नमस्कार दोस्तों आज के इस महत्वपूर्ण आर्टिकल में हम आपसे बात करने वाले है गुरु नानक देव की जीवनी के बारे में, तो चालिए जानते है की गुरुनानक जी का जीवन कैसा रहा था। देखा जाये तो गुरुनानक देव को सिखों के प्रथम गुरु माने जाते है। गुरुनानक जी का जन्म 15 अप्रैल 1469 ई. (वैशाख सुदी 3, संवत 1526 विक्रमी) में हुआ था। गुरुनानक जी का जन्म तलवंडी रायभोय नामक स्थान पर हुआ। सुविधा की द्रष्टि से देखा जाये तो गुरु नानक का प्रकाश उत्सव कार्तिक पूर्णिमा को मनाया जाता है। तलवंडी को अब ननकाना साहिब के नाम से जाना जाता है। तलवंडी पाकिस्तान के लाहौर जिले से 30 मील दक्षिण-पश्चिम में स्थित है।
गुरु नानक जी के जीवन के बारे में महत्वपूर्ण तथ्य (Important facts about Guru Nanak’s life)
नाम (Name) | गुरु नानक देव जी |
जन्म (Birthday) | 29 नवम्बर, 1469, तलवंडी, शेइखुपुरा जिला (वर्तमान में पंजाब, पाकिस्तान में स्थित है ) |
पिता का नाम (Father Name) | कल्याणचंद (मेहता कालू) |
माता का नाम (Mother Name) | तृप्ता देवी |
पत्नी (Wife Name) | सुलक्षिणी देवी |
बच्चे (Children Name) | श्री चंद और लखमी दास |
मृत्यु (Death) | 22 सितंबर, 1539 करतारपुर (वर्तमान में पाकिस्तान) |
गुरुनानक देव की जीवनी (Biography of Guru Nanak Dev)
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी की जन्म तिथि के बारे में इतिहासकारों की अलग-अलग राय है, लेकिन कई विद्वान उनके जन्म को 29 नवंबर, 1469 को कार्तिक पूर्णिमा के दिन मानते है और इस दिन देश में गुरु नानक जयंती भी मनाई जाती है। गुरु नानक के जन्मदिन को प्रकाश पर्व के रूप में मनाया जाता है। आपको बता दें कि रावी नदी के किनारे बसे गांव तलवंडी में गुरु नानक देव जी का जन्म हुआ था। जो आज के दिन लाहौर पाकिस्तान में मैजूद है। वहीं, गुरु नानक के नाम पर उनके गांव तलवंडी का नाम बदलकर ननकाना कर दिया गया। गुरुनानक के पिता का नाम कल्याण चंद (मेहता कालू) था, जो स्थानीय राजस्व प्रशासन के एक अधिकारी थे, जबकि उनकी माता का नाम तृप्ता देवी था। उनकी एक बड़ी बहन भी थी, जिसका नाम नानकी था।
पाठशाला में नहीं लगा गुरुनानक जी का मन
देखा जाये तो बचपन से ही गुरुनानक देव जी का मन पढाई लिखाई में नहीं लगता था उसको पढ़ ना लिखना बिलकुल पंसद नही था। गुरुनानक देव को बचपन से ही आध्यात्मिक और भगवतप्राप्ति में लगाव रख ते थे। नानक साहब हमेशा सांसारिक मामलों के प्रति उदासीन थे और उन्होंने अपना अधिकांश समय धार्मिक भजन, कीर्तन, सत्संग और संतों के साथ आध्यात्मिक चिंतन के साथ-साथ हमेशा भगवान, प्रकृति और जीवों के बारे में बात करने में बिताया था।
वहीं जब उनके पिता ने यह सब देखा तो उन्हें पशुओं को चराने की जिम्मेदारी सौंपी, ताकि वे अपनी पारिवारिक जिम्मेदारियों को समझ सकें, लेकिन इसके बाद भी गुरु नानक देव जी अपने आत्मचिंतन में ही डूबे रहते थे।
दूसरी ओर, जब किसी तरह गुरु नानक देव जी का संतों की संगति में बैठना कम नहीं हुआ, तो उनके पिता कालू मेहता जी ने उन्हें साधू और संतों की संगति कम करने और उन्हें अपने पारिवारिक कर्तव्यों का एहसास कराने के लिए कहा। व्यवसाय की जानकारी लेने के लिए उसने गांव में एक छोटी सी दुकान खोली और 20 रुपये देकर बाजार से उचित सौदा कर लेन को कहा।
परंतु गुरुनानक उसके पिताजी द्वारा दिए गये 20 रुपए का उपयोग भूखे, साधूओ का खाना खिलने में और निर्धनों का पेट भरने हेतु कर दिया। इसके बाद गुरुनानक जी घर वापिस आये और उसके पिताजी ने जो सौदा करने भेजे थे उसके बारे में गुरु नानक जी को पूछा तब, गुरुनानक जी ने जवाब देते हुए कहा की, उन रुपए का उसने सच्चा सौदा (व्यापर) किया है, जब गुरुनानक जी ने उस समय में उसी जगह पर गुरु नानक जी ने गरीबो, भूखे लोगो को खाना खिलाया था, वहां आज भी सच्चा सौदा नाम का गुरुद्वारा बनाया गया है। बादमे उसनके माता पिता ने गुरुनानक जी का मन गृहस्थ जीवन में लगाने के लिए उनकी शादी कर ने का फैसला लिया और थोड़े समय में उसकी शादी करा दी गयी।
गुरुनानक देव जी का विवाह
दुनिया वालो को सच्चाई के मार्ग पे लेजाने की सिख देने वाले गुरुनानक जी का 16 वीं साल में ही उसको शादी के बंधन में बंध जाना पड़ा था। गुरुनानक जी का विवाह गुरुदासपुर जिले के पास एक गाव था उसका नाम लाकौखी था उस गाव में रहने वाले मूलराज की बेटी सुलक्षिणी नाम की युवती से करा दी गई। गुरुनानक जी के शादी के बाद थोड़े साल में उसके दो पुत्र हुए उसमें एक का नाम श्री चंद और दुसरे का नाम लखमी दास था। हालांकि गुरुनानक जी की शादी के बाद भी उसका स्वभाव नहीं बदला और वह आत्म चिंतन में डूबे रहे।
गुरुनानक जी ने रुढिवादिता एवं धार्मिक अंधविश्वास का जमकर किया विरोध
गुरु नानक देव जी शुरू से ही मूर्ति पूजा, धार्मिक आडंबर, अंधविश्वास, पाखंड, धार्मिक प्रथाओं आदि के घोर आलोचक रहे हैं। उन्होंने बहुत छोटी उम्र से ही रूढ़िवाद का विरोध करना शुरू कर दिया था। इसके लिए उन्होंने कई तीर्थ भी किए और धर्म प्रचारकों को उनकी कमियों के बारे में बताया और साथ ही लोगों से धार्मिक कट्टरता और कट्टरता से दूर रहने का अनुरोध किया।
गुरु नानक देव जी का मानना था कि ईश्वर बाहर नहीं है, बल्कि हमारे हृदय में समाया हुआ है, इसके साथ ही उन्होंने बताया कि जिसके हृदय में प्रेम, दया और करुणा अर्थात घृणा, निंदा, क्रोध, क्रूरता आदि का भाव नहीं होता, उसमें दोष होते हैं। ऐसे हृदय में भगवान वास नहीं कर सकते।
गुरु नानक जी की यात्राएं (Guru Nanak Yatraa)
देखा जाये तो गुरु नानक जी ने अध्यात्मिक ज्ञान की प्राप्ति, धार्मिक बुराईयो को दूर करने और धर्म प्रचारको को उनकी कमियों को बताने के लिए तीर्थस्थलों पर जाने का फैसला कर लिया था और परिवार की जिम्मेदारी अपने ससुर पर छोड़ दी बादमे करीबन 1507 ईस्वी में तीर्थयात्रा पर निकल गये थे। इन तीर्थयात्राओ के दौरान रामदास, मरदाना, बाला और लहरा यह सब गुरु जी के साथ गये थे। इसी तरह सब जगह पर गुरुनानक जी अपनी तीर्थयात्राओ के माध्यम से चारों तरफ संप्रदायिक एकता, सदभावना एवं प्यार की ज्योत जलाई थी, और उस ज्योत का असर आज भी प्रज्ज्वलित है।
इसके साथ ही अपनी धार्मिक यात्राओं के दौरान गुरु नानक देव जी ने एक व्यक्ति की मृत्यु के बाद पितरों को दिए जाने वाले भोजन का कड़ा विरोध किया था और कहा था कि मृत्यु के बाद दिया गया भोजन पितरों को नहीं मिलता है, इसलिए सभी को जीवित रहते हुए आप अपने माता-पिता की सच्ची भावना से सेवा करनी चाहिए। आपको बता दें कि 1521 ई. तक गुरु नानक देव जी ने अपने तीन यात्रा चक्र पूरे कर लिए थे, जिसमें उन्होंने भारत, फ़्रांस, अरब और अफगानिस्तान जैसे देशों के प्रमुख स्थानों की यात्रा की थी। आपको बता दें कि इन यात्राओं को पंजाबी में “उदासियां” कहा जाता है।
गुरु नानक जी की पहली धार्मिक यात्रा (उदासी)
गुरु नानक ने 1507 ई. में अपना पहला तीर्थ (उदासी) शुरू किया और 1515 ई. तक लगभग 8 वर्षों तक इस यात्रा को पूरा किया था। इस यात्रा में उन्होंने प्रयाग, नर्मदात, हरिद्वार, काशी, गया, पटना, असम, जगन्नाथ पुरी, अयोध्या, कुरुक्षेत्र, रामेश्वर, पानीपत, बीकानेर, द्वारका, सोमनाथ, पुष्कर तीर्थ, दिल्ली, लाहौर, मुल्तान आदि स्थानों की तीर्थयात्रा की। इन जगहों पर जाकर उन्होंने अपनी महान शिक्षाओं, और शिक्षाओं से कई लोगों का दिल बदला और लोगों को सही रास्ते पर चलने की सलाह दी।लोगों में दया, करुणा आदि की भावना पैदा की, कर्मकांडों को ब्रह्मदंबरों से बाहर आकर भक्ति करना सिखाया, निर्दयी लोगों को प्रेम करना सिखाया, लुटेरों, ठगों को संत बनाया और उन्हें मानवता का पाठ पढ़ाया।
गुरु नानक जी की दूसरी यात्रा (उदासी)
देखा जाये तो सिख धर्म के प्रवर्तक गुरुनानक देव् जी ने अपनी इस दूसरी यात्रा के माध्यम से भी कई लोगो को सही तरीके से अपना जीवन जीने का पाठ पढाया, उन्होंने यह यात्रा 1517 ईस्वी से शुरू की और लगभग 1 वर्ष के दौरान उन्होंने सियालकोट, ऐमनाबाद, सुमेर पर्वत आदि की यात्रा की और लोगों को कर्तव्य के सही रास्ते पर चलना सिखाया और अंत में 1518 ईस्वी तक करतारपुर पहुंचे।
गुरु नानक जी की तीसरी यात्रा (उदासी)
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने अपनी तीसरी यात्रा के दौरान काबुल, सादुबेला (सिंधु), बगदाद, बल्ख बुखारा, मक्का मदीना, बहावलपुर रियासत, कंधार आदि स्थानों का भ्रमण किया। उनकी यात्रा 1518 ई. से लेकर 1521 ई. तक लगभग 3 वर्ष तक चली। बादमे दूसरी तरफ देखा जाये तो 1521 ईसवी में जब मुग़ल वंश के स्थापक बाबर ने ऐमनाबाद पर आक्रमण करना शुरू कर दिया तो, गुरुनानक जी अपने साथ आये हुए यात्राओ के साथ वहा पर रुक गये और करतारपुर (वर्तमान पाकिस्तान) में अपनी यात्रा को खत्म किया और वहा पर ही अपने साथियों के साथ बस गये बादमे गुरु नानक जी अपना पूरा जीवन करतारपुर में ही बिताया था।
गुरुर नानक देव जी के प्रमुख उपदेश एवं शिक्षाएं
सतगुरु गुरु नानक देव जी ने अपने आध्यात्मिक ज्ञान और महान विचारों से अपने अनुयायियों (अनुसरण करनेवाला शिष्य) को मोक्ष प्राप्त करने और सुखी जीवन जीने के लिए कई उपदेश और उपदेश दिए, जिनमें से कुछ आपको निम्नलिखित दिये गए है।
- कभी भी बुरे काम करने के बारे में मत सोचो और कभी किसी का दिल मत दुखाओ।
- सभी महिला और पुरुष समान है, और दोनों के लिए सम्मान के पात्र है।
- मनुष्य के शरीर को जीवित रखने के लिए भोजन आवश्यक है, लेकिन, लोभ-लालच एक बुरी आदत है, यह आदत व्यक्ति से उसका सुख छीन लेती है।
- मनुष्य को कभी भी किसी दुसरे क्यक्ति का हक़ और उसका सम्मान नहीं छिनना चाहिए।
- मनुष्य को कभी भी दुसरे व्यक्ति के साथ किसी भी तरह की इर्ष्या से जीवन नहीं जी ना चाहिए सब इंसानों को प्रेमपूर्वक एक साथ मिलकर रहना चाहिए।
- ईश्वर कण-कण में विद्यमान है।
- ब्रह्म एक है।
- हमेशा एक ही भगवान की पूजा करनी चाहिए।
- सच्चे मन से ईश्वर की पूजा करने वालों को कभी किसी का भय नहीं होता।
- सच्चाई, ईमानदारी और मेहनत से ही पैसा कमाना चाहिए।
- हमेशा खुश रहना चाहिए और हमेशा भगवान से अपने लिए क्षमा मांगना चाहिए।
- मेहनत की कमाई और ईमानदारी से जरूरतमंद और गरीबों की मदद जरूर करनी चाहिए।
गुरु नानक देव जी की मृत्यु
सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव जी ने अपनी महान शिक्षाओं, शिक्षाओं से पूरे विश्व में काफी प्रसिद्धि प्राप्त की थी, वह लोगों के बीच बहुत लोकप्रिय हुए। उन्हें एक आदर्श गुरु के रूप में पहचाना गया, उनकी प्रसिद्धि दूर-दूर तक फैली, गुरु नानक ने करतारपुर नामक एक शहर की स्थापना की, जो अब पाकिस्तान में है, और यहीं पर उन्होंने 1539 ई. में अपने प्राण त्याग दिए। . उनकी मृत्यु के बाद, गुरु नानक के महान भक्त और प्रिय शिष्य, गुरु अंगदगेव जी (बाबा लहना) को उनका उत्तराधिकारी बनाया गया।
गुरु नानक देव जी की जयंती
गुरु नानक जयंती हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। प्रकाश पर्व के दिन, गुरु नानक देव द्वारा दी गई शिक्षाओं के बारे में सभाओं को बताया जाता है और गुरु नानक ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है। आज सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक देव की 552वीं जयंती (Guru Nanak Jayanti 2021) मनाई जा रही है। नानक साहब का जन्म 15 अप्रैल 1469 को पंजाब के तलवंडी में हुआ था, जो अब पाकिस्तान में है। इस जगह को ननकाना साहब के नाम से भी जाना जाता है। सिख धर्म में गुरु पर्व का बहुत महत्व है। गुरु नानक जयंती हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन मनाई जाती है। गुरु नानक देव द्वारा दी गई शिक्षाओं को प्रकाश पर्व के दिन सभाओं में बताया जाता है और गुरु ग्रंथ साहिब का पाठ किया जाता है।
Last Final Word:
हमें उम्मीद है कि आपको गुरु नानक जी का जीवन परिचय पसंद आया होगा और आपको गुरु नानक जी की जीवनी के बारे में पूरी जानकारी मिली होगी, अगर आपको हमारे द्वारा दी गई जानकारी पसंद आई है, तो आप इस लेख को अपने दोस्तों के साथ भी साझा कर सकते है।
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