सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम

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जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने पूर्व मुख्यमंत्री और पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) प्रेजिडेंट महबूबा मुफ़्ती पर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (Public Safety Act-PSA) लगा दिया है।

सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम का परिचय (Introduction to Public Safety Act)

जम्मू-कश्मीर राज्य की संवैधारिक स्थिति में परिवर्तन लाने के उद्देश्य से संसद द्वारा संविधान के अनुच्छेद 370 में परिवर्तन किए गए है। इस समय राज्य में कानून व्यवस्था को बनाये रखने के उद्देश्य से महबूबा मुफ़्ती, उम्र अब्दुल्ला जैसे कई नेताओ को सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम के अंतर्गत निवारक निरोध में रखा गया था।

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जम्मू और कश्मीर का सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम क्या है? (What is the Public Safety Act of Jammu and Kashmir?)

  • जम्मू और कश्मीर सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम, 1978 मूलत: एक निवारक निरोध विधि है। परिभाषा के अनुसार, निवारक निरोध का अर्थ निवारक होना है, न की दंडात्मक।
  • जो किसी व्यक्ति को “राज्य की सुरक्षा या सार्वजनिक व्यवस्था” स्थापित करने के लिए तथा पूर्वाग्रह से मुक्त करने के लिए उसे या उस कार्य को करने से रोकने के लिए हिरासत में लिया जाता है।
  • यह राष्ट्रिय सुरक्षा अधिनियम के समान है जिसका उपयोग निरोधात्मक निरोध के लिए अन्य राज्य सरकारों द्वारा किया जाता है।
  • यह संभागीय आयुक्त या जिला मजिस्ट्रेट द्वारा पारित प्रशासनिक आदेश द्वारा लागु होता है।
  • इस अधिनियम में 2015 में नए नियमो को अधिसूचित किया गया था, जिनमे संभागीय आयुक्त के कुछ अधिकारों को गृह विभाग को सौंप दिया गया था।
  • संविधान के अनुच्छेद 370 में परिवर्तन के उपरांत केन्द्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने एक अधिसूचना से सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम (पीएसए) में परिवर्तन किया।
  • इस अधिनियम के अंतर्गत निरोधित किए गए जम्मू-कश्मीर के निवासियों को जेल में बंद करने के लिए प्रतिबंधित एक धारा को हटा दिया गया है।
  • यह जम्मू-कश्मीर उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के बजाय मुख्य सचिव की अध्यक्षता वाली एक समिति की सिफारिश पर पीएसए सलाहकार वोर्ड नियुक्त के मापदंड को परिवंतित किया गया। यह मुख्य न्यायाधीश के परामर्श के बिना उच्च न्यायालय के न्यायाधीशो को भी वोर्ड का हिस्सा बनाने से रोक सकता है।
  • डिटेनस की रिहाई में वोर्ड की महत्वपूर्ण भूमिका है।
  • यह आदेश निरोध के स्थान और स्थितियों को विनियमित करने की शक्ति के खंड का निरसन भी करता है।

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यह लोकतंत्र विरोधी क्यों? (Why this Anti-Democratic?)

  • पीएसए आवश्यक औपचारिकताओ परिक्षण के बिना किसी व्यक्ति को निरोधित करने की अनुमति देता है।
  • इसमें पुलिस, किसी व्यक्ति को या किसी एसे व्यक्ति को जिसे न्यायालय द्वारा जमानत दी गई है, उसे निरोधित कर सकता है। इसमें नजरबंदी दो साल तक की हो सकती है।
  • इसमें प्राकृतिक न्याय के मूल सिद्धांतो का भी पालन नहीं होता यथा पीएसए के तहत हिरासत में लिए गए व्यक्ति को हिरासत के 24 घंटे के भीतर मजिस्ट्रेट के सामने पेश करने की आवश्यकता नहीं है तथा उस व्यक्ति के पास आपराधिक अदालत के समक्ष जमानत आवेदन को स्थानांतरित करने का अधिकार नहीं है और हिरासत में आने वाले प्राधिकारी के समक्ष उसका प्रतिनिधित्व करने के लिए कोई वकील संलग्न नहीं कर सकता है।
  • उच्च न्यायालय और सर्वोच्च न्यायालय के पास इस तरह की याचिकाओ पर सुनवाई करने और पीएसए को समाप्त करने के लिए अंतिम आदेश पारित करने का अधिकार क्षेत्र है।
  • इस निवारक निरोधात्मक आदेश को चुनौती देने का एकमात्र तरीका हिरासत में लिए गए व्यक्ति के रिश्तेदारों द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के माध्यम से हो सकता है।
  • इस प्रकार यह अधिनियम, संविधान में वर्णित मूल अधिकार, प्राकृतिक न्याय के सिद्धांत का उलंघन होता है, जो एक लोकतांत्रिक देश में नहीं होना चाहिए।

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सार्वजनिक सुरक्षा अधिनियम क्यों प्रभावी है? (Why is the Public Safety Act in effect?)

भारत अभी राष्ट्र निर्माण की प्रक्रिया में है। जहाँ क्षेत्रवाद, सम्प्रदायवाद, जातिवाद जैसे विखंडनकारी अवयव उपलब्ध है, जो अपने हितो की पूर्ति हेतु राष्ट्र का अहित कर देते है। इन गतिविधियों को रोकने के लिए निवारक निरोध के सिद्धांतो की आवश्यकता है। इसके साथ ही साथ भारत को सीमापारीय आतंकी गतिविधियों का भी शिकार होना पड़ता है। कई बार ये आतंकी आंतरिक अशांति का लाभ उठाते है, अतः इन गतिविधियों को रोकने के लिए भी इस प्रकार के कानून की आवश्यकता है।

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निवारक निरोध (Preventive Detention)

संविधान के अनुच्छेद 22(3) के तहत यह प्रावधान है की यदि किसी व्यक्ति को निवारक निरोध के तहत गिरफ्तार किया गया है, तो उसे अनुच्छेद 22(1) और 22(2) के तहत प्राप्त गिरफ्तारी और हिरासत के खिलाफ संरक्षण का अधिकार प्राप्त नहीं होगा।

निवारक निरोध संबंधी अवधारणाए निश्चित ही लोकतांत्रिक सिद्धांतो के विरुद्ध है जिनमे व्यक्तिगत स्वतंत्रता का हनन होता है। लेकिन राष्ट्र के हित तथा सार्वजनिक व्यवस्था को ध्यान में रखते हुए, यदि हम भारत की स्थिति का अवलोकन करे तो यह कुछ सीमा तक उचित प्रतीत होता है। अतः हम यह कह सकते है की यह एक आवश्यक बुराई है।

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