मराठा साम्राज्य को मराठा परिसंघ के नाम से भी जाना जाता था। मराठा साम्राज्य 17वीं एवं 18वीं शताब्दी के समय में हमारे देश भारत के एक बड़े हिस्से पर हावी हुआ करता था। मराठा साम्राज्य की शुरुआत औपचारिक रूप से 1674 में छत्रपति शिवाजी के उदय के साथ हुआ था। मराठा साम्राज्य हमारे भारत में मुग़ल साम्राज्य के विस्तार और उनके आगमन के परिणाम स्वरूप पैदा हुआ था। मराठा साम्राज्य ने दक्कन के पठार में व्याप्त अराजकता को समाप्त कर दिया था इसीलिए, मराठा वंश को भारत देश में मुगल शासक को समाप्त करने का श्रेय दिया जाता है तथा इसे हमेशा एक सच्ची भारतीय शक्ति के रूप में देखा जाता है, क्योंकि मराठा साम्राज्य 17वीं एवं 18वीं शताब्दी के समय में भारतीय उपमहाद्वीप पर बहुत ही बुरी तरह से हावी हुआ करता था। वैसे देखा जाए तो अपने चरम पर मराठा वंश उत्तर दिशा में पेशावर से लेकर दक्षिण दिशा में तंजावुर तक फैला हुआ था। मराठा साम्राज्य ने दक्कन के पठार से उभरने वाले एक योद्धा समूह के रूप में शुरुआत की थी, 19वीं सदी की शुरुआत मे मराठा साम्राज्य अपने पतन से पहेले भारतीय उपमहाद्वीप के ज्यादातर हिस्सों को नियंत्रित करने के लिए चले गए थे।
मराठा साम्राज्य के मुख्य बिंदु | जानकारी |
साम्राज्य | मराठा साम्राज्य |
संस्थापक | शिवाजी भोंसले |
मराठा शासनकाल | 1674 – 1818 |
अंतिम शासक | प्रतापसिंह छत्रपति |
राजधानियाँ | रायगढ़ किला, गिंगी, सतारा, पुणे |
मराठा राज्य का दूसरा संस्थापक | बालाजी विश्वनाथ |
मराठा राज्य के प्रथम पेशवा | बालाजी विश्वनाथ |
मराठा राज्य के अंतिम पेशवा | बाजीराव पेशवा द्वितीय |
भाषाएँ (Languages) | मराठी और संस्कृत |
पतन बाद किसने शासन किया | ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी |
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मराठा साम्राज्य की स्थापना (Establishment Of Maratha Empire)
कई सालो तक पश्चिमी दक्कन के पठार ने मराठी योद्धाओ के एक समूह के लिए घर का काम किया, जो शिवाजी भोसले नाम के प्रमुख योद्धा के अधीन था। 1645 में शिवाजी भोसले के नेतृत्व में बीजापुर की सल्तनत के शासक विरोध में खड़े हुए थे और एक नए साम्राज्य की स्थापना की थी, जिसे शिवाजी भोसले ने ‘हिंदवी स्वराज’ शब्द का नाम दिया था, जिसमे हिन्दुओ के बिच में स्व-शासन का आह्वान किया गया था। मुगलों के शासको को भारत देश से बहार नुकालने के लिए मराठा भी दृढ थे क्तोंकी वह भी यही चाहते थे की उनका देश हिन्दुओ द्वारा ही शासित हो।
इन सब के आलावा मुगलों के साथ शिवाजी भोसले का टकराव जो 1657 से शुरू हुआ था, वह मुगलों के तरफ घृणा के प्राथमिक कारणों में से रक के रूप में था। इन सब के बिच शिवाजी भोसले ने अपने अभियानों के माध्यम से भूमि के बहुत बड़े क्षेत्रो पर अपना अधिकार कर लिया था। शिवाजी ने मुगलों सहित कई अलग अलग शासको के साथ मुदो से निपटने के लिए एक सशस्त्र बल भी इकट्ठा कर लिया था। जब की उनके पास मराठो की नई भूमि पर शासन करने के लिए आधिकारिक ख़िताब का आभाव था। इसीलिए उपमहाद्वीप में हिंदू राज्य की स्थापना और विस्तार के उदेश्य से शिवाजी भोसले को 6 जून 1674 में मराठा राज्य का शासक घोषित कर दिया गया था।
मराठा साम्राज्य का विस्तार (Expansion Of Maratha Empire)
शिवाजी भोसले के राज्यभिषेक के समय पर सभी गैर-हिंदू शासको को एक संदेस भेजा गया था। इस संदेस से यह स्पष्ट था की हिंदुओ के लिए अपनी मातृभूमि पर नियंत्रण करने का समय है। शिवाजी भोसले ने एक बहुत ही भव्य राज्याभिषेक की मेजबानी करके (जिनमे 50 हजार से भी ज्यादा जनता और शासक भी शामिल हुए थे) अपने आपको हिंदू राष्ट्र का सम्राट धोषित कर दिया था। यह कार्यक्रम ने मुगलों को सीधा एक चेतावनी संकेत भेजा और शिवाजी ने अपने आपको मुगलों का प्रतिद्वंदी साबित किया था। और इसी कार्यक्रम में शिवाजी को छत्रपति की उपाधि से सम्मानित किया गया था। तो इस तरह शिवाजी भोंसले ने मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी।
शिवाजी के राज्यभिषेक के समय पर उनके पास शासन करने के लिए भारतीय उपमहाद्वीप का सिर्फ 4.1 प्रतिशत ही हिसा था। इसीलिए शिवाजी ने शुरुआत से ही अपने क्षेत्र का विस्तार करने पर बहुत ही ज्यादा ध्यान केंद्रित किया था। शिवाजी के राज्यभिषेक के लगभग तुरंत बाद ही रायगढ़ को राजधानी बनाते हुए उन्होंने अक्टूबर 1674 को खानदेश में छापामार पद्धति से कब्जा कर लिया था। फिर अगले दो साल के भीतर शिवाजी ने पोंडा, करवार, कोल्हापुर और अथानी जैसे कई आस-पास के प्रदेशो पर कब्ज़ा करके अपने साम्राज्य का विस्तार बड़ा कर लिया था। 1677 में शिवाजी भोंसले ने गोलकुंडा सल्तनत के शासक के साथ एक संधि में प्रवेश किया था, जो मुगलों पर एकजुट होकर विरोध करने के लिए शिवाजी भोंसले की शर्तो मानने पर सहमत हुए थे। उसी साल शिवाजी ने कर्नाटक पर हमला किया था और दक्षिण दिशा की और आगे बढ़ते हुए गिंगी और वेल्लोरे ले किलो को शिवाजी ने अपने अधीन कर लिया था।
शिवाजी भोंसले की मृत्य के बाद मराठा साम्राज्य उनके पुत्र संभाजी के अधीन रहा था। मुग़ल साम्राज्य औरंगजेब से लगातार खतरे के बावजूद भी शिवाजी के पुत्र संभाजी के नेतृत्व वाली मराठा सेनाओ ने लगातार आठ सालो तक औरंगजेब के नेतृत्व वाली सेना से लड़ाई में बिलकुल भी नहीं हारे। जब की 1689 में संभाजी को मुगलों द्वारा इस्लाम इस्लाम काबुल न करने पर बड़ी ही क्रूरता से टुकड़े-टुकड़े कर के मारा डाला गया था। उसके बाद मराठा वंश पर संभाजी के सौतेले भाई राजाराम शासन किया था, उसके आलावा राजाराम की विधवा ताराबाई और फिर संभाजी के बेटे शाहू जैसे कई शासको ने मराठा साम्राज्य पर शासन किया था।
मराठा साम्राज्य में पेशवा कार्यक्रम (Peshwa’s Tenure In Maratha Empire)
संभाजी के बेटे शाहू के मराठा साम्राज्य पर शासन के तहत बालाजी विश्वनाथ को 1713 में मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्री (पेशवा) के रूप में नियुक्त किया गया था। मराठा साम्राज्य पर शाहू के शासनकाल के समय में कुशल और बहादुर योद्धा राधोजी भोसले के नेतृत्व में पूर्व में साम्राज्य के विस्तार को भी देखा गया था। समय के साथ साथ शाहू अपने प्रधानमंत्री पेशवा बालाजी विश्वनाथ के हाथो की कठपुतली बन गया था, जिसने मराठा साम्राज्य के बेहतरीन भविष्य के लिए बड़े बड़े फैसले भी लिए थे।
शाहू के प्रधानमंत्री बालाजी विश्वनाथ ने साल 1714 में कान्होजी आंग्रे के साथ मिलकर जल में मराठा सेना की बहुत ही ताकत बढाई थी। मराठा साम्राज्य की नौसेना के सर्वप्रथम सिपहसालार कान्होजी आंग्रे थे। कान्होजी आंग्रे को सरखेल आंग्रे भी कहा जाता था। “सरखेल” शब्द का अर्थ भी औसेनाध्यक्ष होता था। कान्होजी आंग्रे ने अपने पुरे जीवनकाल में हिन्दू महासागर में ब्रिटिश, पुर्तगाली और डच नौसेनिक गतिविधियों के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी। जिसने मराठो को 1719 में दिल्ली की तरफ मार्च करने का विश्वास दिलाया था। इस समय पर मराठा मुग़ल गवर्नर सैय्यद हुसैन अली को भी हराने में सफल रहे थे। इस के बाद पहेले से ही कमजोर मुगल साम्राज्य को मराठो से बहुत ही डर लगने लगा था।
मराठा साम्राज्य के प्रधानमंत्री बालाजी विश्वनाथ का निधन अप्रैल 1719 में हुआ था, उनके निधन के बाद, बाजीराव प्रथम को मराठा साम्राज्य के नए पेशवा के रूप में नियुक्त किया गया था। बाजीराव प्रथम मराठा साम्राज्य के एक प्रमुख पेशवा बन गये थे, क्योंकि बाजीराव ने 1720 से लेकर 1740 तक मराठा वंश को आधे भारतवर्ष में फैला दिया था। बाजीराव प्रथम के बारे में यह कहा जाते है की उन्होंने 40 से भी ज्यादा लड़ाइयो में मराठा सेना का नेतृत्व किया था और सभी को जीता भी था। उनमे से ‘पालखेड की लड़ाई’ (1728), ‘दिल्ली की लड़ाई’ (1737) तथा ‘भोपाल की लड़ाई’ (1737) यह अभी लड़ाई मुख्य थी ।
बाजीराव प्रथम की अप्रैल 1740 में असमय मृत्यु हो गई थी। बाजीराव की मृत्यु के बाद शाहू ने बाजीराव के 19 साल में पुत्र बालाजी बाजीराव को नया पेशवा नियुक्त किया था। बाजीराव के पुत्र बालाजी बाजीराव के शासनकाल के समय में मराठा साम्राज्य अपने चरम पर पहुचने के लिए और भी ज्यादा आगे बढ़ा। मराठा साम्राज्य के प्रभावशाली विस्तार का एक अन्य महवपूर्ण कारण राधोजी भोंसले भी थे। राधोजी भोंसले ने मराठा साम्राज्य के नागपुर जिले को नियंत्रित किया था। तब राधोजी भोंसले ने बंगाल में छह अभियानों की एक श्रुंखला शुरू की थी। जिसके दौरान राधोजी भोंसले ओडिशा को मराठा वंश में शामिल करने के लिए सक्षम हुए थे। 17५१ में बंगाल राज्य के तत्कालीन नवाब, अलीवर्दी खान ने वार्षिक कर के रूप में 1.2 मिलियन रूपये तक का खर्च करने पर सहमती व्यक्त की थी। जिसने मराठा साम्राज्य के पहेले से ही समृद्ध धन में वृधि की थी। मराठा सेनाओ की उत्तर भारत विजय अभियान में अफगान सैनिको पर निर्णायक जीत बहुत हु ज्यादा प्रभावशाली दिखी। 8 मई 1758 में पेशावर राज्य पर कब्ज़ा करने के बाद मराठा साम्राज्य उत्तर में भी मुख्य साम्राज्य बन गया। 1760 की साल तक तो मराठा साम्राज्य 2.5 मिलियन वर्ग किमी से ज्यादा क्षेत्र के साथ अपने चरम पर पहुच गया था।
पानीपत की तीसरी लड़ाई (Third Battle Of Panipat)
भारतीय उपमहाद्वीप के उतर दिशा के क्षेत्र में मराठा की शक्ति के विस्तार ने अहमद शाह दुर्रानी के दरबार में बहुत ही बड़ी चिंता पैदा कर दी थी। अहमद शाह दुर्रानी ने मराठो को एक युद्ध के लिए चुनौती देने से पहेले और उत्तर भारत से मराठो को हटाने के प्रयत्नों में वध के नवाब सुजाउदौल और रोहिल्ला सरदार नजीब उददोला के साथ हाथ मिलाया था। अहमद शाह दुर्रानी और मराठो के बीच ‘पानीपत का तृतीय युद्ध’ 14 जनवरी 1761 में हुआ था। जब की युद्ध के शुरू होने से ठीक पहेले राजपूतो और जाटों द्वारा मराठाओ को छोड़ दिया गया था, जिसकी वजह से युद्ध में मराठो की हार सुनिश्चित हो गई थी। मराठो को युद्ध में पीछे हटने के पीछे और उनके मकसद को स्पष्ट करते हुए, राजपूतों और जाटों ने मराठों के अभिमान और धबराहट को हवाला दिया था।
मराठा साम्राज्य का पुनरत्थान (Maratha Empire Resurrection)
पानीपत की लड़ाई के बाद मराठा साम्राज्य के चौथे पेशवा माधवराव प्रथम ने मराठा साम्राज्य को फिर से एक बार जीवित करना शुरू किया था। मराठा साम्राज्य को ज्यादा प्रभावी ढंग से प्रबंधित करने के लिए, माधावराव प्रथम ने चयनित शूरवीर को अर्ध-स्वायतत्ता दी, जिन्होंने अलग-अलग अर्ध-स्वायत्त मराठा राज्यों की कमान संभाली थी। इसी वजह से अलग-अलग समूहों जैसे की पेशवा, होल्कर, गायकवाड, सिंडीदास, भोंसले और पुअर्स के नेताओ ने भिन्न-भिन्न मराठा राज्यों पर शासन करना शुरू कर दिया था। पानीपत की लड़ाई के बाद राजपूतो को मल्हार राव होलकर के नेतृत्व वाली सेनाओ ने हराया था, जिसने राजस्थान में मराठा शासन बहाल किया था। महादजी शिंदे एक अन्य प्रमुख नेता थे जो मराठा की शक्ति को बहाल करने में बहुत ही ज्यादा हद तक जिम्मेदार थे। रोहिल्ला और जाटों को युद्ध में हराने के बाद, महादजी शिंदे की सेना ने दिल्ली और हरियाणा को हटा दिया था। जिसकी वजह से उत्तर में मराठो की तस्वीर फिरसे वापस आ गई थी। इन सब के बिच में गजेन्द्रगढ़ की लड़ाई में तुकोजीराव होलकर ने एक मुख्य दक्षिण भारतीय शासक (जिसे टीपू सुल्तान के नाम से जाना जाता था) की हराया था। जिसने दक्षिण दिशा में तुंगभद्रा नदी तक मराठा साम्राज्य का क्षेत्र बढ़ाया था।
मराठा साम्राज्य का पतन (Fall Of Maratha Empire)
बंगाल राज्य के नवाब को हराने के बाद ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने बंगाल राज्य में अपनी सत्ता संभाली और साथ ही में उनकी नजर भारत के उत्तरी क्षेत्र पर भी थी, जिस पर बहुत ही ज्यादा हद तक मराठों का नियंत्रण था। ‘दिल्ली की लड़ाई’ में मराठों को अंग्रेजी सेनाओ ने 1803 में हराया था। जिसका नेतृत्व जनरल लेक ने किया हुआ था। द्वितीय एंग्लो-मराठा युद्ध के समय (जो 1803 से लेकर 1805 तक हुआ) आर्थर वेलेस्ले के नेतृत्व में ब्रिटिश सेना ने मराठों को हराया था, जिसने अंग्रेजो के पक्ष में कई सारी संधियों को जन्म दिया था। अंत में पिसरे एंग्लो-मराठा युद्ध के समय, पेशवा बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजों ने हरा दिया था, जिसने मराठा शासन को पूरीतरह समाप्त कर दिया था।
शासन प्रबंध (Administration)
एक बहुत ही प्रशासनिक प्रणाली जिसको ‘अष्टप्रधान’ ले नाम से जाना जाता था। जिसे शिवाजी ने अपने शासनकाल के समय में बनाई थी। यह प्रशासनिक प्रणाली में आठ मंत्री शामिल थे। जिसने मराठा प्रशासन का आधार बनया था। वह आठ मंत्री निम्नलिखित है।
- पेशवा (प्रधानमंत्री)
- अमात्य (वित्त मंत्री)
- सचिव (सचिव)
- मंत्री (आंतरिक मंत्री)
- सेनापति (कमांडर-इन-चीफ)
- सुमंत (विदेश मंत्री)
- न्यायादक्ष (मुख्य न्यायाधीश)
- पंडितराव (उच्च पुजारी)
शिवाजी भोंसले ने एक धर्मनिरपेक्ष प्रशासन को बनाए रखा था जो किसी भी व्यक्ति की पसंद के अनुसार किसी भी धर्म की प्रथा को मानने की अनुमति देता था।मराठा साम्राज्य के राजस्व में सुधर करने के लिए शिवाजी भोंसले ने ‘जागीरदार प्रणाली’ को समाप्त कर दिया था और ‘रायतवारी प्रणाली’ की शुरुआत की थी, शिवाजी ने गैर-मराठा क्षेत्रो पर बहुत ही भरी कर लगाया था और शासको को बहुत ही गंभीर परिणाम भुगतने की धमकी दी थी।
वैसे देखा जाए तो जहा तक सैन्य प्रशासन का सवाल है, तो शिवाजी भोंसले ने एक मजबूत नौसेना के निर्माण में बहुत विशेष रूचि दिखाई थी क्योंकि उन्होंने 1654 की शुरुआत से ही इसके महत्व को महसूस कर लिया था। और जब यह मराठाओ के भूमि-आधारित सशस्त्र बालो की बात आई तो पैदल सेना और तोपखाने के मानक यूरोपिय ताकतों के मानको की ही तुलना में थे। मराठो ने तोपों, कस्तूरी, माचिस, खंजर और अन्य हथियारों में भाले जैसे कई सारे हथियारों का इस्तेमाल किया था। मराठा अपने हथियारों का इस्तेमाल करने के तरीको में भी बहुत ही बुद्धिमान थे। मराठो ने अपने क्षेत्र की पहाड़ी प्रक्रति को ध्यान में रखते हुए, उन्होंने भारी धुडसवार सेना पर हल्की धुडसवार सेना को चुना था जो मुगलों के खिलाफ उनकी लड़ाई के समय में बहुत ही फायदेमंद साबित हुई थी।
उल्लेखनीय शासक और पेशवा (Famous Rulers and Peshwa)
शिवाजी: मराठा साम्राज्य की स्थापना के आलावा शिवाजी भोंसले मराठा शक्ति को एक मुख्य शक्ति में बदलने के लिए भी जिम्मेदार थे। शिवाजी भोंसले एक महान योद्धा और राजा के रूप में आज भी हमारे देश भारत के लोगो के एक बड़े से संप्रदाय में पूजे जाते है।
संभाजी: शिवाजी भोंसले की मृत्य के बाद उनसे सबसे बड़े पुत्र संभाजी मराठा साम्राज्य के सिंहासन पर बैठे थे। संभाजी जी ने भी अपने पिता शिवाजी तरह क्षेत्र का विस्तार बढ़ाना जारी रखा था। वैसे देखा जाए तो संभाजी अपने पिता की तुलना में उतने ज्यादा प्रभावी शासक के रूप में सामने नहीं आ पाए थे।
शाहू: शाहू संभाजी का पुत्र था। शाहू के शासनकाल में मराठा साम्राज्य ने एक बहुत ही बाद विस्तार देखा था। शाहू मराठा साम्राज्य के अंदर पेशवाओ के शासन को शरु करने के लिए भी जवाबदार थे।
ताराबाई भोंसले: ताराबाई भोंसले राजाराम की पत्नी थे। उन्होंने 1700 से लेकर 1708 तक मराठा साम्राज्य के शासक के रूप में काम किया था। ताराबाई अपने पति छत्रपति राजाराम भोंसले की मृत्यु के बाद मुगलों के खिलाफ खड़े हुए थे।
पेशवा बालाजी विश्वनाथ: बालाजी विश्वनाथ मराठा साम्राज्य के पेशवा थे, बालाजी विश्वनाथ ने 18वीं शताब्दी के समय में मराठा साम्राज्य पर नियंत्रण हासिल किया था। बालाजी विश्वनाथ पेशवा के रूप में उनके शासनकाल के समय में मराठा साम्राज्य का उत्तर दिशा की और विस्तार किया गया था।
बाजीराव: बाजीराव ने मराठा साम्राज्य का विस्तार बढ़ाना जारी रखा था। उसकी एक वजह यह है की मराठा साम्राज्य शिवाजी के बेटे संभाजी के शासनकाल के समय में शिखर पर पहुच गया था। उनका बहुत ही शानदार सैन्य अभ्यास था जिसकी वजह से वह दो दशक की लड़ाईयो में अपराजित रहे थे।
बालाजी बाजीराव: बालाजी बाजीराव को नाना साहेब के नाम से भी जाना जाता था। बालाजी बाजीराव मराठा साम्राज्य के सबसे महत्वपूर्ण पेशवा में से एक थे। क्योंकि वास्तविक राजा उनके कार्यकाल के समय में सिर्फ एक व्यक्ति पद के आलावा कुछ भी नहीं थे।
माधवराव प्रथम: माधवराव प्रथम मराठा साम्राज्य के चौथे नंबर के पेशवा थे। जिनको एक बहुत ही महत्वपूर्ण समय (जब मराठो ने पानीपत की तीसरी लड़ाई खो दी थी) में मराठा साम्राज्य का पेशवा बनाया गया था। इसी वजह से माधवराव प्रथम मराठा साम्राज्य के पुननिर्माण के लिए काफी हद तक जवाबदार थे।
मराठा साम्राज्य से जुड़े कुछ महत्वपूर्ण प्रश्न और उसके सही जवाब:
1. मराठा साम्राज्य के संस्थापक कौन थे?
मराठा साम्राज्य के संस्थापक शिवाजी भोंसले थे।
2. शिवाजी का जन्म कब हुआ था?
शिवाजी का जन्म 20 अप्रैल, 1627 में हुआ था।
3. शिवाजी का जन्म कहा हुआ था?
शिवाजी का जन्म शिवनेर के दुर्ग में हुआ था।
4. शिवाजी के पिता का नाम क्या था?
शिवाजी के पिता का नाम शाह जी भोंसले था।
5. शिवाजी की माता का नाम क्या था?
शिवाजी की माता का नाम जीजाबाई था।
6. जीजाबाई किसकी पुत्री थी?
जीजाबाई जागीरदार यादवराव की पुत्री थी।
7. माता जीजाबाई ने शिवाजी को किस शिक्षा से प्रेरित किया था?
माता जीजाबाई ने अपने पुत्र शिवाजी को ब्राह्मण, गाय, नारी जाती की रक्षा आदि से प्रेरित किया था।
8. शिवाजी के शिक्षक का नाम क्या था?
शिवाजी के शिक्षक का नाम दादाजी कोण्डदेव था।
9. शिवाजी भोंसले के जीवन पर किन धार्मिक संतो का प्रभाव पड़ा था?
शिवाजी भोंसले के जीवन पर गुरु रामदास और तुकाराम जैसे संतो का प्रभाव पड़ा था।
10. शिवाजी के गुरु कौन थे?
शिवाजी के गुरु का नाम समर्थ रामदास था।
11. अफजल खा की हत्या किसने की थी?
अफजल खा की हत्या शिवाजी भोंसले ने की थी।
12. शिवाजी भोंसले की मृत्यु कब हुई थी?
शिवाजी की मृत्यु 1680 में हुई थी।
13. शिवाजी को सलाह देने वाली मंत्रीपरिषद क्या कहलाती थी?
शिवाजी भोंसले को सलाह देने वाली मंत्रीपरिषद अष्ट प्रधान कहलाती थी।
14. मराठा राज्य के शासन की देखभाल तथा उन्नति का ध्यान रखना किसका कार्य था?
मराठा राज्य के शासन की देखभाल तथा उन्नति का ध्यान रखना पेशवा (प्रधानमंत्री) का कार्य था।
15. मराठा साम्राज्य की सबसे बहादुर महिला कौन थी?
मराठा साम्राज्य की सबसे बहदुर महिला ताराबाई थी।
16. मराठा साम्राज्य की प्रथम पेशवा कौन था?
मराठा साम्राज्य का प्रथम पेशवा बाजीराव प्रथम था।
17. कौन से युद्ध में मराठा शक्ति कमजोर हो गई थी?
एंग्लो-मराठा लड़ाई जो ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ लड़ी गई थी इस युद्ध में मराठा शक्ति कमजोर हो गई थी।
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Last Final Word:
तो दोस्तों हमने आज के इस आर्टिकल में आपको मराठा साम्राज्य का इतिहास और शासनकाल के बारे में बताया जिन में हमने आपको मराठा साम्राज्य की स्थापना, मराठा साम्राज्य का पतन का कारण, संबंधित युद्ध और प्रमुख शासक और पेशवा के बारे में विस्तार में बताया है।तो हम उम्मीद करते है की आप इन सभी जानकारियों के वाकिफ हो चुके होगे और आपको हमारा यह आर्टिकल पसंद भी आया होगा।
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