नमस्कार दोस्तों आज हमारे इस आर्टिकल में हम आपको महान विद्वान और हिंदी साहित्य को विदेशो में पहुचने वाले महान पुरुष के बारे बताएँगे, इस बात से आप समज ही गई होंगे की हम किसकी बात कर रहे है हम महान ज्ञाता स्वामी विवेकानंद की बात कर रहे है। जिन्होंने हिन्दू धर्म को संपूर्ण विश्व में स्थापित करने के लिए महत्वपूर्ण योगदान दिया था।
स्वामी विवेकानंद जी का जीवन परिचय (Biography of Swami Vivekananda in Hindi)
वास्तविक नाम | नरेंद्र दास दत्त |
उपनाम | नरेंद्र |
प्रसिद्ध नाम | स्वामी विवेकानंद |
जन्म | 12 जनवरी 1863 ईस्वी |
जन्म स्थान | कोलकाता |
माता का नाम | भुवनेश्वरी देवी |
पिता का नाम | विश्वनाथ दत्त |
गुरु का नाम | रामकृष्ण परमहंस |
प्रसिद्धि का कारण | अमेरिका, इंग्लैंड और यूरोप में हिंदू धर्म की अटूट सिद्धांत का प्रसार |
मृत्यु | 4 जुलाई 1902 |
मृत्यु स्थान | बेलूर मठ, बंगाल |
पेशा | आध्यात्मिक गुरु |
स्वामी विवेकानंद कौन है?
महान चरित्र विवेकानंदजी भारतीय इतिहास के सबसे सुप्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरुओ में से एक थे विवेकानंद जी भारत के एक मत वासी संत थे। स्वामी विवेकानंद ने कम उम्र में अपने कार्यो से प्रसिद्धी प्राप्त की है। विवेकानंद जी भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति के माने जाने जीवंत प्रतिमूर्ति है। विवेकानंद जी को भारत में ज्ञान के प्रवर्तक के रूप में पूजा जाता है,क्योकि स्वामी विव्रेकानंद पहले हमारे से भारतवर्ष को दसो और अज्ञान लोगो का निवास स्थान माना जाता था। विवेकानंद जी ने संपूर्ण विश्व को हमारे भारतीय धर्म के आध्यत्मिक और हिन्दू धर्म से परिपूर्ण वेदांत के दिव्य दर्शन करवाए थे।
स्वामी विवेकानंद जन्म कब हुआ था और कहा पे? (When was Swami Vivekananda born and where)
स्वामी विवेकानंद जी का जन्म एक उच्च कुलीन परिवार में हुआ था स्वामी का जन्म साल 1863 की 12 जनवरी को बंगाल के कोलकता में हुआ था। विवेकानंद जी कायस्थ जाती में जन्मे थे। स्वामी विवेकानंद का वास्विक नाम नरेंद्र नाथ दत्त था उनके गुरु का नाम रामकुर्ष्ण परमहंस था। विवेकानंद जी की मृत्यु 4 जुलाई 1902 बेलूर मठ पश्चिम बंगाल में हुई थी जब उनका निधन हुआ था तब वे 39 वर्ष के थे।
स्वामी विवेकानंद जी का प्रारंभिक जीवन
विवेकानंद जी के पिता विश्वनाथ दत्त कलकता के हाईकोट के प्रसिद्ध वकील थे, नरेंद्र के दादा दुर्गाचरण दत्त संस्कुत और फारसी के विद्धवान थे दुर्गाचरण ने 25 वर्ष की उम्र में परिवार को छोड़ के एक साधू बन गए थे। नरेंद की माता भुवनेश्वरी देवी धार्मिक विचारो वाली स्त्री थी वे अधुक समय भगवन शिव की पूजा अर्चना में व्यर्तित किया करती थी। नरेंद्र के पिता और माता की धार्मिक प्रगतिशील व् तकर्संगत रवैये ने उनकी और व्यक्तित्व को आकार देने में मदद की थी।
नरेंद्र बचपन से ही अत्यंत कुशल और बुद्धि मान एवं नटखट थे वह अपने साथिओ और अध्यापको के साथ बहुत शरारत करते थे विवेकानंद जी के घर मे नियमपूर्वक हर रोज पूजा पाठ होता था धार्मिक प्रवृति होने के कर्ण माता भुवनेश्वरी देवी को पूरण, रामायण, महाभारत आदि की कथा सुनने का शोक बहुत था। कथा वाचक नरेंद्र के घर अक्सर आते रहते थे उनके घर पर हर रोज भजन कीर्तन होता रहता था परिवार के धार्मिक और अध्यात्मिक वातावरण के प्रभाव से नरेंद्र के मन में बचपन से ही धर्म और अध्यात्म के संस्कार ज्यादा गहरे होते गए माता पिता के संस्कारो और धार्मिक वातावरण के कारण बालक के मन में बचपन से ही इश्वर को जानने और उसे प्राप्त करने की जिग्नासा थी। इश्वर के बारे में जानने की उत्सुकता में कभी कभी तो विवेकानंद जी ऐसे प्रश्न पूछते थे जिनका जवाब न तो उनके माता पिता के पास होता था नहीं विद्धानो के पास होता था।
स्वामी विवेकानंद को प्राप्त शिक्षा
स्वामी विवेकानंद जी को साल 1871 में आठ वर्ष की उम्र में इश्वर चंद्र विधासागर के मेट्रोपोलिटन संस्था में दाखिल लिया था जहा से अपने पढाई की शरुआत की थी वर्ष 1877 में नरेद्र जी का परिवार रायपुर चला गया था, और वर्ष 1879 में कलकता में अपने परिवार की वापसी के बाद नरेंद एक मात्र विधार्थी थे जिन्होंने प्रेसिडेंसी कॉलेज में प्रवेश परीक्षा में प्रथम डिविजन अंक प्राप्त किये थे। सव्मी विवेकानंद जी दर्शन, इतिहास, सामाजिक विज्ञानं, कला और साहित्य सहित विषय के एक उत्साही पाठक थे। नरेन्द्र को महाभारत, वेद, भगवत गीता, रामायण और पुरानो के अलावा अनेक हिन्दू शास्त्र बहुत रूचि थी। उन्हें भारतीय शास्त्रीय संगीत में प्रशिक्षित किया था, और वे नियमित रूप से व्यायाम एवं खेल में भाग लिया करते थे। विवेकानंद जी पश्चिमी तर्क, पश्चिमी दर्शन और यूरोपीय इतिहास का अध्यन जनरल असेम्बली इंस्टिट्यूशान में किया था। वर्ष 1881 में ललित कला की परीक्षा में सफल की और 1884 में कला स्तोतक की डिग्री पूरी कर ली
विवेकानंद जी ने डेविड ह्यूम, इमैनुएल कांट, जोहान गोटलिब फिच, बारूक स्पिनोज़ा, जोर्ज डब्लू एच हेजेल, आर्थर स्कूपइन्हार , ऑगस्ट कॉम्टे, जॉन स्टुअर्ट मिल और चार्ल्स डार्विन के कामों का अध्ययन किया था। नरेन्द्र ने स्पेसर की किताब एजुकेशन का साल 1860 बंगाली में अनुवाद किया था। उन्होंने पश्चिम दार्शनिको के अध्यन के साथ संस्कृत ग्रंथो और बंगाली साहित्य को भी सिखा था। विलियम हेस्टी यानि महासभा संस्था के प्रिसिपल ने लिखा है की “नरेन्द्र वास्तव में एक जीनियस है। मेने काफी विस्तृत और बड़े इलाको में यात्रा की है लेकिन मुझे नरेन्द जैसी प्रतिभा वाला एक भी बालक कही नही मिला यहाँ तक जर्मन विश्वविध्यालय के दार्शनिक छात्रों में भी नही”
स्वामी विवेकानंद की आध्यात्मिक शिक्षा
साल 1880 में स्वामी विवेकानंद ने इसाई से हिन्दू धर्म में रामकृष्ण के प्रभाव से परिवर्तित केशव चन्द्र सेन की नव विधान में समिलित हुए थे, 1881से 1884 के दौरान ये सेन्स बैंड ऑफ़ हॉप में भी सक्रिय रहे जो धुम्रपान और शराब पिने से युवाओ को हतोत्साहित करता था। नरेन्द्र के परिवेश के कारण पश्चिमी आध्यात्मिकता के साथ परिचित हो गया थे। विवेकानंद के प्रारम्भिक विश्वासों को ब्रह्म समाज ने जो एक निराकार ईश्वर में विश्वास और मूर्ति पूजा का प्रतिवाद करता था, ने प्रभावित किया और सुव्यवस्थित, युक्तिसंगत, अद्वैतवादी अवधारणाओं , धर्मशास्त्र ,वेदांत और उपनिषदों के एक चयनात्मक और आधुनिक ढंग से अध्यन पर प्रोत्साहित भी किया था।
विवेकानंद जी के गुरु
नरेंद को ब्रह्म समाज से जुड़ने के बाद डरहम के प्रमुख देवेद्र नाथ टैगोर से मिले थे विवेकानंद जी ने उनसे एक प्रश्न पूछा की “क्या कभी अपने इश्वर को देखा है ?” देवेद्र नाथ जी ने इसका उतर देते हुए कहा की “बच्चे तुम्हारी नजर एक योगी की है” यह उतर सुनके नरेंद को संतुष्टि नही हुइ और उन्होंने इश्वर की खोज को जारी रखा।
नरेन्द्र अपने अध्ययन के दौरान साल 1881 में दक्षिणेश्वर में गए थे। और वहा पर स्वामी विवेकानंद की भेंट दक्षिणेश्वर में स्थित रामकृष्ण परमहंस जी से हुई थी। रामकृष्ण परमहंस से विवेकानंद ने फिर से वहि प्रश्न पूछा कि “क्या आपने ईश्वर को देखा है?”। इस प्रश्न को सुनने के बाद रामकृष्ण परमहंस ने दयालु भाव से जवाब दिया कि “हां बच्चे मैंने ईश्वर को देखा है और बिल्कुल ऐसे ही देखा है, जैसे कि मैं तुमको देख रहा हूं”। रामकृष्ण परमहंस जी ऐसे पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने नरेन्द्र के इस प्रश्न का सही उत्तर दिया था। इस प्रकार का उतर सुनके नरेन्द्र को बहुत ही संतुष्टि हुई और सच्चाई महसूस हुई विवेकानंद जी ने अपना गुरु रामकृष्ण परमहंस को बनाया था।
रामकृष्ण परमहंस कौन थे?
रामकृष्ण परमहंस एक विद्धान थे, और देवी देवताओ में विश्वास करने वाले व्यक्ति थे। रामकृष्ण परमहंस दक्षिण उतर में स्थित माता कलि के मन्दिर में पुजारी थे। रामकृष्ण परमहंस बहुत ही बड़े विद्धान तो नही थे लेकिन कलि माता के परम भक्त जरुर थे, रामकृष्ण परमहंस अपने स्टिक उतर एवं दयालु स्वभाव से सबका मन मोहित कर लेते थे।
स्वामी विवेकानंद का मठवाडी बनने का निर्णय
विवेकानंद जी की रूचि मठवाडी और सन्यासियों की तरफ ज्यादा थी इसके बाद वह गुरु रामकृष्ण परमहंस मठवाडी बनने की शिक्षा प्राप्त कर रहे थे। गुरु रामकृष्ण परमहंस को गले का कैंसर था, जिसकी वजह से साल 1886 रामकृष्ण परमहंस का निधन हो गया था। रामकृष्ण अपने निधन से पहले उत्तराधिकारी के रूप में स्वामी विवेकानंद का चयन किया था। नरेन्द्र ने एक पुत्र की तरह उनका अंतिम संस्कार किया संपूर्ण प्रक्रिया के पश्चात रामकृष्ण परमहंस के द्वारा चुनाव किए गए उत्तराधिकारी के रूप में विवेकानंद को उनके अन्य शिष्य के द्वारा पटवारी की शपथ ग्रहण करवाई इसके बाद विवेकानंद जी और उनके शिष्य बरणगौर में निवास करने लगे थे।
स्वामी विवेकानंद जी द्वारा किया गया विश्व धर्म सम्मलेन
स्वामी विवेकानंद ने कई विश्व सम्मेलनों में हिस्सा लिया और भारतीय संस्कृति की चर्चा की और बढ़ावा दिया था। इसी तरह सन 18 से 93 ईसवी में स्वामी विवेकानंद अमेरिका में स्थित शिकागो शहर पहुंच थे। अमेरिका के शिकागो शहर में संपूर्ण विश्व के धर्मो का सम्मेलन आयोजित किया गया था। स्वामी विवेकानंद ने इस सम्मेलन में अपने स्थान पर विराजमान हो गए। यह धर्म परिषद् में सभी धर्म की किताबे राखी गई थी और वह भारतवर्ष की एक किताब भी थी यह किताब श्री मद भगवतगीता थी हमारी इस किताब का कुछ लोग मजाक कर रहे थे स्वामी को बहुत ही क्रोधित हुए थे लेकिन शांत स्वभाव धारण करने कारण वे चुप रहे, सभी लोगों के पश्चात जब स्वामी विवेकानंद की बारी आई तो इन्होंने अपने भाषण की शुरुआत में कहा, जिससे कि पूरा का पूरा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। आइए जानते हैं कि स्वामी विवेकानंद ने शुरुआत में ऐसा क्या कहा था?
स्वामी विवेकानंद जी ने अपने भाषण की शरुआत में कहा की “मेरे अमरीकी बहन और भाईयो”आपने जिस सम्मान और स्नेह के साथ हमारा स्वागत किया है, उसके लिए प्रति आभार प्रकट करने के निमित होते समय मेरा ह्रदय अवर्णीय हर्ष से पूर्ण हो रहा है। संसार में सन्यासियों की सबसे प्राचीन परम्परा की और से में आपका धन्यवाद कर्ता हु और सभी सम्प्रदायों एवं मतो के कोटि कोटि हिन्दूओ की और से धन्यवाद देता हु। में एक ऐसे धर्म का अनुयायी होने गर्व का अनुभव करता हूँ जिसने संसार को सहिष्णुता एवं सार्वभोम स्वीकृत दोनों की शिक्ष दी है। हम लोग सब धर्मो के प्रति मात्र सहिष्णुता में ही विश्वास नही करते सभी धर्मो को सच्चा मान के उन्हें स्वीकार करते है, मुझे ऐसे देश का नागरिक होने का अभिमान है। जिसने इस पृथ्वी की सभी धर्मो और देशो के उत्पीड़ितो और शरणार्थीओ को आश्रय दिया है।
विवेकानंद जी के द्वारा कहे गए कुछ अनमोल वचन और विचार
- उठो जागो और अपने ध्याय की प्राप्ति करो।
- खुदको कमजोर समजना महा पाप है।
- तुमे सब कुछ खुद अंदर से सिखना है न तो तुम्हे कोई पढ़ा सकता कोई आध्यात्मिक नही बना सकता आत्मा से अच्छा कोई शिक्षक नही होता है।
- चाहे सत्य को हजार तरीको से बताया जाये लेकिन फिर भी वे सत्य ही होगा।
- आपका बाहरी स्वभाव मात्र अंदरूनी स्वभाव का बड़ा रूप होता है।
- ब्रह्मांड की सारी शक्तिया पहले से हमारे अंदर होती है परन्तु वो हमही होते है जो अपनी अखो पे हाथ रख लेते है और फिर रोते रहते है की अँधेरा क्यों है।
- चितन करो, चिंता करो न करो और नए विचारो को जन्म दो
- जो अग्नि हमें गर्मी देती है वहि अग्नि हमे नष्ट भी कर सकती है इस में अग्नि का दोष नही है।
- जब तक तुम खुद पर विश्वास नही करोगे
- जब तक जीव है तब तक सीखते रहो अनुभव ही जगत का सर्वश्रेष्ठ शिक्षक होता है।
- शक्ति जीवन है, निर्बलता मृत्यु हैं। विस्तार जीवन है, संकुचन मृत्यु हैं। प्रेम जीवन है, द्वेष मृत्यु हैं।
अनमोल वचन
- जैसा हम सोचते हो, वैसे ही हम बन जाते है। खुद को निर्बल मानोगे तो निर्बल और सबल मानोगे तो सबल ही बन जाओगे।
- जो कुछ भी हमें कमजोर बनाता है – शारीरिक, बौद्धिक या मानसिक उसे जहर की तरह त्याग कर दो।
- किसी की भी निंदा मत करो। अगर आप किसी की मदद के लिए हाथ बढ़ा सकते हैं, तो ज़रुर बढाएं। और अगर नहीं बढ़ा सकते, तो अपने हाथ जोड़िये, एवं अपने भाइयों को आशीर्वाद दीजिये, और उन्हें अपने मार्ग पे जाने दीजिये।
- अगर तुम किसी का उपकार करो, तो लोग उसे कोई महत्व नहीं देंगे, किन्तु ज्यों ही तुम उस कार्य को बंद कर दो, वे तुरन्त तुम्हें बदमाश प्रमाणित करने में नहीं हिचकिचाएंगे। कई भावुक व्यक्ति अपने सगे – स्नेहियों द्वारा ठगे जाते हैं। यही दुनिया है।
- जब तक तुम अनुभव नही करते की दुसरो के ऊपर निर्भर रहना बुद्धिमानी नहीं हैं। बुद्धिमान् व्यक्ति को अपने ही पैरों पर दृढता पूर्वक खड़ा होकर कार्य करना चहिए। धीरे धीरे सब कुछ ठीक हो जाएगा।
स्वामी विवेकानंद की मृत्यु
स्वामी विवेकानंद जी सुबह बेलूर मठ चले गए, बेलूर मठ में विवेकानंद जीने 3 घंटे तक ध्यान किया और उसके बाद अपने शिष्यों को शुल्क यजुर्वेद, संस्कृत व्याकरण और योग का ज्ञान दिया फिर स्वामी विवेकानंद जी गंगा जी स्नान किए और शाम को 7 बजे अपने कक्ष में विश्राम करने चले गए कहा की वे ध्यान कर रहे है कोई उन्हें परेशान न करे जब वे ध्यान करने बैठे तब स्वामी विवेकानंद जी ने अपने प्राणों को त्याग दिया 4 जुलाई 1902 बेलूर में उनका निधन हुआ था।
स्वामी विवेकानंद जी के शिष्यों के कहे अनुसर उन्होंने महासमाधि धारण की थी यह समाधि एक ऐसी समाधि है जिसमे आत्मा अपने शरीर को त्याग कर ध्यान में लिप्त रहती है विवेकानंद जी का अंतिम संस्कार गंगा नदी के तट पर किया गया था।
महत्वपूर्ण तिथिया
- 12 जनवरी,1863 साल में कलकत्ता में विवेकानंद जी जन्म हुआ
- वर्ष 1879 : स्वामी विवेकानंद ने प्रेसीडेंसी कॉलेज में प्रवेश लिया था
- वर्ष 1880 : स्वामी विवेकानंद ने जनरल असेंबली इंस्टीट्यूशन में प्रवेश किया था
- नवंबर 1881 : स्वामी विवेकानंद और श्रीरामकृष्ण से प्रथम भेंट
- सन् 1882-86 : स्वामी विवेकानंद और श्रीरामकृष्ण परमहंस से संबद्ध
- सन् 1884 : स्नातक परीक्षा उत्तीर्ण हुए और विवेकानंद के पिता का स्वर्गवास
- सन् 1885 : श्रीरामकृष्ण की अंतिम बीमारी
- 16 अगस्त, 1886 : स्वामी विवेकानंद के गुरु श्रीरामकृष्ण का निधन
- वर्ष 1886 : वराह नगर मठ की स्थापना की गई
- जनवरी 1887 : वराह नगर मठ में संन्यास की औपचारिक प्रतिज्ञा ली थी
- सन् 1890-93 : स्वामी विवेकानंद का परिव्राजक के रूप में भारत-भ्रमण
- 25 दिसंबर, 1892 : कन्याकुमारी में
- 13 फरवरी, 1893 : स्वामी विवेकानंद का प्रथम सार्वजनिक व्याख्यान सिकंदराबाद में
- 31 मई, 1893 : बंबई से अमेरिका रवाना
- 25 जुलाई, 1893 : वैंकूवर, कनाडा पहुँचे
- 30 जुलाई, 1893 : शिकागो आगमन
- अगस्त 1893 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रो. जॉन राइट से भेंट
- 11 सितंबर, 1893 : स्वामी विवेकानंद का विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में प्रथम व्याख्यान
- 27 सितंबर, 1893 : विश्व धर्म सम्मेलन, शिकागो में अंतिम व्याख्यान
- 16 मई, 1894 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय में संभाषण
- नवंबर 1894 : न्यूयॉर्क में वेदांत समिति की स्थापना
- जनवरी 1895 : न्यूयॉर्क में धार्मिक कक्षाओं का संचालन आरंभ
- अगस्त 1895 : स्वामी विवेकानंद जी पेरिस में थे
- अक्तूबर 1895 : स्वामी विवेकानंद लंदन में व्याख्यान किया
- 6 दिसंबर, 1895 : स्वामी विवेकानंद वापस न्यूयॉर्क गए
- 22-25 मार्च, 1896 : वापस लंदन
- मई-जुलाई 1896 : हार्वर्ड विश्वविद्यालय में व्याख्यान
- 15 अप्रैल, 1896 : स्वामी विवेकानंद का वापस लंदन गई
- मई-जुलाई 1896 : लंदन में धार्मिक कक्षाएँ
- 28 मई, 1896 : ऑक्सफोर्ड में मैक्समूलर से भेंट
- 30 दिसंबर, 1896 : नेपल्स से भारत की ओर रवाना
- 15 जनवरी, 1897 : कोलंबो, श्रीलंका आगमन
- 6-15 फरवरी, 1897 : मद्रास में
- 19 फरवरी, 1897 : कलकत्ता आगमन
- 1 मई, 1897 : रामकृष्ण मिशन की स्थापना
- मई-दिसंबर 1897 : उत्तर भारत की यात्रा
- जनवरी 1898: कलकत्ता वापसी
- 19 मार्च, 1899 : मायावती में अद्वैत आश्रम की स्थापना
- 20 जून, 1899 : पश्चिमी देशों की दूसरी यात्रा
- 31 जुलाई, 1899 : न्यूयॉर्क आगमन
- 22 फरवरी, 1900 : सैन फ्रांसिस्को में वेदांत समिति की स्थापना
- जून 1900 : न्यूयॉर्क में अंतिम कक्षा
- 26 जुलाई, 1900 : यूरोप रवाना
- 24 अक्तूबर, 1900 : विएना, हंगरी, कुस्तुनतुनिया, ग्रीस, मिस्र आदि देशों की यात्रा
- 26 नवंबर, 1900 : भारत रवाना
- 9 दिसंबर, 1900 : बेलूर मठ आगमन
- जनवरी 1901 : मायावती की यात्रा
- मार्च-मई 1901 : पूर्वी बंगाल और असम की तीर्थयात्रा
- जनवरी-फरवरी 1902 : बोधगया और वारणसी की यात्रा
- मार्च 1902 : बेलूर मठ में वापसी
- 4 जुलाई, 1902 : महासमाधि ली।
स्वामी विवेकानंद से जुड़े सवाल के जवाब
स्वामी विवेकानंद का जन्म कब और कहा हुआ ?
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 कोलकता में हुआ था।
स्वामी विवेकानंद का नाम बचपन में क्या था?
स्वामी विवेकानंद का नाम बचपन में नरेन्द्र दास दत्त था।
स्वामी विवेकानंद के माता पिता का नाम क्या था?
स्वामी विवेकानंद की माता का नाम भुवनेश्वरी देवी और पिता का नाम विश्वनाथ दत्त था।
स्वामी विवेकानंद का पेशा क्या था?
स्वामी विवेकानंद एक आध्यात्मक गुरु थे।
वराह नगर मठ की स्थापना कब हुई थी?
वराह नगर मठ की स्थापना 1886 में हुई थी।
विश्व धर्म सम्मेलन प्रथम व्याख्यान कब और कहा हुआ था ?
विश्व धर्म परिषद शिकागो में 11 सितंबर 1893 को हुआ था।
स्वामी विवेकानंद जी ने महासमाधि कब और कहा ली?
स्वामी विवेकानंद जी ने महासमाधि 4 जुलाई 1902 को बेलूर में लि थी।
Last Final Word
हमारे आज के इस आर्टिकल में हमने भारत के महान विद्धान में से एक स्वामी विवेकानंद जी का परिचय दिया जैसे की स्वामी विवेकानंद का प्रारंभीक जीवन और उनकी शिक्षा प्राप्ति स्वामी विवेकानंद के गुरु, रामकृष्ण परमहंस कौन थे, स्वामी विवेकानंद का मठवाडी बनने का निर्णय, स्वामी विवेकानंद का विश्व धर्म सम्मेलन, स्वामी विवेकानंद जी के अनमोल वचन और विचार, स्वामी विवेकानंद जी का निधन इन सभी जानकारी से आप वाकिफ हो चुके होंगे।
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