मौर्य साम्राज्य

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दोस्तों भारत पर कई सारे साम्राज्य ने अपना शासन स्थापित किया था। आज के इस आर्टिकल में हम ऐसे ही एक साम्राज्य के बारे में बात करेंगे। मौर्य साम्राज्य भारत के इतिहास का शक्तिशाली और बड़ा साम्राज्य रहा है। मौर्य साम्राज्य ने अपनी ताकत से भारत के इतिहास में अपना नाम अमर किया है।

नंद राजवंश के राजाओं ने मगध के साम्राज्य पर चौथी सदी ईसा पूर्व तक शासन किया था। मगध का साम्राज्य उत्तर का सबसे बड़ा शक्तिशाली साम्राज्य था। साम्राज्य में एक ब्राह्मण मंत्री था। जिसे चाणक्य, कौटिल्य और विष्णुगुप्त जैसे नाम से जाना जाता था। उसने मौर्य परिवार के चंद्रगुप्त नाम के नवयुवक को प्रशिक्षित किया था। चंद्रगुप्त ने अपने बलबूते पर सेना को संगठित किया, और 322 ईसा पुर्व में नंदा का तख्ता पलट दिया। जिसकी वजह से चंद्रगुप्त मौर्य को मौर्य राजवंश का प्रथम राजा माना जाता है। साथ ही साथ मौर्य राजवंश का संस्थापक भी माना जाता है। चंद्रगुप्त मौर्य की माता का नाम मूर था। जिसकी वजह से इसे संस्कृत में मौर्य कहा जाता था। इसका मतलब मुर का बेटा होता है। इसके लीए इस राजवंश को मौर्य साम्राज्य कहा जाता है।

मौर्य साम्राज्य के प्रमुख शासक

चंद्रगुप्त मौर्य

चंद्रगुप्त मौर्य ने मौर्य साम्राज्य पर 322 ईसा पूर्व से लेकर 298 ईसा पुर्व तक शासन किया था। विद्वानों का मानना है कि चंद्रगुप्त केवल 25 साल की उम्र का था, जब उसने नंदा के राजा धनानंद को युद्ध में पराजित करके पाटलिपुत्र पर अपना शासन स्थापित किया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने अपनी शक्तियों का परिचय सबसे पहले भारत के गंगा के मैदानों में दिया था। इसके बाद से वह पश्चिमी उत्तर की ओर आगे बढ़ गया। चंद्रगुप्त मौर्य ने थोड़े ही समय में पंजाब के पूरे विस्तार पर अपना शासन स्थापीत कर लीया था। चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकसनिकेटर, अलेक्जेंडर के यूनानी अधिकारी के विरुद्ध में लंबा युद्ध किया था। क्योंकि उन्होंने उत्तर के दुरत्तम के विस्तार पर अपनी पकड़ बना ली थी। आखिर में 305 ईसा पूर्व में चंद्रगुप्त ने उनको हरा दिया। साथ ही साथ एक संधी पर हस्ताक्षर किए गए। जिसके अनुसार सेल्यूकसनिकेटर, अलेक्जेंडर के यूनानी अधिकारी ने सिंधु के दूसरी तरफ के क्षेत्र आरिया(हृदय), अर्कोजिया (कंधार ), गेड्रोसिया(बालूचिस्तान ) और परोपनिशे (काबुल) को चंद्रगुप्त मौर्य को सौंप दिए और मौर्य साम्राज्य में इस विस्तारो को शामिल कर लिया गया। इसके बाद चंद्रगुप्त मौर्य ने सेल्यूकसनिकेटर को 500 हाथी भेट में दिए थे। जिसके बाद से चंद्रगुप्त मौर्य ने उनकी बेटी यूनानी मकेदोनियन राजकुमारी के साथ विवाह करके, दोनों के बीच के गठबंधन को मजबूत कर लिया। इस प्रकार चंद्रगुप्त ने सिंधु क्षेत्र पर अपना अधिपत्य स्थापित किया। जो वर्तमान समय का अफगानिस्तान का विस्तार है। बाद में चंद्रगुप्त मध्य भारत की ओर आगे बढ़ा और नर्मदा नदी के उत्तरी विस्तार को अपने कब्जे में लीया।

चंद्रगुप्त ने अपने जीवन के आखिरी समय में जैन धर्म को अपनाया था। और उसके बाद से उनके पुत्र बिंदुसार मौर्य वंश का उत्तराधिकारी बना। जिसके बाद से चंद्रगुप्त भद्रबाहु के नेतृत्व में जैन संतों के साथ मैसुर के समित आए हुए स्त्रवना बेल्गोला मैं जाकर रहने लगे। उन्होंने जैन प्रथा के अनुसार अपने आप को भुखा रख कर मृत्यु को प्राप्त किया।

बिंदुसार

मौर्य साम्राज्य में चंद्रगुप्त मौर्य के 25 सालों के शासन के बाद उनके पुत्र बिंदुसार ने शासन को संभाला था। बिंदुसार ने 297 ईसा पूर्व से लेकर 272 ईसा पूर्व तक शासन किया था। यूनानीयो ने बिंदुसार को अमित्रघटा की उपाधि दी थी। जिसका अर्थ दुश्मनों का कातिल होता है। विद्वानों के अनुसार बिंदुसार ने दक्कन को मैसूर तक के विस्तार को जीता था। तारानाथ के अनुसार बिंदुसार ने दो समुद्र के बीच की जमीन, जिस पर 16 राज्य बसे थे, उस पर अपना शासन स्थापित किया था। संगम साहित्य मैं बताया गया है, कि मौर्य साम्राज्य ने दूरतम दक्षिण तक हमला किया था। जिसके कारण यह माना जाता है कि मौर्य साम्राज्य का शासन विस्तार मैसूर में दूर तक फैला हुआ था, और समय रहते पूरे भारत को मौर्य साम्राज्य में शामिल कर लिया गया था। बिंदुसार के संबंध सेलेकुड सीरीया के राजा अंटीओचुस के साथ थे। उन्होंने डैमचुस को दूत बनाकर बिंदुसार की सभा में भेजा था। बिंदुसार ने एक ही धर्म पर आजीविकास में अपनी रुचि बनाए रखी। बिंदुसार ने अपने पुत्र अशोक को मौर्य साम्राज्य की उज्जयिनी का राज्यपाल घोषित कर दिया।

महान अशोक

मौर्य साम्राज्य पर अशोक ने 268 ईसा पूर्व से लेकर 232 ईसा पूर्व तक शासन किया था। उसके शासन में मौर्य साम्राज्य चरम पर पहुंचा। पहली बार दूरतम दक्षिण को छोड़कर संपूर्ण महाद्वीप पर मौर्य साम्राज्य का शासन था। अशोक 273 ईसा पुर्व में सिहासन पर बैठा और वास्तविक राजतीलक 269 ईसा पुर्व मे हुआ था। इससे मालूम पड़ता है कि बिंदुसार की मृत्यु के बाद मौर्य वंश के नये शासक के लिए संघर्ष हुआ होगा।

अशोक के शासन की सबसे बड़ी घटना कलींग के साथ 261 ईसा पुर्व के युद्ध में विजय प्राप्त करना था। युद्ध का कारण मालूम नहीं पड़ पाया है, परंतु कहा जाता है कि दोनों तरफ भारी नुकसान हुआ था। इस युद्ध के बाद अशोक स्वयं इन घावों से निराश था। जिसके बारे में अशोक ने अपने शिलालेख में उल्लेख किया है। युद्ध खत्म होती ही मौर्य साम्राज्य ने कलींग को अपने साम्राज्य मैं शामिल कर लिया। साथ ही साथ आगे कोई भी युद्ध ना करने का फैसला ले लिया। युद्ध का दूसरा सबसे महत्वपूर्ण परिणाम यह रहा कि अशोक बौद्ध भिक्षु उपगुप्ता से प्रभावित होकर बौद्ध धर्म के राह पर चलने लगे। हालांकि अशोक ने एक बड़ी और ताकतवर सेना को शांति और सत्ता के लिए बनाए रखा। अशोक ने अपने संबंध एशिया और यूरोप के पार भी बनाए थे।

अशोक के महेंद्र, तीवरा, कुनाल और तालुक नामक पुत्र थे। जिसका उल्लेख सिर्फ अभिलेखों में ही मिलता है। अशोक की दो पुत्रियां थी।जिसका नाम संघमित्रा और चारुमति था।

अशोक के बाद के मौर्य शासक

अशोक की मृत्यु 232 ईसा पूर्व में हुई थी। इसके बाद से मौर्य साम्राज्य दो हिस्सों में विभाजित हो गया था। पहला पूर्वी साम्राज्य और दूसरा पश्चिमी साम्राज्य। अशोक के पुत्र कुणाल ने मौर्य साम्राज्य के पश्चिमी विस्तार पर शासन किया। जबकि अशोक के पोते दशरथ ने मौर्य साम्राज्य के पूर्वी विस्तार पर शासन किया।

बादमें समराती, सलिसुक, देवरमन, सतधनवान और अंत में बृहदरथ ने मौर्य साम्राज्य पर शासन किया था। मौर्य साम्राज्य का आखरी शासक बृहदरथ था। जिसकी हत्या पुष्पमित्रा शुंग के द्वारा 184 ईसा पुर्व में की गई थी। जिसके बाद से पुष्यमित्रा शुंग ने शुंग राजवंश की स्थापना की थी।

Last Final Word

यह थी मौर्य साम्राज्य के बारे में जानकारी। हम उम्मीद करते हैं कि हमारी जानकारी आपको फायदेमंद रही होगी। यदि अभी भी आपके मन में इस विषय से संबंधित कोई सवाल हो गया हो तो हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य बताइए।

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