शहीद भगत सिंह का जीवन परिचय

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भारत के इतिहास की और एक नज़र करे तो भारत में आदि काल में कई सारे महाराजा ने शासन किया है। साथ ही साथ भारत पर ब्रिटिशो ने भी अपने शासन को स्थापित किया था, और हिंदुस्तान को अपना गुलाम बनाया था। भारत को उनकी गुलामी से आज़ाद करने के लिए कई सारे स्वाधीनता आन्दोलन सदियों तक चलते रहे थे। भारत को इस आन्दोलन की वजह से उन लोगो से पहचान हुइ जो अपने देश के लिए अपनी जान तक की भी क़ुरबानी देने के लिए तैयार थे। भारत में स्वतंत्रता संग्राम के लिए कई सारे लोगो ने अपने प्राण की आहुति दी है, जिसमे कुछ लोगो ने हिंसा का उपयोग किया तो कुछ लोगो ने अहिंसा के मार्ग पर चल कर हमाँरे देश को अंग्रेजो की गुलामी में से आजाद करवाया था।

अनेक महान नेता ने अपने नेतृत्व में भारत की जनता को अपने हक़ के लिए लड़ने और आवाज़ उढाने के लिए प्रेरणा दी और उनको एक जुथ करके अंग्रेजो के सामने अपनी आजादी के लिए आन्दोलन किये। भारत को आजादी दिलाने में गांधीजी, जवाहरलाल नहेरु, सरदार पटेल, सुभाषचंद्र बोज़, मंगल पांडे, चंद्रशेखर आजाद, बाल गंगाधर तिलक इत्यादी ने अपना जीवन समर्पित कर दिया। भारत की आजादी में कई सारी महिला ने भी अपना योगदान दिया है जिसमे विजय लक्ष्मी पंडित, सुचेता कृपलानी, सावित्रीबाई फुले, सरोजनी नायडू, लक्ष्मी सहगल, रानी लक्ष्मी बाई, कस्तूरबा गाँधी इत्यादि का समावेश होता है।

दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम ऐसे ही वीर स्वतंत्रता संग्रामी के बारे में बात करेंगे जिनका नाम वीर भगत सिंह है। हमने इस लेख में भगत सिंह से सबंधित सभी जानकारी को प्रकाशित किया है, उम्मीद है आपको वीर भगत सिंह के बारे में पूरी जानकारी मिल सके।

भगत सिंह का शरुआती जीवन (Early Life of Bhagat Singh)

भगत सिंह के नाम से भारत देश का हर नागरिक परिचित है। भारत के स्वाधीनता में अपना योगदान देने वाले सभी लोगो में से भगत सिंह को उनके जोश और जज्बे के लिए जाना जाता है।

वीर भगत सिंह का जन्म साल 1907 में 27 सितम्बर के दिन पश्चिम पंजाब में स्थित लायलपुर में हुआ था। हालाँकि आज यह विस्तार पाकिस्तान में आता है। भगत सिंह के पिता जी का नाम सरदार किशन सिंह और माता जी का नाम विध्यावती कौर था। उनके पिता का पेशा कृषि करना था जबकि उनकी माता गृहिणी थी। भगत सिंह के मन में देश भक्ति का जज्बा उनके परिवार से ही मिला था। उनके परिवार में राष्ट्रवाद की भावना और स्वतंत्रता के लिए आन्दोलन में शामिल होने की भावना प्रेरित थी। भगत सिंह के पिता जी महात्मा गाँधी जी के अनुशासन को मानते थे, और उस पर चलते थे। उनके जन्म के वक्त तक वे खुद राजनीतीक आन्दोलन के दौरान जेल में थे।

किशन सिह के 4 बेटे थे जिसमे से सबसे बड़े बेटे का नाम जगतसिंह था, जिसकी 11 साल की आयु में मृत्यु हो गई थी। बड़े भाई की मौत के बाद घर के बड़े पुत्र की सभी जवाबदारी भगत सिंह के कंधो पर आ गई। भगत सिंह ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा दयान्द एंग्लो वैदिक स्कूल से प्राप्त की थी, जिसका नियमन आर्य समाज के द्वारा हो रहा था। उसके बाद उन्हों ने अपनी आगे की पढाई नेशनल कोलेज से हांसिल की।

भगत सिंह का प्रारंभिक जीवनकाल में देश की स्थिति (The condition of the country in the early life of Bhagat Singh)

भगत सिंह के बचपन में भारत में स्वतंत्रता का आन्दोलन अपने चरम पर था। साल 1905 से लेकर साल 1915 के समय को क्रांतिकारी राष्ट्रवाद के प्रथम पहेलु के तौर पर जाना जाता है। इस समय की मुख्य राजनीती प्रक्रिया में मुस्लिम लिंग की स्थापना, कोंग्रेस का दो दल में विभाजित हो जाना और मार्लो मिंटो का सुधार इत्यादि का समावेश किया है। जलियांवाला बाग़ हत्याकांड की घटना से भगत सिंह पर बहुत असर पड़ा था। वर्ष 1919 में ब्रिटिश सरकार रौलट एक्ट को लेकर भारत में आये। इस कायदे के अनुसार सरकार बिना कारण के भी किसी भी नागरिक को बंदी बना सकते थे।

साल 1919 में 13 अप्रैल के दिन काले कानून का विरोध करने के लिए अमृतसर में स्थित जलियांवाला बाग में अनेक लोग शांति पूर्वक सभा करने के लिए एकत्र हुए थे। बाग़ से बहार जाने का एक ही मार्ग था, जो उसका मुख्यद्वार था। उसी समय पर वहा अंग्रेज अधिकारी जनरल डायर ने वहा पहुच कर बाग़ के मुख्य द्वार पर अपने सैनिक और हथियार से भरे वाहन को खड़ा कर दिया ताकि मुख्य मार्ग सम्पूर्ण प्रकार से बंध हो जाये। इस अधिकारी ने बिना हथियार वाले उन लोगो पर बिना किसी चेतवनी के करीब 10 मिनिट तक बिना रुके गोलिया चलाई। इस घटना के अंत में 1000 से भी ज्यादा लोगो ने अपने प्राण गवा दिए थे। यह घटना को देख कर भगत सिंह ने ब्रिटिश के शासन का अंत लाने का वचन ले लिया। वे सिर्फ 12 साल के थे जब उन्होंने यह प्रण लिया था।

साल 1922 में हुई चौरी-चौरा की घटना को नजर में रख कर गाँधी जी ने असहयोग के आन्दोलन को वापिस लेने की मांग की थी, जिसमें भगत सिंह की संमत्ति नहीं थी। भगत सिंह के पिता जी भले ही गाँधी जी के अनुशासन का पालन करते थे, किन्तु भगत सिंह का मानना था की देश की आजादी के लिए बिना शस्त्र के सिर्फ अहिंसा के मार्ग पर चल कर नहीं मिल सकती। साल 1923 में उन्होंने नॅशनल कोलेज में दाखिला लिया जो लाहौर में आई थी, जिसके बाद उन्होंने यूरोपियन क्रांति के बारे में पढाई की। इसके बाद से वे क्रांतिकारी विचार सरणी को अपना ने लगे।

साल 1926 तक पहुचते पहुचते भगत सिंह ने खुद के क्रांतिकारी विचार को अमल में लाना शरू कर दिया था। वर्ष 1926 में उन्होंने भारत के नौजवानों को एकत्र करके एक सभा की स्थापना की, जिसकी मदद से भगत सिंह ने आजादी के इस युध्ध में भारतीय युवाओ को एक जुथ करके अपनी लड़ाई शरु कर दी। भारत को आजाद करने के लिए एक आवश्यक कदम के रूप में साबित हुआ। इसके करीब 2 साल के बाद भगत सिंह और उनके सह साथी हिन्दुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिक एसोसिएसन नाम की एक नई क्रांतिकारी संगठन के साथ जुड़ गए। यह संगठन की स्थापना साल 1924 में अगस्त में भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लीडर रामप्रसाद बिस्मिल, योगेश चन्द चटर्जी, चंद्रशेखर आजाद और शचीन्द्रनाथ सान्याल के जैसे क्रांतिकारी ने कानपूर में की थी।

भगत सिंह ने उनके शब्दों में स्पष्ट घोषणा कर दी थी, औपनिवेशिक सत्ता को खत्म कर के साथ ही आम लोगो की पूंजीवाद को खतम करना और समाजवाद को स्थापित करने के लिए आन्दोलन करना होंगा।भगत सिंह का मानना था की इस आजादी की लड़ाई में भाग लेने वाले लोक में से कुछ लोग केवल साम्राज्यवादियो से समजौता करके अपने लिए सत्ता को प्राप्त करना चाहते है। भगत सिंह का यह भी कहना था की आजादी का अर्थ सफ़ेद चमड़ी से कालि चमड़ी तक का नहीं है बल्कि समाज में फैले हुए आर्थिक और सामाजिक असामनता और रूढ़ीवाद को भी ख़त्म करना है इन चीजो से भी देश को आजाद करना है।

नौजवान सभा का घोषणापत्र (manifesto of youth assembly)

नौजवान सभा जिसमे भारत देश के स्वतंत्रता की लड़ाई के लिए भारतीय नव युवानो को एकत्र करने में आये थे। साल 1926 में अप्रैल के महीने में नौजवान सभा की पहेली सभा हुई, जिसमे भगत सिंह ने लड़ाई में भाग लेने वाले नव युवानो को आजादी के लिए कुछ सन्देश दिए। घोषणा पत्र से मालूम पड़ता है की कोंग्रेस और दुसरे नेता के द्वारा किये जा रहे आन्दोलन से उन सब का विश्वास उठ चूका था। भगत सिंह ने युवानो को संदेश देते हुए कहा की:

” हमारा देश एक अव्यवस्था की स्थिति से गुजर रहा है। चारो तरफ एक दुसरे के प्रति अविश्वास और हताशा का साम्राज्य है। देश के बड़े नेताओ ने अपने आदर्श के प्रति आस्था खो दी है और उसमे से अधिकांश को जनता का विश्वास परत नहीं है। भारत की आजादी के पैरोकारो के पास कोई कार्यक्रम नहीं है, और उनमे उत्साह का अभाव है। चारो तरफ अराजकता है, लेकिन किसी राष्ट्र के निर्माण की प्रकिया में अराजकता एक अनिवार्य तथा आवश्यक दौर है। एसे ही नाजुक घडियो में ही कार्यकर्त्ता की ईमानदारी की परख होती है।

भगत सिंह की क्रांतिकारी गतिविधिया (Revolutionary Activities of Bharat Singh)

दोस्तों चलिए भगत सिंह के क्रांतिकारी की मुख्य घटना के बारे में बात करते है। साल 1928 में किया गया अंग्रेज पुलिस अधिकारी पर हुमला मुख्य स्थान पर आता है। इस घटना में उसकी मृत्यु हो गई थी। हुमला करवाने के पीछे भगत सिंह का मकसद लाला लाजपत राय की मृत्यु का बदला लेना था। उस वक्त भारत में कोंग्रेस 2 दल में विभाजित हो गई थी, जिसमे एक नरम दल और दूसरा गरम दल में विभाजित थे। दोनों अलग अलग दल में से एक दल नीतियों का पालन करता था तो दूसरा दल क्रांतिकारी विचारधारा का आचरण करता था।

इन क्रांतिकारी विचारधारा का आचरण रखने वाले दल में लाला लाजपत राय, बाल गंगाधर तिलक और विपिन चन्द्रपाल का समावेश होता है। लाला लाजपत राय को पंजाब के केसरी का ख़िताब मिला हुआ है। लाला लाजपत राइ ने पंजाब में पंजाब नॅशनल बेंक की स्थापना की थी। वर्ष 1928 में साइमन कमीशन भारत में लाया गया ,जिसका विरोध देश भर में हुआ और साइमन कमीशन गो बेक के नारे लगाय गए। लाहोर में इस आन्दोलन का नेतृत्व लाला लाजपत राय के द्वारा किया जा रहा था। इस दौरन इस विरोध करने वाले क्रान्तिकारियो पर अंग्रेज सरकार के द्वारा लाठी चार्ज का आदेश किया गया। लाठी चार्ज की वजह से लाला लाजपत राय बहुत ही जखमी हो गए, और इस गहेरे जख्मो की वजह से साल 1928 में 17 नवम्बर के दिन उन्हों ने अपने देह को त्याग दिया और शहीद हो गए। जहा दूसरी तरफ लखनऊ में कमीशन के विरोध के लिए नेतृत्व कर रहे पंडित जवाहर लाल नेहरू और गोविंद वल्लभ पन्त ही अंग्रेज सरकार द्वारा की गयी लाठी चार्ज से बुरी तरह से घायल हुए थे।

”साइमन कमिशन का गंठन 8 अक्टूबर 1927 को किया गया, जिसे 1928 में सर जोन साइमन के नेतृत्व में संवैधानिक सुधार करने के उदेश्य से भारत भेजा गया। इस आयोग का मुख्य उदेश्य 1919 में पारित करने के दौरान ब्रिटिश सरकार ने घोषणा की की वे 10 वर्ष पश्चात इसके सुधारो की समीक्षा करेंगे हालाँकि इस आयोग का गठन 2 वर्ष पूर्व ही कर दिया गया। आयोग में कुल सात सदस्य शामिल थे जिनमे कोई भी भारतीय सदस्य नहीं था अतः भारत में स्वशासन में सबंधित निर्णयों ने किसी भी भारतीय का न होना इस आयोग के विरोध का मुख्य कारण बना। इसका विरोध कोंग्रस के दोनों धडो समेत मुस्लिम लीग ने भी किया।”

इस आन्दोलन में हुई लाला लाजपत राय की मृत्यु से पुरे स्वतंत्रता आंदोलन पर गहरी असर हुई, उनकी मृत्यु के बाद कई सारे नेता ने उसका बदला लेने की ठान ली, इसमे भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, राजगुरु और सुखदेव ने प्रमुख भूमिका भजाई है। साल 1928 में 17 दिसंबर के दिन इन लोगो ने ब्रिटिश पुलिस अधिकारी बर्नी सैडर्स की हत्या उसे गोली मार कर दी, जबकि यह सारी योजना पुलिस अधिकारी जेम्स ए स्कोर्ट को गोली मार के हत्या करने की बनाइ गई थी।

इस घटना के समय ब्रिटिश पुलिस के हत्या हुई उस समय उसके सिपाही चानन सिंह को क्रांतिकारी को पकड़ने की कोशिश कर रहा था उसकी भी हत्या कर दी गई। इस हत्या की घटना से पूरी ब्रिटिश पुलिस क्रांतिकारी को पकड़ने के लिए लग गई थी। ब्रिटिश पुलिस की खोज से बचने के लिए भगत सिंह ने धर्म की परवाह किए बगेर अपनी पहेचान छुपाने के लिए सर के बाल और दाढ़ी मुछे कटवा ली थी। इस घटना के बाद ही भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव को फांसी की सजा मिली थी।

असेंबली में बम फेकना (throwing bombs in assembly)

भगत सिंह की दूसरी मुख्य क्रांतिकारी घटना की यदि बात की जाये तो दिल्ही की असेंबली में बम फेकना आता है।हालाँकि भगत सिंह क्रांतिकारी विचारधारा का पालन करते थे परन्तु वे रक्तपात करने के लिए कभी समर्थन नहीं देते थे। भगत सिंह मार्क्स से प्रभावित थे तथा समाजवाद के लिए पक्के पक्षाधर रहे है। इस दौर में सभी अधिकार ब्रिटिश के पास थे ऐसे में मजदूरो का शोषण होना लाजमी था। भगत सिंह इस अंग्रेज सरकार की मजदुरो के हक़ के विरोध की निति के खिलाफ खड़े थे, और वे एसे किसी भी नियम को पारित नहीं होने देना चाहते थे। भगत सिंह ने स्पष्ट कर दिया था की ब्रिटिश सरकार यह बात समज ले की भारतीय अब किसी भी मजदुर वर्ग के विरोध में बने कायदे की स्वीकृति नहीं करेंगे। इस बात पर उन्होंने दिल्ली असंबली में बम फेक कर अपने विरोध को प्रदर्शित करने के लिए योजना बनाई।

हमने आगे देखा की भगत सिंह को रक्तपात पसंद नहीं था और इसी की वजह से इस योजना का मगसद लोगो को नुकशान पहुचना या तकलीफ देना नहीं था, वे सिर्फ अपने सन्देश को ब्रिटिस सरकार तक पहुचना चाहते थे। दिल्ली की असेम्बली में बम्ब फेकने के लिए साल 1929 के 8 अप्रैल के दिन को पसंद किया गया। केन्द्रीय असम्बली में भगत सिंह और बटुकेश्वर दत्त दोनों ने मिल कर बम फेका, जिसकी वजह से पुरे असंबली होल में धुआ- धुँआ हो गया था। इन क्रांतीकारियो ने एसी जगह बम फेका था की किसी को चोट न लगे या किसी की मृत्यु न हो। बम फेकने के बाद दोनों वहा से भाग सकते थे, किन्तु उन्हों ने वहा से भाग निकलने के बजाई खुदको उनके हवाले कर देने का फैसला ले लिया। बम फेकने के बाद दोनों वीरो ने इन्कलाब जिंदाबाद के नारे लगाना शरु किये और अपने साथ लाई गई कुछ पत्रिका को हवा में उछाल ते हुए खुदको अंग्रेज सरकार के हवाले कर दिया था।

भगत सिंह का जेल का जीवन (Bhagat Singh’s prison life)

आत्मसमर्पण के बाद भगत सिंह ने अपने पक्ष में कोई भी बात को कहेना योग्य नहीं समझा। भगत सिंह जेल में होने के बावजूद करीब 2 साल तक जैल में भी अंग्रेज सरकार के विरुध्ध में अपना आन्दोलन को शरु रखा था। उन्हों ने अंग्रेज सरकार की जैल में भारतीय कैदियों के साथ होने वाले भेदभाव पर भी अपना विरोध प्रदर्शित किया था। इसी जेल में उनकी मुलाकात जतिन दास से हुई, जो भारतीय सोशलिस्ट रिपब्लिकन एसोसिएशन संगठन के सदस्य थे। भगत सिंह ने उनके साथ मिलकर जेल में हो रहे भारतीय कैदी के साथ के भेदभाव के लिए भूख हड़ताल करी। यह भूख हड़ताल के करीब 64वे दिन के बाद जतिन दास शहीद हो गये।

जतिन दास की मृत्यु हो जाने के बाद भी भगत सिंह ने भूख हड़ताल को जारी रखा। भगत सिंह के पिता कीशन सिंह के कहने पर लगभग 116 दिन बाद इस अनसन को समाप्त किया गया। भगत सिंह को स्वतंत्रता आन्दोलन से कोई दूर नहीं कर पाया, जेल में रहकर भी उन्हों ने उनके लिखित पत्र तथा लेख के द्वारा आन्दोलन के लिए योगदान दिया था। भगत सिंह के द्वारा लिखित लेख को जेल डायरी के नाम से संकलित किया जाता था। जेल डायरी में लगभग 400 से भी ज्यादा पन्नो में उन्हों ने राष्ट्र के प्रति उनके प्रेम को व्यक्त किया था, साथ ही साथ वे एक अच्छे विचारधारा रखने वाले व्यक्ति तथा कवी होने का भी प्रमाण इन लेखो से मिलाता है।

जेल की डायरी में उनके द्वारा लिखा गया महत्वपूर्ण लेख में नास्तिक क्यों हु का लेख है। इस लेख में उन्हों ने धर्म और जिवन के विषय में अपने विचारो को लिखा है। सबसे पहेले 27 सितम्बर के दिन साल 1931 में लाहौर शहर में संपादित होने वाले अखबार THE PEOPLE में प्रकाशित किया गया था। प्रकाशित किये गये लेख में उन्हों ने व्यक्ति की दीनता, समाज में विस्तुत हो रही असमानता, निम्न वर्ग पे होने वाले शोषण इत्यादि को देखते हुए किसी दैविक शक्ति के अस्तित्व पर सवाल खड़े किए थे। अपने इस लेखे में उन्हों ने कुछ इस प्रकार से लिखा है की:

”यदि आपका विश्वास है की एक सर्वशक्तिमान, सर्वव्यापक और सर्वज्ञानी इश्वर है, जिसने विश्व की रचना की, तो कृपा करके मुझे यह बताये की उसने यह रचना क्यों की? कष्टों और संतापों से पूर्ण दुनिया असंख्य दुखो के शाश्वत्त अनन्त गठबन्धनो से ग्रसित! एक भी व्यक्ति पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। कृप्या यह न कहें की यही उसका नियम है। यदी वह किसी नियम से बंधा है तो वह सर्वशक्तिमान नहीं है। वह भी हमारी तरह नियमो का दास है। कृपा करके यह भी न कहे की यह उसका मनोरंजन है। नीरो ने बस एक रोम जलाया था, उसने तो थोडा दुःख पैदा किया, अपने पूर्ण मनोरंजन की लिए। और उसका इतिहास में क्या स्थान है? उसे इतिहासकार किस नाम से बुलाते है? सभी विषैले विशेषण उस पर बरसाये जाते है। एक चंगेज खां ने अपने आनंद के लिए कुछ हजार जाने ले ली और आज हम उसके नाम से घृणा करते है। तब किसी प्रकार तुम अपने इश्वर को न्य्यायोचित ठहराते हो?”

भगत सिंह को फांसी (Bhagat Singh hanged)

साल 1930 में 7 अगस्त के दिन आदालत ने अपने लगभग 68 पन्नो पर अपने निर्णय में भगत सिंह, राजगुरु और सुखदेव तीनो को एक साथ फांसी की सजा सुनाई गई। इन तीनो की सजा को माफ़ कर देने के लिए कई सारे नेता ने परिषद ने अपिल की थी। हालाँकि इस अपील को ठुकराया गया था। इस घटना के बाद पंडित मदन मोहन मालवीय और गाँधी जी ने उनकी सजा की माफ़ी के लिए वायसर से बात की थी, जिसका भी कोई जवाब नहीं आया था।

भगत सिंह, सुखदेव और राज गुरु को साल 1931 में 23 मार्च के दिन ठीक 7 बजकर 33 मिनिट पर फांसी पर चडा दिया गया था। तीनो स्वतंत्रता संग्राम के क्रांतिकारीओ ने फांसी के फंदे को बिना किसी पस्तावे के हस्ते हुए गले से लगा लिया और अपने प्राण की आहुति देते हुए शहीद हो गए। भगत सिंह हंमेशा से उनके निडर स्वभाव के लिए तथा उत्साह के लिए भारतीय नौवयुवानो में प्रेरणारूप बने है। उन्होंने 3 मार्च को अपने भाई के लिए एक पत्र लिखा था जिसमे एक शेर लिखा था जिससे उनके समूचे व्यक्तित्व और शौय को देखा देखा जा सकता है।

” उन्हें यह फ़िक्र है हरदम, नयी तर्ज-ए-जफ़ा क्या है?
हमें यह शौक है देखे, सितम की इन्तहा क्या है?

दहर से क्यों खफ़ा रहें, चर्ख का क्या गिला करें।
सारा जहाँ अदू सही, आओ! मुकाबला करे।।”

Last Final Word:

दोस्तों यह थी शहीद वीर भगत सिंह जी के बारे में संपूर्ण जानकारी। उम्मीद है की आपको हमारी दी गिया जानकारी से भगत सिंह के जीवन से सबंधित सभी जानकारी प्राप्त हुई होगी। यदि अभी भी आपके मन में वीर भगत सिंह के बारे में कोई सवाल रह गया हो तो हमें Comment के माध्यम से अवश्य बताइएगा।

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