विश्व इतिहास में यह नाम तराइन का युद्ध स्वर्ण अक्षरों में लिखा गया है। पश्चिमी क्षेत्रों में अपना झंडा लहराने के बाद मोहम्मद गोरी ने भारत की ओर रुख किया। गौरी ने कई युद्धों का नेतृत्व किया। मोहम्मद गोरी का उद्देश्य भारत में एक मुस्लिम राज्य की स्थापना करना था। 1175 में मुल्तान के शासकों के खिलाफ एक अभियान शुरू किया। इसके बाद वह दक्षिण की ओर मुड़ा और फिर रेगिस्तान को पार कर अहिलवाड़का पहुंचा। 1178 में पहले हिंदू राजा सोलंकी शासक मुलेराजा द्वितीय के खिलाफ लड़ाई हार गए थे। भारत में कई ऐतिहासिक युद्ध हुए हैं, उनमें से एक था तराइन का युद्ध। तराइन की लड़ाई के बाद भारत में मुस्लिम साम्राज्य का आविष्कार हुआ, जिसके बाद भारत कई वर्षों तक मुस्लिम शासकों के अधीन रहा। आइए जानते हैं, कि इतिहास में तराइन का युद्ध क्यों दोहराया गया।
तराइन का युद्ध हाइलाइट्स (Tarain ka Yudh Highlights)
तराइन का युद्ध कहां लड़ा गया | सरहिंद भटिंडा (वर्तमान पंजाब) |
तराइन का युद्ध कब हुआ | 1191 और 1192 ईसा पश्चात में लड़ा गया। |
तराइन का प्रथम युद्ध | राजपूत शासक पृथ्वी राज चौहान ने मोहम्मद गौरी को बुरी तरह पराजित किया। |
तराइन का द्धितीय युद्ध | मोहम्मद गौरी ने पृथ्वीराज चौहान को परास्त कर विजय हासिल की। |
किन-किन के बीच हुआ यह युद्ध | दोनों ही युद्ध मुहम्मद गौरी और चौहान वंश के राजपूत शासक पृथ्वीराज चौहान के बीच में लड़ा गया। |
तराइन का मैदान कहाँ पर है? (Where is the plain of Tarain?)
तराइन की लड़ाई ‘भारतीय इतिहास‘ में महत्वपूर्ण है। थानेश्वर के पास स्थित ‘तराईन‘ या ‘तरावाड़ी‘ ने यहां कई प्रसिद्ध युद्ध लड़े हैं। इनमें से दो युद्ध अजमेर के राजा पृथ्वीराज चौहान और मुस्लिम आक्रमणकारी शहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी के बीच लड़े गए थे। प्रथम युद्ध में पृथ्वीराज और दूसरे युद्ध में मुहम्मद गोरी की विजय हुई। गोरी की इस जीत के कारण भारत में बाहरी आक्रमणकारियों के पैर काफी हद तक जम गए थे, जो लंबे समय तक यहां शासन करते रहे।
तराइन का पहला युद्ध – 1191 (First Battle of Tarain – 1191)
तराइन का प्रथम युद्ध दो शक्तिशाली राजाओं के बीच हुआ था। जो अपने साम्राज्य का विस्तार करना चाहता था। दोनों ही बहुत महत्वाकांक्षी सम्राट थे। 1191 ई.स में लगभग 80 मील दूर सरहिंद किले के पास तराइन के मैदान में बहादुर और निडर राजा पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच युद्ध हुआ था। इसमें पृथ्वीराज चौहान ने अपनी अद्भुत नेतृत्व शक्ति का परिचय दिया। पृथ्वीराज चौहान का नाम हमेशा भारत के साहसी पराक्रमी राजाओं में लिया जाता है। वह एक राजपूत शासक था और पंजाब पर भी अपना वर्चस्व स्थापित करना चाहता था। लेकिन वहां मोहम्मद गोरी का शासन था, पृथ्वीराज चौहान केवल मोहम्मद गोरी को हराकर वहां राज्य स्थापित कर सके।
1191 ई. में अपनी सेना लेकर मोहम्मद गोरी पर पहले सरस्वती फिर सरहिंद पर आक्रमण किया और अंत में हाथी पर अधिकार कर लिया। युद्ध लड़ते समय मोहम्मद गोरी बुरी तरह घायल हो गया था, जिसके कारण उसने मैदान छोड़ने का फैसला किया, इस प्रकार पृथ्वीराज चौहान प्रथम युद्ध में विजयी हुआ।
तराइन का द्वितीय युद्ध कब और किसके बीच हुआ था? (When and between whom did the Second Battle of Tarain take place?)
पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच कुछ युद्ध हुए, जिसमें मोहम्मद गोरी को 17 बार हार का सामना करना पड़ा। जिससे मोहम्मद गौरी गुस्से की आग में जल रहे थे और पृथ्वीराज चौहान को बुरी तरह से नुकसान पहुंचाना चाहते थे।
पृथ्वीराज चौहान और संयोगिता के बीच प्रेम कहानी चल रही थी। वह राजा जयचंद की बेटी थीं। स्वयंवर के दौरान पृथ्वीराज चौहान ने संयुक्ता को छीन लिया था। राजा जयचंद इस कदम से बहुत अपमानित महसूस कर रहे थे, और उन्होंने पृथ्वीराज चौहान से बदला लेने का फैसला किया। जयचंद को पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी के बीच दुश्मनी की जानकारी थी, उन्होंने इसका फायदा उठाने की सोची और मोहम्मद गौरी का समर्थन किया और पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ एक साजिश रची जिसके अनुसार राजा जयचंद ने अपनी सेना भेजकर पृथ्वीराज चौहान का विश्वास जीत लिया। और 1192 ई. में पंजाब के निकट तराइन में अन्हिलवाड़ा पर आक्रमण किया गया। मोहम्मद गोरी ने अपनी सेना को चार भागों में विभाजित किया था, जिसमें 10000 सैनिक थे। तराइन की दूसरी लड़ाई में मोहम्मद गोरी की जीत हुई और पृथ्वीराज चौहान की हार हुई, जिसके बाद शिवराज चौहान को फिर से बंधक बना लिया गया और उसकी आँखों को मौत के घाट उतार दिया गया। इसके बाद मोहम्मद गोरी ने पंजाब, कन्नौज, दिल्ली और अजमेर जैसे बड़े राज्यों में कई वर्षों तक शासन किया। पृथ्वीराज चौहान के बाद भारत को मजबूत करने वाला कोई राजपूत शासक नहीं था। ताज-उल-मसिर के अनुसार, इस युद्ध में पृथ्वीराज चौहान की सेना ने एक लाख लोगों को खो दिया था।
क्या कारण था तराईन युद्ध का? (What was the reason for the Tarain War?)
हिंदू राजाओ में संप्रदाई – भारत के स्टेट में एकता ना होना तराइन के युद्ध का सबसे बड़ा कारण हुआ। यह सब सत्ता को हासिल करने के लिए सब राजा एक दुसरे को मारने के लिए तैयार हो गए थे। गौरी ने इस मौके का फायदा उठाने का सोच लिया था। स्थिति तब और बिगड़ गई जब पृथ्वीराज चौहान जयचंद की पुत्री संयोगिता को लेकर आए। ऐसे में जयचंद और चौहान के बीच संबंध बिगड़ गए और प्रतिशोध की भावना पैदा हो गई। भारत में अक्सर राजाओं के बीच फूट (संप्रदाय) होती रही है। भारत के भीतर संप्रदाय दलों और राज करो, यह नीति अनादि काल से चली आ रही है।
अपने साम्राज्य का विस्तार – पृथ्वीराज चौहान और महम्मद गौरी यह दोनों ही अभिलाषी राजा थे यह दोनों राजा अपना साम्राज्य विस्तार करने के तैयार थे। मोहम्मद गोरी और पृथ्वीराज चौहान ने अपने राज्य का विस्तार करने के लिए कई अभियान चलाए। पृथ्वीराज चौहान की विस्तार नीति का कारण उसके राजा के विरुद्ध हो गया था। जिसके कारण वह अपनी इच्छाओं को बल देने के बाद भी अकेला पड़ रहा था। मोहम्मद गोरी ने अपने समाज का विस्तार करने के लिए कई मंदिरों को तोड़ा और उनके धन को लूटा, इसलिए उन्हें शासक के रूप में जाना जाता है।
गौरी का भारत पर शासन करने का सपना – मोहम्मद गौरी हमेशा से भारत पर अपना राज्य स्थापित करना चाहते थे। पाटन के शासक भीम-द्वितीय पर मोहम्मद गोरी ने हमला किया था। इसमें मोहम्मद गोरी बुरी तरह हार गया था। मोहम्मद गोरी को 16 बार हार का सामना करना पड़ा था। ऐसे में उनके अंदर सनकीपन बढ़ गया था।
इस्लाम का प्रचार – मोहम्मद गोरी इस्लाम धर्म के थे। उनका लक्ष्य भारत में इस्लाम का प्रसार करना था। भारत में अपना राज्य स्थापित करने के बाद इस्लाम के प्रसार में तेजी आई। उनका मानना था कि ज्यादा से ज्यादा लोगों को इस्लाम अपनाना चाहिए।
ताबर हिन्दी पर अधिकार करना – 1189 में महम्मद गौरी ने ताबर हिन्दी पर अधिकार कर लिया था। पहले यह पृथ्वीराज चौहान के खिलाफ आता हैं। यह लड़ाई भी एक महत्वपूर्ण लड़ाई की वजह बनी।
तराइन का तृतीय युद्ध कब और किससे बिच हुआ था? (When and with whom did the third battle of Tarain take place?)
तराइन के दूसरे युद्ध के बाद मुसलमानों के पदचिन्ह उत्तर भारत में बस गए। इल्तुतमिश ने यल्दुज और कुबाचा से युद्ध किया। 1215 ई. में, इल्तुतमिश ने तराइन की तीसरी लड़ाई में यल्दुज कुबाचा को हराया और उसे सिंधु नदी में डुबो दिया। यह लड़ाई एक निर्णायक लड़ाई थी, जिसमें इल्तुतमिश की जीत हुई और दिल्ली के सिंहासन पर उसका अधिकार मजबूत हुआ। ‘तरावाड़ी‘ या ‘तराइन‘ को ‘आजमाबाद‘ भी कहा जाता है।
तराइन युद्ध से संबंधित ग्रंथ
तराइन के युद्ध का कथन निम्नलिखित ग्रंथों में मिलता है।
- मिन्हास-ए-सिराज के तबकात-ए-नसीब ने इसका वर्णन किया है।
- ताजुल-मौसरी।
- पृथ्वीराज विजया।
- परी तारीख-ए परी।
- अब्दुल मलिक इसामी की फुतुह-उन-साल्टिन।
- निज़ाम अल-दीन अहमद की तबक़त-ए-अकबरी।
- अब्द अल-कादिर बदौनी।
तराइन के युद्ध के बारें में पुछे गए महत्वपूर्ण सवाल जवाब
- पहला तराइन का युद्ध कब और किसके बीच हुआ था?
Ans. तराइन की पहली लड़ाई 1191 में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गोरी के बीच लड़ी गई थी। - तराइन का मैदान कहाँ स्थित है?
Ans. तराइन का मैदान हरियाणा के करनाल और थानेश्वर जिले के बीच स्थित है। - पृथ्वीराज चौहान का वास्तविक नाम क्या था?
Ans. पृथ्वीराज चौहान का असली नाम पृथ्वी तीसरा था। - तराइन का द्वितीय युद्ध कब और किसके बीच हुआ था?
Ans. पृथ्वीराज 1192 में तराइन की दूसरी लड़ाई में हुआ था। - तराइन का तृतीय युद्ध कब और किसके बीच हुआ था?
Ans. तराइन की तीसरी लड़ाई 1215-1216 में इल्तुतमिश और कुबाचा के बीच हुई थी। - पहला तराइन किसने जीता?
Ans. प्रथम तराइन का युद्ध पृथ्वीराज चौहान ने मोहम्मद गोरी को हराकर जीता था। - तराइन के द्वितीय युद्ध में कौन विजयी हुआ था?
Ans. तराइन के दूसरे युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को मुहम्मद गोरी ने पराजित किया। - तराई के युद्ध का उल्लेख किस हिंदू ग्रंथ में मिलता है?
Ans. पृथ्वीराज विजया मैं तेरा स्याही के युद्ध का उल्लेख किया गया है। - तराइन का दूसरा नाम क्या है?
Ans. तराइन को तरावाड़ी या आजमाबाद के नाम से भी जाना जाता है।
Last Final Word:
आशा है कि आपको तराइन का युद्ध पर आधारित यह आर्टिकल पसंद आया होगा और इससे जुड़ी सभी जानकारी आपको मिल गई होगी। इस आर्टिकल से जुड़े तराइन के युद्ध के बारें में अपने विचार हमें कमेंट सेक्शन में लिखकर बताएं।
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