गुप्त वंश के बाद के राजवंश

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इस आर्टिकल में हम गुप्त वंश के बाद के राजवंश के बारे में जानेंगे। इस आर्टिकल से संबंधित सभी जानकारी को पाने के लिए कृपा करके आर्टिकल को पूरा और ध्यान से पढ़ें।

गुप्त साम्राज्य का पतन पांचवी शताब्दी के करीबन शुरू हो गया था। स्कंदगुप्त की मृत्यु के बाद भारत पर गुप्त साम्राज्य का नियंत्रण कमजोर होने लगा था। इस तरह धीरे धीरे गुप्त साम्राज्य का अंत हुआ और उत्तर भारत में नई शक्तियों का उद्भव हुआ। इन शक्तियों में पांच प्रमुख शक्तियां थी : हूण, मौखरी, मैत्रक, पुष्पभूती, गौड।

गुप्त काल का अंत

गुप्त साम्राज्य के बिखराव की शुरुआत पांचवी शताब्दी के अंत काल में शुरू हुई थी। गुप्त साम्राज्य के अंत के बाद कई सारी शक्तियां अपना वर्चस्व स्थापित करने के लिए प्रयत्न कर रही थी। जीसके कारण गुप्त काल के बाद का समय बहुत ही अशांत था। गुप्तों के पतन के बाद तक भारत में पांच मुख्य शक्तियों ने अपना वर्चस्व स्थापित किया जोकि इस प्रकार थी।

गुप्त वंश के बाद के राजवंश

हूण

हूण वास्तव में तिब्बत की घाटी में बसने वाली जाती थी। पारस में उनका साम्राज्य स्थापित करने में असफल रहने के बाद उन्होंने भारत की ओर रुख किया। सबसे पहले उन्होंने सीमांत प्रदेश जैसे कि कपिश और गांधार पर अपना अधिकार स्थापित किया, जिसके बाद वह मध्य भारत की ओर चढ़ाई करने लगे। गुप्त वंश के सम्राट कुमारगुप्त ने उनका सामना किया और उन्हें मध्य भारत पर चढ़ाई करने से रोका परंतु इस लड़ाई में कुमारगुप्त की मृत्यु हो गई। इन चढ़ाईयों के कारण तत्कालीन गुप्त साम्राज्य कमजोर पड़ने लगा था।

कुमारगुप्त की मृत्यु के बाद उसका पुत्र महाराज चंद्रगुप्त वीरता और कुशलता से जीवन भर हूणों के आक्रमण के सामने लड़ता रहा परंतु आखिर में वह हूणों के साथ युद्ध करते हुए मारा गया l सन् 499 ई° मैं हूणों के प्रतापी राजा तोरमाण ने गुप्त साम्राज्य के पश्चिमी भाग पर अपना पूर्ण अधिकार स्थापित किया। तोरमाण के बाद उसका पुत्र मिहिरकुल गद्दी पर आया। गुप्त काल के नरसिंह गुप्त और मालव के राजा यशोधर्मन ने उसे सन् 532 ई° में हराया। इस प्रकार हूणों ने तीस साल की बेहद ही कम अवधि के लिए भारत पर राज किया था।

मौखरी

मौखरी वंश के लोग उत्तर भारत के कन्नौज क्षेत्र के आसपास करीबन तीसरी सदी में फेले हुए थे। मौखरी वंश के शासकों ने उतर गुप्त वंश के चौथे शासक कुमारगुप्त के साथ युद्ध किया था। धीरे-धीरे मौखरी वंश ने गुप्त वंश को सत्ता विहीन कर दिया। उन्होंने उत्तर प्रदेश और मगध पर राज किया था। बाद में वह शासकों के द्वारा पराजित कीए गए और इस तरह उनके साम्राज्य का अंत हुआ था।

मैत्रक

मैत्रक राजवंश ने 475 से 767 ई के दौरान गुजरात के सौराष्ट्र क्षेत्र में शासन किया था। उनकी राजधानी वल्लभी थी। मैत्रक वंश की स्थापना गुप्त वंश के एक गुर्जर सेनापति भट्टाकर ने 475 ई की थी। गुप्त राज्य के पतन के बाद मैत्राको ने स्वतंत्र रूप से राज किया। मैत्रक साम्राज्य के दौरान सोमनाथ मंदिर और वल्लभी विद्यापीठ का निर्माण हुआ था। मैत्रक राजवंश के राजाओं ने सोमनाथ मंदिर का कई बार पुनर्निर्माण करवाया और कई बार आक्रमणों से उसकी रक्षा भी की। सन् 641 के आसपास आए हुए चीनी मुसाफिर ह्यू एन संग के अनुसार वल्लभी एक समृद्ध नगर, बड़ा बंदर और बड़ी विद्यापीठ था। ह्यू एन संग ने अपनी पुस्तक मे कहा है कि मैत्रक वंश के गुर्जरों के कारण अरब आक्रमणकारी कभी सौराष्ट्र, कच्छ और गुर्जर को लूटने में कामयाब नहीं हुए थे। गुर्जर नरेश शिलादित्य मात्रक इस वंश के सबसे प्रतापी और पराक्रमी राजा थे। शिलादित्य ने दक्षिण से लेकर गुजरात तक अपने राज्य का विस्तार किया था और अरब आक्रमणकारियों से अपने साम्राज्य की रक्षा की थी।

पुष्यभूती

गुप्त वंश के पतन के बाद हरियाणा के थानेश्वर नामक जगह पर पुष्यभूति वंश की स्थापना हुई। गुप्त वंश के पतन के बाद जिस नए राजवंशों का उद्भव हुआ उसमें पुष्यभूति राज वंश के शासकों ने सबसे बड़ा साम्राज्य स्थापित किया था। पुष्यभूति राजवंश को वर्धन वंश भी कहा जाता है। गुप्त साम्राज्य पर हूणों के आक्रमण के बाद इन्होंने स्वतंत्रता घोषित की थी। प्रभाकर वर्धन ईस वंश का प्रथम प्रभावशाली शासक था। उसने परम भट्टकर महाराजाधिराज की उपाधि धारण की थी। प्रभाकर वर्धन के दो बेटे थे- राज्यवर्धन और हर्षवर्धन। राज्यवर्धन की गौड राजा शशांक के द्वारा हत्या के बाद हर्षवर्धन ने सत्ता संभाली थी। हर्षवर्धन इस वंश का अंतिम सम्राट था। उसने कन्या कुंज (कन्नौज) को अपनी राजधानी बनाया था।647 ई मे हर्षवर्धन की बिना किसी उत्तराधिकारी के मृत्यु हुई जिससे पष्यभुती वंश का अंत हुआ।

गौड

गौड़ वंश ने बंदर बंगाल में राज किया था। गुप्त साम्राज्य के पतन के बाद शशांक नामक राजा ने गौड को स्वतंत्र घोषित किया था। शशांक ने हर्षवर्धन के भाई राज्यवर्धन की हत्या की थी।

हर्षवर्धन

हर्षवर्धन ने 606 से 649 ईसवी यानी कि 41 वर्षों तक राज किया था। हर्षवर्धन के साम्राज्य के दौरान उत्तर और उत्तर पश्चिमी भारत का अधिकांश भाग उसके साम्राज्य का हिस्सा था। उसका राज्य दक्षिण में नर्मदा नदी तक और पूर्व में कामरूप तक फैला हुआ था। कन्नोज उसकी राजधानी थी। गुप्त साम्राज्य के बाद फैली हुई अराजकता और अशांति हर्षवर्धन के राज्य में स्थिर हुई।

शासन प्रबंध

हर्षवर्धन स्वयं प्रशासनिक गतिविधियों में भाग लेता था। उसने अपनी सहायता के लिए मंत्री परिषद गठित कीया था। बाणभट्ट ने हर्षचरित में इन पदों की व्याख्या की है जो निम्न वत है-

  • अवन्ती – युद्ध और शांति का मंत्री
  • सिंहनाद – हर्षवर्धन की सेना का महा सेनापति
  • कुंतल – अश्व सेना का मुख्य अधिकारी
  • स्कंदगुप्त – हस्ति सेना का मुख्य अधिकारी
  • भंडी – प्रधान सचिव
  • लोकपाल – प्रांतीय शासक

हर्षवर्धन ने कामरूप शासक भास्कर वर्मा के साथ संधि करके गौड राजा शशांक को हराया था और उसके कब्जे से अपनी बहन को छुड़ाया था। हर्षवर्धन शिव और सूर्य की उपासना करता था परंतु बाद में उसका झुकाव बौद्ध धर्म की तरफ हुआ। हर्षवर्धन के दरबार में कादंबरी और हर्षचरित के रचिता बाणभट्ट, सुभाषितवलि के रचयिता मयूर ओर चीनी विद्वान ह्यूंसंग को आश्रय प्रदान था ।

वाककट राजवंश

वाककट राजवंश की स्थापना विध्याक्ती नामक राजा ने की थी। वाककट साम्राज्य तीसरी शताब्दी के मध्य में डेक्कन में स्थित था। वाककट डेक्कन में सातवाहन के उत्तराधिकारी थे तथा भारत के उत्तर में गुप्तो के समकालीन थे। वाककट राजवंश का साम्राज्य पूर्व में छत्तीसगढ़ के कुछ भागों से अरब सागर तक और उत्तर में गुजरात के दक्षिणी किनारे और मालवा से दक्षिण में तुंगभद्रा नदी तक विस्तृत था।

चालुक्य

चालुक्य राजवंश ने 6वी ओर 12वी शताब्दी के बीच दक्षिणी और मध्य भारत में राज किया था। इस समय के दौरान उन्होंने 3 संबंधित मगर व्यक्तिगत राजवंशों के जैसे राज किया था। यह तीन राजवंश बादामी चालुक्य, पश्चिमी चालुक्य और पूर्वी चालुक्य थे। इन तीनों में से सबसे पहला राज्य बादामी चालुक्य है, जिन्होंने वातापी से छठवीं शताब्दी के मध्यकाल में राज किया था। पुलकेशिन द्वितीय के राज्य काल के दौरान बदमी चालुक्य वंश का खूब विकास हुआ। पुलकेशिन द्वितीय की मृत्यु के बाद पूर्वी चालुक्य ने पूर्वी डेक्कन में एक स्वतंत्र राज्य बनाया। उन्होंने 11 वीं शताब्दी तक राज किया। पश्चिमी चालूक्यों ने कल्याणी रुप से 12 वीं शताब्दी के अंत तक राज किया। चालुक्य वंश का राज दक्षिण भारत के लिए बेहद ही महत्वपूर्ण था और कर्नाटक के लिए स्वर्ण युग था।

पुलकेशिन प्रथम

पुलकेशिन प्रथम ने बादामी चालुक्य वंश की स्थापना की थी। उसने 543 से 566 ई तक राज किया था। उसने स्तायश्रय, राणविक्रम और श्रीपृथ्वीवल्लभ जैसी कई उपाधियां धारण की थी। उसने अपने शासनकाल के दरमियान अश्वमेघ और वाजपेई जैसे यज्ञ करवाए थे। पुलकेशिन प्रथम के दो पुत्र थे कीर्तिवर्मन प्रथम और मंगलेश। पुलकेशिन प्रथम की मृत्यु के बाद उसके बड़े बेटे कीर्तिवर्मन ने राज्य का कारोभार संभाला था।

पल्लव

पल्लव राजवंश का राज दक्षिणी भारत के कुछ हिस्से में था। उन्होंने सातवाहन राज्य वंश के पतन के बाद सत्ता प्राप्त की थी। उनकी राजधानी कांचीपुरम थी। पल्लव महेंद्र वर्मन 1 और नरसिंह वर्मन 1

के राज के दौरान बड़ी शक्ति के तौर पर उभरा और तेलुगु के दक्षिणी भाग और तमिल के उत्तरी भाग पर करीबन 600 सालअपना प्रभुत्व बनाया। उनके शासन काल के दरम्यान वे लगातार उत्तर में बदामी चालुक्य और दक्षिण में चोला और पंड्या शासकों के साथ टकराव मे रहै। अखरि मे 9 वी शताब्दी मैं पल्लव चोला सम्राट आदित्य 1 से पराजित हुए। पल्लव उनकी वास्तुकला के कारण जाने जाते थे।

पल्लव वंश के कुछ महान शासक

सिंहविष्णु

सिंहविष्णु सिंहवर्मन के पुत्र और उत्तराधिकारी थे। उसने अवनीसिंह की उपाधि धारण की थी। सिंहविष्णु ने कलभ्र चौल और पांडय तथा सिंहल राजाओं को हराया था। उसने चोल राजाओं को हराकर चोलमंडल पर अपना अधिकार स्थापित किया था। उसकी इस विजय के परिणाम रूप पल्लव राज्य की दक्षिणी सीमा कावेरी नदी तक पहुंच गई थी। उसकी राज्यसभा में किरातार्जुनीयम् महाकाव्य की रचना करने वाले संस्कृत महाकवि भारवि निवास करते थे।

महेंद्रवर्मन प्रथम

महेंद्रवर्मन सिंहविष्णु का पुत्र और उत्तराधिकारी था। वह एक महान निर्माता, कवि और संगीतज्ञ था। उसने विचित्रचित्र, मतविलास जैसी उपाधि प्राप्त की थी। उसके समय में पल्लव-चालुक्य संघर्ष का प्रारंभ हुआ था। उसने मतविलासप्रहसन की रचना की थी।

Last Final Word

यह थी गुप्त काल के बाद भारत में अस्तित्व में आने वाले राजवंशों की जानकारी। हम उम्मीद करते हैं कि यहां दी गई जानकारी आपके उपयोग में आयी होगी। यदि आपको इस आर्टिकल से संबंधित कोई भी सवाल या परेशानी हो तो हमें कमेंट सेक्शन में जरूर बताएं।

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