आज के नए दौर में भारत किसी भी क्षेत्र में किसी देश से पीछे नहीं है। भारत भी सभी देश से कंधे से कन्धा मिला कर चल रहा है और अपनी काबिलियत से पूरी दुनिया को चोका रहा है। भारत को आगे बढ़ते देख सभी देश हेरान हो गए है। एसा नहीं है की किसी एक क्षेत्र में ही भारत आगे है परन्तु सभी क्षेत्र में वो अपनी आगवी छाप छोड़ रहा है, चाहे वो खेल का क्षेत्र हो, विज्ञान का क्षेत्र हो, तकनिकी क्षेत्र, मेडिकल क्षेत्र, कृषि का क्षेत्र ही क्यों न हो हर क्षेत्र में भारत दुगनी तेजी से आगे बढ़ रहा है। भारत में आज सभी बच्चो को अच्छी शिक्षा मिल रही है जिसकी वजह से उनके अन्दर रही हुई खूबी उभरके बहार आ रही है। एसे समय में भारत अंतरिक्ष की दुनिया से केसे पीछे रह सकता है। भारत अंतरिक्ष की शोध होने वाले नई नई संशोधन में आगे आ गया है। उसकी वहज से भारत के नाम ने अंतरिक्ष की दुनिया में अपना नाम कर लिया है। भारत की हासिल की गई उपलब्धिओ को देख कर आज पूरी दुनिया हेरान हो गई है।
भारत को इस मुकाम पे लाने का पूरा श्रेय ISRO को जाता है। जिसकी वजह से हम आज सब हासिल कर सके है, पर हम मे से कितने लोग नहीं जानते है की ISRO क्या है? तो दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम आपको ISRO से जुडी सभी प्रकार की माहिती प्रदान करेगे।
ISRO भारत में स्थित अंतरिक्ष का एक संगठन है जो भारत के लिए अंतरिक्ष से जुड़े सभी प्रकार के कार्य करता है। ISRO दुनिया के अवलोकन ,गमन , पथ दर्शन , वातावरण सबंधित वर्ग , और आवकाश से जुडा विज्ञान के लिए उपग्रह बनाना और उस उपग्रह को प्रक्षेपण करने के लिए साधन को बनाने जैसे काम से जुडा होता है।
हाल के समय में ISRO अपनी अवकाश के विज्ञान की प्रतिभा को प्रदर्शित करके भारत का नाम और भी ऊँचाईयों पर ले जाने के लिए कार्य कर रहा है। उसके लिए भारत आज ISRO की मदद से चन्द्र पर अवकाशयान भेज कर वहा की सभी माहिती एकत्र करना चाहता है की जिससे आज भी किसी देश ने नहीं खोजा और सब उससे बेखबर है।
चलिए दोस्तों आज हम आपको ISRO की माहिती हिंदी में देंगे। आप ध्यान से इस आर्टिकल को पढ़ना आपको ISRO से जुड़े कुछ सवाल जेसे की आज तक ISRO ने कौन कौन से मुकाम हांसिल किए है, उसका इतिहास केसा रहा है, ISRO की Office कहा पर स्थित है, हाल के समय का अध्यक्ष कौन है जैसे मुद्दे के बारे में बात करेगे।
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ISRO क्या है? (What is ISRO)
ISRO क्या है ये जानने से पहले हमें ये पता होना चाहिए की उसका पूर्ण नाम क्या है। ISRO का फुल फॉर्म “Indian Space Research Organization” है। ISRO का कार्य भौगोल से जुडी हुई माहिती को एकत्र करना , गमन करना , प्रदर्शित करना , वातावरण से सबंधित सुचना, पथदर्शन,मानचित्रण, टेलीमेडिसिन और दूर के विस्तार तक शिक्षा को प्रधान करने के लिए बनाये गया उपग्रह शामिल है।
Indian Space Research Organization दुसरे विभाग DOS जिसे अंतरिक्ष विभाग कहते है उसके निचे कार्य करता है। जिसे भारत के प्रधानमंत्री के निगरानी में ध्यान रखा जाता है। उपरांत ISRO के अध्यक्ष भी DOS के Executive के पद पर कार्य करते है।
भारत के इस Indian Space Research Organization के द्वारा हासिल की गई कामीयाबी के आधार पर आज ISRO दुनिया के छः सरकारी अवकाशी एजेंसियों में अपना स्थान प्राप्त किया है जो खुद अपने उपग्रह को प्रक्षेप करनी की क्षमता रखता है। आज भारत को अपने उपग्रह को आवकाश में प्रक्षेपण करने के लिए किसी भी दुसरे देश की सहायता नहीं होती। यहाँ तक ISRO शुन्य आवकाश से कम तापमान पर भी काम करने वाले इंजन बना लिए है। इसरो पृथ्वी या उसके बहार के वातावरण में उपग्रह के प्रक्षेपण करने के लिए, उपरांत कुत्रिम रूप से तैयार किए गए उपग्रह को कैसे संचालित करना है उसके बारे में भी ISRO के पास सारी जानकारी है।
ISRO पूरा नाम हिंदी में (ISRO Full Form in Hindi)
ISRO यानि की Indian Space Research Organization को हिंदी में “भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन” कहा जाता है।
ISRO का मुख्यालय कहा है?
ISRO का कार्यालय अंतरिक्ष भवन जो की बेंगलोर में स्थित है।
ISRO की स्थापना कब हुई थी ?
ISRO की स्थपना कई साल पहले 15 अगस्त के दिन 1969 के साल में हुई थी।इसरो ने INCOSPAR (Indian National Committee for Space Research) की जगह पर कार्य करना सरू किया जिसकी स्थपाना 1962 में ही हो चुकी थी और फिर इसरो में उसका स्थान ले लिया। इसरो की स्थापना का पूरा श्रेय भारत के पूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नहेरु को जाता है उपरांत उसके लिए भारत के महँ वैज्ञानिक विक्रम साराभाई को भी समान रूप से श्रेय जाता है की जिन्हों ने भारत के लिए एसे महान संगठन की स्थापना की जिसने आज भारत का नाम आवकाश की ऊंचाई तक लेकर गए है।
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ISRO की 10 बड़ी उपलब्धिया (Top 10 Big Achievements of ISRO)
भारतीय अंतरिक्ष अनुसन्धान संगठन दुनिया के अवकाशी की संशोधन ने श्रेष्ठता प्राप्त की गए देश ने स्थान प्राप्त किआ है। ISRO बनने से पहले जो INCOSPAR था उसने आपना सर्व प्रथम रोकेट 1963 में लोंच कर दिया था। आप देख सकते है की उसकी स्थपना के कुछ ही साल में उसने अपना पहला रोकेट लोंच कर दिया था। साइकिल के द्वारा रोकेट को ले जाने से लेकर, प्रथम प्रयास में मंगल जैसे ग्रह पर बिना किसी परेशानी और दुसरे देश की मदद लिए पहोंचने तक की यात्रा ISRO ने एक बहुत ही लम्बा रास्ता पूर्ण किआ है। यहाँ पर ऐसे ही कुछ ISRO के द्वारा हासिल की गए सफलता आपके लिए प्रस्तुत की है।
INSAT की लॉन्चिंग:
ISRO की सबसे पहले के Mission के रूप में INSAT का नाम सबसे आगे है। चलिए जानते है की उसका पूरा नाम क्या है, INSAT का फुल फॉर्म Indian National Satellite System होता है। यह उपग्रह एशियाय विस्तार और पसिफ़िक विस्तार के कुछ प्रकार के गृह के संचार के कार्य से जुड़े उपग्रह की System है। इसमें नौ तरह संचार के लिए उपग्रह को शामिल किया गया था। जिसे खास प्रकार के Geostationary orbit में रखने में आया था। इनकी नियुक्ति 1983 के साल में प्रदर्शित, दूरसंचार, वातावरण कि अभिधारना संशोधन और बचाव अभियान, अवकाश विज्ञान और आने वाली विपत्ति की पहेले से ही दे जाने वाली चेतावनी जैसे आवश्यक को पूर्ण करने के लिए की गई थी। INSTAR के प्रक्षेपण के साथ ही भारत में संचार के कार्य में एक बड़ी सिध्धि हासिल कर ली थी।
SRE-1
SRE-1 का फुल फॉर्म Space Capsule Recovery Experiment है।SRE-1 इसरो द्वारा की गई बड़ी सफलता में से एक है। Space Capsule Recovery Experiment का प्रक्षेपण सतीश धवन स्पेस सेंटर के पहले ही प्रक्षेपण स्थान पर से जो आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा स्थित है वहा से 10 जनवरी के दीन 2007 के साल में किया गया था। उसके प्रक्षेपण के लिए PSLV C7 रॉकेट का उपयोग किया गया था। जिसके अन्दर दुसरे तिन और उपग्रह भी शामिल थे। इस पूरी Mission का मकसद केवल प्रक्षेपित किये गये उपग्रह के space capsule को तरासना था। Capsule को पृथ्वी के वातावरण में दाखिल होने के लिए 12 दिनों तक पृथ्वी की परिक्रमा आवकाश में करनी पड़ी थी। इसके अन्य वैज्ञानिक लक्ष में मार्गदर्शन का नियमन करना , पथदर्शन , संचार करने के लिए प्रबंध करना और दुसरे प्रोजेक्ट भी शामिल थे।
RLV का विकास:
RLV का पूरा नाम कुछ इस प्रकार है : Reusable Launch Vehicle (RLV), RLV को ISRO द्वरा किये गये सफल प्रयासो में से ज्यादा ख्याति प्राप्त करने वाले मिशन में से एक है। NASA की तरफ के इसरो को कम बजेट और कुछ प्रकार की चिजे की आज़ादी नहीं मिलती है। इसकी वजह ISRO की यह प्रयास रहता है की थोड़े ही व्यय में ज्यादा से ज्यादा उत्पादन कर सके। इसी लक्ष के साथ RLV की प्रगति की गई है जी की ISRO ले लिए ज्यादा आवश्यक साबित हुई है। उसे एक नमूने के तौर पे प्रस्तुत किया गया है। जिसका परीक्षण करना जरुरी था इस लिए 23 के दिन 2016 के साल में उसका परीक्षण करने में आया था। उसके परीक्षण में जैसे ही हरी झंडी बताई गई उसके साथ ही रोकेट के साथ साथ ISRO के विज्ञानिक और अवकाशी संशोधन के क्षेत्र में भारत ने भी उड़ान भर ली थी। और उसके बाद इसरो को कई सारी सफलता मिली।
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भारत का पहला सॅटॅलाइट आर्यभट्ट
ISRO के प्रथम सफलता प्राप्त करने वाले उपग्रह का नाम भारत के महान वैज्ञानिक जिन्हों ने खगोल विज्ञान के क्षेत्र में आपना योगदान दिया था उसके नाम पर रखा गया है। इस उपग्रह को Kosmos-3M नाम के एक रसियन रोकेट के साथ ही 19 अप्रैल के दिन 1975 के साल में Kapustin Yar, Astrakhan Oblast के स्थल से प्रक्षेपित किया गया था। यह उपग्रह 17 साल तक अवकाशी वातावरण में रहा था। इसके बाद यह उपग्रह 10 जनवरी के दिन 1992 साल में फिर से पृथ्वी के वातावरण में प्रवेश किया था। जब की मार्च 1981 के दिनों में ISRO से उससे आने वाले सभी संचार ख़त्म हो गए थे। आर्यभट्ट उपग्रह को अवकाश में प्रक्षेपित करने का मुख्य लक्ष X-RAY खगोल विज्ञान, एरोनोटिक और सूर्यमंडल की भौतिकी में किये गए प्रयोग का नियमन करना था|
2015 में सबसे बड़ा कमर्शियल लॉन्च
ISRO के द्वारा सबसे बड़ा व्यावसायिक Mission को प्रक्षेपित कर के आपने नाम को एक नई सिध्धि हासिल कर रिकॉर्ड बना दिया था। इस उपग्रह का प्रक्षेपण सन 2015 में किया था। Polar Satellite Launch Vehicle-C28 (PSLV-C28) का वजन 1440 किलोग्राम का था जिसके साथ उसको 10 जुलाई के दिन 2015 की साल में प्रक्षेपित किया गया था। इस अंतरिक्षयान के साथ अन्य पाच उपग्रह भी थे जो कि ब्रिटिश के देश के थे जिसे ISRO और एंट्रिक्स कोरपोरेशन के द्र्वारा नियमन करने में आया था। इस spacecraft ने सतीश धवन स्पेस सेंटर से सिर्फ 19 मिनिट 22 सेकंड जेसे कम समय में 647 किलोमीटर जितना अन्दर काट लिया था। इस अंतरिक्षयान का वजन अभी तक भेजे जाने वाले सभी यान के वजन से ज्यादा भार का था।
चंद्रयान -1
ISRO के द्वारा किये गए सभी अवकाश से सबंधित खोज करने की कार्यप्रणाली को इस चंद्रयान -1 के Mission के बाद पूरी तरह से बदलाब आ गया था। चंद्रयान -1 कार्यक्रम के अधीन भारत का प्रथम चाँद से सबंधित खोज है जिसे अक्टूबर 2008 में प्रक्षेपित किया गया था। इस Mission में चंद्र्प्रभाव और ऑर्बिटल का शामिल होता था और आगे अगस्त 2009 तक कार्यवाही भी शामिल थी। इस उपग्रह को प्रक्षेपित करना का मुख्य लक्ष चाँद में रहे खनिज के विज्ञान, भू-विज्ञान और टोपोग्राफी का पता लगाना था जिसके बारे में किसी देश को माहिती नहीं है। जब की Mission को सम्पूर्ण किया गया था पर कई सारे ऐसे भी लोग है जो इस Mission को सफल नहीं मानते है। उसका कारण यह है की ISRO ने एक साल पूर्ण होने से पहेले ही अवकाशीयान से सम्पूर्ण संपर्क खो दिया था। इसी कारण से कई सारे लोग में इसे सफल मानने से मुकरते है।
एक साथ 104 Satellites की लॉन्चिंग
ISRO के द्वारा बनाया गया पहला रिकॉर्ड जो सबसे बड़ा व्यावसायिक के लिए प्रक्षेपित करना था उसके बाद ISRO ने एक नया रेकॉर्ड बनाया जो एक ही Mission के आधीन 104 उपग्रह के प्रक्षेपण का था जो इसरो द्वारा बनाया गया दूसरा सबसे बड़ा रिकॉर्ड है। एक ही समय पर ज्यादा संख्या में उपग्रह की इस प्रक्षेपण को 2017 के साल में श्रीहरिकोटा शहर से भारतीय रॉकेट Polar Satellite Launch Vehicle के द्वारा प्रक्षेपित किया गया था। इन उपग्रह ने 101 उपग्रह थे जोकि दुसरे देश के थे। एक ही प्रयास में इतने सारे उपग्रह को ऑर्बिट में पहुचने की सफलता मिलि थि। ये सबसे बड़ी सफलता थी।
GSLV MK3
GSLV MK3 का पूर्ण नाम Geosynchronous Satellite Launch Vehicle Mark III होता है। यह ISRO ने बनाया हुआ एक तिन स्तर का भरी प्रक्षेपण यान है , जिसकी रचना चन्द्रयान -2 के लिए आवकाश यान के रूप से की गई थी। यह इसरो का सबसे ज्यादा वजक को एक ही बारी में ले जा सके उतनी काबिलियत रखने वाला रोकेट था, जो की एक बारी में 400 किलोग्राम जितना वजन आवकाश में ले जाने में सक्षम है। इस के आलावा यह 3 आवकाश यात्री को भी ले जाने के लिए शक्तिशाली है। ISRO की यह अविष्कार सबसे बड़ी उप्लाब्ध्धि है क्यों भारत से भी ज्यादा विकसित देश के विज्ञानीक भी एसा नहीं कर पाए है।
मंगलयान या MOM
MOM का पूर्ण नाम कुछ इस प्रकार है : Mars Orbiter Mission इस के अलावा इसे मंगलयान का नाम भी दे सकते है। इसकी रचना मंगल गृह की परिक्रमा करके उसके अवकाशी तत्व की जाँच करना था। मंगल ग्रह तक जाना किसी भी देश चाहे उसकी पास कीसी भी टेक्नोलोजी क्यों न हो सबके लिए ये कार्य बहुत ही मुश्किल है। भारत के लिए गर्व की बात है की हमने पहली ही कोशिश में मंगल ग्रह तक अपना अवकाशीयान को पंहुचा दिया था। और ये कार्य उन्होंने केवल 400 करोड़ जैसी छोटी रकम के साथ पूर्ण किया था। जो कि अभी तक का सबसे कम रकम में पूर्ण किया गया Misssion था। मंगल पर पहोचते ही भारत ने मांग पर पहोचने वाले देश अमेरिका, रूस और युरोप के साथ अपनी जगह 4 स्थान हासिल कर ली थी।
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IRNSS की लॉन्चिंग
IRNSS का मतलब :Indian Regional Navigation Satellite System (IRNSS) होता है। यह भारत का एक आज़ाद रूप से पथ दर्शन उपग्रह की कार्यप्रणाली के लिए तैयार किया गया था। जिसकी मदद से भारत के सभी नागरिक को सभी सही माहिती को प्राप्त करवाना था। IRNSS के प्रक्षेपण के बाद भारत दुनिया के 5 वे स्थान पर पहुच गया था जिसकी खुद की एक पथ दर्शन की कार्यप्रणाली थी। इस कुत्रिम उपग्रह की कार्यप्रणाली को ओउर्ण करने के लिए 7 दुसरे उपग्रह को भी प्रक्षेपित किया गया था। इसका कार्य ISRO ने 29 अप्रेल के दिन 2016 के साल में पूर्ण किया था।भारत के लिए यह एक बड़ी झुशी की बात है की उसने इसी सफलता हासिल की जिसकी वजह से भविष्य के लिए आसानी होंगी और इस बात से देश के नागरिको को भी गर्व होता है।
2020 में ISRO की नई उपलब्धिया:
2020 में हिंदुस्तान ने 3 अवकाशयान को प्रक्षेपित किया है जो आपको निचे बताये गए है :
- GSAT-30
- EOS-01
- CMS-01
1.GSAT-30
GSAT-30 को 17वें दिन 2020 के साल में Geosynchronous Transfer Orbit (GTO) प्रक्षेपित करने में सफलता मिली थी। GSAT-30 को Kourou launch base, French Guiana से Ariane-5 VA-251 के प्रक्षेपण साधन के साथ प्रक्षेपित किया गया। यह हिंदुस्तान का दूरसंचार उपग्रह है जिसका प्रक्षेपण करने का इरादा INSAT-4A की जगह पर करने का और उसके नेटवर्क को ज्यादा करना था।
GSAT-30 को इसरो के 1-3K Bus की रचना में संयोजित किया गया था जिसकी मदद से भू- तुल्यकालि कक्षा से C और KU band में संचार की सेवा को सभी की देने के लिए किया जाए।
2. EOS-01
EOS-01 का सफलता पूर्ण प्रक्षेपण श्रीहरिकोटा के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से 07 नवम्बर के दिन 2020 के साल में Low Earth Orbit (LEO) किया गया था। इसे प्रक्षेपित करने की लिए PSLV-C49/EOS-01 प्रक्षेपित साधन का उपयोग किया गया था| इसकी रचना खेती , वन विभाग के विज्ञानं , और विपत्ति के पुर्वधारणा के लिए पृथ्वी के आवलोकन करने के लिए भारत के द्वारा प्रक्षेपित किया गया था।
3. CMS-01
CMS-01 का सफलता पूर्ण प्रक्षेपण 17 दिसम्बर 2020 के साल में श्रीहरिकोटा से सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से PSLV-C50/CMS-01 के प्रक्षेपित साधन की मदद से Geosynchronous Transfer Orbit (GTO) में किया गया था। यह हिंदुस्तान का संचार उपग्रह है जिसकी रचना आवृतिके वर्णक्रम के विस्तार C bands की सेवाए देने के लिए प्रक्षेपित किया गया था। जिसकी मदद से हिन्दुस्तान के मुख्य भूमि , अंदमान निकोबार और लक्षद्वीप द्वीप समूह को शामिल किया गया है। CMS-01 India का 42 वा संचार करने के लिए बनाया गया उपग्रह है।
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इसरो का इतिहास (History of ISRO in Hindi)
भारत देश में अवकाश के अनुलक्षी खोज करने की शरुआत करीब 1960 के दायके में हो चुकी थी जब की तभी तक अमेरिका जैसा देश जो दुनिया में आगे के देश में से एक है उसके भी इस क्षेत्र में अभी तक सिर्फ प्रयोग के स्तर पर ही पहोचा था। अमेरिका के द्वारा बनाये गए उपग्रह ‘Syncom- 3’ जो की प्रशांत महासागर के क्षेत्रो में आयोजित की जाने वाले टोक्यो ओलंपिक के खेलो का पेसिफिक महासागर के विस्तार में से सीधा प्रसारण कर आपने उपग्रह की शक्ति को दुनिया के सामने रखा था। जिसे देख के भारत के महान विज्ञानी डॉ विक्रम साराभाई, जिन्हें हिंदुस्तान के आवकाशी खोज का जनता कहा जाता है उन्हो ने भारत देश के लिए अवकाशी तकनीक के लाभ को जल्दी पहचान लिया था।
इस घटना के बाद डॉ. विक्रमसारा भाई को यकीन हो गया था की अंतरिक्ष में की जाने वाली खोज की मदद से सामान्य जनता को और समाज की सारी मुश्केलिओ का हल निकाला जा सकता है और उसकी मदद से हम उसे ख़त्म भी कर सकते है। डॉ विक्रम साराभाई जो अहमदाबाद में आये हुए Physical Research Laboratory (PRL) के अध्यक्ष थे उन्हों ने दुनिया भर के सभी अलग अलग विस्तार में बसे हुए काबिल और बुध्धिमान वैज्ञानिको , मनोवैज्ञानिको , संचारको पर समाजवैज्ञानिक को खोज निकाला और एक संगठन के रूप में उन सबको भारतीय अंतरिक्ष के कार्यप्रणाली का हिस्सा बनाया। ऐसा करने से भारत के पास उत्कृष्ट वैज्ञानिको की सेना अपनी शक्ति दिखाने के लिए तैयार थी।
भारत के इस अन्तरिक्ष के जुड़े कार्य करने की प्रक्रिया की शरुआत लयाबध्ध रूप से हो चुकी थी और इसमें तिन प्रकार के भिन्न भिन्न तत्व को शामिल किया गया था जिसमे संचार , दूरस्थ संवेदन और अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली और आवेदन कार्यक्रम के उपग्रह को शामिल किया गया था। साल 1962 में INCOSPAR (Indian National Committee for Space Research) की शरुआत हुई थी। जिसका नेतृत्व डॉ. साराभाई और डॉ. रामानाथन ने किया था।
भारत के प्रथम Experimental Satellite Communication Earth Station (ESCES) की स्थापना साल 1967 में अहमदाबाद शहर में की गई। उसके साथ ही हिंदुस्तानी और आन्तररास्ट्रीय संशोधको को और इंजिनीअर को पूर्व शिक्षा देने का काम की भी शरुआत हो गई थी।
ISRO ने ये साफ कर दिया था की देश के विकास के लिए कुत्रिम उपग्रह की कार्यप्रणाली बहुत ही फायदे मंद साबित हो सकती है। ISRO के मुताबिक पूर्वप्रयोग के विकास के लिए भारत में बने उपग्रह की प्रतीक्षा करने की जरुरी नहीं है क्योकि दुसरे देश के द्वारा बनाये गए उपग्रह का उपयोग करके हम अनुप्रयोग कर सकते है।
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ये बात को नकारा नहीं जा सकता है की एक सुविकसित उपग्रह के कार्य की जाँच करने से पहले , देश की उन्नति के लिए दूरदर्शन माध्यम की सामर्थ्य को सिध्ध करने के लिए कुछ नियंत्रित परिक्षण को जरुरी समजा गया। इसके अलावा कृषि से जुडी माहिती के लिए एक T.V कार्यक्रम “कृषि दर्शन” का आरम्भ करने में आया था जिसे बहुत अच्छी प्रतिक्रिया मिली थी उस समय में।
भारतीय अवकाशी अनुसंधान संगठन ने साल 1969 में त्वरित रूप से INCOSPAR का अधिग्रहण किया गया था। सन 1975-1976 में दुनिया के सामने सबसे बड़ा समाजशास्त्रिय परिक्षण के लिए ISRO ने आपना कदम आगे बढाया जो की Satellite Instructional Television Experiment (SITE) के रूप में था। इस प्रयोग के आधार से करीब 6 राज्यों के 2400 गाव में 200000 जितनि जनता को लाभ हुआ और American Technology Satellite (ATS-6) का उपयोग करते हुए उन्नति के आधार पर कार्यक्रम का संचार किया गया था। उसके के साथ ही SITE के आधार पर प्राथमिक शाला के करीब 50,000 विज्ञान के शिक्षक को भी पढाया गया था।
ISRO और Post and Telegraphs Department (P&T) की संयोजित पूर्व योजना Satellite Telecommunication Experiments Project (STEP) की शरुआत करीब साल 1977 से 1977 में दौरान Franco German Symphonie satellite का उपयोग करके की गई थी जो कि SITE के बाद की गई थी। SITE को दूरसंचार के कसोटी के लिए बनाया गया था। जिसका मार्गदर्शन भू-तुल्यकालिक उपग्रह का उपयोग करते हुए ग्रुह के संचार के लिए पध्धति का परिक्षण अदा करना, अलग अलग भूखंड सुविधा, बनावट, स्थापना , प्रचालन और रखरखाव में खूबीओ और तजुर्बे को प्राप्त करना है और भारत के लिए प्रस्तावित प्रचालनात्मक गृह से जुड़े उपग्रह की कार्य प्रणाली, INSAT के लिए जरुरी आपने देश की योग्यता का निर्माण करना था।
गुजरात में स्थित खेडा जीमे में उसके आवश्यकता के अनुरूप और स्थानिय प्रोग्राम के सीधे संचार के लिए एक क्षेत्र प्रयोगशाला के रूप से कम करना शरु किया था जिसका नाम “Kheda Communication Project (KCP)” रखा गया था जीसकी SITE के बाद शरुआत की थी। साल 1984 में KCP को UNSCO-IPDC द्वारा काबिल ग्रामीण प्रसारण के लिए प्रोत्साहित लिया गया था।
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जब इसकी रचना हो रही थी तब भारत के प्रथम अवकाशीयान ”आर्यभट्ट” का भी विकाश पूरा हो गया है। सोवियत लांचर का उपयोग करते हुए इसे प्रक्षेपित किया गया था। जिसे 40 कीलोग्राम जितने वजन के साथ निचे के भू स्तर से भी स्थापित किया जा सकता है। जिसकी प्रथम सफल उड़न साल 1980 में भरी थी।
SLV के कार्यक्रम के जैसे ही , पूर्ण रूप के साधन की बनावट, Mission का निर्माण, सामग्री, लोहे से बनी चीज की रचना, ठोस प्रोपल्शन टेक्नोलॉजी, उर्जा संयंत्र का नियमन, उद्द्यंकी, वाहन को जमा करना और प्रक्षेपण के Mission के लिए योग्यता की रचना करना है।
80 के दौर में कसोटी करने के समय पर, उपभोग्ता के लिए , मददगार Ground कार्यप्रणाली के साथ अंतरिक्ष कार्यप्रणाली की बनावट , उन्नति , तथा कक्षीय प्रबंध ने शरुआत से लेकर अंतिम तक योग्यता का प्रदर्शन किया गया। भास्कर I और II, कुत्रिम उपग्रह जो की remote sensing के क्षेत्र में उमदा कदम थे। भविष्य के प्रदर्शन के उपग्रह के कार्यप्रणाली के लिए Ariane Passenger Payload Experiment (APPLE) आगे बढ़ कर आया था।
मुश्किली से Augmented Satellite Launch Vehicle (ASLV) के उन्नति ने भी नई टेक्नोलॉजी का संचार किया जैसे की strap-on का उपयोग , बल्ब नुमा ऊष्मा कवच, बंध लूप मार्गदर्शन और बनावटी ऑटोपायलट। जिसमे मुश्किल Mission के लिए प्रक्षेपण का साधन की बनावट की कई छोटी छोटी बातो के बारे में जानने का अवसर मिला, जिससे PSLV और GSLV जैसे Mission के प्रक्षेपण के लिए वाहन का नियमन संभव हुआ।
90 के दौर में प्रचालनात्मक के समय, 2 व्यापक श्रेणी के आधार पर मुख्य आवकाशी अवसंरचना कि शरुआत की थी। इसमे से एक का उपयोग INSAT के आधार से प्रदर्शन किया, प्रसारण और वातावरण से जुड़े विज्ञान के लिए किया गया था। जिसमे से दुसरे का उपयोग IRS के कार्यप्रणाली के लिया गया था। इसके विशेष सिध्धि में ध्रुवीय कुत्रिम उपग्रह प्रमोचक रोकेट PSLV तथा भूतुल्यकाली उपग्रह प्रमोचक रॉकेट (GSLV) की उन्नति और प्रदर्शन शामिल किया गया था।
ISRO से संबंधित FAQs :
1. इसरो के वर्तमान अध्यक्ष कौन हैं?
ISRO के हाल के अध्यक्ष कैलासवादिवु सिवन (K.Sivan) है। जिनका जन्म 14 अप्रेल के दिन 1957 के साल में हुआ था। ISRO के अध्यक्ष बनने से पहले उन्हों ने विक्रम साराभाई अवकाशी संगठन और तरल प्रणोदन योजना के अध्यक्ष के स्थान पर कार्य किया था।
2. भारत के प्रथम अंतरिक्ष यान का नाम?
ISRO के द्वारा बनाया गया पहेला अवकाशी यान का नाम भारत के महान भुगोलशास्त्र ”आर्यभट्ट ” के नाम से रखा गया है। जिसकी रचना सम्पूर्ण तरीके से भारत में ही बनाया गया था। आर्यभट्ट का प्रक्षेपण 19 अप्रैल के दिन 1975 के साल में किया गया था। जिसका प्रक्षेपण स्थान Kapustin Yar था और Soviet Kosmos-3M रॉकेट के मदद से किया गया था।
3. भारत के प्रथम रॉकेट का नाम?
ISRO के द्वारा बनाया गया प्रथम स्वदेशी रोकेट RH-75 था। जिसका अर्थ रोहिणी होता है। 75 रोकेट का व्यास mm में था।
4. इसरो पैसे कैसे कमाता है?
ISRO खुदने प्राप्त की कमाई का सबसे ज्यादा हिस्सा उपग्रह से मिलती माहिती को बेचकर , INSAT/GSAT परिवहन को पट्टे पर देने के साथ साथ ही भिन्न भिन्न दूसरी सेवाओ से लेता है। जैसे की Indian Remote Sensing Satellite से राष्ट्र के साथ साथ दुसरे देश के कारोबार को माहिती की मार्केटिन और प्रत्यक्ष रूप से आवकार और INSAT / GSAT उपग्रह परिवहन के पट्टे शामिल किये गए है।
इसी समय पर Antrix ने कई सरे देश जैसे की मध्यपूर्व और दक्षिण पूर्व एशिया ,यूरोप में स्थित EADS, Astrium, Intelsat, Avanti Group, WorldSpace और Inmarsat जैसे कई सारे दुसरे नये अंतरिक्ष संगठन के साथ समझौता कर लिया था।
ISRO की व्यावसायिक शाखा के नाम Antrix Corporation Limited है। जिसका कार्य बनावट, सेवा करना और प्रौद्योगिकियों को प्रमोट करना हैं। अंतरिक्स एक प्रकार का सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रम (Public Sector Undertaking = PSU) है। उसका संपूर्ण तकेदारी भारत सरकार के द्वारा होती है।
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5. इसरो के प्रथम अध्यक्ष कौन थे?
भारत के महान वैज्ञानिक डॉ. विक्रम साराभाई जो भारत के अंतरिक्ष के क्षेत्र में सबसे आगे रहे है वो ISRO के सबसे पहले अध्यक्ष थे।
6. विश्व में इसरो का स्थान?
विश्व में ISRO USA, China, यूरोप और russia के बाद 5वे स्थान पर आता है।
7. इसरो का हेडक्वार्टर कहां पर है?
भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) का मुख्य कार्यालय बंगलौर में आया हुआ है।
8. इसरो किस आयोग के नियंत्रण में है?
ISRO को अवकाशी संगठन के नियमन में रखा गया है।
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Last Final Word :
दोस्तों ये थी ISRO के बारे में पूरी माहिती जो की हिंदी में दी गई है। हमें आशा है की आपके लिए ये आर्टिकल फायदेमंद रहा होंगा और आपके सभी प्रकार के प्रश्न के उत्तर आपको मिल गये होंगे। हमने पूरी कोशिश की है की ISRO की पूर्ण माहिती आपको सरलता से पता चल सके ताकि आपको दूसरी जगह पर इसके बर्रे में खोज करने की जरुरत न रहे।
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