विदेशी सती प्रथा (foreign sati practice) : सती प्रथा एक हिन्दू समाज में फेली एक बुराई थी। सती प्रथा पर हम और आगे बात करे उससे पहले आपको यह भी पता होना चाहिए की, यूरोपियन देशो में सती प्रथा से भी खतरनाक एक प्रथा प्रचलित थी। इस प्रथा को विजहंटिंग कहते थे। यह प्रथा लोगो द्वारा कीसी औरत पर जादू टोना करने पर उसे जिन्दा जलाया या दफनाया दिया जाता था। माना जाता है 1450 से लेकर 1750 तक इस प्रथा से 40,000 से 1,00,000, महिलाओ को वहा मोत के घाट उतार दिया गया। इसे पहले बताना जरूरी समजा क्युकी ज्यादा तर लोगो को लगता है की, सिर्फ हिन्दू धर्म में ही इस तरह की अमानुषिक प्रथाए स्थित थी। आईये अब हम विस्तार से बात करते है सती प्रथा के बारे में।
सती प्रथा की शुरुआत कैसे हुई?
सती प्रथा को सती नाम देवी दाक्षायणी से मिला। जिन्होंने उनके पिता दक्ष द्वारा उनके पति भगवान शिव का अपमान करने पर उस अपमान को सहन ना करने के कारण यज्ञं में कूद कर आत्म दाह कर लिया था। यहाँ पर आत्म दाह का कारण अपमान से दुखी होना था। बाद कुछ कुतर्की ब्राह्मणों ने इसे सतीप्रथा से जोड़ दिया।
प्रग एतिहासिक काल में जब मानव प्रकृति से बिल कुल से अन्विग्यं था। इस लिए यह विश्वास बहुत अधिक प्रचलित था, की मरने के बाद भी मनुष्य का अस्तित्व (आत्मा) किसी दुसरे रूप में चला जाता है। इस वजह से लोगो मृतकों के साथ-साथ उसकी चीजो को भी दफना दिया करते थे। किसी राजा या कुलीन व्यक्ति के मरने पर उससे सम्बंधित विभिन्न वस्तुओ यहाँ तक की उसके कुत्ते, घोड़े, नोकर इत्यादि को उसके साथ दफना दिये जाते थे, और क्युकी पहले का समाज आम तोर पर पितृ सत्तात्मक था, इस लिए स्त्री को भी पुरुष की एक वस्तु समजा जाता था। इस लिए स्त्रिओ को भी उनके पति के साथ दफना दिया जाता था। इसी विश्वास ने सती प्रथा की उत्पति के लिए रास्ता तैयार किया। जिसके अंतर्गत पुरुष के साथ उनकी पत्नी को भी जला या दफना दिया जाता था।
विश्व की अनेक जातियों में सतीप्रथा प्रचलित थी। उदाहरण के तोर पर सती प्रथा से मिलती जुलती एक प्रथा नोर्थ अमेरिका (North America) के नेचिस नेटिव ट्राइव में भी चलती थी। यहाँ पुलिन आदमी के मर जाने पर उसकी ओरतको मार दिया जाता था, और साथी कोई पुलिन स्त्री के मर जाने पर उसके आदमीको भी मार दिया जाता था। इस का मतलब है की विश्व इतिहास में ना केवल स्त्री के सती होने के प्रमाण मिलते है बल्कि पुरुष के भी सती होने के प्रमाण मिलते है।
धर्मग्रंथ में सतीप्रथा का उल्लेख
पारसी धर्मग्रन्थ “अवेस्ता (The Zend Avesta of Zarathustra)” तथा भारतीय ग्रन्थ र्त्रुग्वेद में सती प्रथा को बढावा देने का कही भी उल्लेख नहीं मिलता है। अथर्ववेद के एक श्र्लोक से पता चलता है, की पुरातन सतीप्रथा की ओपचारिकता पूरी करने के अंतर्गत पत्नी अपने पति के साथ चित्ता पर लेटती थी, जहा से उसके संबंधी उसे उठने के लिए आग्रह करते थे। इस प्रकार यह प्राथना की जाती थी की स्त्री पुत्रो एवं धन का उपयोग करते हुए एक सम्मानित जीवन व्यतीत कर सके। यहाँ तक की वेदों में विधवा विवाह का भी जिक्र हुवा है, और सभी स्त्री सती ही हो जाती थी तो विधवा विवाह केसे संभव था? त्रुग्वेद में एक श्र्लोक है जिसका लोगो ने अर्थ बदल ने की कोशीश की गई। इस श्र्लोक द्वारा यह सिद्ध करने की कोशिश की गयी, की त्रुग्वेद सतीप्रथा को बढ़ा के लिए प्रोत्साहित करता है, जबकि यह श्र्लोक सती प्रथा को रोक रहा है। यह श्र्लोक कहता है की, “उठो इस मृत को छोडो और पुनह जीवन को चुनो।” यदि इस बात का अर्थ कोई हिन्दू दे, लोग इसे नहीं मानेगे, लेकिन इस बात का अर्थ स्वयं मैक्स मुलर (MAX MULLER) ने भी किया था। मैक्स मुलर ने कहा था “यह शायद इस बात का सबसे स्पष्ट उदाहरण है की विवेकहिन पुरोहितो द्वारा क्या किया जा सकता है, यहाँ हजारो जिन्दगिया बलिदान हो गयी और एक अवतरण की सत्ता ने जो की शत-विशत गलत व्याख्यायित्व प्रयोग की गयी, इस कुप्रथा के व्यावहारिक विद्रोहियों को भी धमकाया। इन उल्लेखो से स्पष्ट है की वैदिक समाज में सतीप्रथा प्रचलित नहीं थी, तथा विधवा विवाह भी होता था।
सती प्रथा का प्रचलन भारत में कब हुआ था? (When was the practice of Sati started in India?)
ब्राह्मण साहित्य के ग्रंथो के सूत्रों में भी सती प्रथा का उल्लेख नहीं मिलता। बद्ध साहित्य भी इस से अन्विग्य लगता है। मेगास्ठेनेस (MEGASTHENES GREEK HISTORIAN) और कौटिल्य (चाणक्य) भी इसका कही उल्लेख नहीं करते है। इस से यह स्पष्ट होता है की चोथी सदी इसा पूर्व तक सतीप्रथा का प्रचलन भारतीय समाज में नहीं था। भारतीय समाज में सती प्रथा का प्रचलन चोथी सदी इसा पूर्व के बाद किसी समय हुवा होगा। रामायण के मूल अंश में इसका उल्लेख नहीं है, लेकिन उत्तर कांड में वेदवती की माता के सती होने का उल्लेख है। महाराज दशरथ और रावण की पत्निया भी उनके पति के मरने के बाद सती नहीं हुई थी। महाभारत में भी इस प्रथा के गिने-चुने उदाहरण ही मिलते है। पांडू की मृत्यु के बाद उनकी पत्नी माद्री सती हो गई थी। कृष्ण के पिता वासुदेव के मरने पर भी उनकी पत्नियो ने सतीत्व का अनुसरण किया था, लेकिन इस महा काव्य में ही कई एसे उदाहरण मिलते है, जहा पतिओ के मृत्यु बाद भी उनकी पत्निया जीवित रही। जिसमे अभिमन्यु, घटोत्कच एवं गुरु द्रोण की पत्निया सती नहीं हुई। हमें हजारो यादव विधवाओ का उल्लेख मिलता है, जो अर्जुन के साथ हस्तिना पुर गयी थी।
पुराणों में कुछ स्त्रिओ के सती होने का उल्लेख मिलता है। इस से पता चलता है की चोथी सदी इसा पूर्व के लगभग सती प्रथा समाज में आधार प्राप्त कर चुकी थी। यूनानी लेखक देश के कुछ भागो में सतीप्रथा के प्रचलन का उल्लेख करते है। स्त्रबो (STRABO GREEK HISTORIAN) तक्षशिला की स्त्रिओ एवं पंजाब की कठ जाती में सतीप्रथा के प्रचलन का उल्लेख करते है। कालिदास तथा शुद्रक जेसे लेखको ने भी इसका उल्लेख किया है।
सती प्रथा के प्रचलन का अभिलेखिय प्रमाण गुप्त काल का है। 510 इसा के इरन लेख से पता चलता है की गुप्त नरेश भानु गुप्त का मित्र गोपराज बूडो के विरुद्ध लड़ता हुवा मारा गया तथा उनकी पत्नी सती हो गई थी। हर्ष-चरित से पता चलता है, की प्रभाकर वर्धन की पत्नी यशोमती अपने पति के मृत्यु के पूर्व ही सती हो गई थी। राजश्री भी चित्ता बना कर जलने जा रही थी, लेकिन हर्ष ने उसे बचा लिया था। कुछ लेखको तथा भाशिकारो ने सतीप्रथा का कड़ा विरोद्ध भी किया था। महा कवि बाणभट्ट इसका विरोद्ध करते हुए इसे महान मुर्खता पूर्ण कार्य बताया, जिसका कोई फल नहीं होता। बाणभट्ट ने कहा यह आत्म हत्या है, जिसका अनुकरण करने वाली स्त्री नरकगामिनी होती है। इसके विपरीत विधवा स्त्रीया अपना तथा अपने मृतक पति दो नों का कल्याण करती है। सती हो कर भी किसी को लाभ नहीं पहुचाती। देवणभट्ट भी इस संबंध में कहते है की सती होना विधवा के ब्रह्मचारी रहने की अपेक्षा अधिक जघन्य होता है। मध्यकालीन टिका कार मेधातिथि भी इसे आत्म हत्या मानते हुए स्त्रिओ के लिए निषेध बताते है। फिर भी इन विरोधो के बावजूद सती प्रथा समाज में प्रचलित होती गई। हरित के अनुसार सती व्रत के द्वारा पत्नी अपने पति को जघन्य पापो से भी मुक्ति दिलाती है। तथा दो नो स्वर्ग में साडे तिन करोड़ वर्षो तक स्वर्ग में सुख पूर्वक निवास करते है। इन कुविचारो के फल स्वरूप सातवी से ग्यारवी सदी तक के काल में उत्तरी भारत में यह प्रथा काफी प्रचलित हो गयी। कश्मीर में इसका विशेष प्रचार प्रसार हुवा।
कल्हण की “राजतरर्गिनी” से सती प्रथा के अनेक उदाहरण मिलते है। राज कुलो में इसका व्यापक प्रचलन था। यहाँ तक की शाशको की वैश्याओ को भी सती होते हुए दिखाया गया है। कथासरित्सागर में भी सतीप्रथा के अनेक द्रष्टांत मिलते है। दक्षिण भारत में यह प्रथा अपेक्षा व्रत कम लोकप्रिय रही। सतीप्रथा का प्रचलन प्रारम्भ में क्षत्रिय तथा योद्धा कुलो में ही था। पदम् पूरण में स्पष्टता इस प्रथा को ब्राह्मणों के लिए निषेध बताया गया है, लेकिन 10वी सदिसे ब्राह्मणों में भी इस प्रथा का प्रचलन होने लगा था। राजपूतो में यह प्रथा विशेष रूप से प्रचलित थी। जिस का एक कारण विदेशी आक्रान्ताओ से महिलाओं की रक्षा करना भी था।
इस प्रकार धीरे-धीरे यह अमानवीय प्रथा हिन्दू धर्म में एक मान्य प्रथा हो गई। धार्मिक अंधविश्वासों ने इस बर-बर प्रथा को लोकप्रिय बनाया। जीमूत वाहन ने दाई भाग में लिखा की इस प्रथा का उदेश्य स्त्री को संपति के अधिकार से वंचित करना था, तथा इसी कारण उसे पति के साथ जल मरने के लिए बाद किया जाता था, लेकिन इस प्रथा को फेलने में कई कारणों का योगदान था।
सती प्रथा को रोकने के लिए किये गये प्रयास
तुर्की एवं मुस्लिम आक्रान्ताओ के दोर में सती प्रथा में बहुत अधिक वृद्धी हुई। 12वी सदी के बाद राजपूत कुलो में सती प्रथा का प्रचलन अत्यधिक हो गया था। तथा विदेशी आक्रान्ता से रक्षा हेतु महिलाओने जोहर भी किया। कुछ इतिहासकार बताते है की हुमायु अकबर ने सतीप्रथा को रोक ने के प्रयास किये थे। इस पर प्रोफ़ेसर एनी मेरी शिमेल कहते है, मुग़ल शाशक अकबर ने इस व्यवस्था पर विरोद्ध जताया था पर ऊसने इसे रोकने के लिए कोई ठोस प्रयास किये हो एसा कोई प्रमाण नहीं है, क्युकी सतीप्रथा उसके समय और उसके बाद के समय में भी जारी रही थी। अकबर के बाद जहाँगीर राजा बने। उसने कश्मीर के राजाओमें एक मुस्लिम लड़की के भी अपने पति के साथ जिन्दा दफ़न हो जाने का जिकर किया है। ये वे हिन्दू थे जिनका जबरन धर्म परिवर्तन कर दिया गया था। इसी समय के अन्य यात्रियों से पता चलता है की दफना ने की यह प्रथा बाद तक भी जारी रही। वेसे आम तोर पे मुस्लिम महिलाओकी के जिन्दा दफ़न होने की प्रथा बहुत सिमित थी।
सतीप्रथा का अंत कैसे और किसके द्वारा हुआ था? (How and by whom did the practice of Sati end?)
राजा राम मोहन राय सती प्रथा की क्रूरता से बचपन से ही परिचित थे। वर्ष 1811 में उनके ही भाई की पत्नीको जिन्दा जला दिया गया था। राजा राम मोहन राय ने सतीप्रथा को समाप्त करवा ने में महत्व पूर्ण भूमिका निभाई। राजा राम मोहन राय ने तर्क दिया की शास्त्रों में सती होना कई भी आवश्यक नहीं बतया गया है। इस लिए यह प्रथा बंध होनी चाहिए। राजा राम मोहन राय का भी इस संबंध में कुछ धर्म के ठेकेदारो द्वारा भी विरोद्ध किया गया। पर अंततः लोर्ड विल्लिं बेंटिंक (WILLIAM BENTINCK) के सहयोग से 1829 में एक कानून बना कर इस अमानुषिक प्रथा को अवेध घोषित कर दिया गया।
Last Final Word:
दोस्तों हमारे आज के इस आर्टिकल में हमने आपको सती प्रथा के बारे में सम्पूर्ण जानकारी दि जैसे की सती प्रथा की शुरुआत कैसे हुई?, धर्मग्रंथ में सती प्रथा का उल्लेख, सती प्रथा का प्रचलन भारत में कब हुआ था?, सती प्रथा को रोकने के लिए किये गये प्रयास, सती प्रथा का अंत कैसे और किसके द्वारा हुआ था? और सती प्रथा से जुड़ी सभी माहिती से आप वाकिफ हो चुके होंगे।
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