नमस्कार दोस्तों, आज के इस आर्टिकल में आप से हम बात करने वाले हैं जलियावाला बाग के हत्या कांड के बारे में, हम जानेंगे की जलियावाला बाग के हत्या कांड में क्या-क्या हुआ था। जलियांवाला बाग हत्याकांड भारत के इतिहास से जुड़ी एक दुर्भाग्यपूर्ण घटना है, जो वर्ष 1919 में घटी थी। इस हत्याकांड की पूरी दुनिया में निंदा की गई थी। यह नरसंहार हमारे देश की आजादी के लिए चल रहे आंदोलनों को रोकने के लिए किया गया था। लेकिन इस नरसंहार के बाद हमारे देश के क्रांतिकारियों के हौसले कम होने के बजाय और मजबूत हो गए थे। आखिर ऐसा क्या हुआ था, साल 1919 में, जिससे जलियांवाला बाग में मौजूद निर्दोष लोग मारे गए, इस हत्याकांड का मुख्य आरोपी कौन था और उसे क्या सजा मिली? इन सभी सवालों के जवाब आपको इस आर्टिकल में दिए गए हैं।
जलियांवाला बाग हत्याकांड (Jallianwala Bagh Massacre)
घटना का नाम | जालियांवाला बाग हत्याकांड |
घटना कहां हुई | अमृतसर, पंजाब, भारत |
घटना का दिन | 13 अप्रैल 1919 |
अपराधी | ब्रिटीश भारतीय सैनिक और डायर |
जान किसकी गई | 370 से अधिक |
घायल लोग | 1000 से अधिक |
जलियांवाला बाग घटनाक्रम से पहले की जानकारी (Information before Jallianwala Bagh Events)
रॉलेट एक्ट का विरोध किया गया
वर्ष 1919 में हमारे देश में ब्रिटिश सरकार द्वारा कई प्रकार के कानूनों को लागू किया गया था और हमारे देश के हर हिस्से में इन कानूनों का विरोध किया जा रहा था। 6 फरवरी, 1919 को ब्रिटिश सरकार ने इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल में ‘रोलेक्ट’ नाम का एक बिल पेश किया और मार्च के महीने में इस बिल को इम्पीरियल लेजिस्लेटिव काउंसिल ने पास कर दिया। जिसके बाद यह बिल एक्ट बन गया।
इस अधिनियम के अनुसार, भारत की ब्रिटिश सरकार देशद्रोह के संदेह के आधार पर किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती थी और उस व्यक्ति को बिना किसी जूरी के पेश किए जेल में डाल सकती थी। इसके अलावा पुलिस बिना किसी जांच के किसी भी व्यक्ति को दो साल तक हिरासत में भी रख सकती थी। इस अधिनियम ने ब्रिटिश सरकार को भारत में हो रही राजनीतिक गतिविधियों (Activities) को दबाने की शक्ति प्रदान की।
इस अधिनियम की मदद से, भारत की ब्रिटिश सरकार भारतीय क्रांतिकारियों को नियंत्रित करना चाहती थी और हमारे देश की स्वतंत्रता के लिए चल रहे आंदोलनों को पूरी तरह से समाप्त करना चाहती थी। इस अधिनियम का महात्मा गांधी सहित कई नेताओं ने विरोध किया था। गांधीजी ने इस अधिनियम के खिलाफ पूरे देश में सत्याग्रह आंदोलन शुरू किया।
शुरू हुआ ‘सत्याग्रह’ आंदोलन (‘Satyagraha’ movement started)
वर्ष 1919 में शुरू हुआ सत्याग्रह आंदोलन पूरे देश में ब्रिटिश शासन के खिलाफ बड़ी सफलता के साथ चल रहा था और इस आंदोलन में हर भारतीय ने उत्साह से भाग लिया। भारत के अमृतसर शहर में 6 अप्रैल 1919 को इस आंदोलन के तहत एक हड़ताल का आयोजन किया गया था और रॉलेट एक्ट का विरोध किया गया था। लेकिन धीरे-धीरे इस अहिंसक आंदोलन ने एक हिंसक आंदोलन का रूप ले लिया।
9 अप्रैल को सरकार ने पंजाब से जुड़े दो नेताओं को गिरफ्तार किया था। इन नेताओं के नाम थे डॉ. सैफुद्दीन कच्छू और डॉ. सत्यपाल। इन दोनों नेताओं को गिरफ्तार करने के बाद ब्रिटिश पुलिस ने उन्हें अमृतसर से धर्मशाला स्थानांतरित कर दिया। जहां उन्हें नजरबंद कर दिया गया था।
अमृतसर के ये दोनों नेता यहां की जनता के बीच काफी Popular थे और अपने नेता की गिरफ्तारी से परेशान होकर यहां की जनता मिल्स इरविंग की डिप्टी कमेटी से मिलना चाहते थे। ताकि उन्हें 10 अप्रैल को रिहा किया जा सके। लेकिन डिप्टी कमेटी ने इन लोगों से मिलने से इनकार कर दिया था। जिसके बाद इन गुस्साए लोगों ने रेलवे स्टेशन, टेलीग्राफ विभाग समेत कई सरकारी दफ्तरों में आग लगा दी। टेलीग्राफ विभाग में आग लगने से सरकारी काम को काफी नुकसान हुआ था, क्योंकि इससे उस समय अधिकारियों के बीच संवाद हो पाता था। इस हिंसा में तीन अंग्रेज भी मारे गए थे। इन हत्याओं से सरकार बहुत खफा थी।
डायर को सौंपी अमृतसर की जिम्मेदारी (Amritsar’s Responsibility Entrusted to Dayar)
अमृतसर के बिगड़ते हालातों को नियंत्रित करने के लिए भारत की ब्रिटिश सरकार ने इस राज्य की जिम्मेदारी डिप्टी कमिश्नर मिल्स इरविंग से ब्रिगेडियर जनरल आरईएच डायर को सौंप दी और डायर ने 11 अप्रैल को अमृतसर में हालात सुधारने का काम शुरू किया। किया हुआ। पंजाब राज्य के हालात को देखते हुए ब्रिटिश सरकार ने इस राज्य के कई शहरों में मार्शल लॉ लगा दिया था। इस कानून के तहत, नागरिकों की स्वतंत्रता और सार्वजनिक समारोहों के आयोजन पर प्रबन्धि थी।
मार्शल लॉ के तहत, जहां कहीं भी तीन से ज्यादा लोग जमा होते पाए जाते थे, उन्हें पकड़कर जेल में डाल दिया जाता था। दरअसल, इस कानून के जरिए ब्रिटिश सरकार क्रांतिकारियों द्वारा आयोजित सभाओं पर रोक लगाना चाहती थी। ताकि क्रांतिकारी उनके खिलाफ कुछ न कर सकें।
12 अप्रैल को सरकार ने अमृतसर के दो अन्य नेताओं को भी गिरफ्तार किया था और इन नेताओं के नाम चौधरी बुगा मल और महाशा रतन चंद थे। इन नेताओं की गिरफ्तारी के बाद अमृतसर के लोगों में गुस्सा और बढ़ गया था। जिससे इस शहर के हालात और बिगड़ने की संभावना थी। स्थिति को संभालने के लिए इस शहर में ब्रिटिश पुलिस ने और सख्ती कर दी थी।
जलियांवाला बाग हत्याकांड की कहानी, विवरण (Jallianwala Bagh Massacre Story, Description)
जलियांवाला बाग हत्याकांड कब हुआ था?
1919 में 13 अप्रैल के दिन हजारों की संख्या में लोग जमा हो गए, उसी समय डायर ने अपने अधिकारियों को गोली चलाने का आदेश दिया, और फिर एक बहुत ही हृदयविदारक नरसंहार हुआ।
जलियांवाला बाग हत्याकांड कैसे हुआ था?
13 अप्रैल को अमृतसर के जलियांवाला बाग में बड़ी संख्या में लोग जमा हुए थे। इस दिन इस शहर में कर्फ्यू लगाया गया था, लेकिन इस दिन बैसाखी का त्योहार भी था। जिससे बड़ी संख्या में लोग हरिमंदिर साहिब यानि अमृतसर के स्वर्ण मंदिर में पहुंचे। जलियांवाला बाग स्वर्ण मंदिर के करीब था। इसलिए कई लोग इस गार्डन को देखने भी गए थे और इस तरह 13 अप्रैल को इस गार्डन में करीब 20,000 लोग मौजूद थे। जिसमें से कुछ लोग अपने नेताओं की गिरफ्तारी के मुद्दे पर शांतिपूर्वक बैठक करने के लिए जमा हो गए थे। वहीं कुछ लोग अपने परिवार के साथ यहां घूमने भी आए थे।
इस दिन करीब 12 बजकर 40 मिनट पर डायर को जलियांवाला बाग में होने वाली सभा की सूचना मिली थी। इस बात की सूचना मिलने के बाद डायर करीब 150 जवानों को लेकर अपने कार्यालय से करीब चार बजे इस बाग के लिए निकल पड़ा। डायर को लगा कि यह बैठक दंगा फैलाने के मकसद से की जा रही है। इसलिए इस बाग में पहुंचकर उसने लोगों को बिना कोई चेतावनी दिए अपने सैनिकों को गोली चलाने का आदेश दिया। बताया जाता है कि इन जवानों ने करीब 10 मिनट तक फायरिंग की वहीं, लोग गोलियों से बचने के लिए भागने लगे। लेकिन इस उद्यान का मुख्य द्वार भी सैनिकों द्वारा बंद कर दिया गया था और इस उद्यान को चारों तरफ से 10 फीट तक की दीवारों से बंद कर दिया गया था। ऐसे में कई लोगों ने अपनी जान बचाने के लिए इस बगीचे में बने एक कुएं में छलांग लगा दी, लेकिन गोलियां थमने का नाम नहीं ले रही थीं और कुछ ही देर में इस बाग की जमीन का रंग लाल हो गया था।
कुल मरें हुए लोग की संख्या
इस कत्लेआम में छोटे बच्चों और महिलाओं समेत 370 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी. इस हत्याकांड में सात सप्ताह के बच्चे की भी मौत हो गई थी। इसके अलावा इस गार्डन में मौजूद कुएं से 100 से ज्यादा शव निकाले गए। ये शव ज्यादातर बच्चों और महिलाओं के थे। कहा जाता है कि गोलियों से बचने के लिए लोग कुएं में कूद गए, लेकिन फिर भी वे अपनी जान नहीं बचा सके। वहीं, कांग्रेस पार्टी के मुताबिक इस हादसे में करीब 1000 लोगों की मौत हुई थी और 1500 से ज्यादा लोग घायल हुए थे. लेकिन ब्रिटिश सरकार ने लगभग 370 लोगों की मौत की ही पुष्टि की थी। ताकि पूरी दुनिया में उनके देश की छवि खराब न हो।
जलियांवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ था?
दरअसल, जलियांवाला बाग हत्याकांड का मुख्य कारण अंग्रेजी सरकार द्वारा कर्फ्यू लगाए जाने के बावजूद लगभग 20 हजार लोगों का एक साथ एक स्थान पर एकत्र होना था। भारतीय इकट्ठे हुए थे क्योंकि उस दिन वैसाखी का त्योहार था। और लोग बैसाखी का त्योहार मनाने के लिए स्वर्ण मंदिर गए थे और यह इस जलियांवाला बाग के पास था जहां लोग दर्शन करने गए थे। वहां शांतिपूर्ण बैठक का भी आयोजन किया गया। लेकिन ब्रिटिश सरकार को लगा कि सरकार के खिलाफ साजिश हो रही है। जिस वजह से ये नरसंहार हुआ है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के बाद क्या हुआ? (What happened after Jallianwala Bagh Massacre)
डायर के फैसले पर उठे सवाल
इस हत्याकांड की भारत के हर नेता ने निंदा की थी और इस घटना के बाद हमारे देश को आजाद कराने के प्रयास तेज हो गए थे। लेकिन ब्रिटिश सरकार के कुछ अधिकारियों ने डायर के इस नरसंहार को जायज ठहराया था।
जब डायर ने निर्दोष लोगों को मारने के बाद अपने अधिकारी को सूचित किया, तो लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ’डायर ने एक पत्र में कहा कि डायर द्वारा की गई कार्रवाई बिल्कुल सही थी और हम इसे स्वीकार करते हैं।
रवींद्रनाथ टैगोर ने लौटाई अपनी उपाधि
जब रवींद्रनाथ टैगोर को जलियांवाला बाग हत्याकांड के बारे में पता चला, तो उन्होंने इस घटना पर दुख व्यक्त किया और अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि वापस करने का फैसला किया। टैगोर ने लॉर्ड चेम्सफोर्ड को एक पत्र लिखते हुए, जो उस समय भारत के वायसराय थे, इस उपाधि को वापस करने के लिए कहा था। टैगोर को यह उपाधि UAK ने वर्ष 1915 में दी थी।
जलियांवाला बाग हत्याकांड समिति (Jallianwala Bagh Massacre Committee)
1919 में जलियांवाला बाग को लेकर एक कमेटी बनी और इस कमेटी के चेयरमैन लॉर्ड विलियम हंटर बनाए गए। जलियांवाला बाग समेत देश में कई अन्य घटनाओं की जांच के लिए हंटर कमेटी नाम की इस कमेटी की स्थापना की गई थी। इस कमेटी में विलियम हंटर के अलावा सात अन्य लोग भी थे, जिनमें कुछ भारतीय भी मौजूद थे। इस कमेटी ने जलियांवाला बाग हत्याकांड के हर पहलू की जांच की और यह पता लगाने की कोशिश की कि डायर ने उस समय जलियांवाला भाग में जो किया वह सही था या गलत।
19 नवंबर 1919 को इस समिति ने डायर को अपने सामने पेश होने के लिए कहा और उनसे इस हत्याकांड के बारे में पूछताछ की। इस समिति के समक्ष अपना पक्ष रखते हुए डायर द्वारा दिए गए बयान के अनुसार डायर को जलियांवाला बाग में सुबह 12 बजकर 40 मिनट पर होने वाली बैठक के बारे में पता चला, लेकिन उस समय उन्होंने इस बैठक को रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया, नहीं उठा डायर के मुताबिक करीब 4 बजे वह अपने सैनिकों के साथ बगीचे में जाने के लिए निकला और उसके मन में यह बात साफ थी कि अगर वहां किसी तरह की बैठक हो रही है तो वह वहां फायरिंग शुरू कर देगा।
डायर ने समिति के सामने यह भी स्वीकार किया था कि वह चाहता तो लोगों पर बिना गोली चलाए तितर-बितर कर सकता था। लेकिन उसने ऐसा नहीं किया। क्योंकि उसे लगा कि अगर उसने ऐसा किया होता तो कुछ समय बाद लोग वहीं जमा हो जाते और डायर पर हंसने लगते। डायर ने कहा कि वह जानता था कि वे विद्रोही हैं, इसलिए उसने अपना कर्तव्य निभाते हुए गोलियां चला दीं। डायर ने अपनी सफाई में आगे कहा कि घायलों की मदद करना उनका कर्तव्य नहीं था। वहां अस्पताल खुले थे और घायल वहां जाकर अपना इलाज करा सकते थे।
8 मार्च 1920 को इस समिति ने अपनी रिपोर्ट सार्वजनिक कर दी और हंटर समिति की रिपोर्ट में डायर के इस कदम को पूरी तरह गलत बताया गया। रिपोर्ट में कहा गया कि काफी देर तक लोगों पर फायरिंग करना बिल्कुल गलत था. डायर ने अपनी हदें पार करते हुए यह फैसला लिया। इस रिपोर्ट में यह भी कहा गया था कि पंजाब में ब्रिटिश शासन को खत्म करने की कोई साजिश नहीं थी। इस रिपोर्ट के आने के बाद 23 मार्च 1920 को डायर को दोषी पाते हुए सेवानिवृत्त कर दिया गया।
विंस्टन चर्चिल, जो उस समय युद्ध के राज्य सचिव थे, ने नरसंहार की आलोचना की और 1920 में हाउस ऑफ कॉमन्स को बताया कि जिन लोगों की गोली मारकर हत्या की गई थी, उनके पास कोई हथियार नहीं था बस लाठी थी। जब गोलियां चलीं तो ये लोग जान बचाने के लिए इधर-उधर भागने लगे। ये लोग जब जान बचाने के लिए कोनों में छिपने लगे तो वहां भी गोलियां चलाई गईं। इसके अलावा जमीन पर लेटने वालों को भी नहीं बख्शा गया और उन्हें मार भी दिया गया। चर्चिल के अलावा पूर्व ब्रिटिश प्रधानमंत्री एचएच एस्क्विथ ने भी इस नरसंहार को गलत बताया था।
डायर की हत्या
डायर सेवानिवृत्त होने के बाद लंदन में अपना जीवन व्यतीत करने लगे। लेकिन 13 मार्च 1940 का दिन उनके जीवन का आखिरी दिन साबित हुआ। उसके द्वारा की गई हत्या का बदला लेते हुए, उधम सिंह ने उसे कैक्सटन हॉल में गोली मार दी। सिंह एक भारतीय स्वतंत्रता कार्यकर्ता थे और कहा जाता है कि 13 अप्रैल को वे उस बगीचे में भी मौजूद थे जहां डायर ने गोलियां चलाई थीं और सिंह भी गोली लगने से घायल हो गए थे। सिंह ने जलियांवाला बाग की घटना को अपनी आंखों से देखा था। इस घटना के बाद सिंह डायर से बदला लेने की रणनीति बनाने में लगे हुए थे और वर्ष 1940 में सिंह अपनी रणनीति में सफल हुए और उन्होंने जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की मौत का बदला लिया।
ब्रिटिश सरकार ने नहीं मांगी माफी
इस हत्याकांड को लेकर ब्रिटिश सरकार ने कई बार दुख जताया है, लेकिन इस हत्याकांड के लिए कभी माफी नहीं मांगी। वर्ष 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने भी अपनी भारत यात्रा के दौरान जलियांवाला बाग का दौरा किया था। जलियांवाला बाग पहुंचने पर उन्होंने अपने जूते उतार दिए और इस बगीचे में बने स्मारक के पास कुछ समय बिताया और 30 मिनट तक मौन रखा। भारत के कई नेताओं ने महारानी एलिजाबेथ द्वितीय से माफी मांगने को भी कहा था। वहीं भारत के तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदर कुमार गुजराल ने रानी का बचाव करते हुए कहा कि इस घटना के समय रानी का जन्म नहीं हुआ था और उन्हें माफी नहीं मांगनी चाहिए।
वहीं साल 2016 में भारत दौरे पर आए इंग्लैंड के प्रिंस विलियम और केट मिडलटन ने इस मसले से बचने के लिए जलियांवाला बाग नहीं जाने का फैसला किया था. वहीं साल 2017 में इस स्मारक का दौरा करने वाले ब्रिटेन के मेयर सादिक खान ने एक बयान में कहा कि ब्रिटिश सरकार को इस नरसंहार के लिए माफी मांगनी चाहिए थी।
जलियांवाला बाग पर बनी फिल्म (Film on Jallianwala Bagh)
इस घटना पर साल 1977 में एक हिंदी फिल्म भी बनी थी और फिल्म का नाम जलियांवाला बाग रखा गया था। इस फिल्म में विनोद खन्ना और शबाना आजमी ने मुख्य भूमिका निभाई थी। इसके अलावा भारत की आजादी पर आधारित लगभग हर फिल्म में जलियांवाला बाग हत्याकांड जरूर देखने को मिलता है (जैसे लेजेंड ऑफ भगत सिंह, रंग दे बसंती)।
जालियांवाला बाग हत्याकांड 100 साल
साल 2019 में इस घटना को 100 साल हो चुके हैं, और ऐसे में कांग्रेस नेता शशि थरूर ने ब्रिटिश सरकार को सुझाव देते हुए कहा कि 2019 माफी मांगने का अच्छा मौका है।
जलियांवाला बाग से जुड़ी रोचक जानकारी (Interesting information related to Jallianwala Bagh)
इस स्थान पर बनाया गया स्मारक
- जलियांवाला बाग में मारे गए लोगों की याद में यहां स्मारक बनाने का निर्णय लिया गया। 1920 में एक ट्रस्ट की स्थापना हुई और इस जगह को खरीद लिया गया।
- जलियांवाला बाग कभी राजा जसवंत सिंह के एक वकील के कब्जे में था। वहीं साल 1919 के समय इस जगह पर करीब तीस लोगों का अधिकार था। इन लोगों से यह जगह साल 1923 में करीब 5,65,000 रुपये में खरीदी गई थी।
- इस जगह पर स्मारक बनाने की जिम्मेदारी अमेरिकी वास्तुकार बेंजामिन पोल्क को दी गई थी और पोल्क ने इस स्मारक को डिजाइन किया था। स्मारक का उद्घाटन 13 अप्रैल 1961 को भारत के राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद ने कई नेताओं की उपस्थिति में किया था।
- इस स्मारक को बनाने में लगभग 9 लाख रुपये खर्च किए गए थे और इस स्मारक को “आग की लौ” के नाम से जाना जाता है।
अभी भी हैं गोलियों के निशान
- जलियांवाला बाग आज के समय में एक पर्यटन स्थल बन गया है और इस जगह पर हर रोज हजारों लोग आते हैं। यहां पर वर्ष 1919 की घटना से जुड़ी कई यादें आज भी मौजूद हैं।
- इस स्थल पर बनी एक दीवार पर आज भी डायर के आदेश पर उसके सैनिकों द्वारा चलाई गई गोलियों के निशान हैं। इसके अलावा इस स्थल पर एक कुआं भी है जिसमें महिलाओं और बच्चों ने कूद कर अपनी जान दे दी।
इस हत्याकाण्ड को आज भी दुनिया के सबसे भीषण हत्याकाण्ड में गिना जाता है। इस साल यानि 2018 में इस नरसंहार को 99 साल होने जा रहे हैं, लेकिन फिर भी इस नरसंहार का दुख उतना ही है, जितना 99 साल पहले था। वहीं, हर साल 13 अप्रैल को इस जगह पर जाकर उन लोगों को श्रद्धांजलि दी जाती है, जिन्होंने इस नरसंहार में अपनी जान गंवाई।
जलियांवाला बाग से जुड़े सवाल के जवाब
प्रश्न: जलियांवाला बाग हत्याकांड क्या है?
उत्तर: भारत की स्वतंत्रता से वैशाखी के दिन जलियांवाला बाग में हजारों निर्दोष लोगों की हत्या कर दी गई, जिसे जलियांवाला बाग हत्याकांड कहा जाता है।
प्रश्न: जलियांवाला बाग कहाँ स्थित है?
उत्तर: अमृतसर में स्वर्ण मंदिर के पास
प्रश्न: जलियांवाला बाग हत्याकांड कब हुआ था?
उत्तर: 13 अप्रैल, 1919 को हुआ था
प्रश्न: जलियांवाला बाग हत्याकांड के लिए कौन जिम्मेदार था?
उत्तर: गडियर जनरल आरईएच डायर
प्रश्न: जलियांवाला बाग हत्याकांड में कितने लोग मारे गए थे?
उत्तर: लगभग 1 हजार लोग
प्रश्नः जलियांवाला बाग हत्याकांड की जांच के लिए किस समिति का गठन किया गया था?
उत्तर: हंटर कमीशन
प्रश्न: जलियांवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ था?
उत्तर: क्योंकि उस दिन कर्फ्यू लगा था और इतने सारे लोग एक जगह जमा हो गए थे।
प्रश्न: जलियांवाला बाग हत्याकांड के समय भारत के राज्यपाल कौन थे?
उत्तर: लॉर्ड चेम्सफोर्ड
Last Final Word:
इस लेख के माध्यम से हमने जलियांवाला बाग हत्याकांड संबंधित पूरी जानकारी दी है। जलियांवाला बाग घटनाक्रम से पहले की जानकारी, ‘सत्याग्रह’ आंदोलन की शुरुआत, डायर को सौंपी गई अमृतसर की जिम्मेदारी, जलियांवाला बाग हत्याकांड कहानी, वर्णन। जालियांवाला बाग हत्याकांड कब हुआ, जालियांवाला नाग हत्याकांड कैसे हुआ, कुल मारे गए लोग, जालियांवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ, जालियांवाला बाग हत्याकांड के बाद क्या हुआ, जलियांवाला बाग हत्याकांड कमेटी, ब्रिटिश सरकार ने नहीं मांगी माफी, जलियांवाला बाग से जुड़ी रोचक जानकारी, FAQ तो इस तरह की इन सभी से सबंधीत महत्वपूर्ण जानकारी हमारे इस आर्टिकल में दी गई है।
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