हमारे देश भारत में बहुत ही सारी इतिहासिक जगह देखने को मिलती है जो सभी आज भारत की धरोहर बनी हुई है। उन सभी में से एक दिल्ली में स्थित लाल किला भी एक बहुत ही विराट इतिहास का मालिक है। लाल किले ने हमारे देश भारत के सारे दौर देखे हुए है, इतिहासकारों के मत अनुसार मुगलों के समय से पहेले भी लाल किला था। और इन मुगलों ने ही यह किले को और भी ज्यादा संवारा और इसे एक नया रूप किया था।
इसी लिए आज भी यह किले को बनाने का श्रेय मुगलों को जाता है। मगर हकीकत में लाल किले का इतिहास आपको जान न है तो आपको यह आर्टिकल पुरे ध्यान से पूरा पढ़ना होगा।
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लाल किला का मुख्य बिंदु
दिल्ली में स्थित किले के नाम लाल किला (किला ए मुबारक) है। 6 अप्रेली 1948 में लाल किला बनकर तैयार हुआ था। लाल किला मुग़ल सम्राट शाहजहा ने बनवाया था। यह किले की वस्तुकला विशिष्ट और अनुपम शाहजहां की शैली है। लाल किला बनने की शुरुआत 1938 से 1948 तक मलतब की 10 साल तक इस पर काम चला था। लाल किला पुरानी दिल्ली स्थित है। लाल किले की डिजाइन उस्ताद अहमद और लाहौरी नि बनायी थी।
लाल किले का इतिहास (History of The Red Fort)
लाल किले (Red Fort) को बनने के लिए मुगल शासक शाहजहां ने पहेली बार कल्पना की थी। शाहजहां मुग़ल शासक का पांचवा शासक था, और शाहजहां की लाल किला बनाने की परिकल्पना बड़ा ही साकार रूप लेने लगी थी। मुग़ल शासक शाहजहां ने 1638 ईस्वी में लाल किला बनवाने के लिए पहेली नींव राखी थी। लाल किले का काम तक़रीबन 10 साल तक काम चला और आखिर कर 1648 ईस्वी में मुग़ल शासक शाहजहां की लाल किला बनाने की परिकल्पना ने साकार रूप लिया था। लाल किले को बनाने के लिए 10 साल तक लगातार मजदूरो ने कड़ी महेनत की थी तब जाके याक किला तैयार हुआ था।
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लाल किले की बनावट
लाल किला एक एतिहासिक किला है और इस किले की बनावट बहुत ही शानदार तरीके हुई थी। हमारे देश के प्राचीन कारीगरों की कला बड़ी ही देखने लायक थी। वैसे देखा जाए तो यह लाल किला लगभग 250 एकड़ जमीन में फैला हुआ है। लाल किला वास्तुकला रचनात्मक, सुजनात्मकता और सौंदर्य का अनुपम और अनूठा उदाहरण है। यह किला यमुना नदी के किनारे पर स्थित है इसीलिए यह किला यमुना नदी के तीनो तरफ से धीर हुआ है और सलीमगढ़ के पूर्वी छोर पर स्थित है।
लाल किले को अपना यह नाम उसके लाल बलुआ पत्थर की प्राचीर और दीवार की वजह से मिला था। वैसे देखा जाए तो यह लाल किले की दीवारे 1.5 मीली और लगभग 2.5 किलोमीटर जितनी लंबी है। इस किले की उंचाई 60 फिट और 16 मीटर है तथा 110 फिट अर्थात 33 मीटर उंची शहर की तरफ है। इस किले की दीवारे पुरातत्व विभाग के नापतोल के आधार पर 42 मीटर की वर्गाकार ग्रीड तो (चौखाने) का उपयोग करके बनाई गई है।
लाल किले की वास्तुकला
लाल किले की वास्तुकला बहुत ही ज्यादा उच्च स्तर की वस्तुकला है। लाल किले (Lal Kila) की बदभुत कलाकृतिया भारतीय यूरोपीय और फारसी कला का अनूठा मिश्रण है। लाल किला विशिष्ट और अनुपम मुग़ल शासक शाहजंहा की शैली का सबसे सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। यह किला रंग अभिव्यंजना और रूप में उत्कृष्ट है। लाल किला हमारी राजधानी दिल्ली का एक ऐसा ईमारत समूह है, जो भारतीय इतिहास ओत उसकी कलाओ को अपने अंदर समेटे हुए है।
लाल किला वास्तुकला के कलाकारों की अनुपम दुर्लभ प्रतिभा के एक बहुत ही सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। यह किले की दीवारे बहुत सारे अनुसंधान के बाद इस तरह की गई है की इसकी दीवारो में दो मुख्य द्वार खुलते है दिल्ली दरवाजा और लाहौर दरवाजा। इन दोनों में से लाहौर दरवाजा इसका मुख्य प्रवेश द्वार है।
इन सब के आलावा सामने एक बड़ा सा खुला स्थान है, जो एक बहुत ही लंबी उत्तरी सड़क को काटता है। हमारे देश के एतिहासिक साक्ष्यो के आधार पर यह कहा जाता है की यही सब सड़के पहेले किले को सैनिक और नागरिक महलो के भागो में बाटती थी, और आज भी यह सड़क का दक्षिण छोर दिल्ली के गेट पर स्थित है।
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नक्कर खाना
नक्कर खाना लाहौर गेट से चट्टा चौक तक आने वाली सड़क से लगे खुले मैदान के पूर्वी और बना हुआ है। नक्कार खाना संगीत प्रेमियों के लिए बनाया गया हुआ महल का मुख्य द्वार है।
दीवान-ए -आम
लाल किले (Red Fort) के इस दरवाजे के पास एक और खुला मैदान आपको देखने को मिलता है, जो मूलत: दीवाने आम का मैदान हुआ करता था। यह मैदान जनसाधारण के लिए ही बनाया गया था। यह मैदान का अलंकृत सिहासन का छज्जा दीवान की पूर्वी दीवार के बिलकुल बीचो बीच ही बना हुआ था। जो देखा जाए तो विशेष रूप से राजा के लिए ही बना था। इसके बारे में यह कहा जाता है की यह सुलेमान के राज सिंहासन की तरह ही था।
नहर-ए-बहिश्त
नहर-ए-बहिश्त राजगद्दी के बिलकुल पीछे की और राजा का शाही निजी कक्ष स्थापित है। इस विस्तार में पूर्वी छोर पर उपर चबूतरे पर बने घुमावदार इमारतो की एक कतार है। इस जगह पर से यमुना नदी का किनारा बहुत ही स्पष्ट दिखाई देता है। यह मंडप एक बहुत ही छोटी नहर के साथ जुड़ा हुआ है, इसीलिए इसको नहर-ए-बहिश्त कहा जाता है। जो सारे कक्ष के मध्य से होकर ही जाती है।
शाह बुर्ज जिले के पूर्वी भाग पर बना हुआ है जिस पर यमुना नदी से पानी चढ़ाया जाता है। जहा से नहर-ए-बहिश्त को जल की बहुत ही आपूर्ति होती है। इसीलिए यह कहा जाता है की इस किले का पारी रूप कुरण में वर्णित स्वर्ग है जिसे इस्लाम धर्म में जन्नत कहा जाता है, और उसी के अनुसार ही बना है।
और इस पर यह लिखा है की : यदि पृथ्वी पर कही जन्नत है तो यही है, यही है, यही है।
वैसे देखा जाए तो इस महल की संपूर्ण रूप रेखा मूल रूप से इस्लामी परंपरा के अनुसार ही है। लेकिन पुरे ध्यान से देखने पर हर एक मंडप में हिंदू वास्तुकला का ही दर्शन नजर आता है। जब की देखा जाए तो लाल किले का प्रसाद शाहजहा की शैली का बहुत ही उत्कृष्ट नमूना प्रस्तुत करता है।
जनाना
महल के दो दक्षिणावर्ती प्रसाद महिलाओ के लिए बनाए गए थे, जिसे जनाना कहा जाता है। जनाना को मुमताज महल भी कहते है जो अब एक संग्राहलय का रूप ले चूका है। इसे रंग महल भी कहा जाता है जिसमे स्वर्ण मंडित नक्काशीकृत छाते और संगमरमर सरोवर बना हुआ है, जिसमे जल नहर-बहिश्त में से आता है।
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खास महल
खास महल दक्षिण से तीसरा मंडप है, यह महल में कही सारे शाही कक्ष बने हुए है। इसमें राजा का शयन कक्ष इबादत का और एक बड़ा सा होल भी है, जिसे मुसम्मन बुर्ज भी कहा जाता है। यह बुर्ज से बादशाह जनता के साथ सीधे संवाद करते थे।
दीवान-ए-खास
यह मंडप दीवान-ए-खास के नाम से जाना जाता है, यह मंडप बादशाह के मुक्त हस्त से सुसज्जित निजी सभाकक्ष था। यह सभाकक्ष बादशाह के सचित्र और मंत्री मंडल तथा सभासदों से महत्वपूर्ण कार्यो की समीक्षा करते थे, इसकी सुंदरता बहुत ही भव्य थी। यहाँ पर पुष्प की आकृति से मंडित स्तंभ बने हुए है, जिनकी परत स्वर्ण और रत्न जडित है।
हमाम
हमाम बादशाह का बहुत ही शाही स्नानागार था, और इसको तुर्की शैली में बहुत ही अच्छे से बनाया गया था।
मोती मस्जिद
मोती मस्जिद हमाम स्नानागार के पश्चिम दिशा में बनी हुई है, मोती मस्जिद का सर्जन 1650 ईस्वी में हुआ था। मोती मस्जिद के बारे में यह कहा जाता है की यह औरंगजेब की निजी मस्जिद थी।
हयात बख्श बाग
हयात बख्श बाग उत्तर में स्थित बहुत ही बड़ा औपचारिक का उद्यान है, जिसे जीवन दाई उद्यान भी कहा जाता है। इसका एक छोड़ उत्तर में स्थित है तो दूसरा छोड़ दक्षिण की और स्थित है। और इसका निर्माण अंतिम मुगल शासक बहादुर शाह जफ़र ने 1842 ईस्वी में किया था।
आधुनिक युग में लाल किले का महत्व
हमारे देश का लाल किला फ़क्त दिल्ली शहर का ही नहीं परंतु पुरे संसार का विख्यात पर्यटन स्थल है। लाल किले को देखने के लिए हर वर्ष लाखो पर्यटन आते है। लाल किले से हर साल 15 मी अगस्त के दिन हमारे देश के प्रधानमंत्री देश की आम जनता को संबोधित करते है।
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लाल किले का अधिकार
हमारा देश भारत 1947 में आजाद हुआ था। और हमारे देश के आजाद होने पर ही ब्रिटिश सरकार ने लाल किले को हमारी भारतीय सेना के हवाले कर दिया था तब यह लाल किला हमारी भारतीय सेना का कार्यालय बन गया था। लेकिन 22 दिसंबर 2003 में हमारी भारतीय सेना ने 46 साल पुराने अपने इस कार्यालय को हटाकर यह लाल किला (Lal Qila) खाली कर दिया था और एक समारोह में भारतीय सेना ने इसे पर्यटन विभाग के हवाले कर दिया था।
यह समरोह में तत्कालीन रक्षा मंत्री जोर्ज फर्नाडिस ने यह कहा था की सहस्त्र भारतीय सेनाओ का इतिहास लाल किले के साथ जुड़ा हुआ है पर अब हमारे इतिहास और विरासत के एक पहलु को पूरी दुनिया को दिखाने का समय आ चूका है।
लाल किले से जुड़े रोचक तथ्य
- मुग़ल शासक शाहजहां ने जब ईस्वी 1648 में इस किले जा निर्माण कराया था तब यह किला बिलकुल सफ़ेद रंग का था। फिर बाद में अंग्रेजो ने इस लाला किले की दिवारो पर लाल रंग करवाया था और इसका नाम लाल किला रख दिया था।
- लाल किले का मूल नाम किला-ए-मुबारक है।
- यह एक किले को बनाने के लिए दो प्रमुख ठेकेदार थे। जिनमें एक का नाम उस्ताद हामिद और दुसरे का नाम उस्ताद अहमद था और पुरे 10 साल बाद इस किले का निर्माण कार्य पूरा हुआ था।
- लाल किला विश्व के धरोहर स्थलों में भी शामिल है।
- 2007 में यूनेस्को द्वारा हमारे देश के इतिहास और साथ ही सांस्कृतिक महत्व के लिए लाल किले को विश्व विरासत स्थल में शामिल किया गया था।
- ब्रिटिश शासन काल के समय में लाल किले के कई सारे हिस्सों को तोड़ दिया गया था। और अधिकतम सामानों को ब्रिटिशो ने अपने कब्जे में कर लिया था। केन्द्र सरकार ने लाल किले को स्कीम अडॉप्ट ए हेरिटेज तहत डालमाया ग्रुप को 5 साल के किए कांट्रेक्ट पर दे दिया था। और यह कांट्रेक्ट 25 करोड़ में साइन किया गया था।
- जब मुग़ल 1752 अपने पतन की और थे तब उन्होंने एक संधि के तहत दिल्ली की राजगद्दी संभालने का अवसर मराठो के पास आ गया था। तब मराठा ने 1760 ई. में लाल किले में स्थित दीवान ए खास की चांदी की परत निकाल ली थी और उसे बेच दिया था और उससे अहमद शाह दुर्रानी की सेना को परस्त भी किया था।
- लाल किले पर बहुत सारे राजाओ ने शासन किया था। उन सभी में से अंतिम मुगाक शासक बहादुर शाह द्वितीय था, जिन्होंने 1860 ई. तक लाल किले को अपने कब्जे में रजा था और उस पर शासन किया था।
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लाल किला धुमने का समय
आज के समय में सब को धुमना बहुत ही अच्छा लगता है। अगर आपको धुमने का शौक है, और दिल्ली में कुछ देखना चाहते है तो लाल किला एक बार आपको जरुर देखना चाहिए। अगर आप लाल किला देखने आते है तो आपको सुबह 9:30 बजे से लेकर शाम के 4:30 बजे की बिच आना पड़ेगा क्योकि इसी टाइम में यह किला खुला रहेता है। यह समय में आप कभी भी लाल किला धुमने के लिए आ सकते है।
इन सब के आलावा यहाँ पे शाम को 7 बजे लाईट शो भी होता है, जो की वहा बहुत ही अलौकिक और देखने लायक होता है। यह हिंदी भाषा और अंग्रेजी भाषा दोनों में होता है और इन दोनों का समय भी भिन्न भिन्न होता है।
1. लाला किला का पुराना नाम क्या है?
- लाला किले का पुराना नाम किला ए मुबारक था।
2. लाल किला धुमने का शुक्ल कितना है?
- भारत वासिओ के लिए यह शुल्क 35 रुपए है और विदेशी पर्यटक के लिए 500 रुपए है।
3. लाल किले का लम ‘लाल किला’ क्यों पड़ा?
- यह किले का निर्माण लाल पत्थरों से किया गया है, इसी वजह से इसका नाम लाल किला पड़ा।
4. लाल किले के और कितने नाम है?
- वैसे देखा जाए तो लाल किले को कई सारे नामो से जाना जाता है जैसे लाल गोट, किला ए मुबारक, मुबारक किला, रेड फोर्ट आदि।
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Last Final Word:
तो दोस्तों हमने आपको हमारे इस आर्टिकल में “लाल किले के इतिहास” के बारे में बताया है, और काफी रिसर्च के बाद हमने इस आर्टिकल को आप तक पहुचाया है। जिसमे हमने आपको लाल किला मुख्य बिंदु, लाल किले की बनावट, लाल किले की वास्तुकला, आधुनिक युग में लाल किले का महत्व, लाल किले का अधिकार, लाल किले से जुड़े रोचक तथ्य, लाल किला धुमने का समय जैसे सभी माहिती से वाकिफ हो चुके होगे।
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