दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम वैश्विक समस्या ग्लोबल वार्मिंग के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। यदि आपको ग्लोबल वॉर्मिंग से संबंधित माहिती को प्राप्त करना हो तो इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़ना।
वर्तमान समय में आपने कई बार ग्लोबल वॉर्मिंग शब्दों को कहीं ना कहीं सुना ही होगा। ग्लोबल वॉर्मिंग एक वैश्विक समस्या है, जिस पर कोई ध्यान नहीं देना चाहता। ग्लोबल वॉर्मिंग एक प्राकृतिक समस्या है, जो कभी बताकर नहीं आती लेकिन जब भी आती है भारी नुकसान देकर चली जाती है। त्सुनामी, भूकंप, अतिवृष्टि, भीषण गर्मी इत्यादि ग्लोबल वार्मिंग के कारण होता है। सभी लोग ग्लोबल वार्मिंग की समस्या से परिचित है परंतु सभी उसे नजरअंदाज कर रहे हैं। ऐसा ही चलता रहा तो कुछ ही सालों में ग्लोबल वॉर्मिंग की असर बढ़ जाएगी।
वैश्विक तापमान बढ़ने से पृथ्वी दिन प्रतिदिन गर्म होती जा रही है। वैज्ञानिकों का कहना है कि वैश्विक तापमान में बड़ोती होने से तूफान, बाढ़, जंगल की आग, सुखा और दुसरे खतरे भी बढ़ जाएंगे। जीससे गर्म जलवायु में, वायुमंडल ज्यादा पानी जमा कर भयंकर बारिश ला सकता है।
ग्लोबल वॉर्मिंग अलग-अलग गतिविधियों के कारण हो रही है। जिसकी वजह से पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। ग्लोबल वार्मिंग की वजह से हमारे ग्लेशियर के प्रदेश से बर्फ धीरे-धीरे पिघल रहा है। यह समस्या पृथ्वी के साथ-साथ मनुष्य के लिए भी अत्यंत हानिकारक है। इसे नियंत्रण में लाना काफी चुनौती भरा कार्य है।
ग्लोबल वार्मिंग औद्योगिक क्रांति के पश्चात से बढ़ रहा है। साल 1880 के पश्चात से औसत वैश्विक तापमान में करीबन 1 डिग्री सेल्सियस तापमान की वृद्धि हुई है। ग्लोबल वॉर्मिंग ऐसे ही वृद्धि करता रहा तो वैज्ञानिकों के कहने के अनुसार साल 2035 तक वैश्विक तापमान 0.3 से 0.7 डिग्री सेल्सियस तक हो सकता है।
ग्लोबल वार्मिंग क्या है? (What is Global Warming?)
आसान भाषा में ग्लोबल वॉर्मिंग का मतलब पृथ्वी के वातावरण में तापमान की वृद्धि और उसकी वजह से होने वाले मौसमी परिवर्तन होता है। हमने आगे देखा वैश्विक तापमान बढ़ने की वजह से बारिश की तारीखों में बदलाव, हिमखंडों में तथा ग्लेशियर के विस्तार में बर्फ का पिघलना, समुद्र के जलस्तर में वृद्धि होना और वनस्पति तथा प्राणी जगत पर नुकसान होने जैसी घटनाएं बढ़ रही है।
ग्लोबल वॉर्मिंग शब्द सुनने में टेक्निकल लगता है, जिसकी वजह से आम आदमी इसे समझने के लिए इसकी तह तक नहीं जाता। ग्लोबल वार्मिंग को वैज्ञानिकों की परिभाषा समझ कर नजर अंदाज करने में आ रहा है, साथ ही यह माना जा रहा है कि विश्व को फिलहाल इससे कोई नुकसान नहीं हो रहा।
भारत के लोगों तक ग्लोबल वॉर्मिंग शब्द पूरी तरह से नहीं प्रचलित हो पाया है। वैज्ञानिकों के मुताबिक ग्लोबल वॉर्मिंग 21वीं सदी का सबसे बड़ा खतरा है। ग्लोबल वॉर्मिंग तृतीय विश्वयुद्ध और अंतरिक्ष के एस्टेरॉइड का पृथ्वी से टकराने की घटना से भी ज्यादा बड़ी समस्या है।
इन 50 सालों में सबसे ज्यादा औसत वैश्विक तापमान में वृद्धि हुई है। वैज्ञानिकों का कहना है कि तापमान की वृद्धि बढ़ रही है।
पिछली सदी में पृथ्वी का औसत वैश्विक तापमान 1.4 डिग्री फा़रेनहाइट तक पहुंच गया था। अगले में 11.5 डिग्री फारेनहाइट तक बढ़ने की संभावना है।
ग्लोबल वॉर्मिंग मुख्य रूप से वातावरण में ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड की वजह से होता हैं। हम सब जानते हैं कि वायुमंडल में ऑक्सीजन की मात्रा अधिक होनी चाहिए, किंतु प्रदूषण बढ़ने के साथ-साथ ऑक्सीजन की मात्रा कम होती जा रही है। और कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ रही है। कार्बन डाइऑक्साइड गर्मी को पृथ्वी से परावर्तित होने से रोकता है। जिसकी वजह से गर्मी पृथ्वी पर ही रह जाती है, और पृथ्वी गरम रहती है। वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड कोयले, तेल तथा प्राकृतिक गैस जैसे अश्मि को इंधन के स्वरूप में चलाने से बढ़ता है।
कार्बन डाइऑक्साइड के बढ़ने से ओजोन के स्तर को नुकसान होता है। ओजोन के स्तर को हानी पहुंचने से सूर्य में से निकलने वाले अल्ट्रावायलेट किरणें सीधे पृथ्वी पर आते हैं। इसकी वजह से वैश्विक तापमान में वृद्धि हो रही है।
समस्या को खत्म करने के लिए समस्या के कारण को समझना आवश्यक होता है। चलिए ग्लोबल वॉर्मिंग के कारणों के बारे में बात करते हैं।
ग्लोबल वॉर्मिंग होने के कारण
प्रदूषण के साथ-साथ ग्लोबल वॉर्मिंग बढ़ रहा है। सभी क्षेत्रों में प्रदूषण बढ़ रहा है, और इसके साथ ही कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा भी ज्यादा हो रही है।
आधुनिकरण की दौड़ में बिल्डिंग, उद्योग, बड़ी इमारतें और सड़के तथा रेलवे ट्रैक बनाने के लिए जंगलों से पेड़ों की कटाई हो रही है। गांव का शहर में बदलना भी शामिल होता है। आज के मानवी के लीए खुली और ताजी हवा से ऑक्सीजन लेना बहुत मुश्किल है क्योंकि वे खुद ही सभी स्त्रोतों को नष्ट करते जा रहे हैं।
मनुष्य खुदगर्ज होकर अपनी सुविधा के लिए प्राचीन नदी के जल के प्रवाह को बदल रहा है। ऐसा करने से नदी का प्रवाह कम हो जाने से अपने आप बंद हो जाती है।
वनस्पति कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषण करती है, जिसकी वजह से वातावरण में उसकी मात्रा संतुलन में रहती है। परंतु वन कटाई की वजह से पेड़ों की संख्या कम होती जा रही है, और वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जा रही है।
ज्वालामुखी विस्फोट ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए जवाबदार तत्व में से एक है। ज्वालामुखी के विस्फोट के साथ कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण घुलता है।
ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए मिथेन वायु भी जिम्मेदार है।
पृथ्वी पर हर चीज के लिए चक्र चलता है। हर चीज एक दूसरे से कहीं ना कहीं जुड़ी होती है। एक चक्र में खराबी आने से दुसरे चक्र पर उसकी असर हो सकती है।
वाहनों से निकलने वाला धुआं, कारखाना और उद्योग से निकलने वाला धुआं और घरों में इंधन से निकलने वाला धुआं कार्बन डाइऑक्साइड और मिथेन के स्रोत है।
ग्लोबल वॉर्मिंग वायुमंडल में ग्रीन हाउस गैस की सांद्रता ज्यादा होने से और गर्मी बढ़ने से वृद्धि कर रहा है। ग्रीन हाउस गैस सबसे ज्यादा जिम्मेदार है। ग्रीन हाउस गैस सूर्य की किरण से पैदा होने वाली गर्मी को अपने अंदर ही सोख लेता है, और सूर्य की किरणों को पृथ्वी पर से परावर्तित होने से रोकता है। ग्रीन हाउस गैसों का उपयोग बर्फीले इलाकों में और ठंडे प्रदेशों में पौधों को गर्मी प्राप्त कराने के लिए किया जाता है। ऐसे प्रदेशों में पौधों को कांच के बंद घर में रखा जाता है, और इस घर में ग्रीन हाउस गैस को भर दिया जाता है। यह प्रदेश मैं गर्मी कम होने की वजह से यह गैस सूर्य की किरणों से आने वाली गर्मी को सोख कर पौधों को गर्मी देता है, ताकि पौधों का विकास हो सके। इसी प्रकार से पृथ्वी के साथ भी यही घटना होती है।
कार्बन डाइऑक्साइड ग्रीन हाउस गैस में सबसे ज्यादा महत्त्व का गैस है। कार्बन डाइऑक्साइड मनुष्य के द्वारा सांस के उत्सर्जन के साथ बाहर निकलता है। वर्ष 2006 में एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म आई थी जिसका नाम द इन्कन्वीनियेट ट्रुथ था, इसमें वैश्विक तापमान की वृद्धि और कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन से संबंधित बात की गई है। इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म में मुख्य किरदार की भूमिका अमेरिका के उपराष्ट्रपति अल गोरे ने बजाई थी। और निर्देशन डेवीड गुग्न्हेम के द्वारा किया गया था। यह डॉक्यूमेंट्री फिल्म मे भी ग्लोबल वार्मिंग के लिए माननीय गतिविधि से उत्पन्न होने वाला कार्बन डाइऑक्साइड गैस को जवाबदार बताया है। इस फिल्म को संपूर्ण विश्व ने सराहा था और ऑस्कर अवार्ड से सम्मानित किया था।
वर्तमान समय में भी वैज्ञानिकों के द्वारा ग्लोबल वार्मिंग पर शोध का कार्य शरु है। इसका प्रभाव राजनीतिक घटनाओं पर भी हुआ है। वर्ष 1988 में जलवायु परिवर्तन पर अंतरशासकीयदल स्थापित करने में आया था।
IPCC ऐसा अंतरशासकीय वैज्ञानिक संगठन है, जिसका गंठन वर्ष 1988 में संयुक्त राष्ट्र संघ के द्वारा किया गया था। जिसका कार्य जलवायु परिवर्तन से संबंधित सभी सामाजिक और आर्थिक माहिती को एकत्र कर उसका विश्लेषण करना है। यह दल जलवायु के अलग-अलग कारकों पर अपनी नजर रखता है। यह केवल प्रतिष्ठित जर्नल में प्रकाशित किए गए शोध पत्रों के अनुसार ही जलवायु को बढ़ावा देने वाले मानवीय गतिविधि से संबंधित अपनी रिपोर्ट सरकार और आम जनता को देता है। IPCC की रिपोर्ट मे भी पर्यावरण में हो रहे वैश्विक तापमान की वृद्धि के लिए कार्बन डाइऑक्साइड की ज्यादा मात्रा को जवाबदारी ठहराया है।
IPCC के रिपोर्ट के अनुसार ग्लोबल वार्मिंग में 90% जवाबदार हीस्से मे मानव निर्मित कार्बन डाइऑक्साइड के उत्सर्जन का है। हालाकी प्रो.यू.आर.राव ने अपनी रिपोर्ट में कहा था कि ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए 40% योगदान कॉस्मिक विकिरण का है। इन सबके अलावा भी कुछ कारको का योगदान ग्लोबल वॉर्मिंग में है जिसके बारे में संपूर्ण शोध का कार्य जारी है।
भारत की अंतरिक्ष एजेंसी इसरो के पूर्व चेयरमैन तथा भौतिक विषय के प्रो. यू.आर.राव ने अपनी रिपोर्ट में लिखा था कि अंतरिक्ष से पृथ्वी पर आने वाले कॉस्मिक विकिरण का सीधा संबंध सौर क्रियाशीलता से होता है। यदि सूर्य की क्रियाशीलता ज्यादा होती है, तो ब्रह्मांड से आने वाले कॉस्मिक विकिरण निचले स्तर के बादलों का निर्माण करने के लिए प्रमुख भूमिका निभाते है। इस बात को सबसे पहले स्वेन्समार्क ओर क्रिस्टेन्सन नाम के वैज्ञानिक ने कहा थी। निचले स्तर के बादलों से सूर्य से आने वाले कॉस्मिक विकिरण परावर्तित हो जाते हैं, जिसकी वजह से गर्मी भी विकिरण के साथ ब्रह्मांड में वापिस चली जाती है।
वर्ष 1925 में वैज्ञानिकों को पता चला कि सूर्य की क्रियाशीलता दिन प्रतिदिन बढ़ रही है। जिसकी वजह से पृथ्वी पर आने वाले कॉस्मिक विकिरण में करीबन 9% कमी आई है। विकिरण में आने वाली कमी की वजह से पृथ्वी के वातावरण में निचले स्तर पर बनने वाले बादलों का निर्माण भी कम हो गया है।
प्रो. यू.आर.राव ने बताया था कि 40% योगदान इस घटना का है, पर साथ मैं यह भी कहा था कि कॉस्मिक विकिरण से जुड़ी जलवायु ताप की प्रक्रिया, मानव गतिविधि के कारण नहीं हो रही। उनकी इस बात IPCC की रिपोर्ट का खंडन करती है।
सरल भाषा में कहें तो ग्लोबल वार्मिंग के लिए ग्रीन हाउस गैस, कार्बन डाइऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड, क्लोरोफ्लोरोकार्बन और मीथेन जैसे वायु जवाबदार है। जो सूर्य में से आने वाले कॉस्मिक किरणों को सोख कर पृथ्वी की गर्मी को बढ़ा रहे है।
ग्लोबल वार्मिंग से होने वाली असरे
प्राकृतिक आपदा के जैसे ही ग्लोबल वार्मिंग का प्रभाव भी धीरे-धीरे होता है, परंतु उससे भारी नुकसान उठाना पड़ता है। अगस्त्य की बात यह है कि दूसरी प्राकृतिक आपत्ती से होने वाले नुकसान की भरपाई हो सकती है, परंतु ग्लोबल वार्मिंग से होने वाले नुकसान को कभी भरा नहीं जा सकता।
ग्लोबल वार्मिंग के चलते जंगल के विस्तार कम होने की वजह से कई सारे पशु पक्षी एवं जीव जंतु ने अपना निवास स्थान गुमाया है। जिसके कारण उनकी प्रजाति लुप्त हो गई है। पारिस्थितिक तंत्र में असंतुलन के कारण जलवायु में परिवर्तन आता है। क्योंकि वनस्पति, किडों और पशु पक्षी के व्यवहार क्षेत्र के तापमान पर आधारित होते है। एक जाति के लुप्त होने की वजह से उस पर निर्भय रखने वाली दूसरी जाति भी लुप्त हो जाती है। कई बार ऐसा भी होता है एक जाति के लुप्त हो जाने से दूसरी जाति का प्रभुत्व बढ़ जाता है। उदाहरण के लिए कीड़े जो पौधों पर रहते हैं, उसे आहार के रूप में खाने वाले पक्षी की जाति अगर लुप्त हो जाती है, तो इन कीडो की संख्या बढ़ जाती है और पौधों को नुकसान पहुंचाता है।
हम सब जानते हैं कि वायरस, कवक और परजीवी की निश्चित तापमान पर मृत्यु होती है, परंतु मौसमी परिवर्तन की वजह से यह संभव नहीं हो पाता और इनकी संख्या बढ़ने के कारण पौधों और जानवरों के बीच बीमारियां भी बढ़ती है।
ध्रुवीय प्रदेशों में गर्मी बढ़ने की वजह से बर्फ पीघलने लगी है, जिसके कारण जलस्तर में वृद्धि होने लगी है। दुनिया के बर्फ पिघलने वाले क्षेत्रों ग्रीनलैंड, एंटार्कटिक और ग्लेशियर का समावेश होता है। अनुमान लगाया गया है कि औसत तापमान में 3 डिग्री सेल्सियस वायुमंडलीय वृद्धि के कारण आने वाले 50 से 100 वर्षों में औसत वैश्विक समुद्र स्तर 0.2 से 1.5 मीटर तक बढ़ जाएगा। यह भी कहा गया है कि ऐसा ही रहा तो जल्दी ही पृथ्वी जलमग्न हो जाएगी। जलवायु परिवर्तन पर संयुक्त राष्ट्र फ्रेमवर्क कन्वेंशन 2019 ने बताया है कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण 2100 आते आते ग्लेशियर का बर्फ पिघल कर सिकुड़ जायेगा। वर्ष 80 ते बाद से ही वैश्विक औसत समुद्री स्तर 8 से 9 इंच हो गया है।
वैश्विक तापमान बढ़ने से रेगिस्तान का विस्तार भी बढ़ रहा है। ग्लोबल वॉर्मिंग की वजह से मौसम में असंतुलन आ रहा है, जिसकी वजह से अति वर्षा, गर्मी और ठंडी की मात्रा बढ़ रही है। कई बार सुखा भी पड़ता है। इन सभी घटना की सबसे बड़ी असर किसानों की फसलों पर होती है, जिसके कारण पूरा देश मेहंगाई की समस्या से जूझ रहा है। फसल नष्ट हो जाने की वजह से लोगो मे भुखमरी और कुपोषण का दर बड़ रहा है।
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से पृथ्वी के वातावरण में रहा ओजोन का स्तर विखंडित हो गया है, जिसके वजह से सूर्य में से आने वाले कॉस्मिक विकिरण या अल्ट्रावायलेट कीरणे सीधे ही पृथ्वी के वातावरण से हो मनुष्य के और पशु पक्षी के संपर्क में आते हैं जिसकी वजह से हर कोई व्यक्ति छोटी सी लेकर बड़ी बीमारी से पीड़ित हो रहा है। कम हो रहे जंगलों की वजह से वातावरण में शुद्ध ऑक्सीजन की कमी हो रही है। ऑक्सीजन की कम मात्रा से घुटन भरी जिंदगी जी रहा है। कइ सारे लोग एलर्जी और अस्थमा की बीमारी से पीडीत है।
वैज्ञानिकों के द्वारा यह अनुमान लगाया गया है कि अगर ऐसे ही ग्रीनहाउस गैस वातावरण में बढ़ते रहे तो औसत तापमान 2050 आने तक 1.5 से 5.5 डिग्री सेल्सियस हो जाएगा। यह भी अनुमान लगाया गया है कि आने वाले 10000 सालों में गर्मी बढ़ने की वजह से पृथ्वी पर जीवन संभव नहीं रहेगा।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण होने वाला नुकसान तृतीय विश्वयुद्ध यां एस्टेरॉयड का पृथ्वी से टकराने के बाद होने वाले नुकसान से भी ज्यादा है।
ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्री सतह का तापमान भी जगह हो जाता है, क्योंकि समुद्र द्वारा गर्मी की थोड़ी मात्रा अवशोषित होती है। समुद्र की सतह पर गर्मी बढ़ने की वजह से तूफान बनने में आसानी हो जाती है। यह तूफान वर्षा की दर को बढ़ाता है और तूफान की श्रेणी चार या पांच के स्तर तक अनुपात हो जाती है।
हमने आगे देखा कि ग्लोबल वॉर्मिंग के लिए मुख्य जवाबदार कार्बन डाइऑक्साइड है। वायुमण्डल मे उसकी मात्रा वर्ष 1880 मे 280 पाट्स पर मिलियन थी, परंतु IPCC के अनुसार आज उसकी मात्रा 379 पीपीएम पहुंच गई है। कार्बन डाइऑक्साइड की पिछले वर्षों में वार्षिक दर 1.9 पीपीएम था।
औद्योगिकरण के कारण मिथेन की मात्रा 715 पार्ट्स पर बिलियन थी, जो अब वर्ष 2005 मे 1734 हो गई है। मिथेन की सांद्रता कृषि और जीवाश्मी के दहन से बढ़ती है।
नाइट्रोजन ऑक्साइड की सांद्रता 270 पार्ट्स पर बिलीयन से 319 पार्ट्स पर बिलीयन हो गई है।
समुद्र की सतह पर के तापमान में 3000 मिमी की वृद्धि हुई है। समुद्री जलस्तर में 2003 में औसत वृध्धी 1.8 मि.मी हुइ है।
एक और मध्य एशिया, उतरी यूरोप तथा दक्षिण एशिया में वर्षा की मात्रा मैं वृध्धी हुई है, तो दूसरी ओर भूमध्य सागर दक्षिण एशिया और अफ्रीका में सूखा पड़ रहा है।
उत्तरी अटलांटिक मैं चक्रवात ओं की संख्या में उड़ती हुई है।
ग्रीन हाउस प्रभाव
ग्रीन हाउस गैस वायुमंड गर्मी को बढ़ाने के लिए जिम्मेदार है। ग्रीन हाउस गैस में कार्बन डाइऑक्साइड के अलावा मिथेन, क्लोरोफ्लोरोकार्बन, नाइड्रोजन ऑक्साइड और O3 का समावेश होता है। यह सभी गैस पृथ्वी के वातावरण के चारों ओर एक आवरण बना लेते हैं। सूर्य में से आने वाले कॉस्मिक विकिरण आवरण में प्रवेश कर पृथ्वी तक पहुंच जाते हैं किंतु वापिस आवरण से बाहर नहीं निकल पाते हैं और अवशोषित हो जाते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग से बचने के उपाय
- प्रकृति को बचाने से प्रकृति आपको बचाएगी। ग्लोबल वार्मिंग को कम करने उपाय नीचे बताए है।
- जागरूकता लाने के लीए अभियान और रैली निकाल कर लोगो को तक ग्लोबल वार्मिंग के बारे मे जानकारी दे सकते है।
- पानी का अपव्यय ना हो, अक्षय ऊर्जा का उपयोग बडाना ओर ऊर्जा-कुशल उपकरणों में निवेश लगाना चाहीऐ।
- वृक्षारोपण तो बडा़वा देना चाहीए, वन कटाय को रोकना चाहीए।
- AC fridge का कम उपयोग करना चाहीऐ। साथ ही साधारण बल्बों के बजाय सीएफएल का उपयोग करना चाहीऐ।
- कम सफर के लीए पैदल, सायकल या एक ही वाहन मे एक से ज्यादा लोगो के परीवहन के बारे मे जागृती लावी चाहीऐ।
- आप अपने घरेलू कचरे के सिर्फ आधे हिस्से का पुनर्चक्रण करके प्रति वर्ष 2,400 पाउंड कार्बन डाइऑक्साइड को वातावरण मे घुलने से रोक सकते है।
- अपने टायरों को योग्य मात्रा मे फुलाकर रखने से आपके गैस माइलेज में 3 प्रतिशत सुधार होता है।
- आप अपना कचरा 10 प्रतिशत कम करते हैं, तो आप 1,200 पाउंड कार्बन डाइऑक्साइड को वातावरण मे घुलने से रोक सकते है।
- ग्रीन हाउस गैस पैदा करने वाली चीज का उपयोग टाले।
Last Final Word:
यह थी ग्लोबल वार्मिंग के बारे में संपूर्ण जानकारी। उम्मीद है आपको हमारी जानकारी से फायदा हुआ होगा। यदि अभी भी कोई सवाल रह गया हो तो हमें कमेंट के माध्यम से बताइएगा।
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