दोस्तों आज के इस आर्टिकल में हम भारत के महान शासक टीपू सुल्तान के जीवन के बारे में बात करेंगे। इस आर्टिकल को ध्यान से पढ़ना ताकी टीपु सुल्तान के जीवन से संबंधित जानकारी आपको मिल सके।
भारत में सदीओ से कई सारे महाराजा ने शासन किया है। भारत का इतिहास देखे तो अनेक राजा ने अपने राज्य के लिए अपनी जान दी है। उनकी बहादुरी के किस्से आज भी हींदुस्तान के इतिहास के पन्नो पर देख सकते है। उनको देख कर हमें गर्व की अनुभूति होती है, की भारत में एसे भी राजा थे, जिन्हों ने अपनी कौशल्यता का उपयोग करके भारत देश का नाम दुनिया में अमर कर दिया है। भारत में चन्द्रगुप्त मौर्य, कृष्णदेवराय और पृथ्वीराज चौहान जैसे महान राजा हो चुके है। एसे ही एक महान राजा टीपू सुल्तान के बारे में आज हम इस आर्टिकल में बात करेंगे।
टीपू सुल्तान मैसूर के शासक थे। वे उनकी बहादुरी और साहस के लिए पूरे भारत में जाने जाते थे। उन्होंने भारत के इतिहास में महत्ता प्राप्त की है। टीपू सुल्तान को टाइगर ऑफ मैसूर की उपाधि प्राप्त हुई थी। टीपू सुल्तानजी पहले भारतीय शासक थे, जिन्होंने अंग्रेजों से लोहा लिया था। भारत की सरकार ने उसे आधिकारिक रूप से स्वतंत्रता सेनानी घोषीत कीया है। ब्रिटिश आर्मी के नेशनल आर्मी म्यूजियम, टीपू सुल्तानजी को ब्रिटिश आर्मी के सबसे बडे दुश्मन मानते थे।
क्र. म.(s.No.) | परिचय बिंदु (Introduction Points) | परिचय (Introduction) |
1. | पूरा नाम ((Full Name) | सुल्तान फ़तेह अली टीपू |
2. | जन्म दिन (Birth Date) | 20 नवंबर 1750 |
3. | जन्म स्थान (Birth Place) | देवानाहाली |
4. | पेशा (Profession) | मैसूर का पूर्व शासक और अंग्रेजों से लड़ने वाला योद्धा |
5. | राजनीतिक पार्टी (Political Party) | – |
6. | अन्य राजनीतिक पार्टी से संबंध (Other Political Affiliations) | – |
7. | राष्ट्रीयता (Nationality) | भारतीय |
8. | उम्र (Age) | 48 वर्ष |
9. | गृहनगर (Hometown) | मैसूर |
10. | धर्म (Religion) | मुस्लिम |
11. | जाति (Caste) | – |
12. | वैवाहिक स्थिति (Marital Status) | विवाहित |
13. | राशि (Zodiac Sign) | वृश्चिक (Scorpio) |
14. | मृत्यु (Death) | 4 मई 1799 |
टीपू सुल्तान का प्रारंभिक जीवन
टीपु सुल्तान का जन्म मैसूर साम्राज्य मे 20 नवंबर को वर्ष 1782 मैं देवनहल्ली शहर मे हुआ था। पिता का नाम हैदर अली और माता का नाम फख्र उन नीसा था। उनकी माता को फातिमा बेगम के नाम से जाना जाती था। उनके पिता दक्षिण भारत में मैसूर साम्राज्य के एक सैन्य अफसर थे। टीपू सुल्तान उनके पिता के बड़े बेटे थे। हैदर अली वर्ष 1761 में मैसूर साम्राज्य के वास्तविक शासक के रूप में सिंहासन पर बीराजे थे। पिता की मृत्यु के बाद मैसूर का साम्राज्य टीपू सुल्तानजी ने वर्ष 1782 में संभाला था। उनके पिता पढ़े लिखे ना होते हुए भी अपने पुत्रों को शिक्षित करने के बारे में सोचा और अच्छी शिक्षा देखकर उनका विकास किया।
टीपू सुल्तान को अलग-अलग भाषाओं में रुचि थी। भाषा के प्रति रुचि के कारण उन्होंने फारसी, अरेबिक, कन्नड़, कुरान और इस्लामिया शास्त्र का अध्ययन किया था। एक कट्टर मुस्लिम होने के बावजूद उन्हे ने अलग-अलग धर्मों का अध्ययन किया था। उन्होने घुड़सवारी, तलवारबाजी और शूटिंग भी सीखी थी। उनके पिता का फ्रांसीसी अधिकारियों के साथ राजनीतिक संबंध था, जिसके कारण टीपू सुल्तानजी को सेना में अत्यधिक कुशल फ्रांसीसी अधिकारियों के द्वारा राजनीतिक मामलों के लिए परीक्षित करने में आए थे।
टीपू सुल्तान ने अपने प्रशासन के समय में अनेक परिवर्तन किए थे। साथ ही लोहे से बने मैसूरियन राकेट का आविष्कार किया था। इसका इस्तेमाल बीटीसी के खिलाफ किया गया था। उन्होंने अपनी कुशलता से और साहस से भारत के इतिहास में अपना नाम कायम किया है।
उनका प्रारंभिक जीवन संघर्षमय रहा था। शिक्षा और राजनीतिक मामलों में प्रशिक्षित होने के पश्चात ही उनके पिता ने उनको युद्ध के लिए प्रशिक्षित किया था। उनकी पहली लड़ाई वर्ष 1766 अंग्रेजो के खिलाफ थी। इस लड़ाई के वक्त उनकी उम्र 15 साल की थी। उन्होंने मैसूर के साम्राज्य को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी से बचाया था। उन्होंने अपने साम्राज्य की रक्षा करने के लिए दिन रात एक कर दिए थे।
टीपू सुल्तान ने मैसुर के लीए नेवी बनाने का महत्व पुर्ण कार्य कीया था। टीपू सुल्तानजी ने एक एसा सैन्य तैयार किया था, जो ब्रिटिश फोर्स के लीए घातक साबित हो सकता था। इसमे 72 तोपो वाले युध्धपोत, 20 फ्रींगेट वाले 62 तोप का समावेश किया गया था।
टीपू सुल्तानजी ने अपने पिता के अधूरे कार्य को पुर्ण किए थे। उन्होने सडकें, पुल, ईमारते और पोर्ट बनवाये थे साथ ही कीस्से और महलो के लीए जीर्णोद्धार थी बनाए थे।
टीपू सुल्तान का शासनकाल
टीपू सुल्तान के संरक्षण में आने वाले, माहे के फ्रांसिसी नियंत्रण बंदरगाह पर अंग्रेजो के द्वारा वर्ष 1779 में कब्जा किया गया था। इसका बदला लेने के लिए टीपू सुल्तानजी के पिता ने वर्ष 1780 मे अंग्रेजो के खिलाफ शत्रुता को प्रारंभ किया।
उन्होंने अंग्रेजों से 4 बार लड़ाई लड़ी थी। जीसे एंग्लो मैसूर युद्ध के नाम से जाना जाता है। युद्ध के दौरान टीपू सुल्तान की उम्र 15 साल की थी। पिता के साथ से उन्होंने पहला मैसूर युद्ध लडा़ और हैदर अली को दक्षिण भारत के प्रभावशाली राजा के रुप मे प्रसिध्ध कीया।
उनके बीच पहला एंग्लो मैसूर युद्ध 1767 से 1769 तक चला था। हकीकत में हैदर अली वर्ष 1767 के शक्तिशाली राजा थे। उन्होंने अंग्रेजों को हरा कर मद्रास की संधी की थी। इसके बाद से हैदर अली को पूरा कर्नाटक मील गया था। हैदर अली निजाम और मराठों की सहायता से कर्नाटक की राजधानी आर्कोड पर अपना शासन स्थापित किया था।
दूसरा एंग्लो मैसूर युद्ध वर्ष 1784 तक चला था। साल 1781 मैं जुलाई में पोर्ट नोवो मे एयर कुटे ने हैदर अली को पराजित किया था। उसके बाद हैदर अली कैंसर की बीमारी से पीड़ित होकर साल 1782 में मृत्यु पामे थे।
हैदर अली के देहांत के बाद 22 दिसंबर वर्ष 1782 के दीन टीपू सुल्तानजी ने मैसूर के साम्राज्य को संभाला। उसके बाद से उनके औपचारिक रूप से राजनीतिक और सामाजिक जीवन की शुरुआत हुई। शासन पर आते ही, उन्होंने मिलिट्री स्ट्रेटेजी पर काम करना शुरू कर दिया था। उन्होंने अंग्रेजों को कंट्रोल करने के लिए मराठा और मुगलों से संधी की थी। टीपू सुल्तान की मंगलौर कि संधी के बाद वर्ष 1784 में एंग्लो मैसूर का द्वितीय युद्ध खत्त्म हुआ।
एंग्लो मैसूर द्वितीय युद्ध के दौरान उन्होंने साबित किया था कि वे कितने बड़े योद्धा और कूटनीतिज्ञ है। पिता की मृत्यु के बावजुद भी उन्होंने संधी होने तक अपना युद्ध जारी रखा।
समय के चलते टीपू सुल्तान महत्वाकांक्षी बन गया। अपने शासन की सीमा को बढ़ाने के लिए सोचने लगा। उसे अंग्रेजो को हराकर भारत का बादशाह बनना था। उसकी नजर ट्रेवेन्कोर पर थी, जो मंगलौर संधि के आधार पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी का सहयोगी राज्य था।
तीसरे एंग्लो मैसूर युद्ध की शुरुआत साल 1789 मे टीपू सुल्तानजी के ट्रेवेन्कोर पर आक्रमण करने के बाद से हुई थी। ट्रेवेन्कोर के राजा ने अंग्रेजों से सहायता मांगी और लार्ड कार्नवालीस को मराठा और हैदराबाद के निजाम के साथ भेज दिया। नेडुमकोटा मे साल 1789 मे युद्ध के दौरान टीपू सुल्तान ने अपनी तलवार गुमा दी थी। साल 1790 में टीपू सुल्तानजी पर कंपनी की सेना ने आक्रमण किया था। उसके बाद से कोयंबटूर पर से टीपू सुल्तान का शासन खत्म हो गया। इसके बाद टीपू सुल्तान ने वापिस हमला किया परंतु वह सफल नहीं हो पाया। इस प्रकार युद्ध 2 साल तक चला और सेरींगापटनम की संधी के बाद वर्ष 1792 मे खत्म हुआ। लड़ाई खत्म हो गई थी परंतु टीपू सुल्तानजी के हाथ से कईं सारे क्षेत्र जैसे कि मालाबार और मंगलौर निकल गए थे। इसके बाद भी उन्होंने अंग्रेजों से दुश्मनी बनाए रखी। वर्ष 1799 में मराठों और निजामो के साथ मिलकर ईस्ट इंडिया कंपनी ने मैसूर पर हमला किया। इस हमले के बाद से मैसूर की राजधानी श्रीरंगपटनम अंग्रेजों के कब्जे मे थी।
टीपू सुल्तान की मृत्यु
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को नेपोलियन के घुसपैठ का डर था। ब्रिटिश गवर्नर जनरल लोर्ड मोनिँगटन कोलकाता पहुंचे। साल 1798 में उन्होंने सबसे पहले टीपू सुल्तान के मामले को सुलझाने का फैसला लिया। मद्रास में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सिपाही और घुडसवार को जरनल हैरीस के आदेश पर एकत्र करने मे आए। हैदराबाद के निजाम और मोनिँगटन के भाई ने इसमें ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी को सहयोग दिया था।
मैसूर पर आक्रमण की शुरुआत 1799 मे हुई थी। इसमें हाथी, ऊंट के अतिरिक्त अधिकारी को मीट प्राप्त कराने के लिए हजारों की संख्या में भेड़ बकरियां भी लाइ गय थी। सैनिकों के लिए खाने की चीजें भी साथ में लाई गई थी।
टीपू सुल्तान को पहले युद्ध में हराकर काफी सारे क्षेत्र को ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने अपने हाथों में ले लिए थे। इस घटना के बाद भी टीपू सुल्तान का साहस नहीं डगमगाआ। एक और ब्रिटिश जनरल के पास 50,000 सिपाही थे, तो दूसरी और टीपू सुल्तान के पास सिर्फ 30,000 सिपाही थे।
अंग्रेज सिपाही सेरींगापटनम की दीवार की चारों तरफ तैनात हो गए थे। टीपू सुल्तान युद्ध को खत्म करने के लिए शांति संदेश भेज रहा था। परंतु अंग्रेजो ने युद्ध जारी रखा। टीपू सुल्तान के सितारे अच्छे ना होने की वजह से उनके दुर्भाग्य को डालने के हेतु से ब्राह्मण को दान पुण्य करने का कार्य शुरू किया। अंग्रेजो ने टीपू सुल्तान को चारों ओर से घैर कर लगभग 1:00 बजे हमला बोल दिया। उन्होंने साहस के साथ युद्ध लड़ा। जब वे घायल हुए तो उसके नौकर ने उसे बचाने के लिए पालकी में ले जाने की कोशिश की। परंतु अंग्रेज ने गहनो की लालच में आकर उसे मार दीया। अंग्रेजों ने रात के समय में मैदान में पड़ी लाशों मे से टीपू सुल्तान की लाश को सम्मान पूर्वक निकाल कर उनकी अंतिम विदाई की ।
टीपू सुल्तान को हराकर मार डालने की खुशखबरी इंग्लैंड पहुंची तो अंग्रेज अधिकारी को बहुत पैसे और अवाँड देकर सम्मानित किया गया। मोनिँगटन को माक्र्वेस वेल्सेले का पद कीया गया। उसके छोटे भाई को टीपू सुल्तान के साम्राज्य का प्रभारी बनाया गया।
टीपू सुल्तान से संबंधित रोचक तथ्य
- देश के पूर्व राष्ट्रपति ए. पीजे अब्दुल कलाम ने सुल्तान के बारे में बताया था की दुनिया के पहले रॉकेट का आविष्कार टीपू सुल्तान ने किया था।
- टीपू सुल्तान के दांत, तलवार और अंगूठी को अंग्रेजो के द्वारा कब्जे में ले लिया गया था। इन सभी चीजों को वर्ष 2004 तक ब्रिटिश म्यूजियम में दिखाया जाता था। परंतु इसके बाद इन चीजों की नीलामी करने में आई तो विजय माल्या ने उसे खरीद लिया।
- टीपू सुल्तान ने अपने शासन के प्रतिक के लिए शेर के जानवर को अपनाया था। जिसकी वजह से उनको मैसूर के शेर के रूप में जाना जाता था।
- टीपू सुल्तान ने हिंदू और ईसाइय के मंदिर और चर्चो को नष्ट करके उन्हें इस्लाम धर्म में शामिल किया था।
टीपू सुल्तान से संबंधित ऐतिहासिक विवाद
एक और टीपू सुल्तान को भारत-पाकिस्तान के स्वतंत्र सेनानी के रूप से सम्मानित किया जाता है, तो दूसरी और देश के कुछ क्षेत्र में उसे क्रूर शासक के रूप में मानते हैं। कई सारी रिपोर्ट में बताया गया है कि टीपू सुल्तान ने Chitlrackal Taluqa के Thalipparampu और Thrichambaram नामक मंदीर को तथा Tell cherry के Thiruvangatu के मंदीर को विखंडित कर दिया था।
टीपू सुल्तान ने कई सारी जगहों के नाम मे परिवर्तन कर दिए थे, जैसे कि मंगलोर का नाम बदलकर जलालाबाद, बेपुर को सुल्तान्पटनम मे, कन्नुर का नाम बदल कर कुसनबाद, गुटा को फैज हीस्सार इत्यादी जगह का नाम बदल दिया था।
टीपू सुल्तान को बागवानी और कृषि विज्ञान मैं रुचि थी। उन्होंने दूसरे देश से कई अलग-अलग प्रकार के बीज और पौधों को मंगवाया था। उनके शौक के लिए उन्होंने बेंगलुरु में करीबन 40 एकड़ में फैला लालबाग का बॉटनिकल गार्डन का निर्माण किया था। उन्होंने बहुत सारे प्राणियों को भी गोद लिए थे।
टीपू सुल्तान ने ऑटोमन के सुल्तान अब्दुल हामिद प्रथम को साल 1786 में इस्तांबुल में दूत को भेज कर सेना के लिए सहायता मांगी थी। परंतु ऑटोमन ने समर्थन नहीं दिया क्योंकि वह किसी बड़ी शक्ति से उलझना नहीं चाहता था। इसके बावजूद भी टीपू सुल्तान ने उम्मीद नहीं छोड़ी और अपनी कोशिश जारी रखी।
टीपू सुल्तान का मानना था कि 200 साल भेड़ की तरह जा ने से बेहतर है की 2 दिन शेर की तरह जीया जाए। कुछ है शेर बहुत पसंद है जिसकी वजह से उन्होंने 200 मील दूर सेरींगापटनम के कीले मे 6 शेर पाले थे। उन्होंने शेर की तरह दिखने वाला सिंहासन भी बनवाया था। उसका पसंदीदा है खिलौना मैकेनिकल टाइगर था जो हाल में विक्टोरिया एंड अल्बर्ट म्यूजियम मे रखा गया है।
टीपू सुल्तान का व्यक्तिगत जीवन
उनका का नाम सुल्तान सईद वाल्शारीफ़ फ़तह अली खान बहादुर साहब टीपू था। टीपू सुल्तान सुन्नी इस्लाम धर्म से जुडे रखते थे। उनकी पत्नी का नाम सिंध सुल्तान बेगम था। टीपू सुल्तान ने अपने जीवन में कई शादियाँ की थी। जिनसे उनके कई बच्चे भी हुए थे। जैसे की शहज़ादा हैदर अली सुल्तान, शहज़ादा अब्दुल खालिक़ सुल्तान, शहज़ादा मुहि – उद – दिन सुल्तान और शहज़ादा मु’इज्ज़ – उद – दिन सुल्तान थे।
Last Final Word
दोस्तों यह थी भारत के सम्राट टीपू सुल्तान के बारे में जानकारी हम उम्मीद करते है कि आपको यह आर्टिकल पसंद आया होगा अगर आपके मन में अभी भी कोई सवाल रह गया हो तो हमें कमेंट के माध्यम से बताइएगा।
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