दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम मौर्य साम्राज्य के प्रशासन के बारे में जानकारी प्राप्त करेंगे। मौर्य साम्राज्य भारत के इतिहास का सबसे शक्तिशाली साम्राज्य रहा है। तो चलिए देखते हैं कि मौर्य वंश की प्रशासन व्यवस्था कैसी रही होगी।
मौर्य साम्राज्य की राजधानी पाटलिपुत्र थी। मौर्य साम्राज्य की प्रशासन व्यवस्था को सुयोग्य रूप से चलाने के लिए राजधानी पाटलिपुत्र के साथ-सथ मौर्य साम्राज्य को चार भागों में विभाजीत कीया गया था। मौर्य साम्राज्य के पूर्वी विस्तार की राजधानी तैसाली, उत्तरी विस्तार की राजधानी तक्षशिला, पश्चिमी विस्तार की राजधानी उज्जैन और दक्षिणी विस्तार की राजधानी सुवर्णगिरी थी। मौर्य साम्राज्य में कानून बनाने की शक्ति केवल राजा के पास थी। जब वर्णो और आश्रम पर निर्धारित सामाजिक व्यवस्था खत्म हो जाति थी, तो कौटिल्य राजा को धर्म का प्रचार करने के लिए कहेता था।
मेगस्थनीस के अनुसार मौर्य साम्राज्य के उपयोग के लिए 600000 पैदल सेना, 30,000 घुड़सवार सेना और 9000 युद्ध हथियारों की समारीक सेना रखी गई थी। आंतरिक और बाह्य सुरक्षा को बनाए रखने के लिए एक विशाल जासूसी प्रणाली रखी गई थी। जिसकी नजर अधिकारियों और दुतों पर रहती थी। मौर्य साम्राज्य के शासक साम्राज्य के चरवाहों, किसानों, व्यापारियों और कारीगरों से कर जमा करने के लिए अधिकारियों को नियुक्त करता था। प्रशासनिक अधिरचना का केंद्र राजा होता था। राजा मंत्रियों और उच्च अधिकारियों की नियुक्ति करता था। साम्राज्य में प्रशासनिक अधिकारियों की नियुक्ति करने से पहले उनकी योग्यता और चरित्र को परखा जाता था। इस प्रक्रिया को उपधा परीक्षण के नाम से जाना जाता था।
मौर्य साम्राज्य के प्रशासन के बारे में संपूर्ण जानकारी कौटिल्य के अर्थशास्त्र और यूनानी लेखक मेगस्थनीज की लिखित पुस्तक इंडिका में से मिलती है। अशोक के अभिलेखों में भी साम्राज्य के प्रशासन के बारे में उल्लेख मिलता है।
मौर्य साम्राज्य के प्रशासन में पहली बार भारत में राजनीतिक एकता देखी गई थी। कौटिल्य ने साम्राज्य के 7 अंग बताए थे। जो नीचे दिए गए हैं।
- राजा
- अमात्य
- जनपद
- दुर्ग
- कोष
- सेना
- मित्र
राजा को मंत्री परिषद द्वारा सहायता मिलती थी। मंत्री परिषद की सभ्य और अध्यक्ष नीचे बताए गए हैं:
- युवराज: साम्राज्य का युवराज
- पुरोहित: मुख्य पुजारी के रूप में
- सेनापति: सेना का प्रमुख
- अमात्य: सिविल सेवक और कुछ अन्य मंत्री गण का समावेश होता है।
विद्वानों के द्वारा कुछ सुझाव दिए गए थे, जिसके बाद से मौर्य साम्राज्य को आगे चलकर महत्वपूर्ण अधिकारियों के साथ अलग-अलग विभागों में विभाजित किया गया था।
राजस्व विभाग: इसी बात के महत्वपूर्ण अधिकारी में नीचे बताए गए सदस्यों का समावेश होता है।
- सन्निधाता: प्रमुख कोषागार
- समहर्थ: राजस्व संग्राहक अधिकारी
सैन्य विभाग: मेगस्थनीस ने सेना की गतिविधियों के समन्वय के हेतु से 6 उप समितियों के साथ एक समिति का निर्माण किया था। पहली उप समिति का कार्य नौसेना की देखरेख करना था। दूसरी उप समिति का कार्य परिवहन पर और प्रावधानों पर नजर रखना, तीसरी समिति का कार्य पैदल सैनिकों का ख्याल रखना, चौथी उप समिति का कार्य सेना के घोड़ों की देखभाल करना, पांचवी का कार्य रथो की देखभाल करना और छठी का कार्य हथियारों के देखभाल की जिम्मेदारी रखना था।
- जासूसी विभाग: महामात्यपासारपा गुधापुरुषो को नियंत्रित करने का कार्य करता था।
- पुलिस विभाग: मौर्य साम्राज्य में जेल को बंदी गृह के नाम से जाना जाता था। सभी मुख्य केंद्रों पुलिस मुख्यालयों में होते थे।
- नगर प्रशासन: नगर प्रशासन के महत्वपूर्ण अधिकारी नीचे बताए गए हैं:
- नगारका: शहर प्रशासन का प्रभारी अधिकारी
- सीता- अध्यक्ष: कृषि क्षेत्र का प्रधान अधिकारी
- सामस्थ-अध्यक्ष: बाजार प्रधान अधिकारी
- नवाध्यक्ष: जहाजों का नियंत्रण करने वाला प्रधान अधिकारी
- शुल्काध्यक्ष: पथ-कर का प्रधान अधिकारी
- लोहाध्यक्ष: लोहे का प्रधान अधिकारी
- अकाराध्यक्ष: खानों का प्रधान अधिकारी
- पौथवाध्यक्ष: वजन और माप पर नियंत्रण रखने वाला प्रधान अधिकारी
मेगस्थनीस के द्वारा 6 समितियों का वर्णन करने में आया है। जिसमें से पांच पाटलिपुत्र का प्रशासन पर नजर रखती थी। प्रशासन के नियंत्रण में उद्योगों, विदेशियों, जन्म और मृत्यु का पंजीकरण, व्यापार, निर्माण और माल की बिक्री तथा बिक्री कर का संग्रह जैसी चीजे है आती थी।
केंद्रीय प्रशासन: मौर्य काल में प्रशासन मुख्य रूप से राजा के द्वारा नियंत्रित होता था। प्रशासन के प्रमुख अंग में कार्यपालिका, व्यवस्थापिका और न्यायपालिका का नियंत्रण करने में आता था। पतंजलि द्वारा रचित महाभाष्प मैं चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल की सभा का उल्लेख किया गया है।
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में वर्णित अध्यक्ष उनके बताए गए हैं।
- पण्याध्यक्ष- वाणिज्य विभाग का नियामक
- सुराध्यक्ष- आबकारी विभाग का नियामक
- सूनाध्यक्ष- बूचड़खाने का नियामक
- गणिकाध्यक्ष- गणिकाओं का नियामक
- सीताध्यक्ष- कृषि विभाग का नियामक
- अकराध्यक्ष- खान विभाग का नियामक
- कुप्याध्यक्ष- वनों का नियामक
- कोष्ठगाराध्यक्ष- कोष्ठगार का नियामक
- आयुधगाराध्यक्ष- आयुधगार का नियामक
- शुल्काध्यक्ष- व्यापार कर वसूलने वाला नियामक
- सूत्राध्यक्ष- कताई-बुनाई विभाग का नियामक
- लोहाध्यक्ष- धातु विभाग का नियामक
- लक्ष्नाध्यक्ष- छापेखाने का नियामक
- गो-अध्यक्ष- पशुधन विभाग का नियामक
- विविताध्यक्ष- चरागाहों का नियामक
- मुद्राध्यक्ष- पासपोर्ट विभाग का नियामक
- नवाध्यक्ष- जहाजरानी विभाग का नियामक
- पत्त्नाध्यक्ष- बन्दरगाहों का नियामक
- संस्थाध्यक्ष- व्यापारिक मार्गों का नियामक
- देवताध्यक्ष- धार्मिक संस्थाओं का नियामक
- पोताध्यक्ष- माप-तौल का नियामक
- मानाध्यक्ष- दूरी और समय से सम्बंधित साधनों की नियंत्रित करने वाला नियामक
- अश्वाध्यक्ष- घोड़ों का नियामक
- हस्ताध्यक्ष- हाथियों का नियामक
- सुवर्णाध्यक्ष- सोने का नियामक
- अक्षपटलाध्यक्ष- महालेखाकार का नियामक
कौटिल्य के अर्थशास्त्र में 18 विभाग और विभाग के प्रमुख के बारे में चर्चा की गई है जो नीचे बताई गई है।
- मन्त्री और पुरोहित: धर्माधिकारी
- समाहर्ता: राजस्व विभाग का प्रधान अधिकारी
- सन्निधाता: राजकीय कोषाध्यक्ष
- सेनापति: युद्ध विभाग का अध्यक्ष
- युवराज: राजा का उत्तराधिकारी
- प्रदेष्टा: फौजदारी न्यायालय का न्यायाधीश
- नायक: सेना का संचालक
- कर्मान्तिक: उद्योग धन्धों का प्रधान निरीक्षक
- व्यावहारिक: दीवानी न्यायालय का न्यायाधीश
- मन्त्रिपरिषदाध्यक्ष: मन्त्रिपरिषद का अध्यक्ष
- दण्डपाल: सैन्य का अधिकारी
- अन्तपाल: सीमावर्ती दुर्गों का रक्षक
- दुर्गपाल: दुर्गों का प्रबन्धक
- नागरक: नगर का मुख्य अधिकारी
- प्रशस्ता: राजकीय आज्ञाओं को लिखने वाला प्रमुख अधिकारी
- दौवारिक: राजमहलों की देख-रेख करने वाला
- अन्तर्वंशिक: सम्राट की अंगरक्षक सेना का प्रधान नियामक
- आटविक: वन विभाग प्रमुख
प्रांतीय प्रशासन
मौर्य शासन काल में प्रशासन की कुशलता के लिए साम्राज्य को 4 क्षेत्रों में विभाजित किया गया था। परंतु बाद में अशोक के कार्यकाल में साम्राज्य के क्षेत्र की संख्या 5 हो गई थी। क्षेत्रों में उत्तरापथ, दक्षिणापथ, अवंती राष्ट्र और कलिंग का समावेश होता है। पूर्वी कलिंग विस्तार की राजधानी तैसाली, उत्तरी विस्तार उत्तरापथ की राजधानी तक्षशिला, पश्चिमी विस्तार अवंती की राजधानी उज्जैन और दक्षिणी विस्तार दक्षिणापथ की राजधानी सुवर्णगिरी थी। क्षेत्र के प्रशासन के लिए कुमारों को नियुक्तत किया जाता था। इस प्रांतों को आगे जिलेेेे और गांव मेें विभाजित किया जाता था। गांंव प्रशासन का सबसे छोटा विस्ताार था। 100 गांव मिलकर संग्रहण बनाते थे। अलग-अलग प्रशासानिक विस्तार के लिए अलग-अलग अधिकारियोंं की नियुक्ति करनेे मे आती थी।
गुप्तचर व्यवस्था
ऐसा कहा जाता है कि मौर्य साम्राज्य के शासनकाल में सबसे पहले गुप्त चरो को बड़े स्तर पर नियुक्त किया जाता था। मौर्य साम्राज्य को आंतरिक विद्रोह और बाहरी आक्रमण से बचाने के लिए गुप्तचरो की भूमिका महत्वपूर्ण रहती थी। राज्य की सुरक्षा से संबंधित सूचनाएं सेना तक पहुंचाने का कार्य करते थे। महिलाएं भी गुप्तचर का कार्य करती थी। मौर्य के शासनकाल में संस्था और संचरा नाम की दो गुप्तचर संस्थाएं अस्तित्व में थी।
Last Final Word
दोस्तों यह थी मौर्य साम्राज्य के प्रशासन के बारे में जानकारी। हम उम्मीद करते हैं हमारी जानकारी से आपको आपके प्रश्नों के जवाब मिल गए होगे। यदि अभी भी आपके मन में इस विषय से संबंधित कोई भी सवाल रह गया हो तो हमें कमेंट के माध्यम से अवश्य बताइए। हमारी हमारा आर्टिकल आपको पसंद आया तो अपने दोस्तों के साथ इसी शेयर कीजिए।
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