सिंधु नदी के आसपास बसे होने के कारण सिंधु घाटी सभ्यता को सिंधु सभ्यता या सिंधु घाटी सभ्यता कहा जाता है, साथ ही में सिंधु घाटी सभ्यता को हडप्पा या हड्ड्प्पीय सभ्यता वगेरे नामो से भी जाना जाता है। कई सारे विद्वानों के मत अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता को हडप्पा सभ्यता कहेना ज्यादा उचित है क्योकि हडप्पा सभ्यता इस सभ्यता का मुख्य केंद्र है, तो कुछ विद्वानों का यह मत है की हडप्पा सभ्यता की खोज सौप्रथम की गयी थी, इस लिए इसे हडप्पा सभ्यता कहा जाये। सिंधु घाटी सभ्यता को इंग्लिश भाषा में इंडस वेली सिविलाइजेशन (Indus Valley Civilization) के नाम से जाना जाता है।
सिंधु सभ्यता उस समय की सबसे आधुनिक और सुविकसित सभ्यता थी। हडप्पा सभ्यता के लोग बहुत ही सुनियोजित और सुविकसित नगरो में रहा करते थे। जहा पे बड़े -बड़े भवन, सभाघर, स्न्नानगार, कारागार, कच्ची और पक्की इंटो से बने घर, चौड़े रस्ते वगेरे यहाँ पे स्थित थे। और साथ ही में हडप्पा सभ्यता के लोग हथियारो, आभूषणों, मुर्तियो और बर्तनों कैसे बनाया जाता है यह भी जानते थे, ये सब बनाने में तांबे, चांदी और कांसे वगेरे का इस्तेमाल किया जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता (हडप्पा सभ्यता) का काल निर्धारण
- एच.हेरास के मत अनुसार (नक्षत्रिय आधार पर) सिंधु घाटी सभ्यता का निर्धारण 6000 ईसा पूर्वे हुआ था।
- माधोस्वरूप वत्स के मत अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का निर्धारण 3500 -2700 ईसा पूर्वे हुआ था।
- जॉन मार्शल के मत अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का निर्धारण 3250-2750 ईसा पूर्वे हुआ था।
- अर्नेस्ट मैक के मत अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का निर्धारण 2800-2500 ईसा पूर्वे हुआ था।
- मार्टिमर व्हीलर के मत अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का निर्धारण 2500-1500 ईसा पूर्वे हुआ था।
- रेडियो कार्बन पद्धति के मत अनुसार सिंधु घाटी सभ्यता का निर्धारण 2350-1750 ईसा पूर्वे हुआ था।
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल
1. मोहनजोदड़ो – इस का खोद काम वर्ष 1922 में राखालदास बैनर्जी द्वारा करवाया गया था। मोहनजोदड़ो का अर्थ “मृतको का टीला ” यह है। मोहनजोदड़ो सिंधु नदी के किनारे बसा हुआ है। और यह सिंधु (पाकिस्तान) के लरकाना जिले में मौजूद है।
प्राप्त साक्ष्य – यहाँ से सूती कपडे के अंश, पुरोहित के आवास, महास्नानागार,सभागार, ताँबे का ढेर, कांसे से बनी नर्तकी की नग्न मूर्ति, पशुपति शिव का साक्ष्य, धोड़े के दांत, चिमनी, सेलखड़ी से बना बाट, साधू की मूर्ति वगेरे यहाँ के प्राप्त साक्ष्य है।
2. कालीबंगा – इस स्थल का खोद काम वर्ष 1921 में अमलानन्द धोष द्वारा तथा बी.के.थापर द्वारा 1960 में करवाया गया था। कालीबंगा का अर्थ “काले रंग की चुडिया” है। कालीबंगा राजस्थान के गंगानगर जिले में धग्गर नदी के किनारे पर स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य- बेलनाकार मुहरे (मेसोपोटामिया), कच्ची इंटे और अलंकृत इंटे, खेती के साक्ष्य-जूते हुये खेत जहा कालीबंगा से दूर सरसों की फसल और नजदीक पर चने की फसल बोयी जाती थी। और लकड़ी के बने पाइप वगेरे यहाँ के प्राप्त साक्ष्य है।
3. हडप्पा – इस स्थल का खोद काम वर्ष 1921 में दयाराम साहनी और सहायक माधोस्वरूप वत्स द्वारा करवाया गया था। हडप्पा पंजाब के मांटोगोमरी जिले में रावी नदी के तट पर स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य – गालू पत्थर की बनी दो मुर्तिया, धोती पहने एक मूर्ति, कांसे का सिक्का, शंख से बना बैल, मुहरे, कब्रिस्तान, मछुआरे का चित्र अंकित बर्तन, अनाज भण्डारण के कमरे जहा से जौ और गेहू प्राप्य हुये है। कतार में बने श्रमिक आवास वगेरे यहाँ के प्राप्त साक्ष्य है।
4. चनहुदड़ो – इस स्थल की खोदकाम वर्ष 1931 में एन.जी.मजुमदार द्वारा करवाया गया था, जिसे पुरातत्वविद मैक ने वर्ष 1935 में आगे बढाया था। चनहुदड़ो सिंधु (पाकिस्तान) में स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य – यहाँ पे सजने सवर ने के लिए लिपस्टिक का प्रयोग किया जाता है। वक्राकर इंटे – यह एक मात्र ही स्थल है जहा पे वक्राकर इंटे इंटे प्राप्त हुई है,बिल्ली का पीछा करते कुत्ते का साक्ष्य, मनके का कारखान वगेरे यहाँ के प्राप्त साक्ष्य है।
5. बनवली – इस स्थल की खिद कम 1973 में आर.एस.बिष्ट द्वारा करवाया गया था। बनावली हरियाणा के हिसार जिले में स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य – ताँबे का बना वनाग्न और कुल्हाड़ी, उन्नत किस्म की जौ, हल की आकृति का खिलौना, पत्थर और इंट के मकान, सडको पर बैलगाड़ी के निशान आदि यहाँ के प्राप्त साक्ष्य है।
6. लोथल – इस स्थल का खोद काम वर्ष 1957 में रंगनाथ राव द्वारा करवाया गया था। लोथल गुजरात के अहमदाबाद जिले में भोगवा नदी के तट पर स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य – चावल के दाने, अग्निवेदिका, फारस की मुहर, हांथी दांत के स्केल, पक्की मिटटी से बना नांव का नमूना, जहाज बनाने का स्थल, धोड़े की लघु मृणमूर्ती, चक्की (अनाज पिसने के लिए), मामी की आकृति, चालाक लोमड़ी की कहानी के सबुत वगेरे यहाँ के प्राप्त साक्ष्य है।
7. आलमगीरपुर – इस स्थल का खोद काम वर्ष 1958 में यज्ञदत्त शर्मा द्वारा करवाया गया था। आलमगीरपुर उत्तर प्रदेश के मेरठ जिले में स्थित हिंडन नदी के तट पर स्थित है।
8. रोपड़ – इस स्थल का खोद काम वर्ष 1953 में यज्ञदत्त शर्मा द्वारा करवाया गया था। रोपड़ पंजाब राज्य में सतलुज नदी के किनारे पर स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य – ताँबे की कुल्हाड़ी, आदमी और कुत्ते की एक कब्रगाह वगेरे यहाँ के प्राप्त साक्ष्य है।
9. सुरकोटडा – इस स्थल का खोद काम वर्ष 1964 में जगपति द्वारा करवाया गया था। सुरकोटडा गुजरात राज्य के कच्छ नामक जगह पर स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य – अनूठी प्रकार की कब्रगाह, धोड़े की हड्डिया वगेरे यहाँ के प्राप्त साक्ष्य है।
10. सुत्कोगेंडोर – इस स्थल का खोद काम वर्ष 1927 में औरेल स्टाइन के द्वारा करवाया गया था। सुत्कोगेंडोर बलूचिस्तान में दाश्क नदी के किनारे पर स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य – राख से भरा बर्तन, ताम्बे की कुल्हाड़ी, मिट्टी की बनी चुडिया, मनुष्य की हड्डिया वगेरे यहाँ के प्राप्त साक्ष्य है।
11. धौलावीरा- इस स्थल की खोज वर्ष 1967 में जगपति जोशी द्वारा की गयी थी। परन्तु यह स्थल की व्यापक खुदाई रविंद्र सिंह बिष्ट द्वारा करवाई गयी थी। धौलावीरा गुजरात राज्य के कच्छ जिले में मानहर और मानसर नदी के बीच स्थित है। यह नगर पहला ऐसा नगर है जो तिन भागो में बटा हुआ था- दुर्गभाग,मध्यभाग,और तीसरा है निचला नगर।
प्राप्त साक्ष्य – चारो और दर्शको के बैठने के लिए बनायीं गयी सीढ़ीनुमा संरचना तथा सूचनापटा, दुर्ग भाग और मध्यभाग के बीच में भव्य ईमारत के अवशेष। अलग अलग प्रकार के जलाशय वगेरे यहाँ के प्राप्य साक्ष्य है।
12. राखिगढ़ी – इस स्थल का खोद काम वर्ष 1997 में अमरेंद्र नाथ द्वारा करवाया गया था। राखिगढ़ी हरियाणा राज्य के हिसार जिले में सरस्वती तथा दुह्दवती नदियो के पास स्थित है। धोलावीर के बाद राखिगढ़ी भारत में स्थित सिंधु सभ्यता का सबसे बड़ा नगर था।
13. कोटदिजी – इस स्थल के खोद काम की शुरुआत वर्ष 1955 में एफ.ए.खान द्वारा करवाया गया था। कोटदिजी मोहनजोदड़ो के नजिक स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य – चांदी के सर्वप्रथम प्रयोग के साक्ष्य, बारहसिंगा का नमूना यहाँ के प्राप्त साक्ष्य में से एक है।
14. अलाहदिनों – इस स्थल का खोद काम फेयर सर्विस द्वारा करवाया गया था। अलाहदिनों सिंधु नदी और अरब सागर के संगम के नजिक स्थित है।
15. कुणाल – कुणाल हरियाणा में स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य – कुणाल में से चांदी के दो मुकुट प्राप्त हुये थे।
16. अलिमुराद – अलिमुराद सिंध (पाकिस्तान) में स्थित है।
प्राप्त साक्ष्य – यहाँ से पीतल (कांसे) की बनी कुल्हाड़ी, बेल की छोटी मृणमूर्ति प्राप्त हुये थे।
17. रंगपुर – इस स्थल का खोद काम वर्ष 1953 में रंगनाथ राव द्वारा करवाया गया था।
प्राप्त साक्ष्य – यहाँ से कच्ची इंटो से बना दुर्ग, धान की भूसी प्राप्त हुये थे।
सिंधु घाटी सभ्यता में भक्ति व पूजा अर्चना
सिंधु सभ्यता के लोग शिव की पूजा किरात (शिकारी), नर्तक,धनुर्धर और नागधारी के रूप में करते थे। मातृदेवी (देवी के सौम्य एवं रौद्र रूप की पूजा करना)। पृथ्वी (इसमें एक मूर्ति में स्त्री के गर्भ से पौधा निकलता दिखाया गया है जोकि अवश्य ही पृथ्वी का स्वरूप है)। प्रजनन शक्ति (लिंग) की पूजा करना। वृक्ष में (पीपल और बाबुल)पूजा करते थे, पशु में (कूबड़ वाला सांडा और वृषभ)पूजा करते थे, नाग तथा अग्नि की पूजा भी करते थे।
सिंधु घाटी सभ्यता में प्रयोग होने वाले माप-तोल के साधन
सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल लोथल में से हाथी दांत से बना एक पैमाना प्राप्त हुआ था, मोहनजोदड़ो से सेलखड़ी तथा सीप का बना बाटा वगेरे माप-तोल के यंत्र प्राप्त हुये है, जिससे माना जाता है की सिंधु सभ्यता (हड्डपा सभ्यता) के लोग माप-तोल की इकाई ने अंजान नहीं है।
सिंधु घाटी सभ्यता में प्रयोग की गयी धातु
सिंधु सभ्यता के लोग तांबा, सोना, चांदी, सीसा, टिन वगेरे धातुओ का उपयोग करते थे। कुछ पुरातत्वविदों द्वारा यह माना जाता है की पहली बार चांदी हा उपयोग सिंधु घाटी सभ्यता में ही किया गया था । और सबसे अधिक इस सभ्यता में तांबे का उपयोग किया जाता था।
सिंधु घाटी सभ्यता में परिवहन व्यवस्था
प्राप्त साक्ष्यो के आधार पर यह कहा जाता है की सिंधु घाटी सभ्यता के लोग परिवहन के लिए बैलगाड़ी और नाव का उपयोग करते थे। सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल हड्डपा और चाहूदडॉ से कांसे की बैलगाड़ी भी प्राप्त हुई है और बनवाली स्थल के सडको पर बैलगाड़ी के पहियों के निशान भी प्राप्त हुये है, इससे यह माना जा सकता है की सिंधु सभ्यता के लोग आवागमन करने के लिए बैलगाड़ी का उपयोग करते थे। लोथल स्थल से मिली पक्की मिट्टी की नाव तथा मोहनजोदड़ो से मिले मुहरो में नाव के उपयोग से यह साबित होता है की जल मार्ग के लिए सिंधु सभ्यता के लोग नाव या जहाज का उपयोग करते थे, जिसका साबुत नदियों के किनारे बसे स्थल जैसे की लोथल, रंगपुर, बालाकोट, सुत्काकोह वगेरे प्रमुख बंदरगाह नगर भी है।
सिंधु घाटी सभ्यता का पतन
सिंधु सभ्यता के पतन के पीछे कोई एक कारण जवाबदार नहीं है बल्कि इस सभ्यता के पतन के पीछे कई सारे कारण जवाबदार माने जाते है क्युंकी सिंधु घाटी सभ्यता बहुत बड़े क्षेत्र में फैली हुई थी, इसलिए किसी एक कारण या आपदा से इस सभ्यता का पतन होना बिलकुल भी संभव नहीं है। और इस सभ्यता के अलग-अलग नगरो के विनाश के पीछे शायद अलग-अलग कारण ही जवाबदार हो सकते है।
सिंधु घाटी सभ्यता के पतन के बारे में कई सारे मत है कई पुरातत्वविदो का यह मत है की सिंधु सभ्यता के कुछ प्रमुख स्थलों का विनाश भयंकर बाढ़ आने के कारण हुआ था। वही कुछ और विद्वानों का यह मत है की कुछ स्थलों का विनाश भूकंप आने के कारण हुआ था। और कुछ का यह मत है की बाह्य और जलवायु परिवर्तन के चलते सुखा या फिर बाढ़ आने से शायद इस सभ्यता का पतन हुआ था।
Last Final Word:
दोस्तों, हम उम्मीद करते है की सिंधु घाटी सभ्यता की पूरी जानकारी के बारे में इस आर्टिकल के जरिये आपको पता चल गया होगा जैसे सिंधु घाटी सभ्यता (हडप्पा सभ्यता) का काल निर्धारण, सिंधु घाटी सभ्यता के प्रमुख स्थल, सिंधु घाटी सभ्यता में भक्ति व पूजा अर्चना, सिंधु घाटी सभ्यता में प्रयोग होने वाले माप-तोल के साधन, सिंधु सभ्यता में प्रयोग की गयी धातु, सिंधु सभ्यता में परिवहन व्यवस्था, सिंधु सभ्यता का पतन से जुड़ी सभी माहिती से आप वाकिफ हो चुके होगे।
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