नमस्कार दोस्तों आज के इस महत्वपूर्ण आर्टिकल में हम आपसे बात करने वाले है, राजपूत वंश के दौरान सामाजिक और सांस्कृतिक विकास। तो चलिए शरु करते है और इस आर्टिकल के माध्यम से राजपूत वंश के दौरान सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की जानकारी प्राप्त करते है, ‘राजपूत‘ शब्द संस्कृत शब्द ‘राजपुत्र‘ से बना है। जिसका अर्थ है, “राजा का पुत्र“। राजपूत अपने साहस, ईमानदारी और राजशाही के लिए जाने जाते थे। ये ऐसे योद्धा थे जो युद्ध में लड़े थे और प्रशासनिक गतिविधियों की देखरेख भी करते थे। राजपूतों की प्रस्तुतीकरण (पैदावार) पश्चिमी, पूर्वी, उत्तरी भारत और पाकिस्तान के कुछ हिस्सों से हुई थी। राजपूत छठी शताब्दी से बारहवीं शताब्दी तक बहुत ही प्रसिद्ध थे। राजस्थान और सौराष्ट्र के प्रसिद्ध राज्यों में बीसवीं शताब्दी तक राजपूतों ने पूर्ण बहुमत से शासन किया था।
राजपूत के सैन्य आक्रमक और बहुत लड़ाकू थे, और राजपूतो उसे अपने धर्म समान मानते थे। राजपूतो ने गुणों और आदर्शो को कई ज्यादा महत्व देते थे जो बहुत उच्च मूल सिद्धांत था। राजपूत उदार और बड़े दिल वाले भी थे, वह अपने मूल और वंश पर काफी गर्व अनुभव करते थे जो उनके माध्यम से कई सर्वोच्च था। राजपूतो इमानदार, बहादुर और अहंकारी बहुत ही थे जो कोई भी उसके सामने युद्ध के समय पराजित हो जाये और वह अपनी हार को स्वीकार करे तो राजपूतो उसे अपनी आसरा में जगह भी देते थे।
लोगो के सामजिक और सामान्य शर्ते (Social and general conditions of the people)
युद्ध विजय के बाद सैनिक कार्यवाही और जित राजपूत समाज और संस्कृति की सबसे बड़ी विशेषता थी। देखा जाये तो समाज पूरी तरह से परेशान था क्योकि वहा के लोगो को रहने का विस्तार काफी मुश्केली भरा था। दूसरा वहा के लोग जाती और धर्म योजना में कई ज्यादा विश्वास रखते थे। राजपूतों ने अपने हरम और उनके अधीन काम करने वाले नौकरों की संख्या पर अपना गर्व दिखाया। दूसरी ओर, किसान भू-राजस्व और अन्य करों के बोझ तले दबे हुए थे जिन्हें सामंतों द्वारा निर्दयतापूर्वक एकत्र किया जाता था या उन्हें जबरन मजदूरी करने के लिए मजबूर किया जाता था। मंत्री, अधिकारी, सामंत प्रमुख उच्च वर्ग के थे, इसलिए उन्होंने धन संचय के विशेषाधिकार का लाभ उठाया और विलासिता और वैभव में रहने के आदी थे। वे कीमती कपड़े, आभूषण और सोने और चांदी के आभूषणों में लिप्त थे।
राजपूत कई मंजिलों वाले घरों जैसे महलों में रहते थे। निचली जातियों को सीमांत मालिकों की शत्रुता का सामना करना पड़ा जो उन्हें नीचा देखते थे। बुनकर, मछुआरे, नाई आदि जैसे अधिकांश श्रमिकों के साथ-साथ आदिवासियों के साथ उनके स्वामी बहुत क्रूर व्यवहार करते थे। एक नई जाति के रूप में ‘राजपूत’ छवि निर्माण में बहुत अधिक शामिल थे और सबसे अधिक अभिमानी थे जिसने जाति व्यवस्था को और अधिक मजबूत बना दिया।
राजपूत वंश के दौरान महिलाओ की स्थिति (Status of Women)
राजपूतो का महिलाओ का आदर और सम्मान दोनों था बादमे राजपूतो की गौरव की बात थी तो उस समय भी वह एक अप्रामाणिक (संदिग्ध प्रमाण) और विकलांग समाज में रहते थे। उन्हें अपने पुरुषों और समाज के अनुसार उच्च आदर्शों का पालन करना था। उन्हें अपने मरें हुए पतियों के शवों के साथ खुशी-खुशी अपना बलिदान देना पड़ा। हालांकि पर्दा प्रथा नहीं थी। पर्दा प्रथा क्या होती है? – पर्दा एक इस्लामी शब्द है, जो अरबी भाषा के रूप में फारसी भाषा से आया है। इसका अर्थ “ढँकना” या “अलग करना” होता है। पर्दा प्रथा का एक पहलू बुर्का प्रथा है। बुर्का एक तरह का घूंघट है, जिसे मुस्लिम समुदाय की महिलाएं और लड़कियां कुछ खास जगहों पर पुरुषों की नजर से खुद को दूर रखने के लिए इस्तेमाल करती हैं।
कई राजघरानों में ‘स्वयंवर’ जैसी शादियाँ प्रचलित थीं, फिर भी समाज में भ्रूण हत्या और बाल विवाह जैसी कुप्रथाएँ थीं। निचली जाती के वर्ग की राजपूत महिलाओं को वेदों का अध्ययन करने का अधिकार नहीं था। हालांकि, उच्च परिवारों के परिवारों ने उच्च शिक्षा प्राप्त की थी और उस महिला को अधिक ज्ञान भी था। इस दौरान महिलाओं के लिए कानून बहुत कठोर थे।
वास्तुकला:
- राजपूतो ने काफी उदार धन और शोर्य दिखने के लिए कई किल्ले, महिलाए और मंदिरों के निर्माण में राजपूतो ने बेहद धन खर्च किया था। इस महान कार्य में मंदिर का निर्माण अपने परिपूर्ण तक पहुच गया था।
- कुछ महत्वपूर्ण मंदिर में जगन्नाथ मंदिर, पुरी का लिंगराज मंदिर, और कोणार्क में सूर्य मंदिर हैं।
- राजपूतो द्वारा बनवाये गये प्रसिद्ध मंदिरों में जैसे खजुराहो, पूरी और माउंट आबू मंदिर जाने जाते है।
- राजपूतो लोको के लिए महत्वपूर्ण सिचाई के लिए नहरों, बाधों और जलाशयों के निर्माण के लिए भी बहुत प्रख्यात थे जो अभी भी अपने समयनिष्ठा और उच्च गुणवत्ता योग्य के लिए माने जाते है।
- अठारहवीं शताब्दी में सवाई जय सिंह द्वारा निर्मित चित्तौड़ किले में विजय स्तंभ, उदयपुर का लेक पैलेस, हवा महल और खगोलीय वेधशाला राजपूत वास्तुकला के कुछ आश्चर्यजनक उदाहरण हैं।
चित्रकारी/चित्रकला:
- राजपूतों की कलाकृतियों को दो स्कूलों के क्रम में रखा जा सकता है – पेंटिंग के राजस्थानी और पहाड़ी स्कूल।
- कलाकृतियों के विषय भक्ति धर्म से काफी प्रभावित थे और अधिकांश चित्रों में रामायण, महाभारत और राधा और कृष्ण के विभिन्न स्वरूपों को दर्शाया गया था।
- दोनों स्कूलों की प्रणाली समान है और दोनों ने व्यक्तियों के मूल जीवन के दृश्यों की व्याख्या करने के लिए शानदार रंगों का उचित उपयोग किया है।
Last Final Word:
दोस्तों यहाँ आपके लिए राजपूत वंश के दौरान सामाजिक और सांस्कृतिक विकास से जुडी सभी तरह की जानकारी दी गई है जिसकी मदद से आपको राजपूत वंश के दौरान सामाजिक और सांस्कृतिक विकास की कसोटी की तैयारी में पूर्ण मदद मिलेंगी। लोगो के सामजिक और सामान्य शर्ते, महिलाओ की स्थिति, चित्रकारी/चित्रकला क्या होती है, जैसी सभी तरह की जानकारी से आप वाकिफ हो चुके होंगे।
दोस्तों आपके लिए Studyhotspot.com पे ढेर सारी Career & रोजगार और सामान्य अध्ययन, सामान्य ज्ञान से जुड़ी जानकारीयाँ एवं eBooks, e-Magazine, Class Notes हर तरह के Most Important Study Materials हर रोज Upload किये जाते है जिससे आपको आशानी होगी सरल तरीके से Competitive Exam की तैयारी करने में।
आपको यह जानकारिया अच्छी लगी हो तो अवस्य WhatsApp, Facebook, Twitter के जरिये SHARE भी कर सकते हे ताकि और भी Students को उपयोगी हो पाए। और आपके मन में कोई सवाल & सुजाव हो तो Comments Box में आप पोस्ट कर के हमे बता सकते हे, धन्यवाद्।