आज के इस आर्टिकल में हम कन्नौज के लिए हुए त्रिपक्षीय संघर्ष के बारे में जानेंगे और इस संघर्ष में भाग लेने वाले तीन राजवंश पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट के बारे में जानेंगे तथा इस संघर्ष के कारण और इस संघर्ष के बाद आने वाले परिणामों के बारे में जानकारी पाएंगे। इस विषय पर पूरी जानकारी पाने के लिए इस आर्टिकल को ध्यान से और पूरा पढ़े।
कन्नौज त्रिपक्षीय संघर्ष : पाल, प्रतिहार ओर राष्ट्रकूट
- पूर्व मध्यकालीन उत्तर भारत में अपने साम्राज्य का विस्तार करने के लिए और अपनी शक्तियों को बढ़ाने के लिए पाल प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट प्रयास कर रहे थे।
- अपने साम्राज्य के विस्तार हेतु इन तीनों शक्तियों में हुए संघर्ष को प्राचीन भारतीय इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना के रूप में देखा जाता है।
- पाल प्रतिहार एवं राष्ट्रकूट यह तीनों उत्तर भारत के प्रमुख नगर कन्नौज पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए काफी लंबे समय तक एक दूसरे से संघर्ष करते रहे।
- इस संघर्ष को त्रिपक्षीय संघर्ष, त्रिशक्ति संघर्ष, त्रीवर्षीय संघर्ष, त्रिकोणात्मक संघर्ष, त्रीरज्यिय संघर्ष जैसे नामों से भी जाना जाता है।
- यह संघर्ष लगभग पौने दोसो सालों तक चलता रहा जिसके दौरान इन तीनों शक्तियों के बीच परस्पर आक्रमण तथा प्रत्यक्रमण होते रहे तथा शक्ति संतुलन के प्रयास होते रहे।
- कन्नौज की कमजोर परिस्थिति को देखते हुए पाल और प्रतिहार वंश ने कन्नौज पर अपना आधिपत्य जमाने की कोशिश की।
- इस परिस्थिति को देखते हुए दक्षिणी भारत के राष्ट्रकूट वंश ने भी उत्तर भारत के कन्नौज पर अपना आधिपत्य जमाने की होड़ में भाग लिया। इसके परिणाम स्वरूप पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट वंश एक दूसरे के साथ संघर्ष में आए। और यही संघर्ष त्रिपक्षीय संघर्ष के नाम से जाना जाता है।
- इस त्रिपक्षीय संघर्ष का समय पूर्व मध्यकालीन भारत की आठवीं और नौवीं शताब्दी थी। आठवीं व नौवीं शताब्दी की यह एक महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।
- यह तीनों शक्तियां वर्ष उत्तर काल में उत्तर भारत में उत्पन्न हुई अस्थिरता और रितिका का लाभ उठाकर वहां अपना प्रभुत्व स्थापित करना चाहते थे, ओर उनकी इस कोशिश का मध्य बिंदु कन्नौज बना।
तत्कालीन कन्नौज
- भारत के इतिहास में कन्नौज का सामाजिक, आर्थिक और धार्मिक दृष्टि से बड़ा महत्व रहा है।
- कन्नौज वर्धन वंश और उनके जैसे दूसरे शासकों के कारण सांस्कृतिक और साहित्यिक गतिविधियों का केंद्र बन गया था।
- इसके अलावा उस समय उत्तर भारत के कहीं साहित्यकार, दार्शनिक, महाकवि आदि कन्नौज की राज्यसभा में थान पाए हुए थे। इसमें कुछ प्रख्यात नाम नाम संस्कृत के वागपतिराज, भवभूति तथा उनके पूर्व बाणभट्ट है।
- त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेने वाली शक्तियां :
- त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लेने वाली शक्तियो मैं गुजरात राजपूताना के गुर्जर प्रतिहार, बंगाल के पाल और दक्कन के राष्ट्रकूट थे।
गुर्जर प्रतिहार
- गुर्जर प्रतिहार वंश की स्थापना मंडोर के हरिचंद्र राजा ने की थी किंतु इस वंश का प्रथम महत्वपूर्ण राज्य नागभट्ट प्रथम को माना जाता है।
- नागभट्ट प्रथम आक्रमणकारियों से युद्ध किया था और पश्चिम भारत में एक शक्तिशाली और अधिक राज्य की स्थापना की थी।
- इस वंश का दूसरा महत्वपूर्ण राजा मिहिर भोज था जिसने राजस्थान के दक्षिण से लेकर उज्जैन से नर्मदा तक अपने राज्य का विस्तार किया था।
- इस वंश के राजा महिपाल प्रथम ने प्रतिहार वंश की सीमाएं केरल, कुंतल और कलिंग तक विस्तृत कर दी थी।
- भारतीय इतिहास में प्रतिहार अपना एक अलग महत्व रखते हैं क्योंकि उन्होंने राष्ट्रकूट और पाल वंश से लड़ते हुए भी उत्तर भारत पर तकरीबन डेढ़ सौ साल तक अपना प्रभुत्व बनाए रखा था और उत्तर भारत को एक प्रशासनिक सूत्र में बांधे रखा था।
पाल
- गुर्जर प्रतिहारो की ही तरह बंगाल के पाल वंश ने कन्नौज को प्राप्त करने के लिए हुए त्रिपक्षीय संघर्ष में भाग लिया था।
- बंगाल के पाल वंश को बंगाल में फैली हुई अराजकता को समाप्त करने के लिए और बंगाल पर अपना स्वतंत्र आधिपत्य जमाने के लिए जाना जाता है।
- सम्राट हर्षवर्धन के समय के ही राजा शशांक की मृत्यु के बाद बंगाल की जनता ने व्यपट क पुत्र गोपाल कोअपना राजा चुना।
- गोपाल ने अपने साम्राज्य को बढ़ाते हुए मगध को और समुद्र तट के देशों को जीता और यहां उसने लगभग 45 वर्षों तक राज किया। उसने बौद्ध धर्म की शिक्षा के लिए ओदंतपुरी नामक केंद्र की स्थापना की।
- 780 ई के आसपास गोपाल का पुत्र धर्मपाल वहां की गद्दी पर बैठा।
राष्ट्रकूट
- करीबन आठवीं शताब्दी के अंतिम भाग में राष्ट्रकूटो ने दक्षिण भारत की सत्ता चालुक्य वंश से छीन कर अपने हाथ में ले ली।
- राष्ट्रकूट वंश का संस्थापक नन्नराज को माना जाता है क्योंकि नंन नन्नराज उनके वंश का पहला व्यक्ति था जिसने सामंत पद प्राप्त किया था।
- दक्षिणी भारत में राष्ट्रकुटो ने अपने साम्राज्य का काफी विस्तार किया था और दक्षिणी भारत में एक शक्ति की तरह उभरे थे।
- राष्ट्रकूट ओं की उत्पत्ति के बारे में इतिहासकारों में अलग-अलग मत है। राष्ट्रकूटो को तेलुगु उत्पत्ति का बताया जाता है जिसका उल्लेख अशोक के शिलालेखों में मिलता है।
त्रिपक्षीय संघर्ष के कारण
त्रिपक्षीय संघर्ष लगभग पौने 200 वर्षों तक चलता रहा जिसके लिए निम्नलिखित कारण जवाबदार ठहराए जा सकते हैं-
कन्नौज का विशिष्ट महत्व
गुप्तोत्तर काल में कन्नौज को विशिष्ट महत्व प्राप्त हो गया था। उस समय के भारत में सम्राट हर्षवर्धन के शासनकाल में कन्नौज का राजनीतिक और आर्थिक रूप से महत्व पाटलिपुत्र से भी बढ़कर हो गया था। इस समय तक कन्नौज आर्थिक व सांस्कृतिक रूप से महत्वपूर्ण केंद्र के रूप में स्थापित हो चुका चूका था। इन्ही कारणों के चलते हुए कन्नौज उस समय के बड़ी शक्तियों की नजर में आ गया आ गया था जिसके कारण उसके लिए संघर्ष होना शुरू हो गया था।
आयुध शासकों की कमजोर राजनीति
सम्राट हर्षवर्धन के शासन में कन्नौज अपनी एक अलग पहचान बनाने में सफल रहा और उनके बाद सम्राट यशोवर्मन ने भी कन्नौज को अपना एक अलग महत्व दिलाया । परंतु इसके बाद जब आयुध वंश का शासन शुरू हुआ तब उनकी कमजोर राष्ट्र नीति के कारण पाल प्रतिहार और राष्ट्रकूट वंश ने कन्नौज पर अपना अधिकार स्थापित करने की कोशिशें शुरू की। इस तरह त्रिपक्षीय संघर्ष का एक कारण आयुध वंश की कमजोर राजनीति भी थी।
दोआब क्षेत्र की समृद्धता
दोआब की जलवायु और आबोहवा तथा वहां की उपजाऊ भूमि ने कई राजवंशों को अपनी ओर आकर्षित किया तथा उन्हें इस भूमि पर अपना आधिपत्य जमाने मैं रूचित किया। दोआब क्षेत्र की समृद्धि आबोहवा के कारण जो भी राजवंश इस क्षेत्र पर अपना आधिपत्य जमा लेता था वह कुछ ही समय में आर्थिक समृद्धि प्राप्त कर लेता था इसी कारण कई राजवंश इस पर अपना आधिपत्य जमाने के लिए संघर्ष में लगे रहते थे।
शक्ति संतुलन
तत्कालीन भारत में उत्तरी भाग में कोई एक राजवंश शक्तिशाली ना हो जाए और शक्ति का संतुलन उनके पलड़े में ना आ जाए इस कारण कई राजवंश कन्नौज को हासिल करना चाहते थे। और इसी कारण वर्ष दक्कन के राष्ट्रकूट वंश ने कन्नौज दूर होने के बावजूद भी अपने राज्य को सुरक्षित रखने के लिए त्रिपक्षीय संघर्ष में लंबे समय तक भाग लिया था।
त्रिपक्षीय संघर्ष का परिणाम
लगभग पौने 200 वर्षों तक चले इस त्रिपक्षीय संघर्ष के परिणाम स्वरुप राजनीतिक सामाजिक और आर्थिक क्षेत्रों मे गंभीर परिणाम सामने आए। इस संघर्ष के कुछ परिणाम निम्नवत है –
कन्नौज की दुर्दशा
सम्राट हर्षवर्धन के राज्य में तथा वर्धन वंश के समय कन्नौज आर्थिक राजनीतिक और सांस्कृतिक दृष्टि से एक महत्वपूर्ण था। परंतु त्रिपक्षीय संघर्ष में जब महमूद गजनी ने आक्रमण किया तो उसके बाद कन्नौज के सातों किले ध्वस्त हो गए तथा वहां के मंदिर और कन्नौज का राजकोष लूट लिया गया जिससे कन्नौज की दुर्दशा हुई।
देश का कमजोर पड़ना
त्रिपक्षीय संघर्ष के बाद भारत देश सैनिक दृष्टि से कमजोर पड़ने लगा था। लंबे समय तक तीनों शक्तियां इस संघर्ष में उलझी रही जिसके कारण देश में सैनिक दृष्टि से दुर्बलता खड़ी हुई। इस बात का लाभ उठाते हुए अरब शासकों ने देश पर हमला करना शुरू किया था। महमूद गजनी के लगातार आक्रमणों के बाद आर्थिक एवं सैनिक दृष्टि से देश उन्हें जेल नहीं पाया। साथ ही साथ आर्थिक रूप से भी कमजोर पड़ गया था यह तीनों राजवंश आर्थिक रूप से अपने-अपने राज्यों का विकास कर सकते थे परंतु इस त्रिपक्षीय संघर्ष के कारण उन्होंने अपने आर्थिक संसाधनों का अत्यधिक उपयोग किया जिसके कारण बाद में उनके पास अपने राज्यों को संभाले रखने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं बचे जिसके कारण अंत में उनका पतन हुआ।
तीनों शक्तियों का पतन
त्रिपक्षीय संघर्ष के कारण पाल प्रतिहार और राष्ट्रकूट राजवंश पतन की ओर आगे बढ़े। इस संघर्ष के कारण तीनों राजवंशों ने अपने आर्थिक संसाधनों को बर्बाद कर दिया था। इसी कारण वर्ष लंबे चले संघर्ष के अंत में इन तीनों राजवंशों के पास अपने राज्यों को संभालने के लिए संसाधन नहीं थे और इसी कारण इन तीनों राजवंशों का पतन हुआ।
Last Final Word
यह था कन्नौज के लिए हुआ त्रिपक्षीय संघर्ष जिसमें पाल, प्रतिहार और राष्ट्रकूट वंश ने भाग लिया था तथा यह संघर्ष किस कारण हुआ और इस संघर्ष का क्या परिणाम आया। हम आशा करते हैं कि यह आर्टिकल में दी गई जानकारी आपके काम आ सके। अगर आपको इस आर्टिकल से संबंधित कोई भी प्रश्न या परेशानी है तो हमें कमेंट बॉक्स में जरूर बताएं।
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