यह शूरवीर योद्धा राणा सांगा का पूरा नाम महाराणा संग्राम सिंह था। हमारे भारतीय इतिहास के शूरवीर और पराक्रमी शासको में राणा सांगा का नाम बहुत ही सम्मान से लिया जाता है। राजस्थान जिल्ले में कई सारे महान शासक ने जन्म लिया था, राणा सांगा उन्ही शासको में से एक थे। राणा सांगा को त्याग, बलिदान और समर्पण के लिए जाना जाता था। यह हमारे भारत देश के एक बहुत ही बहादुर योद्धा रहे थे और इनके पीछे का इतिहास बहुत ही रोचक रहा है।
इस आर्टिकल में हम शूरवीर योद्धा राणा सांगा के जीवन परिचय और उनके गौरवशाली इतिहास के बारे में विस्तार से बताने जा रहे है तो आप हमारा यह आर्टिकल को पुरे ध्यान से अंत तक जरुर पढ़े।
शूरवीर योद्धा राणा सांगा का जन्म और इतिहास
शूरवीर योद्धा महाराणा संग्राम सिंह जी का जन्म 12 अप्रेल,1472 ईस्वी में चित्तौड़ में हुआ था। उनके पिता का नाम राणा रायमल था वह राजस्थान के राजा थे। राणा रायमल के वहा तीन पुत्रो का जन्म हुआ था, कुंवर पृथ्वीराज, जगमाल और राणा सांगा। उनके तीसरे नंबर के पुत्र राणा सांगा का शासन काल 12 अप्रेल 1484 से 30 जनवरी 1528 के बीच रहा था। शूरवीर योद्धा राणा सांगा ने सन 1509 से 1528 में उदयपुर में सिसोदिया राजपुर राजवंश के राजा के रूप में राज किया था।
राणा सांगा अपने दोनों भाइयो में से सबसे छोटे थे। और मेवाड़ के सिंहासन के लिए इन तीनो भाइयो में बहुत ही बड़े संषर्ष का प्रारंभ हुआ, जिसकी वजह से राणा सांगा मेवाड़ को छोड़ दिया था और अजमेर चले गए थे। वहा पर शूरवीर योद्धा राणा सांगा कर्मचन्द पंवार की मदद लेकर 1509 में मेवाड़ राज्य को प्राप्त कर लिया था।
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) हमारे मध्यकालीन भारत के सबसे अंतिम और हिन्दुओ में सबसे अधिक शक्तिशाली शासक रहे थे। राणा सांगा ने 1527 में राजपूतो को एकजुट करने का कार्य किया था और बाबर से युद्ध किया था। बाबर के साथ खानवा के युद्ध में राणा सांगा ने इसके साथ लड़ाई की थी। इस युद्ध में राणा सांगा ने अपनी शूरवीर सेना के साथ मिलकर जित हासिल की थी। परन्तु यह युद्ध में राणा सांगा बहुत ही बुरी तरह से जख्मी हुए थे। फिर भी उन्होंने बिलकुल भी हार नहीं मानी थी और युद्ध के अंत तक लड़ाई करते रहे थे।
राणा सांगा की सैन्य वृत्ति
मुगल साम्राज्य के संस्थापक बाबर ने अपने संस्मरणो में यह कहा था की राणा सांगा हमारे हिंदुस्तान में सबसे शक्तिशाली शासक था, जब उन्होंने इस पर हमला किया, और यह कहा की “उन्होंने अपनी वीरता और तलवार से अपने वर्तमान में एक उच्च गौरव को प्राप्त किया है।” उन्होंने 80 हजार धोड़े, उच्चतम श्रेणी के 7 राजा, 9 राव और 104 सरदारों तथा रावल, 500 हाथियों के साथ युद्ध लडे थे। वह अपने चरम पर, संध युद्ध के मैदान में 100,000 राजपूतो का बल जुटा सकते थे। यह संख्या एक सवतंत्र हिन्दू राजा के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण थी क्योंकि इसमें चरवाह या कोई भी जाती (जैसे जाट, गुर्जरों या अहिरो) को नहीं शामिल किया गया था। राणा सांगा ने मालवा, गुजरात और लाधी सल्तनत की सयुक्त सेनाओ को हराने के बाद तथा मुसलमानो पर अपनी जीत के बाद, वह उत्तर भारत के सबसे शक्तिशाली राजा बाण गए थे। और यह भी काहा जाता है की राणा सांगा ने 100 लड़ाइया लड़ी थी और अलग अलग संधर्षो में राणा सांगा ने अपनी आँख तथा हाथ और पैर खो दिए थे।
महाराणा सांगा का शासनकाल
शूरवीर महाराणा सांगा ने सारे राजपूत राज्यों को एकजुट करने का कार्य किया था और एक बहुत ही बहेतरीन संगठित संध का निर्माण किया था। महाराणा संग्राम सिंह 1509 में मेवाड़ राज्य की राजगद्दी में उत्तराधिकारी के रूप में आसीन हुए थे। राणा सांगा ने अपने बहुत सारे प्रयासों से सभी राजपूत राज्य के राजाओ को एक छत के नीचे लाने का कार्य किया था।
राणा सांगा ने सभी राजपूत राज्यों के साथ संधि करके अपना साम्राज्य उत्तर में पंजाब से लेकर दक्षिण दिशा में मालवा तक अपना राज्य बढाया था। उस समय पर राणा सांगा का राज्य मालवा, दिल्ली, गुजरात के मुग़ल सुल्तानो के कब्जे से धीर हुआ था। लेकिन उन्होंने बहुत ही बहादुरी के साथ इन सभी का सामना किया था।
ईस तरह से राणा सांगा ने पश्चिम में सिंधु नदी से लेकर ग्वालियर (भरतपुर) तक अपने राज्य का विस्तार बढाया था। उस समय पर यहाँ मुस्लीम साम्राज्य का ज्यादा विस्तार था, राणा सांगा मुस्लिम सुल्तानों की डेढ़ सौ साल की सत्ता को उनसे छिनने में लगे थे। यह सब कुछ करने के बाद इतने बड़े क्षेत्रफल हिन्दू साम्राज्य को कायम किया था। दिल्ली में सुल्तान रहे इब्राहीम लोदी को खतौली और बाड़ी के युद्ध में राणा सांगा ने 2 बार हराया था। राणा सांगा ने अपने युद्ध से समय में गुजरात के सुल्तान को परास्त किया था और मेवाड राज्य पर राज करने से रोक दिया था।
राणा सांगा ने खानवा नाम के युद्ध में बाबर को हराया था और दुर्ग किला जित लिया था। तो इसी प्रकार राणा सांगा ने अपने जीवनकाल के इतिहास में बहुत सारे राज्य पर विजय प्राप्त की और कई सारे शासको को हराया था। 16वीं शताब्दी के सबसे शक्तिशाली और शूरवीर शासक के रूप में राणा सांगा का नाम बहुत ही सम्मान के साथ लिया जाता है। हमारे भारतीय इतिहास में उनकी गिनती एक वीर राजा के रूप में की जाती है।
शूरवीर योद्धा राणा सांगा और मांडू राज्य का युद्ध
मांडू राज्य का शासक उस समय पर महमूद खिलजी द्वितीय था और उसका एक खास आदमी था उसका नाम मेदिय राय था, मेदिनी राय वही था जिनको राणा सांगा ने बाद में गागरोन और चंदेरी दिया था। मेदिनी राय मांडू के कुछ प्रमुख लोगो को बिलकुल भी पसंद नहीं थे इसलिए उन सब ने एक चाल चलके मदमूद खिजली और मेदिनी में मतभेद पैदा कर दिया था। इसलिए मेदिनी राय को अपनी जान बचा कर भागना पड़ा और वह मेवाड़ जा पहुचे।
उस समय महाराणा सांगा ने मेदिनी की मदद की और उसे एक विशाल सेना मांडू पर हमला करने के लिए दी थी। फिर सेना प्रमुखों ने मांडू जाकर परिस्थितिया देख कर हमला टालने की योजना बनाई थी।
फिर बाद में महाराणा सांगा की स्वीकृति के बाद हमला ताल दिया गया था और मेदिनी राय को उन्होंने उसी सीमा पर गागरोन और चंदेरी जागीर दे कर सुरक्षित कर दिया था। यह बात महमूद खिलजी को बिलकुल भी पसंद नहीं आई और उन्होंने 1519 में गागरोन पर हमला कर दिया था। इस युद्ध में महाराणा सांगा ने बहुत ही बड़ी बेरहमी से महमूद खिलजी को मारा और उसे पराजित कर दिया था।
इस युद्ध के दौरान महमूद खिलजी का शहजादा आसफ खान मारा गया था और साथ ही खुद खिलजी भी कैदी बन गया था। फिर बाद में नरम दिल दिखाते हुए महाराणा सांगा ने महमूद खिलजी को कैद से रिहा कर दिया था और साथ ही में उसे कभी भविष्य में हमला ना करने की प्रतिज्ञा भी दिलवाई थी।
वैसे देखा जाए तो महमूद खिलजी की रिहाई के पीछे एक वजह थी के मांडू राज्य मेवाड़ से ज्यादा दूर था और राणा सांगा नहीं चाहते थे की उनकी सेना मांडू और मेवाड़ दोनों जगह पर रहे क्युकी उनका मानना था की इस से दोनों कमजोर हो जाती। यही कारण से महाराणा सांगा ने उदार हदय दिखाकर महमूद खिलजी को रिहा कर दिया था। इस बात से खिलजी भी बहुत खुश हुआ और उसने फिर कभी भी मेवाड़ राज्य पर हमना नहीं किया था।
शूरवीर योद्धा राणा सांगा की मृत्यु
महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) बाबर को उखाड़ फेंकना चाहता था, राणा संगा ने उनके खिलाफ युद्ध भी किया था और वह उस युद्ध में बहुत बुरी तरह धायल भी हुए थे। क्योकि शूरवीर योद्धा राणा सांगा बाबर को भारत में एक विदेशी शासक के रूप में देखते थे। राणा सांगा ने दिल्ली और आगरा पर अपना कब्ज़ा करके अपने क्षेत्रो का विस्तार बढ़ने के लिए आफगान सरदारों ने समर्थन दिया था।
21 फरवरी 1527 में राणा सांगा ने मुग़ल पहरे पर आक्रमण किया था और उसे खत्म कर दिया था। इसी तरह उन्होंने कही सारे युद्ध को संजम दिया था। इन सब युद्ध की जित के बाद उनके दुश्मन लगातार बहत ही बढ़ते चले गए थे। महाराणा संग्राम सिंह की मृत्यु 30 जनवरी 1528 को चित्तौड़ राज्य में हुई थी। राणा सांगा की मृत्यु किसी राजा के साथ युद्ध करते हुए नहीं हुई थी, बल्कि उनको एक सोची समजी साजिस के तहत अपने ही सरदारों के द्वारा जहर देकर मारा गया था। मगर राणा सांगा को अपना भारतीय इतिहास आज भी उनके पराक्रमो के लिए याद करता है।
राणा सांगा के बारे विशेष बाते
- शूरवीर योद्धा राणा सांगा को महाराणा संग्राम सिंह के नाम से भी जाना जाता था।
- राणा सांगा राणा कुंभा के पोते और राजस्थान के राजा राणा रायमल के पुत्र थे।
- शूरवीर योद्धा राणा सांगा ने अपने दोनों भाइयो के साथ उत्तराधिकार की लड़ाई लड़ी और 1508 में मेवाड़ राज्य के राजा बने थे।
- महाराणा संग्राम सिंह (राणा सांगा) मध्यकालीन भारत के अंतिम शासक थे।
- राणा सांगा ने अपने जीवन में कई सारे युद्ध किये थे और कई राज्य भी जीते थे।
- शूरवीर योद्धा राणा सांगा ने अपना एक हाथ, एक पैर और एक आँख खोने के बावजूद भी आक्रमणकरियो के खिलाफ लड़ाई लड़ी थी।
राणा सांगा के पिता कौन थे?
राणा सांगा के पिता का नाम राणा रायमल था, वह चित्तौड़ राजस्थान के निवासी थे और वहा के राजा भी थे।
राणा सांगा कौन थे, और उनकी मृत्यु कैसे हुई थी?
राणा सांगा बहुत ही शूरवीर राजपुक शासक थे, और उन्होंने मेवाड़ राज्य पर शासन किया था। उनकी मृत्यु के पीछे की वजह जहर था, राणा सांगा को अपने ही सारदारो के द्वारा जहर देकर धोखे से मारा गया था। महाराणा संग्राम सिंह ने 1528 में मुग़ल सम्राट बाबर के खिलाफ युद्ध लड़ा था और उसके बाद ही उनकी मृत्यु हो गयी थी।
राणा सांगा बाबर से युद्ध कैसे जीता था?
बाबर से युद्ध जितने के पीछे कुछ अफ़ग़ान सरदारों का समर्थन था, उनके साथ और भी कई सारे राजपूत शासक थे जिन्होंने इस युद्ध में इनका साथ दिया था और इस तरह राणा सांगा बाबर से युद्ध जितने में सफल हुए थे।
राणा सांगा ने अपनी आँखे कैसे खो दी थी?
युद्ध के दौरान शूरवीर योद्धा राणा सांगा की आँखों में चोट लग गई थी, राणा सांगा ने 1518 में मुग़ल बादशाह इब्राहीम लोधी के खिलाफ खतोली की लड़ाई लड़ी थी, इस युद्ध में उन्हें आँख में चोट आई थी। इस युद्ध में लोधी की सेना ज्यादा समय तक राणा सांगा के सामने नहीं टिक पायी थी और लगभग 5 धंटे की लड़ाई के बाद वह युद्ध छोड़कर भाग गाये थे।
Last Final Word
तो दोस्तों इस आर्टिकल में हमने आपको शूरवीर योद्धा) के इतिहास के बारे में बताया और साथ ही में हमने आपको राणा सांगा के जीवनकाल से और साथ ही में उनके शासनकाल से भी परिचय कराया है । तो दोस्तों हम उम्मीद करते है की हमारे इस आर्टिकल “शूरवीर योद्धा राणा सांगा का इतिहास” में दी गई जानकारी आपको पसंद आई होगी।
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