नमस्कार दोस्तों! राजपूत को भगवान राम या भगवान कृष्ण के वंशज के रूप में जाना जाता है। राजपूत काल 647 इस्वी से 1200 इस्वी तक शरु होता है, यह एक प्रांभिक मध्यकाली का योग का एक हिस्सा है, 12 वि शताब्दी में हर्षवर्धन की मृत्यु के बाद भारत का भाग्य राजपूतो के हाथ में था पारचिन क्षत्रिय परिवार का राजपूत एक हिस्सा था। राजपूत वीर और स्वाभिमानी हुआ करते थे, और एक राजपूत के अंदर त्याग, साहस, देश भक्ति ऐसे अन्य प्रकार के गुण कूट कूट कर भरे हुए होते है। तो आज के हमारे इस आर्टिकल में हम आपको राजपूतो के इतिहास के बारे में बताएगे। राजपूतो का इतिहास (Rajput History in Hindi)
राजपूत की उत्पति
राजपूत शब्द की उत्पति राजपूत से हुई है, इस लिए राजपूत के लिए यह भी काफी प्रचलित है। एक राजपूत मात्र राजा के कुल में ही पैदा होता है लेकिन राजा के कुल में कई जातीय पैदा हुई है सभी को राजपूत नही काहा जाता है। इस लिए राजपूत राजकुल में पैदा होने से नही लेकिन उनके गुण से जाना जाता है एक राजपूत के अंदर राजा जैसे गुण होने चाहिए और सभी के हित के बारे में सोचने एवं सभी की रक्षा करने और अपने धर्म के प्रति समर्पित रहने के लिए राजपूत कहलाता है।
अंगेजी शासन के दौरान राजपूत को राजपुताना भी कहते थे। हिन्दू धर्म की प्रजाति को चार वर्णों में विभाजित किया गया था, लेकिन उसके बाद कई जातिया इसके अंतर गत बनाई गई तो वाही कवि चंदबरदाई के कथा केमुताबिक राजपूत को 36 जातियों में वर्गीकृत किया गया था जब की राजपूत के प्रमुख गोत्र राठौड़, कुशवाहा, दहिया, पंवार, चौहान, सिसौदिया, जादो आदि थी। इतिहासकारी के मुताबिक राजपूत काल केसमय क्षत्रिय वर्ण के सूर्यवंशी और चंद्रवंशी के राजघरानो का विस्तार बहुत बड़ा था, क्योकि उस दौरान सिफ क्षत्रिय वर्ग को ही युद्ध कौशल में निपुण हुआ करते थे, राजपूत और क्षत्रिय ही युद्ध में हिस्सा ले सकते थे, और पुरे राज्य की जिम्मेदारी सभाला करते थे।
पाराचिन काल जातियों के आधार पर उनकेविभिन कामो से बाटे गए थे जैसे की ब्राह्मण जाती के लोग शिक्षाविद का काम करते थे, पंडित और विद्धना थे और वैश्य यानि बनिया जाती के लोग व्यापार काम करते थे, और शुद्र जाती के लोग को साफ सफाई जैसे छोटे कामो की जिम्मेदारी सौपी थी।
लेकिन राजपूत राजाओं के अंदर अंहकार और आपसी लड़ाई जगड़े एवं मतभेद की वजह से भारत को छोटे छोटे राज्यों में बंट गया। वही राजा हर्षवर्धन ऐसे राजपूत शासन थे जिन्होंने 590 से 647 इस्विपुर्व तक एक छत्र में शासन किया था, पंजाब को छोड़ के उतर भारत में अपना साम्राज्य स्थापित किया था। सातवी और बरवी शताब्दी के बिच राजपूतो ने भारत के मुख्य हिस्सों पर अपना कब्जा जमाया था। राजपूत के राजाओ का शासन भारत के ज्यादा हिस्से में था, इसलिए इस समय को राजपूत काल का स्वर्ण योग भी कहा जाता है। राजा हर्षवर्धन ने लम्बे समय तक शासक किया था इसके बाद किसने लंबे समय तक भारत पर शासन नही किया।
राजपूत की उत्पत्ति के सिद्धात
इतिहासकारों ने राजपूत की उत्पत्ति के कई सिद्धत बनाये थे। ऐसा कहना है की राजपूत की उत्पति आबू पर्वत खंड अग्रिकुंद हु थी ऐसा कहना है। राजपूतो की उत्पत्ति छठी शताब्दी से मानी जाती है। इस समय के बाद बरवी शताब्दी के राजपूत को विशेष दर्जा मिला था। भारत के इतिहास में राजपूत को 12वि शताब्दी से शासकीय जाती माना जाता है। राजस्थान में इतिहास के जनक माने जाने वाले कर्नल जेम्स टॉड द्वारा दिए गए है।
एक सिद्धांत के अनुसार राजपूतों की उत्पत्ति विदेशी मूल यानी विदेशी जाति से मानी जाती हैं। कर्नल जेम्स टॉड ने राजपूतों को राजपूत कुषाण, शक और हूणों के वंशज के रूप में माना गया था। कर्नल जेम्स टॉड के अनुसार चूंकि राजपूत जाति के लोग अग्नि की पूजा किया करते थे, और यह कार्य विदेशी जाति कुषाण और शक भी अग्नि की पूजा करते थे। कर्नल जेम्स टॉड ने राजपूतों की उत्पत्ति शको और कुषाणों से बताई गई सिद्धांत के आधार पर है ।
दुसरे सिद्धांत के अनुसार राजपूतो को क्षत्रिय का दर्जा दिया गया है राजपूतो के कई इतिहासकार राजपूतो को स्वदेशी जाती मानते थे राजपूतों की उत्पत्ति मुख्य रूप से अग्निकुंड से हुई है ऐसा माना जाता थी, अग्निकुंड में वशिष्ठ मुनि ने चार राजपूत जातियों की उत्पत्ति की थी जिसमें से एक क्षत्रिय जाति भी थी।
वैसे कुछ इतिहासकार राजपूतों को आर्य मानते हैं। क्योकि आर्य भारत के ही मूल निवासी थे और इतिहासकार आर्य से ही राजपूतो की उत्पत्ति हुई हैं। राजपूतों की उत्पत्ति के सबंध में चौथा सिद्धार्थ चंदबरदाई द्वारा रचित ग्रंथ पृथ्वीराज रासो से मिला हुआ माना जाता है। चंदबरदाई ने राजपूतों को भारत की मूल जाति माना है। वे राजपूतों को अग्नि से उत्पन्न जातियों में से मानते हैं। इतिहासकार राजपूतों को भले की विभिन मानते हो पर हम तो राजपूतों को भारतीय ही मानते हैं।
राजपूत का इतिहास
राजपूतो का निवास स्थान
राजपूत की शरुआत माउन्ट आबू से मानी जाती है उसके बाद राजपूत उत्तर भारत के रज्यो में रहने लगे थे। राजपूत ने सबसे पहले दिल्ली में अपने शासक की शुरुआत की थी उसके बाद वे राजपूताने में भी अपनी अधिकार ज़माने लगे थे। सोलवी वीं शताब्दी के बाद राजपूत तत्कालीन भारत के कई हिस्सों में अपना प्राबल्य जमाने लगे। राजस्थान के अलावा राजपूत उत्तरी भारत के दिल्ली, वर्तमान उत्तर प्रदेश इत्यादि राज्यों के साथ कन्नौज में भी शासन किया था। राजपूतों का मूल स्थान राजस्थान को ही माना जाता है।
हल्दीघाटी युद्ध में दिखा शोर्य
सोलवी शताब्दी में अकबर का सेनापति मानसिंह को की स्वयम एक राजपूत था ने मेवाड़ के राजा महाराणा प्रताप के साथ युद्ध किया जिसमे म्हारा प्रताप ने अपना शौर्य दिखाया था। महाराणा प्रताप ने इस युद्ध में विजय हासिल की इस बात की जानकारी मेदव के इतिहास में और मेवाड़ में रचित ग्रंथो में मिलती है। राजस्थान के राजसमन्द जिले के हल्दीघाटी में लदे गए इस युद्ध में महाराणा प्रताप ने विजय हासिल की थी इस बात की जानकारी युद्ध के बाद मिले महाराणा प्रताप के सिक्को से मिलती है। महाराणा प्रताप इतने महान थे हल्दीघटी युद्ध के बाद भी वे जंगलो में रह क्र मेवाड़ में मुगलों पर आक्रमण करते थे और मुगलों की नाक में दम कर रखा था।
राजपूतो ने दुश्मनो की खुली चुनोती
प्राचीन काल से ही राजपूतों ने अपने शौर्य का जौहर दिखाया हैं। पश्चिमी राज्यों से मुग़ल बादशाहओ ने हिंदुस्तान पर जब आक्रमण किया था तब ही गुहिल वंश के संस्थापक गुहिलादित्य ने मुग़ल राजाओ को देश से बहार भागने के लिए अफगान तक उनके पीछे गये थे, और उनको खदेड़ कर देश के बाहर निकाल दिया था। राजपूत चाहे मेवाड़ के हो या आमेर के हो, अजमेर के हो या बीकानेर के सब से अपने दुश्मनों को खुली चुनोती दी थी, और उनके सामने युद्ध किया पर उनके सामने आत्मसमर्पण नही किया। राजपूतों के शौर्य के चर्चे तो विदेशों में भी देखने को मिलते हैं। राजपूतों ने अपने खून के आखिरी कतरे के गिरने तक दुश्मनों से लड़ते रहे थे। राजपूत अपने उसूल के पक्के होते है और एक बार प्रतिज्ञा क्र लेते थे उसी पर अमल रहते थे। राजपूत कभी भी छल, कपट, षडयंत्र, ईर्ष्या की भावना से युद्ध नहीं लड़ते थे, बल्कि वे पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ युद्ध लड़ते थे, राजपूत निहत्थे वार कभी नहीं करते थे, जिसकी वजह से उन्हें युद्द में कई बार हार का सामना करना पड़ता था और जरूरत से ज्यादा ईमानदारी बाद में राजपूत वंश के पतन का कारण बन गई।
राजपूत रानियों ने निभाया जौहर व्रत
मेवाड़ के इतिहास मे रानी पद्मिनी का इतिहास भी काफी शोर्य भरा हैं। मेवाड़ के राजा रावल रतन सिंह की अर्धांगिनी रानी पद्मिनी थी, वह श्रीलंका की राजकुमारी थी। इस समय यानी 1303 में दिल्ली का सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी ने मेवाड़ पर आक्रमण किया था। इस युद्ध का उदेश्य मेवाड़ की इस रानी पद्मिनी को पाना का था। इस युद्ध में रावल रतन सिंह वीरगति को प्राप्त हो गये थे और यह युद्ध में रावल रतन सिंह की पत्नी रानी पद्मिनी ने जौहर व्रत किया था, और खुद को कई अन्य रानियों के साथ अग्नि के हवाले कर दिया था।
रणथम्भोर का जौहर
चित्तोड़ के इस जोहर से पहले रणथम्भौर के किल्ले का एक प्रसिद्ध साका 1301 ईस्वी में भी हुआ जब रणथम्भोर के पराक्रमी शासक राव हम्मीर देव चौहान ने दिल्ली के सुल्तान अलाउद्दीन खिलजी के विद्रोह सेनापतियों को अपने किले में आश्रय देकर अपने शरणागत वत्सलता के आदर्श और रना हम्मीर ने अपने राज्य की रक्षा करते हुए उन सभी विश्वस्त योद्धाओं सहित वीरगति प्राप्त की थी, एवं रानियों का दुर्ग की वीर नारियों ने जौहर किया था।
भारत में राजपूत रियासत
भारत में राजपूतों की कुल 23 रियासतें थी। भारत में कुल रियासतों में से 19 रियासतें तो केवल राजस्थान में थी। भारत में राजपूतों के लिए राजपुताना काफी प्रसिद्ध था, जिसे वर्तमान राजस्थान कहा जाता है। राजस्थान में राजपूतों के इतिहास के कई ऐसे प्रमाण मिलते हैं, जिससे यह माना जाता हैं राजपूत एक महान शासक जाति थी।
राजपूतों का साहित्य इतिहास
राजस्थान के अलावा राजपूत कई विभिन राज्यों में अपना शासन जमा चुके थे और उन्होंने कई मंदिर और इमारतों का निर्माण करवाया था, उस मंदिरों में मेवाड़, उदयपुर के साथ पुरे राजस्थान में कई मन्दिर बनवाए गए हैं। रणकपुर का जैन मंदिर, चित्तोड़ का घोसुण्डी का मंदिर इत्यादि प्रशिद्ध मन्दिरो में से एक हैं। राजपूतों ने अपने काल में कई मंदिरो के साथ कई सारी इमारते भी बनवाई थी, जिसमे कुम्भलगढ़ का बादल महल भी बहुत प्रशिद्ध हैं।
राजपूत राजाओ के नाम
- राजा भोज
- हर्षवर्धन
- राजा मानसिंह
- राजा जयसिंह
- महाराजा सवाई जय सिंह द्वितीय
- बप्पा रावल
- पृथ्वीराज चौहान
- महाराणा प्रताप
- बंदा बहादुर
- मीराबाई
- राणा सांगा
- रावल रतन सिंह
- जोधा बाई
- अमर सिंह राठौर
- वीर दुर्गादास राठौर
- बाबा रामदेव
राष्ट्रिय राजनीती में राजपूत हस्तिया
- विश्वनाथ प्रताप सिंह (भारत के 10वे प्रधानमंत्री)
- चंद्रशेखर (भारत के 11वें प्रधानमंत्री)
- महाराज भानु प्रताप सिंह
- भैरों सिंह शेखावत
- भक्त दर्शन
- जसवंत सिंह
- राजनाथ सिंह
- दिग्विजय सिंह
राजपूतो की वंशावली
“चार हुतासन सों भये कुल छत्तिस वंश प्रमाण
भौमवंश से धाकरे टांक नाग उनमान
चौहानी चौबीस बंटि कुल बासठ वंश प्रमाण.”
सुर्यवंश की दस शाखाएं
- गहलोत/सिसोदिया
- राठौड
- बडगूजर/सिकरवार
- कछवाह
- दिक्खित
- गौर
- गहरवार
- डोगरा
- बल्ला
- वैस
चन्द्रवंश की दस शाखाएं
- जादौन
- भाटी
- तोमर
- चन्देल
- छोंकर
- झाला
- सिलार
- वनाफ़र
- कटोच
- सोमवंशी
चौहान वंश की चौबीस शाखाएं
- हाडा
- खींची
- सोनीगारा
- पाविया
- पुरबिया
- संचौरा
- मेलवाल
- शम्भरी
- निर्वाण
- मलानी
- धुरा
- मडरेवा
- सनीखेची
- वारेछा
- पसेरिया
- बालेछा
- रूसिया
- चांदा
- निकूम
- भावर
- छछेरिया
- उजवानिया
- देवडा
- बनकर
Last Final Word:
तो दोस्तों हमने आपको हमारे इस आर्टिकल में राजपूतो के इतिहास के बारे और राजपूत शब्द की उत्पति कैसे हुई राजपूत की उत्त्पति के सिद्धांत राजपूत के इतिहास से जुडी सभी जानकारी के बारे इस आर्टिकल के जरिये आपको काफी जानकारी मिल गई होगी।
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