दोस्तो आज इस आर्टिकल में हम राज्यपाल से संबंधित जानकारी प्राप्त करेंगे। आप इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़ना ताकि राज्यपाल से संबंधित सभी जानकारी आपको मिल सके।
भारत का संविधान संघात्मक कहलाता है। भारत के संविधान में संघ और राज्य के शासन से जुड़े प्रावधान किए गए हैं। संविधान के 6 विभाग में राज्य के शासन के लिए प्रावधान दिया गया है। राज्यपाल की नियुक्ती राज्य के द्वारा की जाती है। उपराज्य पाल की नियुक्ति केंद्रशासित प्रदेशों मे होती है। भारत में कुल 7 केंद्र शासित राज्य आए हुए हैं। इनमें से 3 केंद्र शासित राज्य में उपराज्य पाल का पद दिया गया है। बाकी 4 केंद्र शासित राज्यों अंडमान, निकोबार द्वीपसमूह, दिल्ली और पांडुचेरी प्रशासक होते हैं, तथा उपराज्यपाल का पद नहीं होता।
राज्यपाल राज्य के कार्यपालिका का अध्यक्ष होता है। कुछ विषयों में राज्यपाल को विषेश अधिकार दिया गया है, जिसकी मदद से राज्यपाल मंत्री परिषद की सलाह के बगैर भी कार्य कर सकता है। राज्यपाल अपने राज्य की सभी विश्वविद्यालयों के कुलाधीपती के रूप में भी होता हैं। केंद्र में जैसे राष्ट्रपति की स्थिति होती है, वैसे ही राज्य में राज्य पाल की स्थिति होती है। 7वे संशोधन 1956 के अनुच्छेद 153 के अनुसार एक राज्यपाल एक से ज्यादा राज्य के लिए नियुक्त हो सकता है। अनुच्छेद 154(1) के आधार पर राज्य की कार्यपालिका की शक्ति राज्यपाल के हाथों में होती है।
राज्यपाल की योग्यताएं (Eligibility for Governor)
अनुच्छेद 157 के तहत राज्य पाल के लिए नीचे बताई गई योग्यता होनी जरूरी है।
- उम्मीदवार भारत का नागरिक होना चाहिए।
- राज्यपाल के पद के लिए न्यूनतम आयु 35 साल की है।
- राज्य अथवा केंद्र सरकार क्या राज्य के नियंत्रण के अधीन किसी सार्वजनिक उपक्रम में हित के पद पर ना होना चाहिए।
- उम्मीदवार राज्य विधानसभा के सदस्य के लिए नियुक्त होने की योग्यता रखता होना चाहिए।
- मानसिक रूप से पागल और दिवालिया घोषित ना हुआ होना चाहिए।
राज्यपाल की पदावधी (Duration of Governor)
- सामान्य रूप से राज्य पाल की कार्य करने की अवधि 15 साल से लेकर 5 साल तक की होती है।
- अनुच्छेद 153 के तहत राज्यपाल राष्ट्रपति के प्रसादपर्यंत अपने पद पर नियुक्त होगा। इसका मतलब है कि राष्ट्रपति द्वारा 5 साल से पहले भी पद से निकाला जा सकता है।
- राज्यपाल का चुनाव नहीं किया जाता। राष्ट्रपति राज्य पाल की नियुक्ति करता है।
- राज्यपाल के पद की अवधि पूर्ण हो जाने के बाद भी वह तब तक पद पर बना रहता है, जब तक नया राज्यपाल का चुनाव ना हो जाए।
- राष्ट्रपति अगर चाहे तो राज्य पाल को एक राज्य से हटाकर दूसरे राज्य में स्थानांतरित कर सकता है।
- अनुच्छेद 156(2) के आधार पर राज्यपाल राष्ट्रपति को अपना त्यागपत्र को दे सकता है।
राज्यपाल की शपथ (Adjuration of Governor)
अनुच्छेद 159 के अनुसार राज्य पाल उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश अथवा उनकी गैरमौजूदगी में उच्च न्यायालय के वरिष्ठ न्यायाधीश के समक्ष संविधान और विधि का परीक्षण, संरक्षण और परीक्षण की शपथ लेने का प्रावधान किया गया है।
राज्यपाल की वेतन (salary Of Governor)
- अनुच्छेद 158(3) के अनुसार राज्य पाल की उपलब्धियां, वेतन और विशेष अधिकार संसद के द्वारा निर्धारित होते हैं।
- अनुच्छेद 158(3)(A) के अनुसार अगर एक व्यक्ति एक से ज्यादा राज्यों का राज्यपाल नियुक्त किया जाता है, तो राष्ट्रपति के आदेश द्वारा तनख्वाह तथा भत्ते राज्यों के बिच निर्धारित अनुमापन मे आवंटित करेगा जिसकी व्यवस्था 7 वें संविधान संशोधन अधिनियम द्वारा की गई थी।
संरक्षण
- अनुच्छेद 361 के अनुसार नीचे बताई गए संरक्षण मिलते हैं।
- राज्यपाल के खिलाफ उसकी पद की अवधि के समय में किसी भी न्यायालय में किसी भी प्रकार के दांडिक कार्यवाही नहीं की जाएगी।
- राज्यपाल की पद की अवधि के दौरान उसके धरपकड़ या कारावास के लिए कोई हुकुम नहीं निकल सकता।
- राज्य पाल के खिलाफ व्यक्तिगत हैसियत से सिविल कार्यवाही कर सकते हैं, परंतु उसके लिए 2 महीने पहले ही सूचना देनी जरूरी है।
राज्यपाल के पद की शर्तें
अनुच्छेद 358 में राज्यपाल के पद की शर्तों के बारे में उल्लेख किया गया है।
- राज्यपाल संसद के सदन का सदस्य अथवा राज्य विधान मंडल का सदस्य नहीं होना चाहिए। अगर सदस्य है तो नियुक्ति की तिथि से संसद या राज्य विधानमंडल से उसका नाम रिक्त किया जाता है।
- राज्यपाल दूसरा कोई लाभ का पद नहीं धारण कर सकता।
- राज्य पाल की उपलब्धियां और वेतन उसके पद की अवधि के दौरान कब नहीं की जा सकती।
संसद के द्वारा दिए गए विवेकाधिकार शक्तियां
- अनुच्छेद 371(A) मे 1 तक नागालैंड, असम, मणिपुर, आंध्र प्रदेश, सिक्किम, मिजोरम, अरुणाचल प्रदेश और गोवा के राज्यपाल को दी गई विवेकाधिकार शक्तियां है।
- अनुच्छेद 200 के अनुसार राज्यपाल राष्ट्रपति के लिए कानून आरक्षित कर सकता है। राज्यपाल धन विधेयक को छोड़कर किसी भी विधेयक को पुनर्विचार के लिए वापिस भेज सकता है।
- अनुच्छेद 356 के अनुसार अगर राज्य में शासन संवैधानिक उपबंधों के अंतर्गत संचालित ना हो रहा हो, तो राज्य पाल राष्ट्रपति के शासन के लिए गुजारिश कर सकता है।
उत्पन्न हुई परिस्थितियों के लिए स्वविवेकिय शक्तियां
निम्नलिखित विशेष परिस्थितियों में राज्यपाल को स्वविवेक शक्तियां प्राप्त होती है।
- संसद सदन के किसी एक दल को विधानसभा में स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना होने पर।
- अगर जिस दल की सरकार है, उसके कुछ सदस्य दल से निकलकर दूसरे दल में चले जाते हैं, तब सरकार के अस्तित्व का खतरा पैदा होने पर राज्यपाल को स्वविवेक शक्तियां मिलती है।
- राज्य में यदि शांति व्यवस्था को खतरा होता है तब मिलती है।
राज्यपाल की भूमिका
- भारतीय संविधान निर्माता, केंद्र के जैसे ही राज्य में संसदीय शासन कार्यप्रणाली को अपनाना चाहते थे। साथ ही साथ राष्ट्र की एकता और अखंडता के लिए राज्य पर केंद्र का शासन भी रखना चाहते थे।
- जिसकी वजह से संविधान निर्माताओं ने राज्यपाल को दो भूमिका प्रदान की। जिसमें राज्य मे स्वतंत्र संसदीय कार्यप्रणाली को केंद्र की ही तरह अपनाने की बात की है।
- दूसरी तरफ राज्य की एकता और अखंडता के लिए राज्य पर केंद्र का नियंत्रण निर्धारित करने में आया है।
- ऊपर बताए गए कारणों से राज्य पाल की दोहरी भूमिका को राजनीतिक व्यवस्था में प्रावधान, संविधान निर्माताओं ने किया गया था।
- राज्यपाल राज्य के औपचारिक अध्यक्ष के साथ साथ केंद्र का भी प्रतिनिधि होता है।
- संविधान के निर्माताओं ने राज्यपाल से यह आशा की है कि राज्य पाल साधारण परिस्थिति में राज्य की औपचारिक अध्यक्ष की भूमिका में कार्य करेगा और साथ ही मंत्रिपरिषद की सम्मति के अनुसार कार्य करेगा।
- राज्यपाल विवेकाधिकार शक्ति का उपयोग केवल विशेष परिस्थिति में कर सकता है।
- अपनी विवेकाधिकारी शक्ति का उपयोग संविधान के उपबंध के अंतर्गत मिली एकता और अखंडता के लिए कर सकता है। किंतु व्यावहारिक राजनीति में राज्य पाल अपनी लेखाधकारी शक्ति का उपयोग नहीं कर सकता।
राज्यपाल का चुनाव क्यों नहीं होता?
संविधान राज्यपाल की नियुक्ति करता है। संविधान के द्वारा राज्यपाल की नियुक्ति नीचे बताए गए कारणों के लिए की जाती है।
राज्यपाल का प्रत्यक्ष चुनाव सामान्य चुनाव के समक्ष नेतृत्व की कठोर परिस्थिति उत्पन्न करता है।
राज्य के लाभ स्वीकृत संसदीय शासन व्यवस्था के अनुसार चुनीदा राज्य पाल की व्यवस्था संपूर्ण रूप से असंगत साबित होगी। क्योंकि चुनिदा प्रधान होने पर राज्य पाल और मंत्रिमंडल में संघर्ष की परीस्थिति उत्पन्न हो जाएगी। क्योंकि मंत्रिमंडल का भी जनता द्वारा चुना गया प्रतिनिधि होता है।
देश के विभाजन के कारण पैदा हुए अलग अलग सामाजिक और आर्थिक समस्याओं को देखते हुए संविधान के निर्माताओं ने देश की स्वतंत्रता और अखंडता की सुरक्षा के लिए राज्यों की अपेक्षा संघ को शक्तिमान बनाने पर विचार विमर्श किया।
प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से राज्य के नागरिक द्वारा चुने गए राज्यपाल, राज्य के प्रधान के स्वरूप में कार्यकर्ता संघीय सरकार के प्रतिनिधि के साथ कुछ परिस्थितियों में संघ के प्रतिनिधि अथवा एजेंट के स्वरूप में कार्य कर सकते है। सभी परिस्थितियों को ध्यान में रखकर संविधान के निर्माताओं ने राज्यपाल की नियुक्ति राष्ट्रपति के द्वारा करने की व्यवस्था की है।
राज्यपाल की राज्य की राजनीतिक स्थिती मे योगदान, एक स्वतंत्र और निष्पक्ष अध्यक्ष तौर पर फैसला करने का होता है। अगर राज्यपाल को नागरिको अथवा विधान मंडल के द्वारा चुना जाता तो, संभव है कि राज्य पाल उसी राज्य का निवासी होता। जिसकी वजह से राज्य पाल स्वयं भी दलबंदी और गुटबंदी का शिकार हो जाता। जिसकी वजह से संविधान ने राज्य पाल का चुनाव राष्ट्रपति के द्वारा करने की व्यवस्था की है। जिसकी वजह से राज्यपाल एक स्वतंत्र और निष्पक्ष निर्णय ले सके और अपने अधिकार का कुशलतापूर्वक उपयोग कर सकें।
राज्यपाल की परिस्थिति जन्य विवेकाधीकार शक्तियां:
मुख्यमंत्री की नियुक्ति:
मुख्यमंत्री की नियुक्ति राज्यपाल के द्वारा की जाती है। अनुच्छेद 164(1) के अनुसार राज्यपाल बहुमत धारण करने वाले दल के नेता को मुख्यमंत्री के स्वरूप में नियुक्त करता है। अगर किसी दल को स्पष्ट बहुमत नहीं मिलता है, तो ऐसी परिस्थिति में राज्यपाल अपने मनमाने तरीके से मुख्यमंत्री की नियुक्ति करता है। कई बार राज्य पाल ने बहुमत हासिल किए दल की उपेक्षा करते हुए अल्पमत प्राप्त दल के नेता को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त कर अपनी शक्तियों का दुरुपयोग किया है। जिसके उदाहरण नीचे दिए गए हैं।
साल 1967 मै राजस्थान के राज्यपाल संपूर्णानंद ने संयुक्त मोर्चा के बहुमत हासिल करने के बावजूद भी कांग्रेस को आमंत्रित किया था।
साल 1982 हरियाणा के राज्यपाल ने बहुमत की उपेक्षा करके अल्पमत वाले दल के नेता को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया था।
साल 2005 मे बिहार के विधानसभा के निर्वाचन के पश्चात बूटा से ने बहुमत के राजग दल की उपेक्षा करके अल्पमत वाले जनता दल के नेता लालू प्रसाद यादव की मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्ति की थी।
मुख्यमंत्री की पदच्यति:
साल 1997 मैं उत्तर प्रदेश के राज्यपाल रमेश भंडारी ने बहुमत दल के नेता कल्याण सिंह को मुख्यमंत्री पद से हटाकर अल्पमत प्राप्त करने वाले दल के नेता जगदंबिका पाल को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त किया था।
2 फरवरी 2005 मे गोवा के राज्य पाल एस.सी.जमीर ने भाजपा के मुख्यमंत्री मनोहर पारिकर को पद से हटाकर कांग्रेस के प्रताप सिंह राणा को मुख्यमंत्री नियुक्त किया था।
विश्वास मत के लिए समय देना:
झारखंड के राज्यपाल सैयद सिब्ते रजी ने झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन को लंबी अवधि दि थी। जिसकी समीक्षा उच्चतम न्यायालय ने की थी |
कई बार राज्य पाल ने मुख्यमंत्री को 24 घंटे की अंदर अंदर बहुमत को साबित करने के लिए कहां है, जो उचित नहीं है।
विधानसभा को भंग करने का अधिकार:
अनुच्छेद 174(2) के अंतर्गत राज्यपाल अलग-अलग समय पर संसद के सदन का सत्रावसान कर सकता है। यानी कि विधानसभा को भंग कर सकता है। इस संबंध में स्वविवेक के उपयोग का मौका मिलता है।
दल बदलने की वजह से अथवा कोई दूसरी वजह से सरकार अल्पमत में रह गई हो तो, भारतीय राजनीति मैं ऐसी परिस्थिति में राज्यपाल मुख्यमंत्री की सिफारिश के बगैर विधानसभा को भंग कर सकता है।
उदाहरण रूप से साल 1976 मे मुख्यमंत्री से परामर्श के कारण राज्यपाल ने तमिलनाडु की विधानसभा को विखंडित कर दिया था। साल 1989 मे कर्नाटक के राज्य पाल वैकट सुवैया ने मुख्यमंत्री की सलाह के बगैर ही विधानसभा का भंग करके राष्ट्रपति शासन लागू किया था। इस तरह कई बार राज्यपाल ने अपने शक्तियों का दुरुपयोग किया है।
राष्ट्रपति शासन की सिफारिश:
अनुच्छेद 356 के अंतर्गत अगर राज्य सरकार संविधान के उपबंध के आधार पर नहीं चलती है, तो राज्यपाल राष्ट्रपति शासन की गुजारिश कर सकता है। साल 2005 में बिहार के राज्य पाल बूटा सिंह ने बहुमत के राजग (NDA) की जगह अल्पमत के अपितु लालू यादव(RJD) को किया था।
राष्ट्रपति के विधेयक को आरक्षित करना:
अनुच्छेद 200 के अनुसार राज्यपाल केंद्र और राज्य के संबंधों को प्रभावित करने के लिए विधेयको को राष्ट्रपति के लिए आरक्षित कर सकता है। किंतु इस विवेकाधिकार का उपयोग राज्य पाल ने अनेक बार केंद्र सरकार के मुताबिक राज्य सरकार के कार्यों को प्रभावित करने के लिए किया है।
मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा दाखल करने की अनुमति देना:
भारतीय संविधान के अंतर्गत राज्यपाल की मंजूरी के बगैर मुख्यमंत्री के खिलाफ मुकदमा दाखिल नहीं किया जा सकता। साल 1995 मै हुए जयललिता प्रकरण से यह स्पष्ट हो गया है कि कोई पक्ष भ्रष्टाचार अथवा कोई आरोप के अंतर्गत इस संबंध में निर्णय ले सकता है।
आज के समय में कई सारे मुख्यमंत्रियों के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप है, तब राज्य पाल की शक्ति व्यवहारीक राजनीति में ज्यादा आवश्यक बन जाती है। परंतु राज्य पाल के स्वविवेकाधिकार के लिए गए फैसले पर उच्च न्यायालय अथवा सर्वोच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकता है। कई बार राज्य पाल ने अपनी विवेकाधिकारी शक्तियों का दुरुपयोग किया है।
राज्यपाल की विधायी शक्तिया
- राज्यपाल विधानसभा का सदस्य होने के साथ-साथ विधानमंडल का सदस्य होता है। राज्यपाल का विधानमंडल की शक्तियों से नीचे बताई गई वैधानिक शक्तियां प्राप्त होती है।
- राज्य पाल राज्य की विधानसभा के सत्र को संयोजित अथवा विघटित कर सकता है। राज्यपाल अधिवेशन बुला सकता है, परंतु एक संवैधानिक प्रतिबंध है की पहले अधिवेशन के अंतिम तारीख तथा अगले अधिवेशन की प्रथम तारीख के बीच में 6 महीने से ज्यादा समय व्यतीत ना हुआ हो।
- राज्यपाल विधानमंडल के दोनों सदनों में भाषण तथा संदेश दे सकता है।
- हर साल विधानमंडल का अधिवेशन राज्य पाल के भाषण से ही शुरू होता है। इस भाषण में राज्य के नीति का उल्लेख होता है।
- राज्य के विधान मंडल के द्वारा पास हुआ बिल राज्य पाल की स्वीकृति के बिना कानून नहीं बन सकता। राज्यपाल धन के बिलों को अस्वीकार नहीं कर सकता। राज्य पाल सामान्य बिलो को पुनर्विचार के लिए भेज सकता है। अगर विधानमंडल साधारण बिल को फिर से पास करे तो राज्य पाल को अपनी स्वीकृति देनी पड़ती है।
- राज्यपाल राज्य के विधान मंडल के विधान परिषद के 1/6 सदस्यों को पसंद कर सकता है, जो राज्य के कला, साहित्य, विज्ञान, समाज सेवा तथा सहकारिता से संबंध रखता है।
- राज्यपाल चाहे तो अध्यादेश का अधिकार चला सकता है। यदी विधानमंडल का अधिवेशन ना चल रहा हो तथा असाधारण परिस्थिति पैदा हो गई हो तथा परिस्थिति को हटाने के लिए कोई कानुन ना हो तो राज्य पाल अध्यादेश जारी करता है।
- राज्य का लोक सेवा आयोग और महालेखा परीक्षक अपनी वार्षिक रिपोर्ट राज्य पाल को भेजते है। जिस रिपोर्ट को राज्यपाल विधानमंडल के सामने रखता है।
- यदि विधान परिषद के सभापति तथा उपसभापति का स्थान रिक्त हो तो राज्य पाल किसी भी सदस्य को विधान परिषद की अध्यक्षता का कार्य सौपता है।
- अगर विधानमंडल के किसी सदस्य की योग्यता ना होने के विषय पर कोई चर्चा हो तो उसका अंतिम फैसला राज्य पाल के हाथ में होता है। परंतु फैसला लेने से पहले राज्यपाल के लिए चुनाव आयोग का परामर्श लेना जरूरी है।
राज्यपाल की कार्यकारी शक्तियां
- राज्यपाल को राष्ट्रपति की जैसे ही कार्यकारी, विधायी, विधि और न्याय शक्तियां मिलती है। कीन्तु राज्यपाल को राष्ट्रपति के जैसा कूटनीतिक सैन्य या आपातकालीन शक्तियां नही मिलती।
- राज्यपाल की शक्तिया और कार्य कार्यकारी, विधायी, वित्तीय और न्यायायिक है।
- भारत के संविधान के अनुच्छेद 154 के आधार पर राज्य की कार्यपालिका की शक्तियां राज्य पाल को दी गई हैं। जिनका उपयोग वह खुद अथवा प्रत्यक्ष रीत से कर सकता है। राज्यपाल को नीचे बताई गई कार्यकारी शक्तियां मिलती है।
- राज्य का संपूर्ण शासन राज्य पाल के हाथ मे होता है। वह उन सब विषयों पर शासन चलाता सकता है, जिनमें राज्य के विधानमंडल को कायदे बनाने का अधिकार है। मंत्री अपने पद पर राज्य पाल के प्रसादपर्यंत रहते हैं। राज्य पाल किसी मंत्री को मुख्यमंत्री के परामर्श से हटा सकता है।
- राज्यपाल शासन कार्यों को सुविधा पूर्वक चलाने के लिए और कार्य को मंत्रीओ मे विभाजीत करने के लिए कानुन बनाता है।
- राज्य पाल राज्य के महाधिवक्ता और लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष तथा अन्य सदस्यों को चुनता है। साथ ही राज्य के दूसरे अधिकारियों की नियुक्ति करता है।
- मंत्री के किसी भी फैसले को मंत्रिपरिषद के पास पुनर्विचार के लिए वापिस भेज सकता है।
- राज्यपाल प्रशासन से संबंधित कोई भी माहिती मुख्यमंत्री से प्राप्त कर सकता है।
- अनुच्छेद 333 के अनुसार राज्य पाल राज्य की विधानसभा में आंग्ल भारतीय समुदाय के कोई एक सदस्य को नियुक्त कर सकता है।
- असम के राज्य पाल को अनुसूचित कबीलों का विशेष ध्यान रखने के लिए अधिकार दिए गए हैं।
- अनुच्छेद 217(1) के अनुसार राज्य पाल राज्य के उच्च न्यायालय के न्यायाधीश को नियुक्त नहीं कर सकता। परंतु इस विषय पर राष्ट्रपति उनसे परामर्श करता है।
- अनुच्छेद 356 के अनुसार जब राज्यपाल को अगर ऐसा लगता है कि राज्य का प्रशासन लोकतंत्रात्मक प्रथा के अनुसार नहीं चल रहा है तो, उसका रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजता है। राष्ट्रपति के हुकुम के आधार पर राज्य का शासन राज्यपाल चलाता है।
- अनुच्छेद 352 (1) के अनुसार राज्य पाल राज्य के विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में होते है।
राज्यपाल की वित्तीय शक्तियां
- राज्यपाल की गुजारिश के बगैर कोई भी धन विधेयक विधानसभा में पास नहीं किया जा सकता। इसका मतलब है कि विधानसभा से धन की मांग राज्य पाल की गुजारिश पर ही मिल सकती है।
- राज्यपाल वार्षिक बजट वित्त मंत्री द्वारा विधानसभा में पास करवाता है। कोई बजट अनुदान मांग राज्य पाल की अनुमति के बगैर प्रस्तुत नहीं हो सकता।
- राज्य पाल पंचायत और नगरपालिका की आर्थिक स्थिति के लिए 5 साल पश्चात वित्त आयोग का गंठन करवाता है।
राज्यपाल की न्यायिक शक्तियां
- राज्यपाल जिला न्यायाधीशों की नियुक्ति और पद की उन्नति करवाता है।
- राज्य पाल को यदि लगता है कि किसी न्यायालय के पास अधिक कार्य है तो वह जरूरत मुताबिक ज्यादा न्यायाधीशों की नियुक्ति करवा सकता है।
- राज्यपाल यदि चाहे तो राज्य के कानून के विरुद्ध अपराध करने वाले अपराधी दंड माफ कर सकता है या कम सकता है।
- राज्य पाल इस अधिकार का उपयोग विषयों में नहीं कर सकता जो संघ सरकार की कार्यपालिका से संबंधित हो। राज्य पाल अपनी शक्तियों का उपयोग मुकदमे की शुरुआत में, मुकदमे के बाद या फिर मुकदमे के चलते कर सकता है।
सिफारिशें
प्रशासनिक सुधार आयोग:
- राज्यपाल के पद के लिए उस उम्मीदवार को चुना जाएगा जो सार्वजनिक जीवन और प्रशासन का अनुभव रखता हो, और अपने आप को दलीय पूर्वाग्रहों से दूर रखता हो।
- राज्यपाल अगर स्वविवेक के आधीन शक्ति का इस्तेमाल करता है तो उसे पर्याप्त स्पष्टीकरण देना पड़ता है।
- यदी राज्य पाल को लगता है कि मंत्रिमंडल को विधानसभा का समर्थन नहीं मिल रहा है, तो उसे विधानसभा में बहुमत साबित करने के लिए मुख्यमंत्री को कहना पड़ता है। अगर मुख्यमंत्री को इस विषय के संबंधित आनाकानी होती है तो, विधानसभा को कठोर बनाने की गुजारिश नहीं करता और राज्य पाल स्वयं विधानसभा की बैठक बुलाकर परिस्थिति को स्पष्ट करना होता है।
भगवान सहायक समिति:
- साल 1970 मे जम्मू कश्मीर के तत्कालीन राज्यपाल श्री भगवान सहाय की अध्यक्षता में एक समिति की रचना की जिसमें नीचे दी गई सिफारिशें की गई थी।
- ऐसा उम्मीदवार जो विधानसभा का सदस्य नहीं है अथवा जिसे विधानसभा के लिए पसंद किया गया हो, तो उसे मुख्यमंत्री के रूप में कार्य करना चाहिए।
- अगर विधानसभा के मंत्रिमंडल के पक्ष का समर्थन संदेह स्पद होता है, और मुख्यमंत्री विधानसभा का सत्र बुलाने में सम्मति नहीं दे रहा हो, तो राज्यपाल को तत्कालीन मंत्रिमंडल को विघटित कर देना चाहिए।
- मुख्यमंत्री के त्यागपत्र या सभा बर्खास्त के पश्चात राज्य में वैकल्पिक सरकार बनाने की संपूर्ण संभावनाएं क्षीण हो गई हो, तो ही राज्यपाल को विधानसभा विघटित करने की तथा राष्ट्रपति को राज्य में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश करनी चाहिए।
राजमन्नार समिति:
- राज्यपाल की नियुक्ति राज्य से संबंधित मुख्यमंत्री के परामर्श से होती है।
- राज्य पाल को सिद्ध अक्षमता के अंतर्गत सिर्फ उच्चतम न्यायालय की जांच के पश्चात ही हटाया जा सकता है।
- राज्यपाल के पद पर रह चुके व्यक्ति को केंद्र तथा राज्य सरकार के अनुरूप वापिस सेवा में नहीं लेना चाहिए।
- विधानसभा में किसी दल को स्पष्ट बहुमत प्राप्त ना हो तो राज्य पाल को विधानसभा को अधिवेशन बुलाना चाहिए। राज्य पाल बहुमत से चुने गए व्यक्ति को मुख्यमंत्री के रूप में नियुक्त करता है।
सरकारी आयेग:
- राज्यपाल के लिए नियुक्त होने वाला व्यक्ति जीवन के किसी भी क्षेत्र में निपुण होना चाहिए।
- राज्य पाल की नियुक्ति से पहले संबंधित राज्य के मुख्यमंत्री सम्मति लेनी आवश्यक है।
- इस व्यक्ति का दूसरे राज्य से सबंध होना चाहिए।
- जीस राज्य में विपक्ष दल की सरकार हो, वहां केंद्रों में शासक दल के किसी भी व्यक्ति को राज्य पाल के रूप में नहीं चुना जा सकता।
Last Final Words:
दोस्तों यह थी राज्यपाल के बारे में संपूर्ण जानकारी। हम उम्मीद करते हैं कि हमारी जानकारी से आपके राज्यपाल से संबंधित सभी प्रश्नों के उत्तर मिल गए होगे। यदि अभी भी आपके मन में कोई प्रश्न रह गया हो तो आप हमें कमेंट के माध्यम से बता सकते हैं। आर्टिकल आपको पसंद आया हो तो अपने मित्रों के साथ इसे शेयर कीजिए। धन्यवाद !
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