूल में विक्रम साराभाई की पढ़ाई हुई थी। विक्रम साराभाई के जीवन में उनके परिवार का बहुत ही महत्व था। विक्रम साराभाई के पिता उस समय के स्वंत्रता सेनानी थे। इस लिए उनके घर अक्सर गांधीजी, रविन्द्र टैगोर, मौतीलाल नेहरु और जवाहरलाल नेहरु आते जाते थे, यह सभी महान कार्यकर्ता के कारण विक्रम साराभाई के जीवन में बहुत प्रभाव पडा एवं डॉ विक्रम के व्यक्तिगत विकास में बहुत सहायता की थी।
डॉ विक्रम साराभाई को प्राप्त शिक्षा
डॉ विक्रम साराभाई ने इंटरमीडिएट कॉलेज से विज्ञान की शिक्षा पूर्ण की और साल 1937 में वह इंग्लेंड चले गए जहा साल 1940 में प्राकृतिक विज्ञान में डिग्री प्राप्त की थी। द्वितीय विश्व युद्ध की शरुआत से विक्रम साराभाई को भारत लोट ना पड़ा था। विक्रम साराभाई भारत आके बंगलोर में स्थित भारतीय विज्ञान संस्था में नौकरी करने लगे थे वहा के महान विज्ञानिक चन्द्रशेखर वेंकटमन के मार्गदर्शन में ब्रह्माण्ड किरणों रिसर्च करने लगे।
डॉ विक्रम साराभाई का वैवाहिक जीवन
डॉ विक्रम साराभाई इंग्लेंड से वापस लौट ने के बाद बेंगलोर में रहते थे, वहि उनकी मुलाकात महान परमाणु वैज्ञानिक डॉ होमी जहांगिर भाभा से हुई जिन्होंने उनकी मुलाकात फेमस डांसर मृणालिन स्वामीनाथ से करवाई और उन दोनों की शादी चेत्रइ में आयोजित हुई विक्रम साराभाई की शादी में उनके परिवार में से कोई नही आया था। क्योकि उस समय दौरान चल रहे गाँधीजी के भारत छोड़ो आंदोलन में परिवार के सभी सदस्य शामिल थे। शादी के बाद घर आने पर परिवार के सभी सदस्य गम सुम थे, क्योकि विक्रम साराभाई की बहन मृदृला को आजादी के आंदोलन में जेल हुई थी। विक्रम साराभाई के दो बच्चे थी एक का नाम था, पुत्र कार्तिकेय और पुत्री मल्लिका साराभाई पुत्री मल्लिका साराभाई भारत की सबसे प्रसिद्ध डांसर है।
डॉ विक्रम साराभाई की रिसर्च
डॉ विक्रम साराभाई की पहली रिसर्च लेख “टाइम डिस्ट्रीब्युशन ऑफ़ कास्मिक रेज” थी जिसे भारतीय विज्ञान अकेडमी की कार्यविवरनिक में प्रकाशित किया गया था। द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद वह फिर से इंग्लेंड लोट गए कास्मिक रे भौतिक विज्ञानं के क्षेत्र में अपनी डाक्ट्रेट को पूरी करने के लिए। साल 1947 में उष्णकटिबंधीय अक्षांक्ष में कास्मिक रेज पर अपनी रिसर्च के लिए इंग्लेंड के विश्वविधालय में विक्रम साराभाई को डाक्ट्ररेट की उपाधि मिली थी। इस के बाद विक्रम साराभाई भारत लोट गए थे। विक्रम साराभाई ने भारत आने के बाद भी भौतिक विज्ञान का रिसर्च शरु रखा था। विक्रम साराभाई ने अंतर-भूमंडलीय अंतरिक्ष, सौर-भूमध्यरेखीय संबंध और भू-चुम्बकत्व पर रिसर्च किया था।
डॉ विक्रम साराभाई की विशेषता
डॉ विक्रम में कठोर परिश्रम की असाधारन क्षमता थी। डॉ विक्रम साराभाई के व्यक्तित्व का सर्वधानिक ध्यान देने पात्र पहलु उनकी रूचि की सीमा और क्षेत्र था, और ऐसे तोर तरीके थे जिनमे डॉ साराभाई ने अपने विचारो को संस्थाओ में परिवर्ती कर दिया था। सुजनशील विज्ञानं, सफल उधोगपति, उच्च कोटि के प्रवर्तक, महान संस्था निर्माता, अलग किसके शिक्षावादी, कला परखी, सामाजिक परिवर्तन के ठेकेदार आदि जैसी उनकी कई सारी विशेताए थी। जो उनके व्यक्तित्व में समाही थी। सबसे महवपूर्ण विशेषता तो यह थी की वे एक ऐसे उच्च कोटि में इंसान थे, जिनके मन में दुसरो के प्रति सहानुभूति थी। उनका व्यक्तित्व ऐसा था, की जो भी उनके संपर्क में आता था, वे उनसे प्रभावित हो जाता था। ऐसा इस लिए होता था, क्योकि वे उस व्यक्ति के ह्नदय में अपने लिए आदर और विशवास की जगह बना लेते थे, एवं उन पर अपनी इमानदारी की छाप छोड़ जाते थे।
डॉ विक्रम साराभाई द्वारा स्थापित संस्थाऐ
- भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पीआरएल), अहमदाबाद
- इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ़ मैनेजमेंट (आईआईएम), अहमदाबाद
- कम्यूनिटी साइंस सेंटर, अहमदाबाद
- दर्पण अकाडेमी फ़ॉर परफ़ार्मिंग आर्ट्स, अहमदाबाद (अपनी पत्नी के साथ मिल कर)
- डॉ विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केंद्र, तिरुवनंतपुरम
- स्पेस अप्लीकेशन्स सेंटर, अहमदाबाद (यह संस्थान साराभाई द्वारा स्थापित छह संस्थानों/केंद्रों के विलय के बाद अस्तित्व में आया)
- फ़ास्टर ब्रीडर टेस्ट रिएक्टर (एफ़बीटीआर), कल्पकम
- वेरिएबल एनर्जी साइक्लोट्रॉन प्रॉजेक्ट, कोलकाता
- इलेक्ट्रॉनिक्स कॉर्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड(ईसीआईएल), हैदराबाद
- यूरेनियम कार्पोरेशन ऑफ़ इंडिया लिमिटेड(यूसीआईएल),जादूगुडा, बिहार
भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम
- डॉ विक्रम साराभाई ने इसरो भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन की उपलब्धी की थी। भारत देश के लिए विक्रम साराभाई अंतरिक्ष कार्यक्रम के महत्व के बारे भारत सरकार को बताया और उन्हें राजी किया यह कार्यक्रम करने के लिए।
- उसके बाद भारतीय अन्तरिक्ष अनुसंधान संगठन की शरुआत की गई, और इस की घोषणा 1969 आजादी के दिन की गई इसरो की शरुआत करने में सबसे अधिक योगदान विक्रम साराभाई का था जन्होने भारतीय अंतरिक्ष नाम संस्था यानि ISRO की स्थापना की थी।
- थुम्बा का विशेष नक्शा कि वह भू-चुबंकीय मध्यरेखा के सबसे करीब है, विक्रम साराभाई ने तिरुअनंतपुरम के पास अरबी तट पर स्थित एक मछुवाही गॉव थुम्बा में देश के प्रथम राकेट प्रमोचन स्टेशन, थुम्बा भू-मध्य रेखीय राकेट प्रमोचन स्टेशन (TERLS) की स्थापना का चयन किया। इस साहस में, उनको होमी भाभा जो उस समय परमाणु ऊर्जा आयोग के अध्यक्ष थे से सक्रिय सहयोग मिला था। नवंबर 21, 1963 को सोडियम वाष्प नीतभार के साथ प्रथम राकेट का प्रमोचन किया गया। संयुक्त राष्ट्र महा सभा ने 1965 में, TERLS को एक अंतर्राष्ट्रीय सुविधा के रुप में मान्यता दी।
- नासा के साथ भी विक्रम साराभाई के सबंध बहुत ही अच्छे थी। उनके के साथ मिलकर उन्होंने साल 1975 से लेकर साल 1976 के समय दौरान सेटेलाईट सफल टेलीविजन एक्सपेरिमेंट लोंच किया गया था। फिर उसके बाद विक्रम साराभाई के द्वारा एक अद्भुत प्रथम भारतीय उपग्रह की स्थपना की गई।
- विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन में भारतीय प्रथम उपग्रह आर्यभट्ट साल 1975 को रुसी के 3M रोकेट से लोंच किया गया और अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया था।
विक्रम साराभाई को इसरो का पिता क्यों कहते है?
डॉ विक्रम साराभाई ने भारत सरकार को यह समजाय की भारत में अंतरिक्ष सेंटर होने से देश के विकास को गति मिलेगी और अन्तरिक्ष से जुडी सारी जानकारी के बारे में हमें आसानी से मिल जाएगी। इस लिए यह आवश्यक है, की भारत में भी एक स्पेस सेंटर होना चाहिए। विक्रम साराभाई के इस विचार से प्रभावित हो कर भारत सरकार ने स्पेस सेंटर खोलने की अनुमति दे दी विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन से इसरो की स्थापना हुइ है। इस लिए उन्हें ISRO का पिता कहा जाता है।
डॉ विक्रम साराभाई को दिए गए पुरस्कार
- 1962 की साल में शांतिस्वरूप भटनागर पुरस्कार
- भारत सरकार द्वारा साल 1966 में पद्म भूषण पुरस्कार
- इंडियन अकादमी ऑफ साइंसेज
- नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ साइंसेस ऑफ इंडिया
- फिजिकल सोसाइटी
- लन्दन और कैम्ब्रिज फिलोसाफिकल सोसाइटी ने उन्हें अपना ‘फैलो’ बनाकर सम्मानित किया।
डॉ विक्रम साराभाई की मृत्यु
भारत के महान वैज्ञानिक डॉ विक्रम साराभाई का निधन हार्ट अटैक के कारण 30 दिसंबर 1971 साल 52 वर्ष की उम्र मेंहो गई थी। विक्रम साराभाई के मार्गदर्शन से आर्यभट्ट उपग्रह को अंतरिक्ष में प्रक्षेपित किया गया साल 1975 में आर्यभट्ट उपग्रह को अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित करने के बाद अंतरिक्ष के बारे और उपग्रह के बारे में बहुत सारी जानकारी हासिल हुई और उसके बाद भारत ने अन्य देशो के लिए उपग्रह कम खर्च में लोंच करने शरु कर दिए आज विक्रम साराभाई के नेतृत्व से प्रक्षेपित यह ग्रह से भारत दुनिया का सबसे सस्ता यान लोंच बन कर उभरा है। आज हर घर में टेलीविजन है, और कृषि एवं ग्रामीण विकास में मदद मिल रही है। मोसम के पूर्वानुमान से किसानो को अधिक लाभ हो रहा है। यह सब आज उन्ही के कारण भारत देश में सम्भव बना है।
विक्रम साराभाई की विरासत
- विक्रम साराभाई के सम्मान में तिरुवनंतपुरम में निर्माण थुम्बा इक्वेटोरियल रॉकेट लाँचिंग स्टेशन (टीईआरएलएस) विक्रम साराभाई के नाम पर रखा गया था।
- सम्बद्ध अंतरिक्ष संस्थाओं का नाम बदल कर विक्रम साराभाई अंतरिक्ष केन्द्र रख दिया गया। यह भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के एक प्रमुख अंतरिक्ष अनुसंधान केन्द्र के रूप में उभरा है।
- 1974 में सिडनी स्थित अंतर्राष्ट्रीय खगोल विज्ञान संघ ने निर्णय लिया कि ‘सी ऑफ सेरेनिटी’ पर स्थित बेसल नामक मून क्रेटर अब साराभाई क्रेटर के नाम से जाना जाएगा।
Last Final Word
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