9 नवम्बर 2019 को करतारपुर कोरिडोर का उद्घाटन किया गया था। इस कोरिडोर को करतारपुर साहिब के दर्शन के लिए गुरु नानक जी के 550वें प्रकाश पर्व पर खोला गया था। आइये इस आर्टिकल को पढ़ते हे और करतारपुर कोरिडोर के बारे में जानते हे। करतारपुर कोरिडोर मार्च 2020 से बंद हे। 22 सितम्बर को सिख धर्म के संस्थापक गुरुनानक देव जी की पुण्यतिथि की वजह से पाकिस्तान के कमांड एंड ओपरेशन सेंटर (NCOC)ने करतारपुर मंदिर को खोलने का फैसला किया।
22 मई से 12 अगस्त तक, पाकिस्तान ने भारत को केटेगरी C’ के तहत रखा था और इसका कारण डेल्टा संस्करण का प्रसार हे। पाकिस्तान के लिए आवश्यक मूवमेंट को छुट के माध्यम से भारत से अनुमति मिली थी। केवल पूरी तरह से टिका लगाये गए व्यक्तियों को ही करतारपुर कोरिडोर/वाघा बोर्डर से पाकिस्तान में जाने की अनुमति दी जाएगी। साथ ही साथ, पाकिस्तान की यह यात्रा करने से पहले RT-PCR का टेस्ट (अधिकतम 72 घंटे पुराना) नेगेटिव होना जरुरी हे। RAT का आयोजन किया जायेगा, जब पाकिस्तान पहुच जायेगे। उस व्यक्ति को भारत वापस लोटा दिया जायेगा, अगर वो व्यक्ति पोजिटिव हे।
करतारपुर गुरुनानक देव जी का निवास स्थान और साहिब सीखो का पवित्र तीर्थ स्थान हे। करतारपुर में ही उन्होंने अपनी अंतिम सांसे ली थी। पाकिस्तान में भारत की सीमा से लगभग 3 से 4 किलोमीटर दूर यह स्थान हे। श्रद्धालु दूरबीन की मदद से भारत में दर्शन करते हे। करतारपुर साहिब कोरिडोर दोनों सरकारों की सहमती से बनाया गया हे।
करतारपुर साहिब क्या हे?
करतारपुर साहिब सीखो का पवित्र स्थल माना जाता हे। यही पर सीखो के प्रथम गुरु माने जाने वाले, गुरु नानक देव जी का निवास स्थान था और यही स्थल पर उनका निधन हुआ था। बाद में गुरु नानक देव जी की याद में यहाँ पर गुरुद्वारा बनाया गया। 1522 में सिख धर्म के संस्थापक गुरु नानक करतारपुर आए थे, एसा इतिहास के अनुसार माना जाता हे। अपनी जिन्दगी के 17-18 साल उन्होंने यही पर गुजारे थे। इसी गुरुद्वारे में 22 सितम्बर 1539 को गुरुनानक जी ने आखरी सांसे ली थी। इसी वजह इस गुरुद्वारे की काफी मान्यता हे।
करतारपुर साहिब कहा पर स्थित हे?
पाकिस्तान के नारोवाल जिले में करतारपुर साहिब स्थित हे। भारत में पंजाब के गुरदासपुर जिले के डेरा बाबा नानक से तिन से चार किलोमीटर की दुरी पर हे और लाहौर से करीब 120 किलोमीटर दूर हे।
करतारपुर साहिब कोरिडोर क्या है?
कोरिडोर का निर्माण भारत में पंजाब के डेरा बाबा नानक से आंतरराष्ट्रिय सीमा तक किया गया हे और वही पाकिस्तान की सीमा से नारोवाल जिले में गुरुद्वारे तक कोरिडोर का निर्माण हुआ हे। करतारपुर साहिब कोरिडोर इसी को कहा गया हे।
आखिर क्यों खास हे यह करतारपुर साहिब कोरिडोर?
सबसे पहला गुरुद्वारा करतारपुर साहिब को माना जाता हे, इसकी नीव श्री गुरु नानक देव जी ने रखी थी और उन्होंने अपने जीवन के अंतिम साल यही पर बिताये थे। हा लेकिन बाद में रावी नदी में बाढ़ आने की वजह से यह बह गया था। इसके बाद महाराजा रंजित सिंह ने वर्तमान गुरुद्वारे का निर्माण किया था।
भारत के श्रद्धालु अभी तक कैसे दर्शन करने आते हे?
भारत-पाकिस्तान बंटवारा होने की वजह से ये गुरुद्वारा पाकिस्तान में चला गया था। इसी कारण भारत के नागरिको को करतारपुर साहिब के दर्शन करने के लिए वीजा की जरुरत पड़ती हे। जो लोग पाकिस्तान नहीं जा पाते हे वो लोग भारत की सीमा में डेरा बाबा नानक स्थित गुरुद्वारा शहीद बाबा सिद्ध सैन रंधावा में दूरबीन की मदद लेकर दर्शन का लाभ लेते हे। भारत की तरफ की सीमा से यह गुरुद्वारा साफ नजर आता हे। इस गुरुद्वारे के आसपास घास जमा ना हो पाकिस्तान की सरकार इस बात का खास ध्यान रखती हे, इसीलिए इसके आसपास पाकिस्तान सरकार कटाई-छटाई करवाती रहती ताकि भारत के श्रद्धालु भारत से इसको अच्छे से देख सके और श्रद्धालुओ को कोई तकलीफ न हो। भारत और पाकिस्तान के सीमा के करीब में सिखों के कई सारे धार्मिक स्थल हे, जैसे की डेरा साहिब लाहौर, पंजा साहिब और ननकाना साहिब उन गांव।
अब देखते हे की इस कोरिडोर को क्यों खोला गया?
सिख समुदाय के लोग अब आसानी से दर्शन कर पाएंगे। कोरिडोर बनने से उनका सालो का इंतजार अब ख़त्म हो गया। करतारपुर कोरिडोर को 550वां प्रकाश पर्व मनाने के लिए भारत और पाकिस्तान सरकार की सहमती से खोला गया और इसका शिलान्यास भी नवम्बर 2018 में कर दिया गया था।
यह कोरिडोर कहाँ बनाया गया?
डेरा बाबा नानक जो गुरुदासपुर में हे इस कोरिडोर को वहाँ से लेकर आंतरराष्ट्रिय बोर्डर तक बनाया गया हे। यह एक बड़े धार्मिक स्थल जैसा ही हे। लगभग 3 से 4 किमी का यह कोरिडोर हे। इसको भारत-पाकिस्तान की सरकारों ने फंड किया हे।
कोरिडोर के बनने से भारत और पाकिस्तान को क्या फायदा होगा?
करतारपुर कोरिडोर बन जाये तो वीजा ना हो फिर भी तीर्थयात्री गुरुद्वारे के दर्शन करने के लिए जा सकेंगे। करतारपुर कोरिडोर बनने से भारत और पाकिस्तान के संबंधो में भी सुधार हो सकता हे और एसा पहली बार होगा की बिना रोक-टोक के ही लोग बोर्डर पार कर सकेंगे। साथ ही साथ पाकिस्तान और पंजाब में टूरिजम को भी बढ़ावा मील जायेगा। कहा जा रहा हे की यात्रियों का आना-जाना बढ़ने से वहाँ पर आस-पास की प्रोपर्टी की कीमतों में भी मुनाफा होगा।
तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने 1999 में जब लाहौर बस यात्रा की थी तब करतारपुर साहिब कोरिडोर को बनाने का पहली बार प्रस्ताव दिया था।
करतारपुर साहिब गुरुद्वारे के बारे में कुछ रोचक तथ्य
- करतारपुर में ही गुरुनानक देव जी ने सिख धर्म की स्थापना की थी और यही पर उनका पूरा परिवार बस गया था, एसा इतिहास के अनुसार कहा गया हे।
- उन्होंने रावि नदी पर एक नगर बसाया और यहाँ पर पहली बार खेती कर के उपदेश दिया था की “नाम जपो, किरत करो और वंड छको” (नाम जपो, मेहनत करो और बांटकर खाओ)
- 1539 में गुरुनानक जी ने यही पर समाधी ली थी।
- सबसे पहले लंगर की शुरुआत इसी गुरुद्वारे में हुई थी। यहाँ पर जो कोई भी आते थे उनको बिना खाए गुरुनानक देव जी नहीं जाने देते थे।
- गुरुनानक देव जी की समाधी और कब्र दोनों अब भी करतारपुर गुरुद्वारे में मौजूद हे। समाधी गुरुद्वारे के अंदर हे और कब्र गुरुद्वारे के बहार हे।
- एसा कहा जाता हे की जो यह करतारपुर साहिब कोरिडोर बन गया तो भारत और पाकिस्तान के संबंध में भी सुधार होगा और गुरुद्वारे के दर्शन करने का भी अवसर सिख श्रद्धालुओ को मिलेगा।
अंत में गुरु नानक जी के बारे में अध्ययन करते हे।
- जन्म: 15 अप्रैल 1469 राय भोई तलवंडी, (वर्तमान ननकाना साहिब, पंजाब, पाकिस्तान)
- मृत्यु: 22 सितम्बर 1539, करतारपुर
- समाधी स्थल: करतारपुर
- व्यवसाय: सिखधर्म के संस्थापक
- पूर्वाधिकारी: गुरु अंगद देव
- कल्यानचंद या महता कालू गुरु नानक जी के पिता का नाम था और तृप्ता उनकी माता का नाम था।
- 1487 में बटाला निवासी मूलराज की पुत्री सुलक्षिनी से गुरु नानक जी का विवाह हुआ था। उनके दो पुत्र थे जिसका नाम श्री चंद और लक्ष्मी दास था।
- करतारपुर नगर की स्थापना गुरु नानक जी ने की और वहा पर एक धर्मशाला भी बनवाई थी और अब वह धर्मशाला वर्तमान समय में करतारपुर साहिब गुरुद्वारा के नाम से जाना जाता हे।
- खंडा सिख धर्म का धार्मिक चिन्ह हे और सीखो का फौजी निशान भी यही हे।
- सिख धर्म के पहले गुरु और संस्थापक गुरु नानक ही थे। इन्होने ही शिक्षा की नीव राखी थी जिस पे सिख धर्म का गठन हुआ था।
- उन्होंने दक्षिण एशिया और मध्य पूर्व में यात्रा की ताकि वें अपनी शिक्षा को फेला सके।
- 974 भजनों के रूप में उनकी शिक्षा को अमर किया गया हे और इसे “गुरु ग्रंथ साहिब” धार्मिक ग्रंथ के नाम से जाना जाता हे।
Last Final Word
तो दोस्तों यह थी करतारपुर कोरिडोर के बारे में सम्पूर्ण जानकारी। अगर आपको इस आर्टिकल से जुड़े कोई भी सवाल या सुजाव है तो हमें कमेंट के माध्यम से आप बता सकते है।
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