भारत देश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में पहचाने जाने वाली इंदिरा गांधी का जीवन परिचय बहुत ही रोचक और प्रेरणादायी है। उनका इंदु से लेकर इंदिरा और बाद में प्रधानमंत्री बनने तक का सफर ना केवल प्रेरणादायी हैं, बल्कि भारत देश में महिला सशक्तिकरण के इतिहास का बहुत ही महत्वपूर्ण अध्याय भी है। इंदिरा गांधी ने 1966 से लेकर 1977 तक और उसके बाद 1980 से लेकर अपने मृत्यु तक देश के प्रधानमंत्री का पदभार संभाला था।
इंदिरा गांधी जन्म और परिवार
जन्मदिन (Birth date) | 19 नवंबर 1917 |
जन्मस्थान (Birth place) | इलाहबाद,उत्तर प्रदेश |
पिता (Father) | जवाहरलाल नेहरु |
माता (Mother) | कमला नेहरु |
पति (Husband) | फ़िरोज़ गांधी |
पुत्र (Sons) | राजीव गांधी और संजय गांधी |
पुत्र वधुएँ (Son-in-law) | सोनिया गांधी और मेनका गांधी |
पौत्र (Grand sons) | राहुल गांधी और वरुण गांधी |
पौत्री (Grand daughter) | प्रियंका गांधी |
इंदिरा गांधी का जन्म देश की स्वतंत्रता में योगदान देने वाले मोतीलाल नेहरु के परिवार में हुआ था। इंदिरा जी के पिता जवाहरलाल एक सुशिक्षित वकील थे, और भारतीय स्वतंत्र के आन्दोलन में सक्रीय सदस्य भी थे। इंदिरा गांधी नेहरूजी की इकलौती संतान थी, इंदिरा अपने पिता के बाद दूसरी एक से ज्यादा कार्यालय के लिए कार्य करने वाली प्रधानमंत्री है। इंदिरा में बचपन से ही देशभक्ति की भावना थी, उस समय भारत देश के राष्ट्रवादी आंदोलन की एक रणनीति में विदेशी ब्रिटिश उत्पादों का उपयोग न करना यानि की बहिष्कार करना भी शामिल था। इंदिरा ने छोटी सी उम्र में, विदेशी वस्तुओ की होली जलते देखि थी, जिससे इंदिरा प्रेरित होकर जब वे 5 साल की थी तब उन्होंने अपनी प्यारी गुडिया को जलने का फेसला किया, क्योकि उनकी वह गुडिया इंग्लॅण्ड में बनाई गई थी।
इंदिरा गांधी ने बनाई थी वानर सेना (Indira Gandhi had created Vanar Sena)
इंदिरा गांधी जब 12 साल की थी, तब उन्होंने कुछ बच्चो के साथ मील कर एक वानर सेना बनाई और उसका नेतृत्व इंदिरा ने किया। इस वानर सेना का नाम बंदर ब्रिगेड रखा गया था जो की यह बंदर सेना से प्रेरित था, जिसने महाकाव्य रामायण में भगवन राम की सहायता की थी। इंदिरा ने बंदर ब्रिगेड से जुड़े बच्चो के साथ मिलकर भारत की स्वतंत्रता के संघर्ष में बहुत महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी, बाद में इस समूह में 60,000 युवा क्रांतिकारियों को भी इसमें शामिल किया गया था, और उन लोगो ने बहुत से आम-लोगो को संबोधित किया, झंडे भी बनाए, सन्देश भी दिए और प्रदर्शनों के बारे में जानकारी आम-जनता तक पहुचाई गई। ब्रिटिश शासन के होते हुए ये सारे काम करना बहुत ही जोखम भरा था, लेकिन फिर भी इंदिरा स्वतंत्रता आन्दोलन में भाग लेकर खुश थी।
इंदिरा गांधी की शिक्षा (Indira Gandhi’s Education)
इंदिरा ने पुणे के विश्वविध्यालय से मेट्रिक पास की थी और पश्चिम बंगाल में शान्तिनिकेतन से भी थोड़ी सी शिक्षा हांसिल की थी, और ईसके बाद वह स्विट्जरलैंड में और फिर लंदन में सोमेरविल्ले कोलेज और ऑक्सफोर्ड विश्वविध्यालय में करने के लिए गई।
1936 में, इंदिरा की माँ कमला नेहरु तपेदिक से बीमार हो गई थी, तब इंदिरा की पढाई शुरू थी और उन दिनों में इंदिरा ने स्विट्जर्लेंड में कुछ महीने अपनी बीमार माँ के साथ बिताये थे, इंदिरा की माँ कमला की जब मृत्यु हुई उस समय जवाहरलाल नेहरु भारतीय जेल में थे ।
इंदिरा गांधी विवाह और पारिवारिक जीवन (Marriage and Family Life of Indira Gandhi)
इंदिरा इंडियन नॅशनल कांग्रेस की जब सदस्य बनी थी, तब इंदिरा की मुलाकात फिरोज गांधी नामक व्यक्ति से हुई। फिरोज गांधी तब एक पत्रकार थे, और यूथ कांग्रेस के एक महत्वपूर्ण सदस्य भी थे। 1941 में अपने पिता के मना करने के बावजूद भी इंदिरा ने फिरोज गांधी से शादी कर ली थी, इंदिरा जी ने पहले राजीव गांधी को जन्म दिया और उसके बाद 2 साल के समय के बाद संजय गांधी को जन्म दिया।
इंदिरा की शादी फिरोज गांधी से जरुर हुई थी, लेकिन फिरोज गांधी और महात्मा गांधी उन दोनों के बिच कोई भी संबंध नहीं था। फिरोज महात्मा गांधी के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई में उनके साथ थे, लेकिन फिरोज पारसी धर्म के थे,जब की इंदिरा हिन्दू धर्म की थी। उस समय दूसरे धर्म(जाती) में शादी करना इतना आम नहीं माना जाता था। इसी कारण इंदिरा और फिरोज की जोड़ी को सार्वजनिक रूप से नापसंद किया जाता था, एसे में महात्मा गांधी ने उनकी जोड़ी को साथ दिया और यह सार्वजनिक बयान भी दिया, और उस बयान में मिडिया से उनकी विनंती भी शामिल थी की “मै अपमानजनक पत्रों के लेखको को अपने गुस्से को कम करने के लिए इस शादी में आकर नवयुगल को आशीर्वाद देने के लिए आमंत्रित करता हूँ” और कहा भी गया है की महात्मा गांधी ने फिरोज और इंदिरा को गांधी लगाने का सुझाव दिया क्योकि गांधीजी राजनितिक छवि बनाये रखना चाहते थे।
जब भारत की स्वतंत्रता हुई उसके बाद इंदिरा जी के पिता यानि की जवाहरलाल नेहरु देश के पहले प्रधानमंत्री बने थे, तब इंदिरा अपने पिता के साथ दिल्ली में रहने के लिए चली गयी थी। इंदिरा के दोनों बेटे उनके साथ दिल्ली में साथ रहने को आये थे, लेकिन फिरोज तब दी नॅशनल हेरल्ड में एडिटर का काम कर रहे थे, जिसकी वजह से इंदिरा के साथ फिरोज दिल्ली नहीं जा सके और उन्हें इलाहाबाद में ही रहने का फेसला किया था। और इस न्यूज पेपर की स्थापना मोतीलाल नेहरु ने की थी।
इंदिरा गांधी का राजनितिक करियर (Indira’s Political Career)
उस समय भारत के केंद्र सरकार में नेहरु परिवार का बड़ा ही महत्त्व था, इस वजह से इंदिरा का राजनीती में आना ज्यादा मुश्किल नहीं कहा जा सकता और आश्चर्यजनक भी नहीं कह सकते। इंदिरा जब छोटी थी तब से गांधीजी को अपने इलाहाबाद में जो घर था उस घर में आते-जाते देख रही थी, इस कारण उनकी देश और यहाँ की राजनीती में लगाव था।
1951-52 के लोकसभा चुनावो में इंदिरा जी ने अपने पति के लिए बहुत सी चुनावी सभाओ को आयोजित किया और उन सारी चुनावी सभाओ को साथ देने वाली चुनावी अभियान का प्रतिनिधित्व किया था। उस समय के दौरान फिरोज रायबरेली से चुनाव लड़ रहे थे। फिरोज सरकार जल्द ही भ्रष्टाचार के खिलाफ बहुत बड़ा चेहरा बन चुके थे। फिरोज ने बहुत से भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी लोगो का खुलासा किया, और इस भ्रष्टाचारियो के खुलासे में बिमा कम्पनी और वित्त मंत्री टीटी कृष्णामचारी का नाम शामिल था। उस समय वित्त मंत्री जवाहरलाल नेहरु के बहुत करीबी माने जाते थे।
इस तरह फिरोज गांधी ने रास्ट्र के स्तर की राजनीती में महत्त्व की भूमिका अदा की और मुख्य धारा में सामने आये। फिरोज के बहुत ही कम समर्थक थे फिर भी उन थोड़े से समर्थको के साथ उन्होंने केंद्र सरकार के साथ अपनी लड़ाई शुरू रखी, और फिर 8 सितम्बर 1960 को हार्ट-अटैक आने पर फिरोज की मृत्यु हो गई।
कोंग्रेस प्रेसिडेंट के रूप में इंदिरा गांधी (Indira Gandhi as Congress President)
इंडियन नॅशनल कांग्रेस पार्टी का प्रेसिडेंट 1959 में इंदिरा को घोषित किया गया था। जब की वे जवाहर लाल नेहरु की प्रमुख एडवाइजर टीम में भी शामिल थी। 27 मई 1964 को जवाहर लाल नेहरु की मृत्यु हुई और इसके बाद ही इंदिरा ने चुनावी पद के लिए लड़ने का फेसला किया और वो जित भी चुकी थी। इंदिरा को लाल बहादुर शास्त्री की सरकार में इन्फोर्मेशन एंड ब्रोडकास्टिंग नाम के दो मंत्रालय का कार्य दिया गया।
प्रधानमंत्री के रूप में पहली बार (First Time as Prime Minister)
लाल बहादुर शास्त्री का दिहांत 11 जनवरी 1966 को ताशकंद में हुआ और उसके बाद कामचलाऊ चुनावो में उन्होंने बहुमत से जित प्राप्त की, और प्रधानमंत्री का काम भी संभाला।
प्रधानमंत्री के स्थान पर रहकर उन्होंने जो भी कार्य किया उन सब में सबसे उल्लेखनीय उपलब्धिया प्रिंसी के पर्स के समूल नाश हो उसके लिए प्रिंसिपल राज्यों के पूर्व शासको और चार प्रीमियम तेल कंपनियों के साथ और भी भारत के चौदह सबसे बड़े बैंको के 1969 में राष्ट्रीयकरण के अमलो को पास करने का था। इंदिरा ने देश में खाने की सामग्री को निकालने में रचनात्मक कदम उठाए और देश को परमाणु के युग में 1974 में भारत देश के पहले भूमिगत विस्फोट के साथ सबको सिखाया।
भारत-पाकिस्तान युद्ध 1971 में इंदिरा गांधी की भूमिका (Role of Indira Gandhi in Indo-Pakistani War 1971)
वास्तव में इंदिरा को बहुत सारी मुस्किलो का सामना 1971 में करना पड़ा। युद्ध की तब शुरुआत हुई थी, जब पश्चिम पाकिस्तान की सेनाओ ने अपनी स्वतंत्रता के आंदोलन को रोक ने के लिए बंगाली पूर्वी पाकिस्तान जाने का फेसला किया। उन्होंने 31 मार्च को डरावनी हिंसा के विरुद्ध बाते हुई, किन्तु उन सबका विरोध जारी ही रहा और लाखो यात्रियों ने विदेशो ने भारत देश में आगमन किया।
उन यात्रियों की संभाल रखने में भारत में संसाधनों की मुस्किल होने वाली थी, क्योकि भारत में बहुत ही कम संसाधन थे, इसी की वजह से देश के लिए मुस्किल काफी बढ़ गई थी। हालाँकि भारत ने उनके लिए संघर्ष करने के स्वतंत्र के सेनानियों का साथ दिया। उस समय की स्थिति तब और भी मुस्किल हो गई, अमेरिका के राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन ने जब चाहा की, पाकिस्तान के पक्ष में सयुंक्त राज्य अमेरिका खड़ा हो, लेकिन उस तरफ पहले से ही चीन पाकिस्तान को हथियार दे रहा था, और भारत ने सोवियेत संघ के साथ “शांति, दोस्ती और सहयोग की संधि” पर हस्ताक्षर किए थे।
पश्चिमी पाकिस्तान की सेना ने पूर्वी पाकिस्तान में देश के आम-जनता पर बहुत अत्याचार करने शुरू किये, जिनमे हिन्दू धर्म के लोगो को मुख्य स्थान पर लक्ष अंकित किया गया, नतीजतन, 10 मिलियन के करीब पूर्व पाकिस्तानी नागरिक देश से निकल गए यानि की देश से पलायन कर गए और उन लोगो ने भारत देश में शरण मांगी। भारी संख्याओ में भारत में शरणार्थियो के आने की वजह से इंदिरा जी को पश्चिमी पाकिस्तान के विरुद्ध आजामी लीग के स्वतंत्रता की लड़ाई को साथ देने के लिए प्रेरित किया।
भारत ने सेनाओ की सहायता प्रदान की और पश्चिम पाकिस्तान के विरुद्ध लड़ने के लिए सैनिको को भी भेजा। 3 दिसंबर को जब पाकिस्तान ने भारत देश के बेस पर बम-ब्लास्ट किये तब युद्ध की शुरुआत हुई। इंदिरा ने तब बांग्लादेश की स्वतंत्रता के महत्त्व को समझा, और बांग्लादेश के स्वतंत्रता सेनानियों को शरण देने और बांग्लादेश के निर्माण का साथ देने की घोषणा की। 9 दिसंबर को निक्सन ने यूएस के जहाजो को भारत देश की तरफ जाने का आदेश दिया, परन्तु 16 दिसंबर को पाकिस्तान ने खुद को आत्म- समर्पण कर दिया।
अंत में 16 दिसम्बर 1971 को ढाका में पश्चिमी पाकिस्तान के विरुद्ध पूर्वी पाकिस्तान के युद्ध का अंत हुआ। पश्चिमी पाकिस्तानी अपने शस्त्र बल ने भारत के सामने आत्म-समर्पण करने के कागजो पर अपने दस्तखत किये, और इससे एक नए देश का जन्म हुआ, और उसका नाम बांग्लादेश रखा गया। पाकिस्तान के विरुद्ध 1971 में जो युद्ध हुआ उस युद्ध में भारत की जित हुई और उसकी वजह से इंदिरा जी की लोकप्रियता बढ़ी और साथ में ही एक चतुर राजनितिक नेता का स्थान भी प्राप्त किया। उस युद्ध में पाकिस्तान ने पिछेहठ किया और उससे मात्र बंलादेश ही नहीं, भारत के लिए भी और इंदिरा के लिए भी एक जित ही थी। इसी की वजह से युद्ध के अंत के बाद इंदिरा ने घोषणा की, कि मैं ऐसी इन्सान नहीं हूँ, की जो किसी भी दबाव में काम करे, फिर चाहे वो कोई भी व्यक्ति हो या कोई भी देश।
आपातकाल लागु करना (Imposing Emergency)
विपक्षी दलों और सामाजिक कार्यकर्ताओ ने 1975 में, उत्पादन में कमी के कारण मूल्यों के भाव बढ़ने की वजह से, अर्थव्यवस्था की ख़राब स्थिति और भ्रष्टाचार नियंत्रित न होने पर इंदिरा जी की हिंदी भाषा वाली केंद्र सरकार के विरुद्ध कई सारें प्रदर्शन किए।
उसी साल, इलाहाबाद उच्च न्यायलय ने निर्णय सुना दिया, की इंदिरा ने पिछले चुनाव के समय गेरक़ानूनी तरीके का उपयोग किया था, हांलाकि मौजूदा राजनितिक परिस्थितियों में इस बात ने आग बढ़ने का कार्य किया। इस निर्णय में इंदिरा को तुरंत ही अपनी सीटो को खाली करने का आदेश फ़रमाया गया, जिस वजह से लोगो में इंदिरा गांधी के प्रति क्रोध बढ़ गया था। श्रीमती गांधी ने 26 जून 1975 के दिन इस्तीफा देने के बजाय “देश में अशांत राजनितिक स्थिति के कारण” आपातकाल घोषित का दिया गया।
आपातकाल के दौरान इंदिरा जी अपने सभी राजनीतिक दुश्मनों को कैद करवा दिया, उस समय नागरिको के सभी संवैधानिक अधिकारों को रद्द कर दिया गया और उसके साथ प्रेस को भी सख्त सेंसरशिप के तहत रखा गया था। समाजवादी जया प्रकाश नारायण और उनके समर्थको के द्वारा भारतीय समाज को बदल ने के लिए ‘कुल अहिंसक क्रांति’ में छात्रो, किसानो और श्रम संगठनों को एकजुट करने के लिए मांग की, बाद में नारायण को भी गिरफ्तार कर लिया गया और जेल भेज दिया गया।
1977 के प्रारम्भ में आपातकाल को हटा दिया गया। उसके बाद इंदिरा गांधी ने चुनावों की घोषणा की, लेकिन उस समय जनता ने आपातकाल और नसबंदी अभियान के लिए इंदिरा जी के समर्थन नहीं किया।
सत्ता का छिनना और विपक्ष की भूमिका में आना (snatching power and coming into the role of opposition)
आपात स्थिति के दौरान, उनके छोटे बेटे संजय गांधी ने देश को पूर्ण अधिकार के साथ चलाने की कोशिश की, संजय गांधी ने बहुत सख्ती से झोपड़पट्टी को हटाने का आदेश दिया, इस अलोकप्रिय नसबंदी कार्यक्रम ने इंदिरा गांधी को विपक्ष में कर दिया। 1977 में इंदिरा जी ने बड़े आत्मविश्वास से कहा, “उन्होंने विपक्ष को तोड़ दिया है।” उसके बाद इंदिरा जी ने चुनाव की मांग की। उभरते जनता दल गढ़बंधन का नेतृत्व कर रहे मोरारजी देसाई और जय प्रकाश नारायण ने इंदिरा जी को हराया था। पिछली लोकसभा में 153 सीटे कोंग्रेस को जिताने में कामयाब रही।
प्रधानमंत्री के रूप में दूसरा कार्यकाल (second term as prime minister)
जनता पार्टी के सहयोगियों के मध्य के आंतरिक संघर्ष का इंदिरा गांधी ने फायदा उठाया था। जनता पार्टी इंदिरा जी को संसद से निष्कासित करने का प्रयास की, जनता पार्टी ने इंदिरा जी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया, लेकिन ये योजना जनता पार्टी के लिए विनाशकारी साबित हुई और जिस वजह से इंदिरा जी को सहानुभूति मिली। जनता पार्टी उस समय स्थिर अवस्था में भी नहीं थी, जिसका पूरा फायदा कोंग्रेस और इंदिरा गांधी को मिला था। 1980 के चुनाव में कोंग्रेस एक बड़े बहुमत के साथ जित हासिल की और एक बार फिर इंदिरा जी को प्रधान मंत्री बनाया गया।
1981 के सितम्बर महीने में एक सिख आतंकवादी समूह ने अमृतसर के स्वर्ण मंदिर परिसर में प्रवेश कर, मंदिर के हजारो नागरिको को बंदी बना लिया था। उन आतंकवादी समूह ने “खालिस्तान” की मांग कर रहा था। मंदिर में हजारो नागरिक होने के बावजूद इंदिरा गांधी ने सेना को ओपरेशन ब्लू स्टार करने के लिए सवर्ण मंदिर में जाने का आदेश दे दिया। सेना टैंक और भारी तोपखाने का सहारा लिया, इस कार्य का हेतु आतंकवादी खतरे को कम करना था, लेकिन इससे कई निर्दोष नागरिको की हत्या हो गई। इस ओपरेशन को भारतीय इतिहास में एक अद्वितीय त्रासदी के रूप में देखा गया था। इस आतंकवादी हमले के प्रभाव ने देश में साम्प्र्दाईक तनाव में वृद्धी हुई। कई सीखो ने विरोध में सशस्त्र और नागरिक प्रशासनिक कार्यालय से इस्तीफा दे दिया और कुछ लोगो ने अपने सरकारी पुरस्कार वापस लौटा दिए। इस की वजह से इंदिरा जी की राजनीतिक छवि भी ख़राब हो गई थी।
इंदिरा गांधी की हत्या (Indira Gandhi assassination)
स्वर्ण मंदिर में हुए नरसंहार के बदले में 31 अक्टूबर 1984 को इंदिरा गांधी के बोर्डिगार्ड सतवंत सिंह और बिंत सिंह ने कुल 31 गोली मारकर इंदिरा जी की हत्या कर दी। ये हत्या सफदरगंज रोड नई दिल्ली में हुई थी।
इंदिरा गांधी से जुड़ी रोचक बाते
माना जाता है की इंदिरा गांधी अपनी इमेज बानाए रखने के लिए बहुत से कार्य किये है जिसमे से एक 1965 का कार्य है। 1965 के दौरान भारत और पाकिस्तान के युद्ध के समय इंदिरा जी श्रीनगर में छुट्टिया मना रही थी। सुरक्षा अधिकार के ने बताये गये अनुसार पाकिस्तानी उनके होटल के काफी करीब आ गये है, ये जाने के बावजूद इंदिरा जी वहा रुकी रही। इंदिरा जी ने वहा से हट ने से मना कर दिया। इस बात से इंदिरा जी पर राष्ट्रिय और आंतर्राष्ट्रीय मिडिया का ध्यान खीचा। जिससे उनकी पहचान विश्व पटल पर भारत की सशक्त महिला के रूप में बनी।
केथरीन फ्रैक ने अपनी किताब “दी लाइफ ऑफ़ इंदिरा नेहरू गांधी” में लिखा है की इंदिरा गांधी का पहला प्यार शान्ति निकेतन में उनके जर्मन टीचर थे, उसके बाद जवाहर लाल नेहरु के सेक्रेटरी एम.ओ.मथाई (M.O.Mathai) से इंदिरा गांधी के निकट-संबंध रहे। इंदिरा जी का नाम योग के अध्यापक (Teacher) और आखिर में कांग्रेस नेता दिनेश सिंह के साथ जोड़ा गया। इन सबसे इंदिरा जी के विरोधी उनकी राजनितिक छवि को कोई नुकसान नहीं पंहुचा सके। इंदिरा गांधी का आगे बडने का मार्ग भी नहीं नहीं रोक सके।
1980 के प्लेन क्रेश में संजय की मृत्यु के बाद गांधी परिवार में तनाव बढ़ गया था। 1982 तक इंदिरा और मेनका गांधी (इंदिरा जी के बेटे संजय गांधी की पत्नी) के मध्य बहुत कड़वाहट हो गई थी, जिस वजह से इंदिरा गांधी ने मेंनका को घर छोड़ ने को कह दिया था। मेनका घर से जाते समय की फोटो मिडिया में दे दी थी, और जनता को बताया की “मुझे नही पता की मुझे क्यों घर से निकला जा रहा है, लेकिन में अपनी माँ से ज्यादा अपनी सास इंदिरा जी को मानती हु।” मेनका अपने साथ अपने बेटे वरुण को भी साथ में ले गई, इस लिए इंदिरा अपने पोते से दूर रह ना काफी मुशकिल हो रहा था।
20 वी शताब्दी में महिला नेताओ की संख्या काफी कम थी, जिनमे इंदिरा जी का नाम भी शामिल था। 1976 में इंदिरा गांधी मार्गरेट थैचर से मिली थी। ये दोनों एक आचे मित्र बन गये थे। ये जानते हुए की इंदिरा जी पर आपातकाल के दौरान तानाशाही का इल्जाम है, और इंदिरा जी चुनाव हार गई है, फिर भी मार्गरेट ने इंदिरा गांधी का साथ नहीं छोड़ा था। मार्गेट थैचर ब्रिटन की सशक्त और बहादुर प्रधानमंत्री थी। थैचर अच्चेसे इंदिरा जी की समस्या समजती थी। थैचर बहादुर एवं सशक्त प्रधानमंत्री थी, इस का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है, थैचर को पता था की आतंकी हमले की आशंका है फिर भी वो इंदिरा गांधी के अंतिम संस्कार में गई थी। थैचर ने इंदिरा जी की असामयिक मृत्यु पर राजीव को सवेदनशील पत्र भी लिखा था।
इंदिरा जी को पता था की कोंग्रेस में एक वर्ग है जो किसी महिला के हाथ में शक्ति बर्दाश्त नहीं कर सकता था, फिर भी इंदिरा गांधी राजनीती के एसे सभी व्यक्तिओ और पारम्परिक सोच रखने वाले बाधाओ का डटकर सामना किया।
इंदिरा ने देश में कृषि के क्षेत्र में काफी अच्छे कार्य किये थे। खेती के क्षेत्र में इंदिरा गांधी ने कई नई योजनाए बनाई और कृषि सम्बंधित कार्यक्रम आयोजित किए। इसमें विविध फसले उगाना और खाध्य सामग्री को नियात करने जेसे मुख्य उद्देश्य शामिल है। इंदिरा जी का लक्ष्य अनाज उत्पादन में आत्म निर्भर बनना और रोजगार संबंधित समस्या को कम करना था। यह सभी से हरित-क्रांति की शुरुआत हुई थी।
इंदिरा जी ने भारत को एक आर्थिक और ओद्योगिक सक्षम राष्ट्र बनाया था। इस के अलावा इंदिरा जी के कार्य काल में में ही विज्ञान और रीसर्च में भी भारत ने बहुत प्रगति की थी। उस दौरान पहली बार पहले भारतीय चाँद पर कदम रखा था, यह बात भारत देश के लिए काफी गर्व का विषय था।
इंदिरा गांधी और फ़िरोज़ का रिश्ता कैसा था? (How was the relationship between Indira and Feroze?)
इंदिरा गांधी की बायोग्राफी में हमें लिखा हुवा मिलता है की इंदिरा जी और फ़िरोज़ का रिश्ता अच्छा नहीं था, उनका मतभेद इतना बढ़ गया था की वो दोनों अगल रहने लगे थे। यहाँ तक पता चला है की फ़िरोज़ एक मुस्लिम महिला के प्यार में भी पड गये थे, और उस समय इंदिरा दूसरी बार गर्भवती थी। यह सब होने के बाद भी फ़िरोज़ के अंतिम समय में इंदिरा गांधी उनके काफी नजदीक थी और दोनों का रिश्ता लड़ते-झगड़ते गुजरा था। उनके मत भेदों के बारे में कई किताबो में लिखा हुवा मिलता है।
इंदिरा गांधी के नाम पर धरोहर (Heritage in the name of Indira Gandhi)
नई दिल्ली के उनके घर को म्यूजियम बनाया गया है,और इसे इंदिरा गांधी मेमोरियल म्यूजियम के नाम से जाना जाता है। इसके अलावा इंदिरा जी के नाम पर मेडिकल कोलेज और हॉस्पिटल भी है।
इंदिरा गांधी के नाम पर कई यूनिवर्सिटी है, जैसे की इंदिरा जी नॅशनल ओपन यूनिवर्सिटी (इंग्रू), इंदिरा जी नॅशनल ट्राइबल यूनिवर्सिटी (अमरकंटक), इंदिरा जी टेक्नीकल यूनिवर्सिटी फॉर वीमेन, इंदिरा जी कृषि विश्वविध्यालय (रायपुर) है। इंदिरा गांधी इंस्टिट्यूट ऑफ़ डेवलोपमेंट रीसर्च(मुंबई), इंदिरा गांधी इंस्टीटयूट ओफ टेक्नोलोजी, इंदिरा गांधी ट्रेनिंग कोलेज, इंदिरा गांधी इंस्टीटयूट ऑफ़ मेडिकल साइंस, इंदिरा जी इंस्टीटयूट ऑफ़ डेंटल साइंस जेसे कई शैक्षणिक संस्थाए है।
देश की राजधानी दिल्ली के इंटरनेशनल एअरपोर्ट का नाम भी इंदिरा गांधी इंटरनेशनल एअरपोर्ट है। भारत का सबसे मशूहर समुद्री पंबन ब्रिज का नाम भी इंदिरा गांधी रोड ब्रिज है। इस ब्रिज के अलावा देश भर के कई शहरो में बहुत सी सडको और चौराहों का नाम भी उनके नाम पर है।
इंदिरा गांधी के अवार्ड्स (Indira Gandhi Awards)
इंदिरा गांधी को 1971 में भारत रत्न से सन्मानित किया गया था। 1972 में इंदिरा गांधी ने बांग्लादेश को आजाद करवाने के लिए उन्हें मेक्सिकन अवार्ड से नवाजा गया। बाद में 1973 में सेकंड एनुअल मैडल एफएओ (2nd Annual Medal, FAO) और 1976 में नागरी प्रचारिणी सभा द्वारा हिंदी में साहित्य वाचस्पति का अवार्ड दिया गया। इंदिरा गांधी को 1953 में युएसए (USA) में मदर्स अवार्ड दिया गया था। इसके अलावा डिप्लोमेसी के साथ बेहतर कार्य करने के लिए इसल्बेला डी’ऐस्टे अवार्ड इटली (Isibella d’Este Award of Italy) मिला था। उन्हें येल यूनिवर्सिटी के होलैंड मेमोरियल प्राइज़ से भी नवाजा गया था।
1967 और 1968 में फ्रेंच इंस्टीटयूट ऑफ़ पब्लिक ओपिनियन के पोल (Poll) के अनुसार इंदिरा जी फ्रेंच लोगो की सबसे ज्यादा पसंद की जाने वाली महिला राजनेता थी।
1971 में युएसए (USA) के विशेष गेलप पोल सर्वे (Gallup Poll Survey) के अनुसार इंदिरा गांधी विश्व की सबसे ज्यादा सम्मानीय महिला थी। 1971 में ही पशु की रक्षा के लिए अर्जेटाइन सोसायटी ने उन्हें डिप्लोमा ऑफ़ ओनर से भी नवाजा किया।
इंदिरा गांधी का जीवन विश्व में भारत की महिला को एक बहादुर और सशक्त महिला के रूप में पहचान दिलाने वाला रहा है। इंदिरा गांधी के व्यक्तित्व को दो पक्षों में समझा जाता है, और इंदिरा जी के समर्थको की तरह उनके विरोधियो की संख्या भी काफी ज्यादा है। इंदिरा गांधी द्वारा के लिए गये कई राजनितिक और सामाजिक फैसले भी अक्सर चर्चा का विषय बने रहते है, मगर इस बात से इंकार नहीं किया जा सकता की इंदिरा गांधी के कार्य काल में भारत ने विकास के कई आयाम स्थापित किये थे, इंदिरा जी ने दुनिया पर भारत की छवि बदलकर रख दिया था।
Last Final Word :
दोस्तों हमारे आज के इस आर्टिकल में हमने इंदिरा गांधी की जीवनी के बारे में बताया है, जैसे की इंदिरा गांधी जन्म और परिवार , इंदिरा गांधी ने बनाई थी वानर सेना, इंदिरा गांधी की शिक्षा, इंदिरा गांधी विवाह और पारिवारिक जीवन, इंदिरा गांधी का राजनितिक करियर, कोंग्रेस प्रेसिडेंट के रूप में इंदिरा गांधी, इंदिरा गांधी की हत्या, इंदिरा गांधी से जुड़ी रोचक बाते, इंदिरा गांधी और फ़िरोज़ का रिश्ता कैसा था?, इंदिरा गांधी के नाम पर धरोहर और इंदिरा गांधी के जीवन से जुडी सभी जानकारी से आप वाकिफ हो चुके होंगे।
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