भारत में सदीओ से कई सारे महान महाराजा ने सफलता पूर्वक शासन किया है। भारत का इतिहास देखे तो कई सारे महाराजा ने अपने राज्य के लिए अपनी जान की आहुति दी है। उनकी बहादुरी के किस्से आज भी भारत के इतिहास के पन्नो पर देख सकते है। उनको देखकर हमें गर्व की अनुभूति होती है, की भारत में एसे भी राजा थे जिन्हों ने अपनी कौशल्यता का उपयोग करके भारत देश का नाम दुनिया में अमर कर दिया है। भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य, कृष्णदेवराय और महाराणा प्रताप जैसे महान राजा हो चुके है। एसे ही एक महान महाराजा पृथ्वीराज चौहान के बारे में आज हम इस आर्टिकल में बात करेंगे। उम्मीद है की आप हमारी दी गई जानकारी को ध्यान से पढेंगे ताकि आपको हमारे देश के महान महाराजा पृथ्वीराज चौहान के बारे में सम्पूर्ण माहिती मिल सके।
पृथ्वीराज चौहान एक बहादुर राजा थे जिन्होंने अपने साहस और पराक्रम से अपने नाम को भारत के इतिहास में अमर कर दिया है। उनके कद काठी काफी आकर्षक थी उन्होंने अपने शस्त्र विद्या से कई सारे दुश्मनों को हार का सामना कराया है। उनकी वीरता और साहस का उदाहरण मोहम्मद गोरी की मृत्यु से मिलता है। मोहम्मद गोरी ने पृथ्वीराज चौहान को अपना कैदी बनाकर जेल में बंदी बना लिया था साथ ही उनकी आंखों की रोशनी को छीन लिया गया था। इन सबके बावजूद पृथ्वीराज चौहान ने मोहब्बत गोरी को उसी के ही दरबार में मार डाला था।
चंदबरदाई जो पृथ्वीराज चौहान के अच्छे दोस्त एवं महान कवि थे उन्होंने पृथ्वीराज के जीवन पर आधारित पृथ्वीराज चौहान रासो की रचना की थी। उनकी इस रचना में उन्होंने यह भी उल्लेख किया है कि पृथ्वीराज हाथी को नियंत्रित करने वाली विद्या में अत्यंत निपुण थे। तो चलिए देखते हैं पृथ्वीराज का इतिहास क्या रहा था।
पृथ्वीराज चौहान का इतिहास (Prithviraj Chauhan History in Hindi)
नाम (Name) | पृथ्वीराज चौहान (Prithviraj Chauhan) |
जन्म (Birthday) | 1149, पाटण, गुजरात, भारत |
पिता का नाम (Father Name) | सोमेश्वर चौहान |
माता का नाम (Mother Name) | कर्पूरा देवी |
पत्नी का नाम (Wife Name) | संयोगिता |
बच्चे (Children Name) | गोविन्द चौहान |
मृत्यु (Death) | 1192 |
पृथ्वीराज चौहान का प्रारंभिक जीवन
भारतवर्ष के महान साहसी,निडर और पराक्रमी राजा पृथ्वीराज का जन्म चौहान वंश के क्षत्रिय कुल में हर्षोल्लास के साथ हुआ था। उनके पिता का नाम सोमेश्वर और माता का नाम कर्पुरा देवी था। ऐसा माना जाता है कि कई सारी मन्नत और पूजा पाठ करने के बाद काफी सालों के पश्चात पृथ्वीराज का जन्म हुआ था। उनका जन्म होते ही उनके राज्यों के कुछ लोगों ने उनकी मृत्यु के लिए षड्यंत्र रखने की शुरुआत कर दी थी। उन्होंने अपने शत्रुओं के हर षड्यंत्र को असफल कर दीया और अपने कर्तव्य पथ पर आगे बढ़ते रहे। उनका जन्म राज परिवार में होने के वजह से बचपन से ही उनका पालन पोषण सुख समृद्धि और वैभवशाली वातावरण में किया गया था।
पृथ्वीराज चौहान ने अपनी शिक्षा सरस्वती कण्ठाभरण विद्यापीठ से हासिल की थी। पृथ्वीराज ने अपनी शस्त्र विद्या का ज्ञान अपने गुरु श्री राम जी से प्राप्त किया था। पृथ्वीराज अपनी छोटी सी उम्र में ही बड़े साहसी वीर, कौशल्यशाली, पराक्रमी और युद्ध की सभी कलाओं में निपुण हो गये थे।
पृथ्वीराज चौहान ने अपने बचपन मैं ही शब्दभेदी बाण चलाने की अद्वितीय कला को सीख कर उसमें निपुण हो गए थे। शब्दभेदी की कला में बिना देखे सिर्फ आवाज के आधार पर बाण से लक्ष्य को भेदना होता है। पृथ्वीराज ने एक बार बिना किसी शस्त्र का प्रयोग करें एक सिंह को मार डाला था।
पृथ्वीराज को पराक्रमी राजा के रूप में पूरे भारत में जाना जाता था। चंदबरदाई बचपन से ही पृथ्वीराज के सबसे सच्चे और अच्छे मित्र थे। आपकी जानकारी के लिए बता देगी चंदबरदाई तोमर वंश के शासक अनंगलपाल की पुत्री के बेटे थे। चंदबरदाई ने पृथ्वीराज चौहान के सहयोग से पिथौरागढ़ का स्थापन किया था। जीसे आज के समय में पुराने किले के नाम से दिल्ली में मशहूर है।
पृथ्वीराज चौहान शासक के स्वरूप में
पृथ्वीराज चौहान के पिता सोमेश्वर जी की मृत्यु के समय पर उनकी उम्र सिर्फ 11 साल की थी सोमेश्वर जी की मृत्यु के बाद पृथ्वीराज चौहान अजमेर के सिहासन पर बैठे उन्होंने अपने शासन से प्रजा की सभी उम्मीदों को पूर्ण करके एक आदर्श राजा के रूप में जाने गए। साथ ही साथ पृथ्वीराज ने दिल्ली पर अपना शासन चलाकर अपना सिक्का चलाया था। पृथ्वीराज की माता कर्पुरा देवी उनके पिता अनंगपाल की एक ही बेटी थी। अनंगपाल ने अजमेर के शासक सोमेश्वर चौहान से पृथ्वीराज की प्रतिभा का अंदाजा लगाते हुए अपने साम्राज्य का सिहासन पृथ्वीराज को दे देने की अपनी इच्छा को प्रकट किया था। साल 1166 में आनंदपाल की मृत्यु हो गई इसके बाद उनकी इच्छा के अनुसार पृथ्वीराज को दिल्ली की राजगद्दी पर बिठाया गया। पृथ्वीराज ने कुशलतापूर्वक दिल्ली के साम्राज्य को संभाला और अपने नाना के विश्वास को कायम रखा।
उन्होंने अपने शासनकाल में अपने साम्राज्य को मजबूत बनाने के लिए कई सारे कार्य किये और कई सारे अभीयान चलाएं जिसकी वजह से उनको पराक्रमी योद्धा के साथ-साथ लोकप्रिय शासक के रूप में पहचाने जाने लगे।
पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता की अमर प्रेम कथा
पृथ्वीराज चौहान और राजकुमारी संयोगिता की प्रेमकथा को उदाहरण के तौर पर आज भी याद किया जाता है। उनके प्रेम कथा की कहानी को लेकर आज के समय में कई सारे टीवी सीरियल और फिल्में बनाई गई है। पृथ्वीराज राजकुमारी संयोगिता एक दूसरे से बिना मिले केवल तस्वीर को देखकर आकर्षित हो जाते थे और एक दूसरे को अटूट प्रेम करते थे।
पृथ्वीराज चौहान के अद्वितीय साहस और नेता की कहानी चारों ओर फैली हुई थी। उस समय राजा जयचंद की बेटी संयोगिता ने पृथ्वीराज की बहादुरी और पराक्रम के साथ-साथ उनके आकर्षण के किस्से सुने। पृथ्वीराज के बारे में जानकर राजकुमारी संयोगिता के ह्रदय में पृथ्वीराज के प्रति प्रेम की भावना उत्पन्न ना हो गई थी। राजकुमारी संयोगिता चोरी-छिपे उनको पत्र भेजा करती थी।
राजकुमारी संयोगिता बेहद खूबसूरत थी। उनकी खूबसूरती ने पृथ्वीराज चौहान को उनकी तरफ आकर्षित किया था। राजकुमारी की तस्वीर को देखते ही पृथ्वीराज को भी उनसे प्रेम हो गया था। वही राजकुमारी संयोगिता के बारे में उनके पिता और राजा जयचंद को मालूम पड़ा तो उन्होंने अपनी पुत्री की शादी के लिए स्वयंवर रचने की घोषणा कर दी। उसी समय राजा जयचंद ने पूरे भारत पर अपना शासन स्थापित करने की इच्छा को ध्यान में रखकर अश्वमेध यज्ञ करने का आयोजन भी किया था। यज्ञ के तुरंत बाद राजकुमारी संयोगिता के विवाह के लिए स्वयंवर होने वाला था। राजा जयचंद क्रूर और घमंडी राजा होने के कारण से पृथ्वीराज यह नहीं चाहते थे कि उनका भारत पर प्रभुत्व स्थापित हो। पृथ्वीराज चौहान ने उनका विरोध किया था।
पृथ्वीराज चौहान के द्वारा किए जाने वाले विरोध से राजा जयचंद के मन में उनके प्रति धृणा और क्रोध बढ़ गया था। राजा जयचंद ने राजकुमारी संयोगिता के स्वयंवर के लिए भारत के अनेक छोटे बड़े महान पराक्रमी योद्धाओं को आमंत्रण भेजा था,परंतु पृथ्वीराज चौहान को अपमानित करने के लिए उनको आमंत्रण नहीं भेजा गया। साथ ही द्वार रक्षक की जगह पर पृथ्वीराज की तस्वीर लगा दी थी ताकि वे अपमानित हो जाए।
पृथ्वीराज चौहान ने राजा जयचंद्र की इस चाल को भाप लिया था। और अपनी प्रेमिका संयोगिता को हासिल करने के लिए एक गुप्त चाल तैयार की थी। पृथ्वीराज चौहान के समय में हिंदू धर्म में लड़कियों को अपने पसंदी के जीवनसाथी चुनने का संपूर्ण अधिकार था। अपने स्वयंवर के दरमियान वे जीस व्यक्ति के गले में फुलो का हार डाल दी थी उसकी पसंदगी उसके वर के रूप में हो जाती थी।
स्वयंवर के दिन देश के विभिन्न राज्यों से आए हुए बड़े-बड़े महान राजा, अपने बेहद खूबसूरत सौंदर्य के लिए पहचानी जाने वाली राजकुमारी संयोगिता से शादी करने के लिए उपस्थित हुए थे। स्वयंवर के चलते संयोगिता वरमाला लेकर एक के बाद एक सभी राजाओं के सामने से पसार हुई और जब उनकी नजर द्वारपाल की जगह पर रहे पृथ्वीराज की तस्वीर पर पड़ी तभी उन्होंने पृथ्वीराज चौहान की मूर्ति पर वरमाला पहना दी। इस घटना से सभी राजाओं को अपमानित महसूस हुआ।
पृथ्वीराज चौहान की गुप्त योजना के चलते द्वारपाल की मूर्ति के पीछे पृथ्वीराज चौहान स्वयं खड़े हुए थे। और उसी वक्त राजा जयचंद के सामने राजकुमारी संयोगिता को लेकर राजधानी दिल्ली में चले गए। जाते जाते उन्होंने सभी राजाओं को युद्ध के लिए आवाज देते गए।
इस घटना के पश्चात राजा जयचंद अत्यंत क्रोधित हुए और गुस्से में आकर अपने सैन्य को पृथ्वीराज के पीछे लगा दिया। राजा जयचंद की सेना पृथ्वीराज को पकड़ने में असफल रही। और उसका कुछ नहीं बिगाड़ पाई। इसके बाद दोनों के बीच में वर्ष 1189 से लेकर वर्ष 1190 मैं बहुत बड़ी लड़ाई हुई। इस युद्ध में कई सारे सैनिकों की जान चली गई। इसके साथ ही दोनों सेनाओं को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
पृथ्वीराज चौहान का विशाल सैन्य
पृथ्वीराज चौहान जो एक अद्वितीय शासक थे उनके पास सबसे बड़ी सेना थी। उनकी सेना में लगभग 300000 सिपाही और 300 हाथी की संख्या थी। उनकी विशाल सेना में घोड़ों की संख्या भी ज्यादा प्रमाण में थी। उनकी सेना बड़ी होने के साथ-साथ काफी मजबूत और अच्छी तरह से संगठित की गई थी। पृथ्वीराज की इस बड़ी सेना की वजह से उन्होंने सारी लड़ाई जीती है, साथ ही अपने साम्राज्य का विस्तार भी बढ़ाया है। उनको जैसे-जैसे युद्ध में सफलता हासिल होती गई वैसे वैसे अपनी सेना को और विशाल बनाते गए। भारत के इतिहास के सबसे बड़े महान पराक्रमी इस योद्धा के पास नारायण युद्ध के समय केवल 200000 घुड़सवार सिपाही और 500 हाथी तथा कई सारे सैनिक थे।
पराक्रमी योद्धा पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी की प्रथम लड़ाई
चौहान वंश के सबसे बड़े पराक्रमी बुद्धिमान और अद्वितीय शासक पृथ्वीराज चौहान में अपने शासनकाल के समय में अपने साम्राज्य को एक नयी बुलंदियों पर पहुंचा दिया था पृथ्वीराज ने अपनी कुशल नीतियों और सूझबूझ से अपने साम्राज्य के विस्तार को बढ़ाया था।
पृथ्वीराज पंजाब के साम्राज्य पर भी अपना शासन स्थापित करना चाहते थे। परंतु पंजाब पर मोहम्मद शाबुद्दीन गोरी का राज था। पृथ्वीराज को यदि पंजाब पर अपना अधिकार स्थापित करना हो तो मोहम्मद गोरी के साथ युद्ध करना अनिवार्य था इसके पश्चात पृथ्वीराज चौहान ने अपनी सेना के साथ मिलकर मोहम्मद गोरी पर चढ़ाई कर दी।
इस युद्ध के पश्चात पृथ्वीराज ने सरहिंद, सरस्वती ओर हांसी पर अपना शासन स्थापित कर लिया था। परंतु उसी समय अनिलवाड़ा पर मोहम्मद गौरी की सेना ने आक्रमण कर दिया था और पृथ्वीराज की सेना को कमजोर बना दिया था, जिसके चलते पृथ्वीराज ने सरहिंद के किले पर से अपना अधिकार गुमा दिया था।
इस घटना के बाद चुरा चौहान ने स्वयं मोहम्मद गोरी के साथ साहस से युद्ध किया जिसमें मोहम्मद गोरी गंभीर रूप से घायल हो गया। जिसकी वजह से उसको युद्ध के बीच में भागना पड़ा था। हालांकि इस लड़ाई से कोई तारण नहीं निकला था। उनकी लड़ाई सरहिंद किले के पास के विस्तार तराइन नाम के स्थान पर हुई थी। जिसकी वजह से इसे तराइन का युद्ध के नाम से भी जाना चाहता है।
जब पृथ्वीराज चौहान मोहम्मद गोरी के षड्यंत्र में फस कर हार गऐ
वीर पराक्रमी योद्धा पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को युद्ध के मैदान में 16 बार पराजित किया था। परंतु पृथ्वीराज चौहान ने हर युद्ध के अंत में जीवित ही छोड़ दिया था। पृथ्वीराज से कई बार हार जाने से मोहम्मद गोरी के मन में उनके प्रति आक्रोश भरा हुआ था। जिसके बारे में संयोगिता के पिता राजा जयचंद्र जो पृथ्वीराज के कट्टर दुश्मन थे उनको पता चला तो उन्होंने मोहम्मद गोरी के साथ मिलकर पृथ्वीराज की हत्या करने का षड्यंत्र रचा।
राजा जयचंद और मोहम्मद गोरी ने साथ मिलकर वर्ष 1192 मैं अपने विशाल सेना बल से पृथ्वीराज चौहान पर वापिस तराइन के मैदान में चढ़ाई कर दी। इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान अकेले पड़ गए थे। जिसकी वजह से उन्होंने अन्य राजपूत राजाओं को मदद करने के लिए कहा, परंतु रानी संयोगिता के स्वयंवर में उनके द्वारा किए गए अपमान की वजह से कोई भी राजपूत राजा उनकी मदद के लिए तैयार नहीं हुए।
राजा जयचंद ने मौके का फायदा उठाते हुए पृथ्वीराज चौहान के मन में भरोसा कायम करने के इरादे से अपनी सेना को उनके हवाले सौंप दिया। उदार स्वभाव के पृथ्वीराज चौहान उनके चाल को समझ नहीं पाए राजचंद्र की सेना ने कपट से पृथ्वीराज चौहान के सिपाहियों को मार दिया। इस लड़ाई के पश्चात पृथ्वीराज और उनके दोस्त अपने षड्यंत्र में फसाकर कैदी बना लिया और बंदी बनाकर अफगानिस्तान ले गए।
पृथ्वीराज के बंदी बनने के बाद मोहम्मद गोरी ने दिल्ली, पंजाब,अजमेर और कन्नौज मैं अपना शासन स्थापित किया। पृथ्वीराज चौहान के बाद दिल्ली के शासन पर कोई भी राजपूत राजा ने शासन नहीं किया था।
पृथ्वीराज चौहान की आंखें जब मोहम्मद गोरी ने जला दी
पृथ्वीराज चौहान से युद्ध में कई बार हार जाने की वजह से मोहम्मद गोरी के मन में उनके प्रति अत्यंत आक्रोश भरा हुआ था। इसीलिए उनको केदी बनाने के बाद शारीरिक अत्याचार और मुस्लिम धर्म को अपनाने के लिए प्रताड़ित किया गया। सभी तरह के शारीरिक यातना सहने के बावजूद वीर पृथ्वीराज अडिग रहे और दुश्मनों के दरबार में अपने सिर पर किसी भी तरह का कोई सिकन लाए बिना मोहम्मद गोरी की आंख में आंखें डाल कर पूरे आत्मविश्वास के साथ और निडरता के साथ देखते रहे।
इस घटना से विचलित होकर मोहम्मद गोरी ने उन्हें आंखें को नीचे रखने का हुकुम किया। किंतु राजपूत के पराक्रमी योद्धा पर इसका जरा भी असर नहीं हुआ। इसकी वजह से मोहम्मद गौरी का आक्रोश बढ़ गया और उनकी आंखों को गर्म सलाखों से जला देने का आदेश जाहिर किया। आंखें जलाने के बाद भी उसका मन नहीं भरा और शारीरिक झूलम करता रहा। अंत में उसने पृथ्वीराज को जान से मार डालने का आदेश दे दिया।
मोहम्मद गोरी पृथ्वीराज चौहान को मार दे उसके पहले पृथ्वीराज चौहान के परम मित्र और राजकवि चंद्रवरदाई ने उनकी शब्दभेदी बाण चलाने की कला के बारे में बताया। उसकी बात सुनकर मोहम्मद गोरी हंसने लगा और कहा एक अंधा बाण कैसे चला सकता है। बाद में उसने तिरंदाबाजी की प्रतियोगिता का आयोजन किया।
इस प्रतियोगिता में शब्दभेदी बाण की कला में निपुण पृथ्वीराज को अपने मित्र के द्वारा बताए गए दोहे के माध्यम से अपनी अद्भुत शक्ति का प्रदर्शन करना था। पृथ्वीराज ने अपने मित्र के दोहे के सहायता से मोहम्मद गोरी कितनी दूरी पर है और किस दिशा में है, उसे जानकर मोहम्मद गौरी की हत्या उसी के दरबार में कर डाली। इस घटना के बाद अपने दुश्मनों के हाथों से मरने के बजाए दोनों ने एक दूसरे पर बाण चलाकर अपने प्राण त्याग दिए। जब राजकुमारी संयोगिता को इस घटना के बारे में पता चला तो उन्होंने भी अपने प्राणों का त्याग कर दिया। पृथ्वीराज चौहान के मित्र द्वारा बताए गया दोहा कुछ इस प्रकार था :
“चार बांस चौबीस गज, अंगुल अष्ट प्रमाण, ता ऊपर सुल्तान है मत चुके चौहान”
Last Final Word:
दोस्तों यह थी पृथ्वीराज चौहान के बारे में सम्पूर्ण जानकारी। उम्मीद है इस जानकारी से आपके सभी सवालों के जवाब मिल गए होंगे अगर अभी भी आपके मन में कोई सवाल रह गया हो तो हमें कमेंट के माध्यम से जरुर बताये।
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