जलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर का इतिहास

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भारत वर्ष के इतिहास में अकबर को आज कौन नही जानता है, अकबर एक बादशाह थे जो दिल्ली सल्तनत पर राज करते थे, जो पुरे हिन्दुस्तान पर हुकुम चलाना चाहते थे। जलालुदीन मोहम्मद अकबर जिनके पिता नसीरुद्दीन हुमायु थे। आज के हमारे इस आर्टिकल में हम आपको अकबर का इतिहास के बारे में जानकारी देंगे।

अकबर का आरम्भिक जीवन

14 अक्टूबर 1542 अकबर का जन्म हुआ था ऐसा माना जाता है। अकबर का जन्म तैमुर राजवंश के तीसरे शासक के रूप में हुआ था। अकबर को कई विभिन्न नाम से भी जाना जाता है जिसमे अकबर ए आजम, शहंशाह अकबर, महाबली शहंशाह इत्यादि मुख्य है। अकबर के पिता का नाम नसीरुद्दीन हुमायु और उनके पिता का नाम जहीरुद्दीन महम्मद बाबर था और अकबर की माता का नाम हमीदा बानो था। ऐसा कहते है की अकबर चंगेज खा के वंशज थे। अकबर ही सिर्फ एक ऐसा राजा है जिन्हें मुस्लिम के साथ हिन्दू वर्ग से भी काफी प्यार मिला था। बादशाह अकबर ने हिन्दू और मुस्लिम का भेदभाव दूर करने के लिए “दिन ए इलाही” जेसे ग्रंथ की रचना भी की है, राज्य की जनता के लिए अकबर का दरबार हमेशा के लिए खुला रहता था। जब अकबर ने राज्य सभाला तब वे केवल 13 वर्ष के थे, एक सम्राट के रूप में अकबर ने राजपूताने के राजाओ से राजनितिक और वैवाहिक सबंध स्थापित किये थे।

बिन्दूजानकारी
पूरा नामजलाल उद्दीन मोहम्मद अकबर
पिता का नामनसीरुद्दीन हुमायूँ
माता का नामहमीदा बानो
जन्म स्थानअमरकोट पाकिस्तान
वंशजतैमूर वंश
उपाधियांअकबर-ए आज़म, शहंशाह अकबर

अकबर का जन्म कहाँ हुआ था? (Akbar’s Born Place)

बादशाह अकबर का जन्म 23 अक्टूबर 1542 के वर्ष राजपूत शासक राणा अमरसाल के महल उमेरकोट यानि पाकिस्तान में हुआ था। अकबर का जन्म पूर्णिमा के दिन में हुआ था इस वजह से अकबर के पिता ने अकबर का नाम बदरुद्दीन मोहम्मद अकबर रख दिया। बाबर का वंश तैमुर और मंगोल नेता चंगजे खां से था यानि उसके वंशज तैमुर के खानदान से था और मातृपक्ष का सबंध चंगेज खां से था। इस प्रकार अकबर के खून में एशिया की दो सुप्रसिद्ध जातिया तुर्क, और मंगोल के खून का सम्मिश्रण है। अकबर के पिता हुमायु किसी कारण अज्ञातवास बिताना पड़ा था लेकिन वे अकबर को अपने साथ नही ले गये थे, हुमायु ने अकबर को मुकुदपुर गाम में छोड़ दिया था। अकबर का वहा पे एक राजकुमार से मित्रता हो गई जिसका नाम राम सिंह प्रथम था। कालिंतर में अकबर सफावी साम्राज्य में अपने चाचा मिर्जा अस्करी के यहाँ रहने लगा। अकबर पढ़ लिख नही सका उनका सारा समय अखाड़े, दौड़, कुश्ती आदि में बिता है उनकी रूचि शिक्षा में कम थी अकबर की रूचि कबूतर बाजी, घुड़सवारी और कुते पालने में अधिक थी लेकिन ज्ञानोपार्जनमें उनकी रूचि बिलकुल नही थी।

अकबर का राजतिलक कब हुआ था?

हुमायु ने 1555 में दिल्ली पर पुनः अधिकार स्थापित किया था। इसमें उनकी सेना में एक अच्छा भाग फारसी सहयोग ताहमस्प प्रथम का रहा है। इसके कुछ समय के बाद 48 साल की आयु में ही हुमायु का अवसान हो गया तब अकबर के संरक्षक बैरम खां ने साम्राज्य के हित के लिए अकबर को तैयार किया। उतराधिकारी के रूप में 14 फरवरी 1556 को अकबर का राजतिलक हुआ। ये सब मुग़ल साम्रज्य से दिल्ली की गद्दी पर अधिकार की वापसी के लिए सिंकन्दर शाह सूरी से चल रहे युद्ध के दौरान ही हुआ था। मात्र 13 वर्ष की उम्र में अकबर राजा बने थे।

 अकबर की शादी कब हुई थी? (Akbar’s Marriage)

अंबर के कछवाहा राजपूत राजा भारमल ने अकबर के दरबार में अपना राज्य संभालने के कुछ समय बाद ही प्रवेश पाया था। राजा भारमल ने अपनी राजकुमारी हरखा बाई का विवाह अकबर से करवाने का स्वीकार किया, विवाह के बाद हरखा बाई मुस्लिम बनी और मरियम उज जमानी कहलायी। हरखाबाई ने राजपूत परिवार को सदा के लिए त्याग दिया, हरखा बाई की मृत्यु 1623 में हुई थी। उनके पुत्र जहागीर द्वारा हरखा बाई सम्मान में लाहौर में मस्जिद बनवाई गई थी। अकबर की पहली शादी 1551 में हुइ थी। अपने चाचा की बेटी के साथ जिसका नाम रुकैया बेगम था। रुकैया बेगम अकबर की पहली और मुख्य पत्नी थी इसके बाद अकबर ने कही राजकुमारियो से शादी की जिसमे सुल्ताना बेगम, और जोधाबाई भी शामिल है।

अकबर का साम्राज्य विस्तार (Akbar’s Empire Expansion)

अकबर अपने राज्य का विस्तार पुरे हिन्दुस्तान में करना चाहता था अकबर के सैन्य अभियानों और राज्य विस्तार के बारे में निम्न लिखित पढ़ सकते है।

दिल्ली आगरा पर विजय 

बादशाह अकबर के शासक बनने के बाद यह अकबर की सबसे पहली विजय थी जो 1556 इ.में हुई थी। अकबर के पिता हुमायु की मृत्यु के बाद तब अकबर के पास पंजाब का एक छोटा क्षेत्र था। अकबर ने अपने राज्य विस्तार को लेकर यह पहला युद्ध किया था। इस युद्ध को पानीपत के युद्ध से भी जाना जाता है यह युद्ध अकबर और हेमू के बिच में हुआ था, जिसमे अकबर ने जित हांसल कर दिल्ली और आगरा पर अधिकार पाया था।

ग्वालियर, अजमेर, जौनपुर

अकबर ने दिल्ली और आगरा की विजय के बाद अकबर ने 1556 और 1560 के बिच ग्वालियर, अजमेर और जौनपुर पर भी विजय प्राप्त किया और उन राज्य को मुग़ल साम्राज्य में मिला दिया।

अकबर की गौंडवाना विजय

बादशाह अकबर ने अपने राज्य का और विस्तार करने के लिए गोंडवाना के शासक वीर नारायण के साथ भी युद्ध किया। इस युद्ध में भी अकबर ने विजय प्राप्त की थी। वीर नारायण अल्पसंख्यक था, जिसके कारण उसकी मां उसकी देखभाल करती थी। वीर नारायण की मां एक कुशल प्रशासक होने के साथ-साथ वह एक श्रेष्ठ सेनापति भी थी।

चितौड के राजा से सामना 

1567 इ. में अकबर ने अपने राज्य विस्तार में राजपूत के क्षेत्र को भी अपनी और शामिल कर लेने का सोचा। अकबर पहले चितौड पर आक्रमण नही करना चाहता था वहां की सामाजिक स्थिति और राजनितिक प्रतिष्ठा से काफी प्रभावित था। चित्तोड़ के शासक महाराणा प्रताप को यह बिलकुल भी मंजूर नही था की वह मुग़ल साम्रज्य में मिल जाए।

काफी समय तक कोशिश चली रही और आखिर में चितौड पाने के लिए अकबर और महाराणा प्रताप के बिच में हल्दीघाटी का युद्ध हुआ। इस युद्ध में किसकी विजय हुई, इस बात को लेकर आज भी मतभेद है। पर यह कहा जा सकता है की बाद में यह राज्य मुग़ल शासक के अधीन आया था।

राजपूतो के अन्य राजा पर विजय 

चितौड पे विजय पाने के कुछ समय बाद रणथंभोर, कालिर्जर, जोधपुर, जैसलमेर और बिकानेर जैसे राज्य भी अकबर ने विजय प्राप्त की थी, इन सभी बात से ऐसा कहा जाता है की अकबर एक विस्तारवादी राजा था।

गुजरात पर विजय  

अकबर के उतर भारत में विजय प्राप्त करने के बाद अकबर को अब मध्य भारत और दक्षिण भारत में भी अपना राज्य विस्तार करना था। 1574 में अकबर गुजरात की और बढ़ा। अकबर और गुजरात शासक के बिच युद्ध बिलकुल भी नही हुआ बल्कि गुजरात शासक ने अकबर की अधीनता युही स्वीकार कर ली थी। जब पहली बार अकबर गुजरात से चला गया तो मुर्फ्फाशन ने अपने राज्य को ओर एक बार स्वतंत्र घोषित कर दिया उसके बाद फिर अकबर ने चढ़ाई की और इस बार मुफ्फर शाह हार गया।

बंगाल पर विजय

गुजरात में विजय प्राप्त करने के बाद अकबर एक बार फिर पश्चिम बंगाल की ओर रुख किया, उस समय वहाँ का शासक  बादशाह सुलेमान था।बादशाह सुलेमान ने अकबर के डर से ही अकबर की अधीनता का स्वीकार कर ली थी। इसके बाद सुलेमान की मृत्यु के बाद फिर उसके पुत्र ने एक स्वतंत्र राज्य की घोषणा कर दी। जिसके बाद 1574 में अकबर ने इसके विरोध में एक बार फिर बंगाल पर आक्रमण किया और सुलेमान के पुत्र दाऊद खां को हरा दिया और एक बार फिर बंगाल मुगल साम्राज्य का भाग बन गया।

 काबुली विजय 

मिर्जा मुहम्मद हाकिम अकबर का सोतेला भाई था, जो खुद भारत पर हुकुमत करना चाहता था। 1558 में जब अकबर ने काबुली पर अधिकार करना चाहा तो काबुल पर उसके भाई मिर्जा मुहम्मद हाकिम का शासक था। अकबर ने उसके खिलाफ कार्यवाही की और उसके खिलाफ युद्ध किया। इस युद्ध में भी अकबर को विजय मिली उसके बाद अकबर ने अपने भाई को वे राज्य वापस कर दिया। हाकिम की मृत्यु के बाद फिर से अकबर ने अपने मुग़ल साम्रज्य में काबुल मिला दिया।

अकबर का दुसरे धर्म प्रति लगाव

बादशाह अकबर एक मुस्लिम जाती के थे। धर्म एवं सम्प्रदायों के लिए उनके मनमे आदर था। जैसे जैसे अकबर की उम्र बढती गई वेसे धर्म के प्रति रूचि भी बढती गई अकबर को विशेषकर हिन्दू धर्म के प्रति अपने लगाव के लिए जाना जाता है अकबर ने अपने राज्य में हिन्दुओ को अलग अलग राजसी पदों पर भी आसीन किया जो की किसी भी भूतपूर्व मुस्लिम शासक ने नही किया था। अकबर अच्छे से जानता था की अगर उसे लम्बे समय तक राज करना है तो भारत के निवासियों को उचित एवं बराबरी का स्थान देना चाहिए।

अकबर का हिन्दू धर्म पर प्रभाव

हिंदूओ पर लगे जजिन्य (एक प्रकार का धर्म कर ) 1562 में अकबर ने हटा दिया लेकिन 1575 में मुस्लिम नेताओ के विरोध के कारण यह धर्म कर वापस लगाना पड़ा यह कर बाद में हटा दिया गया था। बाद में ज्वालामुखी मन्दिर से सबंधित एक कथा काफी प्रचलित है। यह १५४८ से १६०५ के माध्यम का ही होगा तभी अकबर दिल्ली का राजा था। ध्यांभ्क्त माता जोतावाली का परम भक्त था। एक बार देवी के दर्शन के लिए वह अपने गाववासियो के साथ ज्वाल्जी के लिए निकला था तब उसका कफील दिल्ली से गुजरा तो बादशाह के सिपाहियों ने रोका और राजा अकबर के दरबार में पेश किया। अकबर के पूछने पर ध्यानु ने कहा की वे जोतावाली के दर्शन के लिए जा रहा है। तो अकबर ने अभिमान से कहा की तेरी जोतेवाली मा में क्या शक्ति है वे क्या कर सकती है तब ध्यानु ने कहा की वे तो सब की मा है, माँ कुछ भी कर सकती है। तब अकबर ने ध्यानु के घोड़े का सर तलवार से अलग कर दिया और बोला अगर तेरी माँ में शक्ति है तो इस घोड़े का सर जोड़ कर दिखाए तब ध्यानु ने माँ से प्राथना की और अपना सर काट कर माँ के चरणों में रख दिया, तब घोड़े का सर फिर से जुड़ गया यह सब देख अकबर को एहसास हुआ अपनी गलती का, अकबर ने देवी माँ के लिए सोने का छत्र चढ़ाया। लेकिन अकबर को इसका बहुत अभिमान हो गया था तो माता ने उसके हाथ से छत गिरवा दिया और उसे एक निइ धातु बना दिया जो आज तक एक रहस्य है।

इतिहासकारों का कहना है की अकबर से पूछे बिना मन्दिर भी नही बनता था। एक बार जब अकबर के नवरत्न मानसिंह द्वारा विश्वनाथ मन्दिर का निर्माण के लिए भी अकबर की अनुमति ली थी। इस वजह से हिन्दुओ ने उस मन्दिर में जाने से बहिष्कार कर दिया बंगाल में मानसिंह ने अकबर की अनुमति के बिना मंदिर का निर्माण किया तो अकबर ने उस मंदिर का कार्य रुकवा दिया और उसे मस्जिद में बदल दिया।

बाद के वर्षो अकबर को अन्य धर्मो के प्रति भी आकर्षण हुआ था। अकबर का हिन्दू धर्म के प्रति लगाव केवल मुग़ल साम्राज्य को ठोस बनाने के लिए नही था। अकबर की हिन्दू धर्म के प्रति व्यक्तिगत रूचि थी, हिन्दू धर्म के अलावा अकबर को शिया इस्लाम और इसाई धर्म में भी बहुत रूचि थी। एक बार अकबर ने इसाई धर्म के मुलभुत सिध्दांत जानने हेतु पुर्तगाली इसाई धर्म प्रचारक को गाव से बुला भेजा था, अकबर ने दरबार में विशेष जगह भी बनवायी जिसे इबादत खाना यानि पार्थना स्थल कहा जाता है, जहा पर अकबर अलग अलग धर्म गुरुओ एवं प्रचारको से धामिक चर्चाए किया करते थे, और 1582 में एक नये सम्प्रदाय की ही शरुआत कर दी जिसे दिन ए इलाही यानि इश्वर का धर्म कहा गया था।

अकबर के नवरत्न 

अकबर को कालकारो एवं बुर्धिजिवियो से विशेष लगाव था उसके इस प्रेम के कारण अकबर के दरबार में नौ (9) अति गुणवान दरबारी थे, जिन्हें अकबर के नवरत्न के नाम से भी जाना जाता है।

  • अबुल फजल: 1551 – 16०२ ने अकबर के काल को कलमबध्द  किया था। अबुल फजल ने अकबरनामा की भी रचना की थी। और आइन-ए -अकबरी भी रचा था।
  • फैजी: 1547 से 1595 अबुल फजल का भाई था। वह फारसी में कविता कर्ता था। बादशाह अकबर ने फैजी को अपने बेटे के गणित शिक्षक के रूप में नियुक्त किया था।
  • तानसेन: बादशाह अकबर के दरबार में गायक कलाकार थे। तानसेन कविता भी लिखा करते थे।
  • राजा बीरबल: 1528 से 1583 दरबार के विदूषक और अकबर के सलाहकार थे, बीरबल बहुत ही बुध्दीमान थे। ऐसा माना जाता है की बीरबल और अकबर के किस्से आज भी प्रचलित है।
  • राजा टोडरमल: अकबर के वित् मंत्री थे। टोडरमल ने विश्व की प्रथम भूमि लेखा जोखा एवं माप प्रणाली तैयार की थी।
  • राजा मानसिंह: जयपुर यानि आम्बेर के कच्छावाहां राजपूत राजा थे। मानसिंह बादशाह अकबर की सेना के प्रधानमंत्री थे।
  • अब्दुल रहीम खान ऐ खाना: एक कवी थे और अकबर के संरक्षक बैरम खां के बेटे थे।
  • फकीर अजिओं-दिन: अकबर के सलाहकार थे।
  • मुल्लाह दो पिअज़ा: अकबर के सलाहकार थे।

अकबर के जीवन पर फिल्म एवं साहित्य

  • 2008 में आशुतोष गोवरिकर निर्दशित जोधा अकबर में अकबर और उनकी बेगम जोधा की कहानी को दर्शाया गया है। अकबर एवं जोधा बाई का पात्र ऋतिक रोशन एवं ऐश्वर्या राय ने निभाया है।
  • 1960  में बनी फिल्म मुग़ल-ए-आज़म भारतीय सिनेमा की एक लोकप्रिय फिल्म है। इसमें अकबर का पात्र पृथ्वीराज कपूर ने निभाया था। इस फिल्म में अकबर के पुत्र सलीम की प्रेम कथा और उस कारण से पिता पुत्र में पैदा हुए विवाद को दर्शाया गया है। सलीम की भूमिका दिलीप कुमार एवं अनारकली की भूमिका मधुबाला ने निभायी थी।
  • 1990  में जी टीवी ने अकबर-बीरबल नाम से एक धारावाहिक प्रसारित किया था, जिसमे अकबर का पात्र हिंदी अभिनेता विक्रम गोखले ने निभाया था। प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार सलमान रुशदी के उपन्यास दी एन्चैन्ट्रेस ऑफ़ फ्लोरेंस (अंग्रेज़ी:The Enchantress of Florence) में अकबर एक मुख्य पात्र है।

जलाल उद्दीन अकबर से जुड़े कुछ महत्त्वपूर्ण सवाल के जवाब

अकबर का जन्म कब और कहा हुआ था?

अकबर का जन्म 14 अक्टूबर 1542 में उमरकोट में हुआ था।

अकबर के माता पिता का नाम क्या है?

अकबर की माता का नाम हमीदा बनो और पिता का नाम हुमायु था।

अकबर की मृत्यु कब और कहा हुई?

अकबर की मृत्यु 27 अक्टूबर 1604 फतेहपुर सिकरी आगरा में हुइ थी।

मुस्लिम और हिन्दू धर्म के भेदभाव को कम करने हेतु अकबर ने किस धर्म की स्थापना की थी?

मुस्लिम और हिन्दू धर्म के भेदभाव को कम करने हेतु अकबर ने दिन ए इलाही धर्म की स्थापना की थी।

महाराणा प्रताप और अकबर का युद्ध किसी नाम से प्रचलित है ?

महाराणा प्रताप और अकबर का युद्ध हल्दी घाटी के नाम से प्रचलित है।

अब्दुल फ़जल ने किस ग्रंथ की रचना की थी ?

अब्दुल फजल ने आइन-ए -अकबरी  ग्रंथ की रचना की थी।

Last Final Word:

इस आर्टिकल के जरिये आपको जलाल उद्दीन मुहम्मद अकबर का इतिहास के बारे में काफी जानकारी मिलेगी जैसे की अकबर का इतिहास, अकबर का प्रारंभिक जीवन, अकबर का राज्य विस्तार अकबर की शादी, अकबर के हिन्दू धर्म के प्रति प्रेम अकबर का राज्यतिलक इन सभी जानकारी से आप वाकिफ होगये होंगे।

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